Monday, January 30, 2012

सजने-सँवरने की बातें (गहना-1)

Jewelry_diamonds
हनों के प्रति लगाव मनुष्य की का सहज स्वभाव है और सजना-सँवरना नैसर्गिक प्रवृत्ति । प्रकृति के विविध रंगरूपों नें ही मनुष्य के भीतर भी शृंगार की भावना जन्मी । शुरुआत में मनुष्य ने फूल पत्तियों से खुद को सजाया । बाद के दौर में धातु के वर्तुलाकार आभूषणों की खोज हुई । बौद्धिक विकास के साथ यह धारणा भी बनी कि त्वचा और स्नायुओं पर इन गहनों से दबाव पड़ता है जिससे मन को शान्ति मिलती है । ज़ाहिर है गहने रोगमुक्ति का ज़रिया भी बने । फलित ज्योतिष का विकास हुआ तो गहनों का महत्व और बढ़ गया । रोगमुक्ति से बढ़ कर भाग्योदय के संकेत भी धातुओं, नगीनों के साथ जुड़ गए । इस दौर में गहने सिर्फ इन्ही पदार्थों से बनने लगे थे । गहना के लिए हिन्दी में दागिना, आभरण, भूषण, विभूषण, आभूषण, अलंकार, ज़ेवर, अवतंस, ज्वैलरी आदि शब्द प्रचलित हैं । 
भूषण के लिए हिन्दी में गहना शब्द भी खूब प्रचलित है । गहनों को स्त्री और पुरुष दोनों ही धारण करते हैं पर स्त्रियों में हर वस्तु के संग्रह की वृत्ति होती है क्योंकि उसे गृहस्थी चलानी होती है । गहनों के प्रति एक स्वाभाविक आग्रह भी उनमें होता है । गहनों की सबसे बड़ी ग्राहक भी स्त्रियाँ ही होती हैं । गौर संग्रह, ग्रह, आग्रह जैसे शब्दों पर । ये सभी एक ही मूल से निकले हैं । हिन्दी के ज्यादातर शब्दकोशों में गहना शब्द की व्युत्पत्ति संस्कृत के ग्रहण से मानी गई है जिसका अर्थ है पकड़ना, फाँसना, लेना, पहनना, धारण करना आदि। ग्रहण बना है संस्कृत के ग्रहः शब्द से जिसके मूल में है ग्रह् धातु जिसमें पकड़ना, थामना, लपकना, प्राप्त करना आदि भाव समाए हैं। संस्कृत धातु ग्रह् से बने हैं ये सभी शब्द । ध्यान रहे शरीर को सज्जित करने की वस्तुएँ ही आभूषण हैं । ग्रहण में मूल भाव इन्हें पहनने से निकल रहा है । गहना वह है जिसे रूप-सज्जा के लिए शरीर पर ग्रहण किया जाए । 
गौरतलब है कि इन तमाम अर्थों के लिए मूलतः वेदों की भाषा अर्थात वैदिकी या छांदस् (संस्कृत नहीं) में ग्रह् नहीं बल्कि ग्रभ् शब्द है । भाषाविज्ञानियों ने अंग्रेजी के ग्रास्प (grasp) या ग्रैब (grab) जैसे शब्दों के लिए भी इसी ग्रभ् को आधार माना है। बस, उन्होंने किया यह कि प्राचीन भारोपीय भाषा परिवार से एक काल्पनिक धातु ghrebh खोज निकाली है जो इसी ग्रभ् पर आधारित है और जिसमें पकड़ना, छीनना, झपटना, लपकना आदि भाव छुपे हैं। इसी से मिलते जुलते शब्द कई अन्य भाषाओं में भी हैं जैसे ग्रीक में baros यानी भारी या गोथिक में kaurus यानी वज़नी या अंग्रेजी का ग्रिप आदि। लपकने, हड़पने या अधिकार जमाने के भावों का अर्थ विस्तार ही गुरु या गुरुत्व जैसे शब्दों में है। सूर्य-ग्रहण या चंद्र-ग्रहण जैसे शब्दों के अर्थ एक ग्रह् की छाया में दूसरे ग्रह के अदृष्य होने में समझे जा सकते हैं ।
मोनियर विलियम्स के कोश में गहना शब्द की व्यत्पत्ति गहन से बताई गई है । संस्कृत के गहन का अर्थ है गहरा, सघन, सान्द्र जो गह् धातु से निकला है। हिन्दी का गहरा, गहराई जैसे शब्द इसी कड़ी में आते हैं । गुफा, कन्दरा या जंगल के अर्थ वाला गह्वर शब्द भी इसी मूल से निकला है । सज्जा के उपकरण के तौर पर गहना शब्द की व्युत्पत्ति इन अर्थों से मेल नहीं खाती बल्कि इन अर्थों के बीच अचानक ornament वाला अर्थ बेमेल नज़र आता है। शब्दसागर में भी इसी का अनुकरण मिलता है । दिलचस्प यह कि मोनियर विलयम्स को आधार मान कर बनाए गए वाशि आप्टे के कोष से गहन शब्द के भीतर से गहना वाली प्रविष्टि हटा ली गई है । स्पष्ट है गहन से आभूषण वाले गहना का कोई रिश्ता नहीं है । रॉल्फ़ लिली टर्नर और जॉन प्लैट्स भी ग्रहण से ही गहना की व्युत्पत्ति को सही मानते हैं । -जारी
ये सफर आपको कैसा लगा ? पसंद आया हो तो यहां क्लिक करें

4 कमेंट्स:

Mansoor ali Hashmi said...

जिसने रौशन घर किया, हमने उसे 'गहना' दिया,
बाप से उसके मिला, उससे बहुत ही कम दिया,
'सूर्य' बन के 'चन्द्र' को अपने 'ग्रहण' ही दे सके,
खुशियाँ लेके आई जो, उसको ही हमने ग़म दिया.

http://aatm-manthan.com

विष्णु बैरागी said...

गहनों के लिए 'दागिना' का उपयोग मैंने केवल गुजरात में ही देखा/सुना।

राजेश करमहे said...

कहते हैं कि माटी और बेटी का जितना भी श्रृंगार करो कम है|माटी अर्थात् घर या 'गेह' और बेटी अर्थात् 'नारी' के मेल से जो सौन्दर्य बोध होता है, वह है 'गहना', 'गेहना' या 'गेहनारी'|
'गहना' के लिए 'दगिना' का प्रचलन शरीर गुदवाने या tattoo की ओर इंगित करता है, पर यहाँ भी सौन्दर्य अभिवृद्धि का अभिप्राय ही है|
स्वर्ण इत्यादि धातुओं का इतना मोल इसलिए है कि इन्हें सोनार के द्वारा सांचे में गढ़ा जाता है; जिसे 'गढ़ना' प्रक्रिया से बनाया जा सके वही है 'गहना'| आखिरकार गहना ही तो स्त्री को 'सुगढ़' या 'सुघड़' या 'सुगृहिणी' बनाता है|
वैसे मैं भी न कोई भाषा विज्ञानी हूँ और न ही व्युत्पत्तिशास्त्र का आधिकारिक विद्वान|जो युक्तिसंगत लगा लिख दिया|आप मार्गदर्शन करें|

अजित वडनेरकर said...

आप ठीक कह रहे हैं । दागिना पर विस्तृत आलेख तैयार है ।
अगली किन्हीं कड़ियों में इसे आप देखेंगे ।

नीचे दिया गया बक्सा प्रयोग करें हिन्दी में टाइप करने के लिए

Post a Comment


Blog Widget by LinkWithin