Wednesday, June 17, 2015

॥नाम में क्या रखा है...॥

भा रतीय समाज में नामों को लेकर नवाचार बीते पाँच-छह दशकों से जोरों पर है। पिछली सदी के चौथे दशक के फैशनेबल जोड़े हरिवंश राय बच्चन-तेजी सूरी ने अपनी सन्तति को जब अमिताभ-अजिताभ नाम दिए तो यह फ़ैशन और भी ज़ोर पकड़ गया। हालाँकि बच्चन जी के आग्रह पर उनके बेटों के नाम कविवर सुमित्रानन्दन पन्त ने रखे थे। बाद के दौर में इस देश में जितने भी अमिताभ हुए वे बच्चन वाले अमिताभ से प्रभावित थे। किसी माँ-बाप ने अगर गौतम बुद्ध की नामावलि से प्रेरित होकर अपनी सन्तान को अमिताभ नाम दिया तो वे धन्य हैं।

नामों के प्रति आग्रह बेहद सरल सा है। अपनी सन्तान का सुन्दर सलोना नाम आज के पढ़े-लिखे और नवाचारी दिखने की होड़ में शामिल समाज में हर कोई चाहता है। पिछले दिनों तो बारिश, सुहानी, मासूमी जैसे नाम भी सुनने में आए। कुछ दिनों पहले एक सज्जन ने ये कहते हुए पुर्जा हाथ पर पकड़ा दिया कि "देखिए ज़रा इसका क्या अर्थ होता है". उस पर लिखा था- रकसित। "भतीजे के लिए ये नाम कैसा रहेगा ?" उन्हें बताया कि ये अर्थहीन है। सम्भव है ये रक्षित हो। पर वे नहीं माने। बोले 'क्ष' नहीं चाहिए, 'ख' हो जाता है। सही है किन्तु लक्ष्मण का लखन बन जाने से बात बिगड़ी तो नहीं, बन ही गई। कुछ दिनों बाद फिर मिलना हुआ तो पूछा कि क्या रहा? बोले वही रख दिया रकसित, पर आपका वाला। हम चौंके, हमारा वाला? बोले हाँ, ‘क्ष’ बदल कर x कर दिए हैं यानि raxit. "पर इससे तो अर्थ नहीं निकलता!!" परम सन्तोष से उन्होंने कहा, आजकल x का फैशन है। सब चलता है। तो तीन अक्षरी ‘रक्षित’ को ‘रकसित’ बना कर वे खुश थे जिसका कोई अर्थ नहीं था पर वे सबको इसका अर्थ ‘रक्षित’ ही बता रहे थे। क्योंकि मूलतः उनके ज़ेहन में तो रक्षित ही है।

एक गुजराती आत्मीय ने अपनी सन्तान का नाम ‘जयमिन’ रखा। अर्थ पूछने पर साफ़गोई से उन्होंने बताया था कि बस, ये ध्वनियाँ अच्छी लगी सो रख दिया। किसी के लिए अर्थ महत्वपूर्ण है तो किसी के लिए ध्वनि-उच्चार। किसी के लिए शुभाशुभ लक्षण महत्वपूर्ण है तो किसी के लिए ज्योतिषिय फलित। कोई माँ-बाप की इच्छा का सम्मान करता है तो कोई अन्य परिजनो के नवाचारी विचारों का। नाम रखने के यही महत्वपूर्ण आधार होते हैं। बाद में सब रूढ़ हो जाता है। मंगल का मांगीलाल हो जाता है और मंगला का मंगू। हमने तो उदिता जैसे नाम को प्यार से उद्दू होते भी देखा है और प्रदीप को पद्दी होते हुए रोते देखा है।

अभी एक और मित्र Partap Sehgal की वाल पर ‘रिशान’ शब्द पर चर्चा चल पड़ी। उन्होंने इस समस्या को बड़े भाई Om Thanvi जी से साझा किया था। अमेरिका वासी मित्र Dipak Mashal नें यह समस्या हमें भी टैग कर दी। हमें मालूम था कि रिशान शब्द डिक्शनरी में ढूंढने निकलेंगे तो नहीं मिलने वाला। यह भी 'रकसित' जैसा ही मामला है। शब्दकोशों में या तो रिश् मिलेगा या ऋष्। अगर रिश् मूल से विवेचना करेंगे तो ‘रिशण्य’ शब्द मिलता है जिसका मुखसुख आधार पर उच्चार ‘रिशान’ हो सकता है। पर इसका अर्थ होता है गिरा हुआ, असफल या गर्भपात। अब भला यह नाम कोई क्यों रखेगा? ‘ऋष्’ मूल से अगर विवेचना करें तो ‘रिशान’ उच्चार का करीबी ‘ऋषिन्’ होता है जिसका (भ्रष्ट) उच्चार रिशान सम्भव है। जिस तरह ऋचा को अब ‘रिचा’ लिखा जाने लगा है। ‘रितिक’ लिखा जाने लगा है। उसी तरह ऋषिन् का रिशान सम्भव है। ऋषिन् यानी योग्य, महर्षि, ज्ञानी, दानिश, बुद्धिमान, विचारशील, विवेकी आदि। बाकी तो हम भी यही कहेंगे की नाम में क्या रखा है !!!
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2 कमेंट्स:

Gyan Dutt Pandey said...

लोग झकाझक नाम रखने लगे हैं। अनूठे। एक सज्जन ने बिटिया का नाम रखा। उस नाम का अर्थ डिक्शनरी में नहीं मिला। बहुत खोजा तो एक जगह मिला - वैश्या।

शोभा said...

आजकल एक नाम बहुत सुनने में आ रहा है 'रिशांक' क्या इसका कोई मतलब है या ऐसे ही रखा जा रहा है।

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