Thursday, February 16, 2012

अग्निगर्भा है दामोदर

संबंधित कड़िया-[1.]दम मारो दम और नाक में दम-1 [2] …दम ले ले घड़ी भर-2i-3fd-7da-9-1

कृ ष्ण के ‘दामोदर’ नाम से सभी परिचित हैं । पौराणिक कथाओं में उन्हें ऊखल या पेड़ से बान्धने की वजह से उनका नाम ‘दामोदर’ पड़ा। ‘दाम’ यानी रस्सी, रज्जु । पूर्वांचल की प्रसिद्ध ‘दामोदर नदी’ या ‘दामोदर घाटी’ वाले ‘दामोदर’ शब्द के साथ यह व्युत्पत्ति नहीं जुड़ती। कुछ सन्दर्भ इसे ‘दामुदा’ बताते हैं। झारखण्ड में मान्यता है कि इसका अर्थ पवित्र जल है। नदियों को पवित्र मानना सनातन भारतीय आस्था रही । संस्कृत में ‘दामन्’ का अर्थ रस्सी, रज्जु होता है । ‘दामुदा’ का इस रूप में कोई अर्थ नहीं निकलता । ‘दामुदा’ को ‘दामोदर’ का रूपान्तर मानें तो इस ‘दामोदर’ का अर्थ ‘दाम’ से बंधे ‘उदर’ से हट कर निकलना चाहिए । एक मराठी सन्दर्भ से पता चलता है कि ‘दाम’ सन्थाल भाषा का शब्द है । सन्थाली भाषा अत्यन्त प्राचीन है और मुंडा परिवार की है । यहाँ भूगर्भ में कोयले के भण्डार हैं । ‘दाम’ का अर्थ सन्थाली में कोयला होता है । संस्कृत की ज़मीन पर इससे ‘दामोदर’ शब्द बना जिसका अर्थ है कोयलांचल से निकली नदी । ध्यान रहे, छोटा नागपुर के एक क्षेत्र को ‘दामुदा’ कहते हैं । कोयले की बहुतायत को देखते हुए ‘दामुदा’ का अर्थ निकलता है कोयला प्रदान करने वाली भूमि । दमुआ भी एक जगह का नाम है ।
किन्ही सन्दर्भों में प्रमाण मिले हैं जिनमें ‘दामोदर’ का अर्थ अग्निगर्भा की तरह बताया गया है । अर्थात जिसके गर्भ में कोयला है । ‘उदर’ तो स्पष्ट है। दाम में अग्नि या कोयले का ही भाव निकल रहा है । मुझे असम, छत्तीसगढ़, उड़ीसा, झारखण्ड और बंगाल के किन्हीं क्षेत्रों के लिए अलग अलग ‘दामुदा’, ‘दमोदा’ शब्द मिले है जिनका अर्थ कोयलांचल है । झारखण्ड के ‘दमुलिया’ क्षेत्र में ही कोयले की शुरुआती भण्डार खोजे गए थे । बंगाल के मिशनरी ए.कैम्पबेल ने 1899 में संथाली कोश बनाया था, मगर इसमें ‘दामोदर’ शब्द की प्रविष्टि नहीं हैं। यह बड़े आश्चर्य की बात है। इसके साथ समस्या यह है कि दरअसल यह बंगाल के पुरुलिया क्षेत्र में बोली जाने वाली शहरी सन्थाली का प्रातिनिधिक कोश है। इसमें अपर दामोदर वैली क्षेत्र की संथाली बोली को लिया गया है। झारखण्ड की सन्थाली इसमें नहीं है। बंगाल में मुस्लिम राज होने के की वजह से फ़ारसी शब्दों के हजारों रूपान्तर इसमें हैं जिन्हें सन्थाली कहा गया है। इसमें ‘दाम’ शब्द है, मगर वह ‘द्रम्म’ से निकला हिन्दी, उर्दू, फारसी वाला ‘दाम’ है जिसका अर्थ मूल्य है। हाँ, ‘दमा’ शब्द का प्रयोग श्वास के अर्थ में भी इसमें मिलता है । आमतौर पर माना जाता है कि श्वास, शक्ति, दबाव, धक्का के अर्थ में दम शब्द हिन्दी में फ़ारसी से आया । पर सन्थाली में इस शब्द की मौजूदगी से प्रतीत होता है कि संस्कृत ‘धम्’ का स्वतंत्र विकास ‘दम’ के रूप में मुण्डा परिवार की कतिपय बोलियों में हुआ होगा या फिर इंडो-ईरानी मूल का ‘दम’ शब्द ही मुण्डा परिवार में दाखिल हुआ होगा । क्योंकि कुछ विद्वान सुदूर पश्चिमोत्तर प्रान्तों तक मुण्डा भाषाओं का विस्तार देखते हैं ।
