Tuesday, September 9, 2025

भाषा की धार के अगाध - प्रगाढ़ किनारे

गाथा- गाध, गाड़, गाद और गाढ़ की / शब्दकौतुक

हिन्दी में 'अगाधऔर 'प्रगाढ़दो ऐसे शब्द हैं जिनका प्रयोग हम अक्सर गहराई को दर्शाने के लिए करते हैं। एक ओर 'अगाधहमें सागर की अथाह गहराइयों या ज्ञान की सीमाहीनता का बोध  कराता है, तो वहीं 'प्रगाढ़' हमें प्रेम, मित्रता जैसे रिश्तों की घनिष्ठता और मजबूती का एहसास दिलाता है। ध्वनि और अर्थ, दोनों में ये शब्द गहराई के पर्याय लगते हैं। पर इसी परिवार में एक और शब्द है जो हमें चौंकाता है - 'गाद'। इसका अर्थ है नदी की तलछट, कीचड़ या किसी द्रव के नीचे जमी हुई गंदगी, जो गहराई नहीं, बल्कि उथलेपन का कारण बनती है।

विभिन्न अर्थायाम- वैचित्र्य एक स्वाभाविक प्रश्न खड़ा करता है- जो शब्द-मूल 'अगाध' और 'प्रगाढ़' जैसी गहनता को जन्म देता है, वही 'गाद' जैसे तलछट का स्रोत कैसे हो सकता है? दरअसल 'गाध', 'गाढ़', 'गाढ़ा', 'गाद' और 'गाड़' शब्दों का परिवार कुछ ऐसा ही है। इनका प्रयोग पानी की गहराई, रिश्तों की प्रगाढ़ता, द्रव के घनत्व, नदी की तलछट और यहाँ तक कि धाराओं के नाम के लिए भी होता है। पहली नज़र में यह एक भाषाई पहेली लगती है, लेकिन जब हम इनकी जड़ों को खोजते हैं, तो अर्थ के विकास की एक अद्भुत कहानी सामने आती है।

स्थिरता का एक भाव: धातु 
'गाध्'- 
इस पूरे शब्द-समूह की जड़ें संस्कृत की एक ही धातु 'गाध्' में समाई हुई हैं। 'गाध्' का सीधा-सा अर्थ है- 'ठहरना', 'स्थिर होना', 'प्रतिष्ठित होना', या 'थाह पाना'। कल्पना कीजिए कि कोई व्यक्ति नदी पार करते हुए ऐसी जगह खोजता है जहाँ उसके पैर टिक जाएँ और वह स्थिर हो सके। यही ‘थाह पाने’ या ‘स्थिर होने’ का मौलिक विचार इस धातु का केंद्र है। यह आश्चर्यजनक है कि कैसे 'स्थिरता' के इस एक विचार ने भाषा में कई अलग-अलग शाखाओं को जन्म दिया। एक ओर इसने भौतिक रूप से ‘पैर टिकने’ यानी उथलेपन ('गाध') को दर्शाया, तो दूसरी ओर इसने लाक्षणिक रूप से ‘मन के टिकने’ यानी भावनात्मक दृढ़ता और गहनता ('गाढ़') को व्यक्त किया। इसी केंद्रीय विचार से यह पूरा शब्द-परिवार विकसित हुआ।

गहनता और
'गाढ़'- 
भाषा की सबसे सुंदर प्रक्रियाओं में से एक है, जब किसी क्रिया से किसी गुण का जन्म होता है। संस्कृत धातु 'गाध्' (स्थिर होना) से ही 'गाढ़' शब्द विकसित हुआ, जिसका शाब्दिक अर्थ हुआ- "जो स्थिर हो" या "जो दृढ़ हो"। यहीं से अर्थ का विस्तार हुआ। जो भावना मन में पूरी तरह स्थिर हो चुकी है, वह 'प्रबल' और 'गहन' है; जो रिश्ता अपनी जगह पर पक्का है, वह 'घनिष्ठ' और 'दृढ़' है; और जो नींद बिना किसी बाधा के टिकी हुई है, वह 'गहरी' है। इसी से 'गाढालिङ्गन' (दृढ़ आलिंगन), 'गाढानुराग' (गहरा प्रेम) और 'गाढनिद्रा' (गहरी नींद) जैसे शब्द बने। तुलसीदासजी ने भी 'गाढ़' का प्रयोग 'कठिन' या 'दुर्गम' के अर्थ में किया है, जहाँ मुश्किलें मजबूती से 'स्थिर' हों: "क्षेत्र अगम गढ़ गाढ़ सुहावा।"

हमारा प्रिय 'गाढ़ा'- संस्कृत का वही 'गाढ' शब्द प्राकृत से होते हुए आधुनिक हिन्दी में 'गाढ़ा' बन गया।आज हम जितने भी रूपों में 'गाढ़ा' शब्द का प्रयोग करते हैं, वे सभी संस्कृत के उन्हीं भावों की विरासत हैं। जैसे गाढ़ा दूध या रस:यह 'सघन'  होने के भाव से आया है। गाढ़ा रंग:यह 'गहन' या 'तीव्र'  होने का प्रतीक है। गाढ़ी दोस्ती:यह रिश्तों की 'दृढ़ता' और 'घनिष्ठता' को दर्शाता है।गाढ़ी कमाई:यह 'कठिन' या 'प्रचंड' परिश्रम से कमाए गए धन का द्योतक है।गाढ़े दिन या गाढ़ा वक्त:यह मुहावरा संकट या मुसीबत के समय के लिए प्रयोग होता है गाढ़ी छनना: एक तो गहरी दोस्ती होना और दूसरा, तेज़ भाँग का सेवन किया जाना

