हाथी, घोड़ा , पालकी ।
जय कन्हैयालाल की ।।
संस्कृत धातु दुल् से बना है डोर शब्द। दुल में हिलाना, घुमाना जैसे भाव शामिल है। इससे बना है दोलः जिसका अर्थ होता है झूलना, हिलना, दोलन करना, एक जगह से दूसरी जगह जाना, घट-बढ़ होना। हिंडोलाशब्द इससे ही बना है जिसका संक्षिप्त रूप डोलाया डोली होता है। इसके लिए शिविका या पालकी शब्द भी प्रचलित है। दोलन से बनी डोली में डोलने की क्रिया साफ नजर आ रही है। डोलने की क्रिया से ही रस्सी के अर्थ में डोर शब्द का निर्माण हुआ है। झूलने के भाव से साफ है कि किसी जमाने में डोर उसी सूत्र को कहते रहे होंगे जिसे ऊपर से नीचे की ओर लटकाया जाए।
गौरतलब है कि पालकी और पैलनकीन का न सिफ अर्थ एक है बल्कि ये जन्में भी एक ही उद्गम से हैं और वह है संस्कृत शब्द पर्यंक: जिसका मतलब होता है शायिका। इसके अलावा इसका अर्थ समाधि मुद्रा या एक यौगिक क्रिया भी है जिसे वीरासन कहते हैं। संस्कृत में पर्यंक: का ही एक और रूप मिलता है पल्यंक:। खास बात ये कि हिन्दी का पलंग शब्द इसी पर्यंक: से निकला है और संस्कृत मे भी इसका अर्थ चारपाई, शायिका या खाट ही है। संस्कृत से पालि भाषा मे आकर पर्यंक: ने जो रूप धारण किया वह था पल्लको। यही शब्द पलंगडी़ के रूप में भी बोला जाता है। पलंग चूंकि शरीर को आराम देने के काम आता है और आराम का आधिक्य मनुश्य को आलसी बना देता है लिहाज़ा हिन्दी में आलस से संबंधित कुछ मुहावरों के जन्म में भी इस शब्द का योगदान रहा जैसे पलंग तोड़ना यानी किसी व्यक्ति का काहिलों की तरह पड़े रहना, कामधाम न करना, निष्क्रिय रहना आदि। ऐसे लोगों को पलंगतोड़ भी कहते हैं।
खास बात ये कि पूर्वी एशिया में बौद्धधर्म का प्रचार-प्रसार हुआ तो वहां पालि भाषा के शब्दो का चलन भी शुरू हुआ। इंडोनेशिया के जावा सुमात्रा द्वीपो में आज भी पालकी के लिए पलंगकी शब्द चलता है जो पालि भाषा की देन है। जावा सुमात्रा पर पुर्तगाली शासन के दौरान यह शब्द पुर्तगाली जबान में भी पैलनकीन (palangquin) बनकर शामिल हुआ और इसके जरिये योरप जा पहुंचा। अंग्रेजी में इसने जो रूप लिया वह था पैलनकीन। उर्दू फारसी में पलंग शब्द तो है मगर इसका अर्थ चारपाई न होकर तेंदुआ है।
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9 कमेंट्स:
जय कन्हैयालाल की । बचपन की याद दिला दी ।
बनारस के पलंगतोड़ पान के बारे में क्या खयाल है ?
पंलग तोड ...................... वह तो मै हू .
सुंदर!
हाथी, घोड़ा , पालकी ।
जय कन्हैयालाल की ।।
maja aa gayaa :)
बहुत अच्छा और उपयोगी लेख
धन्यवाद
बनारस की गलियों में पालकी के बिना मरीज को अस्पताल पहुंचाना मुश्किल है
जानकारी के लिए आभार ........
तोड़े कई पलंग तो बदनाम हो गए,
डोली बिठा ले आये दुल्हन, गुलफ़ाम* हो गए,
रफ़्तार बढ़ गयी है पलंग टूटने की अब,
अब तो मियांजी और भी बेफाम* हो गए.
*गुलफाम = माशूक
*बेफाम= uncontrollable
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