ताज्जुब यह कि जो संथाल समुदाय ‘दामोदर’ को पवित्र नदी मानता है अथवा अन्य स्रोत इसमें अग्नि, कोयला जैसे भाव देखते हैं मगर कैम्पबेल के कोश में ‘दामोदर’, ‘दामुदा’, ‘दामोदा’ जैसे शब्द ही गायब हैं। जबकि ‘दम्’ ध्वनि वाले शब्द झारखण्ड, बिहार, उड़ीसा, छत्तीसगढ़ के आदिवासी इलाकों में खूब हैं और इससे मिलते जुलते नामों वाली जो बस्तियाँ हैं उनके साथ कोलियरी, खदान का रिश्ता विभिन्न सन्दर्भों से साबित होता है। यह ज़रूरी नहीं कि ‘दाम’ शब्द सन्थाली में निकल आए। सम्भव है यह आर्यभाषा परिवार का भी हो। खास बात यह कि कैम्पबेल के कोश में फ़ारसी के संथाली रूपान्तर मिलते हैं मगर ‘दामोदर’ जैसे शब्द का कोई रूपान्तर नहीं मिलना आश्चर्य है। इससे ऐसा लगता है कि इसमें ग्रामीण और अर्धशहरी क्षेत्रों की संथाली के शब्द चुने गए हैं। ठेठ या शास्त्रीय संथाली इसमें नहीं है। यह तो तय है कि ‘दामोदर’ का वह अर्थ संस्कृत-हिन्दी कोशों से नहीं निकलता जिससे उसके नदीवाची स्रोत की पुष्टि होती हो । हाँ, ‘दाम+उदर’ की बहुचर्चित व्युत्पत्ति ज़रूर मिलती है मगर वह ‘दामोदर नदी’ से मेल नहीं खाती । हमारी आदि भारोपीय भाषाओं का सम्बन्ध लगातार जनजातीय भाषाओँ से भी बना हुआ था। बस, इस दिशा में बहुत कम काम हुआ है। शब्दों की शिनाख्त तो यूँ भी मुश्किल है, क्योंकि जनजातीय साहित्य का विधिवत अध्ययन नही हुआ।
भारतीय आर्यभाषाओं की भारतीय भूभाग में पसरी जनजातीय भाषाओं से घनिष्ठता की बात कई स्तरों पर साबित हो चुकी है । आर्य-द्रविड़ भाषाओं में रिश्तेदारी को भी इसी सन्दर्भ में देखा जाता है । हमारी मौजूदा संस्कृति में खेती-किसानी और बागवानी की शब्दावली के मूल में जनजातीय शब्दसम्पदा ही है । भाषाविदों का मानना है कि वैदिक काल में पश्चिमोत्तर सीमा प्रान्त में मुण्डा परिवार की कुछ बोलियाँ प्रचलित रही होंगी । विद्वानों का कहना है कि समूची वैदिक शब्दावली में चार फीसद ऐसे शब्द भी हैं जिनका प्रसार यूरोपीय आर्यभाषाओं में नहीं मिलता । इससे सिद्ध होता है कि वैदिक शब्दावली, तत्कालीन जनजातीय शब्द सम्पदा से भी समृद्ध हुई होगी ।
मुमकिन है संस्कृत की ‘धम्’ धातु के दम रूप का विकास मुण्डा परिवार की भाषाओं में भी हुआ हो और ईरानी बोलियों में भी हुआ हो । धम् का दम रूप भारतीय बोलियों में बहुत लोकप्रिय है और प्रायः आर्यभाषाओं से लेकर द्रविड़ और जनजातीय बोलियों में भी यह नज़र आता है । ‘दम’ का अर्थ है श्वास, प्राणवायु, ज़ोर, धक्का, धौंकना, दबाना, क्षण, कालांश, भाप, दबाव, शक्ति, जोश, वाष्प, खींचना, कश, सेंकना, विश्राम, वाष्पित वगैरह वगैरह । ध्यान रहे ये तमाम अर्थ हिन्दी के किसी एक शब्द में अभिव्यक्त नहीं होते । फ़ारसी ‘दम’ का मूल है अवेस्ता का ‘दम’ शब्द है । इसका संस्कृत प्रतिरूप है ‘धम्’ जिसमें धौंकने, फूँकने, धकेलने, निश्वास और फूँक कर आग सुलगाने का आशय है । इंडो-ईरानी परिवार की ज्यादातर भाषाओं में जैसे खोतानी, पार्थियन, फ़ारसी, सोग्दियन और पहलवी में इसका ‘दम’ रूपान्तर ही प्रचलित है । संस्कृत,ज़ेद व यूरोपीय भाषाओं का तुलनात्मक करने वाले जर्मन भाषाविद प्रो.एफ बॉप ने अठारहवीं सदी में भारोपीय धातु ‘ध्म’ की कल्पना की थी जिसमें फूँकने, दबाने का भाव है । पकोर्नी इसके लिए dhem धातु बताते हैं । उनके मुताबिक इसमें धौंकने के साथ साथ धूल-धुँआ उड़ने जैसा भाव भी है ।