Monday, August 13, 2012

षड्यन्त्र का पर्दाफ़ाश

SKULL
हि न्दी की तत्सम शब्दावली के सबसे ज्यादा इस्तेमाल होने वाले शब्दों में ‘षड्यन्त्र’ का शुमार होता है । षड्यन्त्र के साथ सबसे खास बात यह है कि अपनी मूल प्रकृति में यह शब्द तत्सम शब्दावली का होते हुए भी इसका इन्द्राज संस्कृत के किसी कोश में नहीं मिलता । षड्यन्त्र यानी साजिश, भेद, अहितकर्म, फँसाना, अनिष्ट साधन, साँठगाँठ, कपट, भीतरी चालबाजी, दुरभिसन्धि, कुचाल, जाल बिछाना, दाँवपेच या कांस्पिरेसी इत्यादि । सभ्यता के विकास के साथ-साथ समाज में पेचीदापन बढ़ता रहा है । हर चीज़ में राजनीति का दखल नज़र आता है । राजनीति के साथ ही षड्यन्त्रों का चक्र शुरू हो जाता है । जिस तरह वक्त के साथ राजनीति का अर्थ भी बदलता चला गया उसी तरह सदियों पहले षड्यन्त्र का जो अभिप्राय था, आज उससे भिन्न है । आज तो राजनीति और षड्यन्त्र एक दूसरे के पर्याय हो गए हैं । बल्कि यूँ कहें कि राजनीति शब्द धीरे-धीरे बोलचाल की हिन्दी से षड्यन्त्र को बेदखल कर देगा । “ज्यादा राजनीति मत करो”, “मेरे साथ राजनीति हो गई”, “वो बहुत पॉल्टिक्स करता है” जैसे वाक्यों का प्रयोग अक्सर षड्यन्त्र को व्यक्त करने में भी होता है ।

