Monday, May 28, 2012

कमाल तकियाकलाम का

speechपिछली कड़ी- तकिये की ताकत
ब आते हैं तकियाक़लाम पर । तकियाक़लाम एक ऐसा अनावश्यक शब्दयुग्म या पद होता है जिसे बोलने की आदत कई लोगों में होती है । इसका असर शुरुआत में नाटकीय किन्तु अक्सर चिढ़ पैदा करने वाला होता है, मगर बोलने वाले को इसका अहसास नहीं होता । मिसाल के तौर पर – “जो है सो”, “क्या बात है,” “माने की”, “आप जानो कि,” “क्या कहते हो, “आप तो जानते हो”, “नई यार”,“अब क्या बताएँ” आदि आदि । तकियाकलाम के आदी क़िरदार अक्सर समाज में मज़ाक का पात्र बनते हैं । अंग्रेजी में इसे कैचफ़्रेज़  catchphrase कहते हैं । तकियाक़लाम बना है फ़ारसी के तक्या और अरबी के क़लाम से मिल कर । इसका सही रूप भी तक्याकलाम ही होता है । तकियाकलाम के लिए उर्दू में सखुनतकिया शब्द भी है जो किसी ज़माने में हिन्दुस्तानी में भी प्रयुक्त होता था, अब कि हिन्दी में इसका चलन नहीं है । चाहे जो हो, ये “कलाम” का “तकिया” भी कमाल का होता है । देखते हैं इसकी जन्मपत्री ।

तकिया

किया की आमद हिन्दी में फ़ारसी से हुई है और इसका सही रूप है तक्या takya जो हिन्दी में दीर्घीकरण के चलते तकिया हो गया । तकिया शब्द हिन्दी में फ़ारसी से आया । तकिया शब्द में मुलायमियत, गद्देदार या नरमाई का लक्षण महत्वपूर्ण नहीं है । तकिया की रिश्तेदारी हिन्दी, उर्दू, फ़ारसी, अरबी भाषाओं में मौजूद कई अन्य शब्दों से भी जुडती है जैसे ताक़ यानी आला, आलम्ब, म्याल अथवा मेहराब । शक्ति के अर्थ में ताक़त भी इसी कड़ी में है । मुतक्का यानी आलम्ब या सहारा भी इसी क़तार में खड़ा नज़र आता है । तकिया ( फ़ारसी तक्या ) के मूल में भी ताक शब्द ही नज़र आता है जिसमें मेहराब, म्याल, आलम्ब, आधार का भाव है जिस पर छत टिकती है । अरबी में यह ताक़ है और फ़ारसी से ही गया है । इस पर पिछले आलेख में विस्तार से चर्चा हो चुकी है । स्पष्ट है कि सिर के नीचे इस्तेमाल होने वाले जिस तकिया से हम सबसे ज्यादा परिचित हैं उसमें मूल भाव सिर को सहारा देने का है । प्रकारान्तर से इसमें आराम का भाव भी जुड़ जाता है ।
क़लाम
रबी का क़लाम शब्द भी हिन्दी में खूब बोला-समझा जाता है जिसमें मूलतः कही गई बात का आशय है जैसे वचन, कथन, उक्ति, वक्तव्य आदि । कलाम बना है सेमिटिक धात k-l-m से जिसमें कहने का भाव है । कलाम का अर्थ हिन्दी में आम तौर पर काव्यगत उक्ति या छंदबद्ध उक्ति से लगाया जाता है । किसी शायर की रचना से उठाई गई बात कलाम कही जाती है । जॉन प्लैट्स के कोश के मुताबिक कलाम में तर्क, बहस, दलील, विवेचना, विवाद जैसे भाव भी हैं,
मुम्बइया फिल्मों में तो हास्य पैदा करने के लिए ऐसे क़िरदार घड़े जाने की रिवायत आज तक चली आ रही है और साधारण सी फिल्में भी फूहड़ तकियाक़लाम बोलने वाले क़िरदारों की वजह से सुपरहिट हो गईं
इसका मूलार्थ है मुसलमान बनना । इस्लाम के प्रति धर्मनिष्ठ होना । इस्लाम की दीक्षा लेना । मगर हिन्दी में इसका प्रयोग किसी के प्रति खास अनुराग या निष्ठा दिखाने के आशय से भी होता है जैसे- “शर्माजी आजकल वर्माजी के नाम का कलमा पढ़ रहे हैं ।” मगर हिन्दी में इस आशय के प्रयोग कलाम के संदर्भ में कम देखने को मिलते हैं । कलाम की कतार में ही कलीम जिससे हिन्दी वाले व्यक्तिनाम के तौर पर परिचित हैं जैसे कलीमुल्ला, कलीमुद्दीनकलीम का अर्थ होता है कहने वाला, वक्ता । इसी तरह कलमा शब्द भी है जिसका आशय वचन, उक्ति से ही है मगर इसका रूढ़ अर्थ है । अरबी में कलमा नहीं बल्कि कलीमा है । कलीमा से आशय मुख्यतः इस्लाम धर्म के प्रसिद्ध बोधवाक्य “ ला इलाहा इलिल्लाह” जिसमें “ईश्वर ही सर्वशक्तिमान है, दूसरा कोई नहीं” जैसी बात कही गई है । हिन्दी में कलमा पढ़ना या कलमा पढ़ाना  प्रसिद्ध मुहावरे हैं भी है ।
तकियाकलाम
किया और कलाम दोनों पदों की अर्थवत्ता जानने के बाद तकियाकलाम पद का आशय साफ़ हो जाता है । ऐसा वाक्य या शब्द जिसका सहारा लिए बिना कोई (व्यक्ति) खुद को अभिव्यक्त ही न कर सके । यह शब्द या वाक्य निरर्थक होता है, मगर कहने वाला इसे बोलने का इतना आदी हो चुका होता है कि प्रत्येक संवाद के दौरान वह एक ख़ास क़लाम यानी शब्द या वाक्यांश का तकिया यानी सहारा लेता है । इसीलिए उस विशिष्ट शब्द या वाक्यांश को तकियाकलाम नाम मिल गया । मुम्बइया फिल्मों में तो हास्य पैदा करने के लिए ऐसे क़िरदार घड़े जाने की रिवायत आज तक चली आ रही है और साधारण सी फिल्में भी फूहड़ तकियाक़लाम बोलने वाले क़िरदारों की वजह से सुपरहिट हो गईं । -समाप्त
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5 कमेंट्स:

प्रवीण पाण्डेय said...

तकियाकलाम हास्य का पुट लेकर आता है, फिल्मों में..

अभय तिवारी said...

फ़क़ीरों के ठिकाने को भी तक्या कहते हैं और क़ब्र के सिरहाने के पत्थर को भी तक्या कहते हैं.. आप बता रहे हैं कि तक्या फ़ारसी से अरबी में गया है मगर फ़ारसीकोष इसे अरबी मूल का बता रहा है..? आप इसे अरबी के ही ताक़ से जोड़ रहे हैं जबकि तक्या और ताक़ के हिज्जो और मूल अर्थ दोनों में गहरा अंतर है-
ताक़- तो+अलिफ़+ क़ाफ़
तक्या- ते+अलिफ़ काफ़+हे

दोनों में अलग त और अलग क का इस्तेमाल है.. और फिर ताक़ के मूल में ऊंचाई का अर्थ है और तक्या के मूल में नीचे होने का.. तक्या नीचे रखते हैं..

आजकल आप के शोध अचूक होते हैं इसलिए मुझे इस बार शब्दकोषों पर शंका हो रही है! :)

अजित वडनेरकर said...

विभिन्न भाषा परिवारो में अंतर्सम्बन्ध रहे हैं और उसके पुख़्ता प्रमाण लगातार सामने आते रहे हैं । हर भाषायी समूह किन्ही विशिष्ट ध्वनियाँ के साथ सहजता महसूस करता है । खासतौर पर इंडो-ईरानी परिवार की भाषाओं से प्रसारित शब्दों में क और क़ यानी K और q का फ़र्क़ हो जाता है । एक भाषा का शब्द दूसरी भाषा में बदले रूप में भी जाता है । एक ही ज़बान में उच्चारण भेद मिलता है जैसे भाषा और भाखा । अरबी में भी शहरी और ग्रामीण फर्क है । इसके अलावा बेदुइनों की अरबी अलग है । उच्चारभिन्नता के बावजूद अर्थ नहीं बदलता या फिर अर्थविस्तार के बावजूद मातृभाषा वाला विशिष्ट अर्थ बना रहता है । हिन्दी में नुक़ता नहीं है, मराठी में सिर्फ़ च और ज में नुक़ता लगता है । जहाँ तक तक्या का सवाल है, मैने जितने भी कोश देखें हैं, उनमें यह फ़ारसी शब्द ही है । यहाँ तक कि रज़ाकी के अरबी शब्दकोश में भी ताक़ को फारसी मूल से आया बताया गया है । आप गौर करें कि तक्या, तकिया, ताक, ताक़, तका, मुतक्का आदि शब्दों की अर्थवत्ता एक सी है । इन सबमें सहारा, आलम्भ, आधार जैसे भाव प्रमुख हैं । सहारा मानसिक भी होता है और भौतिक भी । ताक़ में नुक़ता है मगर मुतक्का में नहीं । मगर दोनों का मूल एक ही है । ध्वनि आधारित परिवर्तन सामान्य बात है । ताक़ के मूल के बारे में जितने भी संदर्भ-कोश देखे, वे कुछ नहीं बताते । इसका प्राचीन सेमिटिक रूप भी नहीं । ऐसे में रज़ाकी जब ताक़ को पर्शियन मूल का कहते हैं तो बात सीधे सीधे तक्ष, तक्, तक्क, तका,ताक़, ताक जैसे शब्दों से जुड़ती है और ये एक सिलसिले की कड़ी नज़र आते हैं । शब्दों का मूल पकड़ने के लिए मूल अर्थवत्ता को पकड़ना ज़रूरी है । तक़िया और ताक़ में