Sunday, April 25, 2010

बालकनी और बालाखाना में बाले-बाले

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हि न्दी में दुछत्ती या छज्जे के लिए अंग्रेजी से आयातित बालकनी शब्द आम है और हिन्दी की विभिन्न शैलियों सहित भारत की ज्यादातर भाषाओं में इस्तेमाल होता है। बालकनी का बाल शब्द बहुत महत्वपूर्ण है और इसकी अर्थवत्ता बहुत व्यापक है जिसमें शीर्षस्थ, प्रकाशमान, ऊपरी, बड़ा, परमशक्तिमान, भव्य, देवता अथवा स्वामी जैसे भाव समाए हैं। बालकनी भारोपीय भाषा परिवार का शब्द है और इसका रिश्ता बहुत गहराई से न सिर्फ इंडो-ईरानी भाषा परिवार से जुड़ता है बल्कि इसकी अर्थछायाएं पश्चिम एशियाई सांस्कृतिक आधार वाली भाषाओं यानी सुमेरी ( मेसोपोटेमियाई), बाबुली (बेबिलोनियन) और इब्रानी (हिब्रू) में भी नजर आती है। सुमेरी यानी मेसोपोटेमियाई भाषा में यह शब्द बेल है और हिब्रू में बाल Baal के रूप में मिलता है। हिन्दी, उर्दू व फारसी में भी यह प्रचलित है। लोगों को रत्ती भर खबर हुए बिना अंजाम दी गई कारगुजारी को बाले बाले (बाला बाला) कहते हैं। यहां ऊपर ऊपर मामले को निपटाने का भाव ही प्रमुख है। पुराने ज़माने में मकान की ऊपरी मंजिल को बालाखाना कहते थे। बाला यानी ऊपर और खाना यानी स्थान या कोष्ठ। अग्रेजी की बालकनी में भी ऊंचाई का ही भाव है।
प्राचीन भारोपीय भाषा परिवार की ध्वनि फारसी, ईरानी समेत सेमिटिक भाषाओं में जाकर में बदलती रही है। संस्कृत के भर्ग में भी ऊंचाई का भाव है। इसका फारसी रूप बुर्ज होता है जिसका अर्थ मीनार या ऊंचा गुम्बद है। बुर्ज का  huangshan ही यूरोपीय भाषाओं में बर्ग, बरो में रूपांतर होता है। कई स्थान नामों में यह जुड़ा नजर आता है। प्राचीन मनुष्य की शब्दावली और उसकी अर्थवत्ता का विकास प्रकृति के अध्ययन से ही हुआ था। प्रायः ऊंचाई को इंगित करनेवाले शब्दों का मूलार्थ रोशनी, चमक, दीप्ति था। प्रकाशमान वस्तु के रूप में मनुष्य ने आसमान में चमकते खगोलीय पिण्डों को ही देखा था। पूर्व वैदिक भाषाओं में भा ध्वनि में इसीलिए ऊंचाई के साथ चमक, कांति का भाव भी निहित है। संस्कृत के भर्गस् में एक साथ चमक, प्रकाश, भव्यता का भाव निहित है। The Nostratic macrofamily: a study in distant linguistic relationship पुस्तक में एलन बोम्हार्ड, जॉन सी कर्न्स  ने विभिन्न भाषा परिवारों में प्रकाश और ऊंचाई संबंधी समानता दर्शानेवाले कई शब्द एक साथ रखे हैं। प्रोटो एफ्रोएशियाटिक भाषा परिवार की धातुओं bal और bel का अर्थ भी यही है और प्रोटो सेमिटिक के bala / bale में भी यही भाव है। स्पष्ट है कि प्राचीन भारोपीय ध्वनि भा यहां बा में बदल रहा है। गहराई से देखें तो भा ध्वनि में निहित चमक का भाव विभा, विभाकर, भास्कर जैसे शब्दों में साफ है। तमिल-तेलुगू के pala pala में भी कांति, दीप्ति, चमक का भाव है।  भा के बा में बदलने की मिसाल वजन के अर्थ में हिन्दी के भार और फारसी के बर या बार (बारदान, बारदाना, बोरी) से भी स्पष्ट है। ध्यान दें, बहुत महीन अर्थ में यहां भी ऊंचाई का भाव है। जिसे ऊपर उठाया जाए, वही भार है। अंग्रेजी के बर्डन में यही बार छुपा हुआ है। ऐसे अनेक उदाहरण हैं।
श्रय से जुड़े शब्दों के निर्माण की प्रणाली मूलतः एक जैसी ही रही है। बालकनी भी एक आश्रय है। बालकनी की संरचना पर गौर करें। यह स्तम्भ या खम्भे पर टिकी होती है। इसकी मूल प्रोटो इंडो यूरोपीय धातु है *bhelg- जिसका अर्थ है स्तम्भ या आधार। स्तम्भ, मीनार, ऊंचाई, पर्वत शृंखला, पहाड़ी आदि अर्थों में विभिन्न यूरोपीय भाषाओं में इससे अनेक शब्द बने हैं जैसे ओल्ड स्लोवानी में balko, ओल्ड हाई जर्मन में balcho, लिथुआनी में balziena और ओल्ड इंग्लिश में balca आदि। इसका इतालवी रूप हुआ balcone. प्रोटो इंडो यूरोपीय धातु *bhelg- से प्राचीन जर्मनिक में *balkan- धातु विकसित हुई जिसके ये तमाम रूप थे और अंग्रेजी का बालकनी शब्द इससे ही विकसित हुआ है। विद्वानों का यह भी मानना है कि छज्जे के अर्थ में बालकनी का विकास इसी शब्द शृंखला में आनेवाले तुर्की-ईरानी bālkāneh से हुआ है। इसका एक रूप pālkāneh भी है। फारसी के बालाखाना से इनकी सादृश्यता गौरतलब है जिसका अर्थ ऊपरी मंजिल होता है। बाला यानी ऊपर और खाना यानी कक्ष। अंग्रेजी का बालकनी इसी का रूपांतर लगता है।
डॉ भगवत शरण उपाध्याय, भारतीय संस्कृति के स्रोत पुस्तक में लिखते हैं कि यह शब्द सुमेरी मूल से उठकर बाद में बेल या बाल के रूप में संस्कृत में समा गया। सुमेरी संस्कृति में इसका मतलब होता है -सर्वोच्च, शीर्षस्थ या सबसे ऊपरवाला। हिब्रू में इसका मतलब होता है परम शक्तिमान, देवता अथवा स्वामी। हिन्दी के बालम, बलमा जैसे शब्द यहीं से आ रहे हैं। पति या भर्तार के अर्थ में बलमा, बालम में भी स्वामी का ही भाव है। गौरतलब है कि लेबनान की बेक्का घाटी में बाल देवता का मंदिर है। जानकारों के मुताबिक सुमेरियों के बाल देवता का रूपांतरण ही बाद में रोमन जुपिटर के रूप में हुआ। गौर करें की दूध के ऊपर जो क्रीम जमती है उसे हिन्दी में मलाई कहते हैं। मलाई को उर्दू, फारसी और अरबी में बालाई कहते हैं क्योंकि इसमें भी ऊपरवाला भाव ही प्रमुख है। जो दूध के ऊपर हो वही बालाई। हिन्दी में इसका प्रवेश विदेशज की तरह हुआ फिर मलाई बनकर यह हिन्दी का ही हो गया। की जगह ने ले ली। गौरतलब हैं कि ये दोनों ही अक्षर एक ही वर्णक्रम में आते हैं और अक्सर इनमें अदल-बदल होती है। रोम या केश को बाल इसीलिए कहा जाता है क्योंकि वे शरीर के ऊपर या सिर जो सर्वोच्च है, के ऊपर होते हैं। रूस की बोल्शेविक क्रांति दुनिया में प्रसिद्ध है। बोल्शेविक का शाब्दिक अर्थ हुआ बहुसंख्यक। मगर इसमें भी बाल यानी सर्वशक्तिमान की महिमा नजर आ रही है। -जारी