दक्षिण-पूर्वी ईरानी ज़बान पारची में इसका रूप धमन होता है जिसका अर्थ है हवा, वायु। हिन्दी में धम्मन चमड़े से बनी उस झोली ( भाथी ) को कहते हैं जिसे दबाने से भट्टी में हवा पहुँचती है। संस्कृत ‘धम’ में निहित फूँकने, धकेलने की क्रिया से श्वास लेने के आशय का शब्द चाहे हिन्दी में नहीं बना हो, पर इसके फ़ारसी रूपान्तर दम में यही सारे भाव होते हुए श्वास लेने का भाव भी प्रकट होता है। हृदय का काम लगातार फूलना-सिकुड़ना है जिसके ज़रिए नसों में दबाव के साथ खून दौड़ता है । ‘धम्’ में निहित फूँकने, धकेलने की क्रिया का अर्थविस्तार ताक़त, शक्ति के अर्थ में फ़ारसी के ‘दम’ में नज़र आता है। ‘दम लगाना’ यानी ज़ोर लगाना है।
“द लोअर दामोदर रिवर, इंडिया’ पुस्तक में कुमकुम भट्टाचार्य ने ‘दामोदर’ का अर्थ अग्निगर्भा (full of fire) बताया है । औपनिवेशक दौर में जब ब्रिटिश खोजी ‘दामोदर घाटी’ में कोयला खोज रहे थे तब भी इस घाटी के सम्बन्ध में कुछ ऐसे तथ्य सामने आए थे जिससे पता चलता था कि यहाँ कि भूमि से ताप उत्सर्जित होता है, यहाँ तप्त कोयला दबा हुआ है । दामोदर नदी में यही भाव है – धधकते कोयलांचल की नदी । अंग्रेजों के दस्तावेज़ों में कोयलांचल के कुछ शब्दों पर गौर करें-‘बराकर’ यानी मुख्य कोयला खान, ‘काली पहाड़ी’ यानी कोयले का पहाड़, ‘अंगारपथरा’ यानी तप्तप्रस्तर (पत्थर का कोयला ), ‘दामोदर’ यानी अग्निगर्भा नदी । इन सभी नामों से यही ज़ाहिर होता है कि दामोदर घाटी क्षेत्र, प्राचीन काल से ही कोयलांचल के रूप में अपनी पहचान रखता था । ‘दामोदर’ का मूल नाम ‘दमोदर’ रहा होगा । यह ‘दम’ वही है जो वैदिकी के ‘धम्’ से आर्येतर भाषाओं में भी गया । ‘दमोदर’ का रूपान्तर बाद में ‘दामोदर’ की तर्ज़ पर हुआ । ‘दम’ के ‘दाम’, ‘दामू’, ‘दामु’, ‘दमोदा’, ‘दमुआ’ जैसे रूप भी सामने आए । ‘दम’ में निहित धधक, दबाव, तप्तता, आवेग पर गौर करें । झरिया की जलती खदानों के बारे में हम सब जानते हैं । प्राचीन काल में भी इस क्षेत्र से भूगर्भीय गैसे निकलती रही होंगी । ‘दम’ शब्द में गैसीय उत्सर्जन स्पष्ट है । ‘दामोदर’ का नदी नाम घाटी के नाम पर पड़ा होगा । पहले यह समूचा क्षेत्र ‘दमोदर’ या ‘दामोदर’ कहलाता होगा । ‘दामुदा’ या ‘दमोदा’ नामों में छुपे कोयलांचल अर्थ से यह स्पष्ट है । बाद में नदी को भी दामोदर ( दमोदर ) संज्ञा मिली ।

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5 कमेंट्स:

प्रवीण पाण्डेय said...

अग्नि है उदर में जिसके..

Rahul Singh said...

यानि 'दामुल', फांसी देने की रस्‍सी के कारण प्रचलित हुआ.

Mansoor ali Hashmi said...

'उदर' की भट्टी का 'कोयला' है,
ख़ुराक हम ये जो ख़ा रहे है,
इसी पे 'दारो-मदार' अपना,
इसी से हम 'दम' दिखा रहे है.

http://aatm-manthan.com

Purushottam Agrawal said...

बहुत बढ़िया साहब जी, सेल्यूट कबूल करें...

Yashwant R. B. Mathur said...

आज 19/02/2012 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर (सुनीता शानू जी की प्रस्तुति में) लिंक की गयी हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
धन्यवाद!

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