ऊँचाई-नीचाई का मुद्दा ही नहीं है । दोनों के मूल में सहारा प्रमुख बात है । शब्दकोशों को भी पलटा जाए तो यही बात उभरती है । सहारा, आश्रय, आराम, आलम्ब जैसे भाव यहाँ प्रमुख हैं । चाहे तक्या हो, तकिया हो या ताक़ हो अथवा ताक । सिर्फ़ तक्या यानी तकिया को सिरहाना बनाने की बात को छोड़ दें ( जो की मूलतः सहारा ही है) तो हर तक्या चाहे पीर-फक़ीर का ठिकाना हो या सामान्य ताक़ यानी म्याल (मियार) वह कमरे की ऊँचाई तो है ही, जिस पर छत टिकती है । ताक पर छत टिकती है । जिस ताक़ पर छत टिके वह तक्या । जिस आधार पर सिर टिके वह भी तक्या । परदा वह भी है जो कपड़े का बनता है और खिड़की पर टंगता है । परदा वह भी है जो ईंटों से बनता है और दो कमरों के बीच की दीवार कहलाता है । मियानी वह भी है जो पायजामें के दोनों पाँयचों के जोड़ पर होती है । और मियानी वह दुछत्ती भी है जो दो मंजिलों के बीच होती है । जेटी मोल्सवर्थ, रज़ाकी, श्यामसुंदर दास, जॉन प्लैट्स आदि कई कोशों के आधार पर ही मेरा यह मानना नहीं है कि तक्या फ़ारसी का है, बल्कि इसके भारत-ईरानी मूल का होने के मैने तर्क भी दिए हैं । फ्रांसिस स्टेंगास के कोश में तक्यागाह और तक्यादार जैसे शब्द भी अरबी के खाते में डाले हुए हैं जबकि यह सामान्य सी बात है कि किसी पराई भाषा से आए शब्द के साथ मातृभाषा का प्रत्यय या उपसर्ग लगा कर नया शब्द बनता है तो वह (संकर) शब्द आश्रय देने वाली भाषा का कहलाता है । कुछ शब्दकोश स्रोत बताते हैं, कुछ नहीं । मगर कई बार यह बात खानापूर्ति जैसी लगती है । जन्मसूत्र खोजने का काम करते हुए मूलस्रोत की तलाश ही महत्वपूर्ण होती है । तब विभिन्न कोशों मे जन्मसूत्र के अलग-अलग हवाले यकीनन हमारे लिए चुनौती तो पेश करते ही हैं । शब्दकोश उलझाते भी हैं ऐसा भी कई बार हुआ है । पर्याप्त खोजबीन के बाद ही अपना मत स्थिर करना होता है ।

Mansoor ali Hashmi said...

'तकिया' करे 'कलाम' पे फिर चाहते है 'वो',

पहले भी ख़ूब गुज़री है, इस 'मेजबाँ' के साथ,

'दादा-व्-संगमा' तो है "थैली" से एक ही !

शायद के 'पलटे दिन' भी, फिर इस मेहरबाँ के साथ !!
------------------------------------------------[तकिया कलाम मुझको बहुत नापसंद है,

सुनलो ! कि अपनी बात मै दोहराता नहीं हूँ.]


फिक्सिंग का बोंल-बाला है, "क्या कह रहे है आप !"

'छक्के' पे नाचे 'बाला' है, "क्या कह रहे है आप !"

और भी....... http://aatm-manthan.com.....

Unknown said...

कमाल का लेख

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