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10 कमेंट्स:

Sanjay Kareer said...

बहुत शानदार। बड़े भाई आपके ब्‍लॉग पर आकर भी ऐसा ही लगता है कि ब्‍लॉग जगत की बालकनी में आकर खड़े हो गए हैं। सबसे अलग, सबसे ऊपर... :)

Kavita Vachaknavee said...

बहुत बढ़िया!

Udan Tashtari said...

पुनः आनन्द आया हमेशा की तरह ज्ञानवर्धन का आभार.

नीरज मुसाफ़िर said...

बढिया ज्ञानवर्धन!

दिनेशराय द्विवेदी said...

वे घर हमारे आते नहीं
आते तो हैं गाँव में मगर
बाला बाला निकल लेते हें।
आज का सफर शानदार रहा।

''अपनी माटी'' वेबपत्रिका सम्पादन मंडल said...

इस सफ़र में आने पर हमेशा की तरह बहुत आनंद आया.ज्ञान भी बढ़ा
अपनी माटी
माणिकनामा

वेद थापर said...

अजित जी, शुक्रिया
http://www.humaawaz.org/about_us.html

उम्मतें said...

सोचता हूँ अगली किश्त पढ़कर कुछ कह पाउँगा ...मुमकिन है जनाब बलजीत बसी और मंसूर अली हाशमी साहब इन खूबसूरत बालकनियों पर कुछ कंदीलें जला दें !

हरकीरत हीर said...

इन जानकारियों से विस्मित और प्रभावित हूँ....पिछली पोस्ट भी देखी ...कुछ पारिवारिक पोस्ट लगी ...भाई साहब का ज़िक्र था ....अभी दोबारा देखती हूँ .....!!

Asha Joglekar said...

यह पोस्ट और इसके बाद की पोस्ट जो मैने पहले पढी रिश्तेदारी में है बाल बालाखाना बाल्कनी और बाल भी । बाल ऊपर तो होते हैं पर काफी देर में सफेद होते हैं । हमेशा की तरह ज्ञान वर्धक और रोचक पोस्ट ।

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