सघनता यानी
 'गाद' और 'गाळ'- 
अब कहानी और रोचक हो जाती है। 'गाद' शब्द का जन्म भी सीधे-सीधे धातु 'गाध्' (ठहरना) से हुआ है। तर्क बहुत सरल और सीधा है—किसी तरल पदार्थ में जो भारी कण धीरे-धीरे नीचे ठहर जाते हैं या स्थिर हो जाते हैं, उसी जमी हुई तलछट को 'गाद' (silt/sediment) कहा गया। इस तरह 'गाद' शब्द सीधे तौर पर 'ठहरने' की क्रिया का ही परिणाम है। इसी परिवार का एक सदस्य मराठी में भी है। संस्कृत 'गाढ' (दृढ़/सघन) से ही मराठी में 'गाळ' शब्द बना, जिसका अर्थ भी कीचड़ या तलछट ही होता है। मराठी में 'गाळणी' (छलनी) से छानने के बाद जो गाढ़ा हिस्सा ठहर जाता है, उसे 'गाळ' कहते हैं, जो इसके मूल अर्थ को और स्पष्ट करता है

हिमालय के 
'गाड़' - 'गधेरे'- 
उत्तराखंड और हिमाचल जैसे पहाड़ी क्षेत्रों में छोटी नदियों या धाराओं के नाम के अंत में अक्सर 'गाड़' शब्द जुड़ा मिलता है, जैसे- ब्यासगाड़, कोसीगाड़, बिंदालगाड़ और मलारीगाड़। इसका सम्बन्ध भी 'गाद' से ही है।ये पहाड़ी धाराएँ अपने साथ भारी मात्रा में मिट्टी, कंकड़ और अवसाद (यानी गाद) बहाकर लाती हैं , जिससे उनका पानी अक्सर गंदला या 'गाढ़ा' हो जाता है।इसी 'गाद-युक्त' या 'गाढ़ी' होने की विशेषता के कारण इन धाराओं को 'गाड़' कहा जाने लगा।कुमाऊँनी भाषा में 'गाद-धारा' से बने 'गध्यर' जैसे शब्द भी छोटी धाराओं के लिए प्रयुक्त होते हैं, जो इस रिश्ते को और पुख्ता करते हैं।यह शब्द केवल एक नदी का नाम नहीं, बल्कि उसकी तलछटी प्रवृत्ति का भी सूचक है।

कहानी में मोड़-
 विपरीत अर्थ वाला 'गाध
इस शब्द-परिवार में एक सदस्य ऐसा भी है, जिसका अर्थ लगभग उल्टा है। वह शब्द है 'गाध' जहाँ 'गाढ़' का अर्थ 'गहरा' है, वहीं संस्कृत में 'गाध' का प्राथमिक अर्थ है "थाह लेने योग्य, उथला, जो गहरा न हो"।यह नदी के उस स्थान को दर्शाता है, जहाँ पानी इतना कम हो कि पैदल चलकर पार किया जा सके।हिन्दी शब्द सागर के अनुसार भी इसका अर्थ 'छिछला' या 'पायाब' है।इसका स्रोत एक दूसरी, किंतु सजातीय, संस्कृत धातु 'गाध्' है, जिसका एक अर्थ है "खड़े रहना या स्थिर रहना"। इस प्रकार, जहाँ 'गाह्' धातु ने 'डूबने' का भाव पकड़ा, वहीं 'गाध्' धातु ने पानी में 'पैर टिकाकर स्थिर रहने' का भाव अपना लिया।

अथाह 'अगाध'- 
'गाध' का अर्थ 'उथला' ही है, इसका सबसे सुंदर और अकाट्य प्रमाण 'अगाध' शब्द में मिलता है।यह शब्द निषेधार्थक उपसर्ग -' (नहीं) और 'गाध' (थाह योग्य/उथला) के योग से बना है।अतः 'अगाध' का अर्थ हुआ- "जिसकी थाह न ली जा सके, जो उथला न हो", अर्थात "अथाह, बहुत गहरा"।यह शब्द भगवान विष्णु का भी एक नाम है, जो उनके असीम और अनंत स्वरूप को दर्शाता है।मराठी के महान संत ज्ञानेश्वर ने भी इसका प्रयोग करते हुए लिखा: "परि अगाध भलें गहन । हृदय ययाचें" (परन्तु उसका हृदय बहुत अथाह और गहन है)। इस एक शब्द से यह पहेली पूरी तरह सुलझ जाती है और यह स्पष्ट होता है कि कैसे एक ही मूल विचार से समय के साथ दो विपरीत अर्थों वाली शाखाएँ विकसित हो गईं।

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