ड्यन्त्र हिन्दी शब्दसम्पदा की षट्वर्गीय शब्दावली का हिस्सा है जैसे षट्कर्म, षट्कार, षट्कोण आदि । षड्यन्त्र मूलतः ‘षट्’ + ‘यन्त्र’ से बना है । ‘षट्’ का अर्थ तो स्पष्ट है अर्थात छह । हिन्दी शब्दसागर के मुताबिक संस्कृत के ‘षट्’ से ही षट् > षष् > छ (प्राकृत) और छह (अपभ्रंश) के क्रम में हिन्दी के ‘छह’ का विकास हुआ है । संस्कृत में ‘ट’ का ‘य’ के साथ मेल होने पर अक्सर ‘ट’ ध्वनि , ‘ड’ में बदल जाती है । जैसे ‘जाट्य’ का ‘जाड्य’ ( जो जड़ है ) रूप भी प्रचलित है । संस्कृत के यन्त्र शब्द की बहुआयामी अर्थवत्ता है । ऐसा उपकरण जिससे उठाने, धकेलने, ठेलने, खोदने, काटने जैसी विविध क्रियाएँ सम्पन्न हो सकें । मूलतः यन्त्र में बल, शक्ति, साधन के भाव के साथ किन्ही वस्तुओं, क्रियाओं अथवा लोगों को काबू में करने के उपकरण, प्रणाली या विधि का आशय निहित है । काबू पाने, वश में करने जैसे भावों की अभिव्यक्ति होती है ‘नियन्त्रण’ शब्द से । इसमें छुपे यन्त्र को हम आसानी से पहचान सकते हैं । ‘यन्त्रण’ में रहित के भाव वाला ‘निः’ उपसर्ग लगाने से बनता है ‘नियन्त्रण’ जिसमें स्वयंचालित या किसी अन्य व्यवस्था के अधीन काम करने वाली वस्तु या व्यक्ति को अपने अधीन करने का आशय है ।
गौरतलब है कि प्रणाली या सिस्टम के अर्थ में मराठी का ‘यन्त्रणा’ शब्द ‘यन्त्रण’ से ही आ रहा है जबकि हिन्दी के ‘यन्त्रणा’ का प्रयोग कष्ट, संत्रास, दुख, पीड़ा, व्यथा को अभिव्यक्त करने में होता है न कि किसी व्यवस्था या प्रणाली के अर्थ में । ‘यन्त्र’ में ‘अन’ प्रत्यय लगने से बहुआयामी अर्थवत्ता वाला ‘यन्त्रण’ शब्द बना जिसमें प्रणाली, विधि या व्यवस्था के साथ-साथ पीड़ा, वेदना या व्यथा का भाव भी है । आशय ऐसी चीज़ से है जो एक खास तरीके से संचालित हो रही है । प्रश्न है यन्त्र से बने यन्त्रणा में संत्रास, पीडा या वेदना के भाव की क्या व्याख्या है । दरअसल यन्त्र में दबाव, काबू, जकड़न, कसना, बांधना जैसे भाव हैं । मशीन वाली यान्त्रिकता के तहत ये सभी भाव एक व्यवस्था से जुड़ते हैं या यूँ कहें कि यन्त्र किन्हीं कलपुर्जों, उपकरणों का समुच्चय है जो आपसे में गुँथे हैं, बन्धे हैं, कसे हैं, जकड़े हैं । किन्तु जब इन्हीं भावों के साथ यन्त्रणा शब्द बनता है तो उसका अर्थ जहाँ मराठी में जहाँ मशीनी व्यवस्था से लिया जाता है वहीं हिन्दी में यह सचमुच यातना से जुड़ता है । कोई भी बन्धन, कसाव, जकड़न या दबाव संत्रास, पीड़ा या कष्ट का कारण बनते हैं ।
न्त्र में भौतिक उपकरण के अलावा तान्त्रिक वस्तु या चिह्न का भाव भी है जैसे गंडा, ताबीज या यौगिक रेखाचित्र । कल्पित अतीन्द्रिय शक्तियों की आराधना के लिए तन्त्र-योग आदि शास्त्रों में कई तरह के प्रतीकों का प्रयोग होता है । ऐसा माना जाता है कि इनमें निहित शक्तियों के ज़रिये दूर स्थित शत्रुओं या विपरीत ताक़तों पर काबू पाया जा सकता है । बौद्धधर्म का अवसानकाल भारत में तन्त्र-मन्त्र और योगिक शक्तियों के अभूतपूर्व उभार का था । ‘षड्यन्त्र’ दरअसल मध्यकाल के इसी परिवेश से उपजा शब्द है । पूरवी बोली में षड्यन्त्र को ‘खड्यन्त्र’ भी कहते हैं । ‘ष’ का रूपान्तर ‘ख’ में होता है । ‘षड्यन्त्र’ अर्थात छह तरह की विधिया, प्रणाली या तरीके जिनके ज़रिये शत्रु को वश में किया जा सके । सीधी से बात है, यौगिक तन्त्र-मन्त्र का विस्तार ही जादू-टोना में हुआ । अलग-अलग पंथों के मान्त्रिकों के अपने अपने नुस्खे, मन्त्र और यन्त्र थे । हर कोई इनके ज़रिये बस षड्यन्त्रों में लगा रहता था । आज षड्यन्त्र को जिस अर्थ में प्रयोग किया जाता है उसमें बदले हुए परिवेश में कुचाल, दुरभिसन्धि या कांस्पिरेसी जैसे भाव हैं जबकि पुराने ज़माने में शत्रु पर विजय पाने के टोटके जैसा भाव इसमें था ।
ड्यन्त्र के तहत जिन छह विधियों का हवाला दिया जाता है वे हैं- 1.जारण 2. मारण 3. उच्चाटन 4. मोहन 5. स्तंभन और 6. विध्वंसन । ‘जारण’ का अर्थ जलाना या भस्म करना है । यह संस्कृत के ‘ज्वल्’ से निकला है । टोटका के रूप में हम झाड़-फूँक से परिचित हैं । यह जो फूँक है दरअसल इसमें अनिष्टकारी शक्तियों को भस्म करने का आशय है । ‘मारण’ यन्त्र का आशय एकदम स्पष्ट है । शत्रु का अस्तित्व समाप्त करने, उसे मार डालने के लिए जो जादू-टोना होता है वह ‘मारण’ कहलाता है । ‘उच्चाटन’ का अर्थ है स्थायी भाव मिटाना । वर्तमान परिस्थिति को भंग कर देना । उखाड़ना, हटाना आदि । विरक्ति, उदासीनता या अनमनेपन के लिए आम तौर पर हम जिस उचाट, दिल उचटने की बात करते हैं उसके मूल में संस्कृत का ‘उच्चट’ शब्द है जो ‘उद्’ और ‘चट्’ के मेल से बना है । उद्-चट् की संधि उच्चट होती है । ‘उद’ यानी ऊपर ‘चट्’ यानी छिटकना, अलग होना, पृथक होना आदि । ‘उच्चाटन’ भी इसी उच्चट से बना है जिसका अर्थ हुआ उखाड़ फेंकना, जड़ से मिटाना, निर्मूल करना आदि ।
ब ‘जारण’, ‘मारण’, ‘उच्चाटन’ जैसे यन्त्रों से काम नहीं बनता तो ‘मोहिनी विद्या’ काम आती है । ‘मोहन’ का अर्थ है मुग्ध होना । इसके मूल में ‘मुह्’ धातु है जिसका अर्थ है सुध बुध खोना, किसी के प्रभाव में खुद को भुला देना । अक्सर नादान लोग ऐसा करते हैं और इसीलिए ऐसे लोग ‘मूढ़’ कहलाते हैं । मूढ़ भी ‘मुह्’ से ही निकला है और ‘मूर्ख’ भी । ‘मोहन यन्त्र’ का मक़सद शत्रु पर ‘मोहिनी शक्ति’ का प्रयोग कर उसे मूर्छित करना है । श्रीकृष्ण की छवि में ‘मोहिनी’ थी इसलिए गोपिकाएँ अपनी सुध-बुध खो बैठती थीं इसलिए उन्हें ‘मोहन’ नाम मिला । पाँचवी विधि है ‘स्तम्भन’ जिसका अर्थ है जड़ या निश्चेष्ट करना । यह ‘स्तम्भ’ से बना है । जिस तरह से काठ का खम्भा कठोर, जड़ होता है उसी तरह किसी सक्रिय चीज़ को स्तम्भन के द्वारा निष्क्रिय बनाया जाता था । षड्यन्त्र की छठी और आखिरी प्रणाली है ‘विध्वंसन’ अर्थात पूरी तरह से नाश करना ।
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7 कमेंट्स:

Dr. Zakir Ali Rajnish said...

Dheer gambheer jaankari.

............
कितनी बदल रही है हिन्‍दी !

दिनेशराय द्विवेदी said...

एक और अच्छी पोस्ट।

प्रवीण पाण्डेय said...

षटकोण भी षणयन्त्र में फँसता हुआ..

Mansoor ali Hashmi said...

छहों कोण से 'षड्यंत्र' को सफलतापूर्वक उजागर किया है, बहुत मेहनत करते हो अजित भाई.

'शब्दों' को वाक्यों में प्रयोग करने में गलती हो ही जाती है, प्रयास किया है :-

'षड्यंत्र' की बू आई जो 'जारण' से लिया काम,
'2G' ही की बन आई जो 'मारण'* से लिया काम' *[दयानिधि]

'उच्चाटन' करने में विफल 'बाबा' व् 'अन्ना',
ख़ामोश जो रहता है उस 'मोहन'* से लिया काम. *[मन--]

'स्तम्भन' संभव भी था योगा से मगर आह !
'विध्वंसन' कैसे हो कि 'स्खलन'* से लिया काम !*/जल्दबाज़ी में]
http://aatm-manthan.com

Asha Joglekar said...

वाह षड्यंत्र के छहों यंत्रों की बढिया जानकारी ।

अजेय said...

'ष ' का उच्चारण ' श' से कैसे भिन्न है ? इसे कहीं कहीं 'ख' क्यों उच्चारित किया जाता है ?

RDS said...

वडॅनेरकर जी , बिहार मे छः ( छह ) को छो बोला जाता है । (और ग्यारह को 'इगारा') . यह बिहारी 'छो' किस प्रभाव का द्योतक है ? कृपया प्रकाश डालियेगा ।

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