शब्दों का सफ़र में अक़्सर इतिहास में गोते लगाने की नौबत आ जाती है। इतिहास में ऐसे क़िरदार या प्रतीक मशहूर हो जाते हैं जिनकी खूबियाँ मनुष्य खुद में देखना चाहता है। नतीजतन वे लोग प्रतीक / संज्ञा-नाम में बदल जाते हैं। लोग अपनी संतानों, नायक-नायिकाओं को उन नामों से बुलाने लगते हैं। ऐसा ज्यादातर पुरुषवाची नामों के साथ ही होता है। उदाहरण कई हैं जैसे राम ( रामदयाल, रामकृपाल, रामनरेश, आयाराम, गयाराम आदि), कृष्ण (रामकृष्ण, हरिकृष्ण, रामकिशन आदि), बहादुर (वीरबहादुर, रामबहादुर), सिंह (रामसिंह, वीरसिंह, बहादुरसिंह) आदि कई नाम हैं। इसी कड़ी में दारा का नाम भी आता है जो ईरान के प्रसिद्ध हखामनी वंश के संस्थापक साइरस प्रथम जितना ही महान, वीर और महत्वाकांक्षी नरेश था। इस राजवंश का चौथा शासक था। दरहक़ीक़त हम जिस दारा की बात कर रहे हैं, वह इतिहास में डेरियस प्रथम के नाम से जाना जाता है। फ़ारस के इतिहास में दो साइरस और तीन डेरियस हुए हैं।
यूँ तो तीनों ही डेरियस वीर, लड़ाके थे मगर इतिहास में दारा के नाम से जो डेरियस प्रसिद्ध हो गया वह चौथा हखामनी शासक डेरियस प्रथम ( 521- 486 ) ही था। इतिहास में फ़ारस के हख़ामनी वंश को ही भारत पर चढ़ाई करने वाला पहला विदेशी वंश माना जाता है। इस वंश के संस्थापक साइरस ने 551-530 के बीच अपना साम्राज्य पेशावर से लेकर ग्रीस तक फैला लिया था। डेरियस का पिता विष्तास्पह्य भी हखामनी राजवंश का क्षत्रप था। समझा जाता है कि उसने साइरस के अधीन भी काम किया था। बहरहाल, डेरियस ने साइरस महान की आन, बान और शान को कायम रखा था इसीलिए उसके जीवनकाल में ही उसे भी डेरियस महान कहा जाने लगा था। हखामनी वंश की राजधानी पर्सेपोलिस के शिलालेखों पर ऐसा ही दर्ज है। पुरातत्व पर्यटन के लिए मशहूर पर्सेपोलिस शहर डेरियस की राजधानी हुआ करता था। ऐसा माना जाता है कि यह शहर उसने ही बसाया था। पर्सेपोलिस का अर्थ हुआ परशियनों का शहर। ध्यान रहे ईरान का पुराना नाम फ़ारस था जिसके मूल में अवेस्ता का पार्श (संस्कृत का पर्शु) शब्द था। पार्श से ही फ़ारस बना। ग्रीक संदर्भों में इसे पर्शिया कहा गया। ग्रीक भाषा के पोलिस प्रत्यय का अर्थ वही होता है जो हिन्दी में पुर या पुरी का होता है। इस तरह पर्सेपोलिस का अर्थ हुआ पर्शुपुरी अर्थात पारसिकों की राजधानी हुआ।
प्राचीन फ़ारसवासी अग्निपूजक थे। भारत के पारसी उन्हें के वंशज हैं। इस्लाम की आंधी में उजड़ कर वे भारत आ बसे, फ़ारस के पारसी मुसलमान होते चले गए। दारा का मूल दरअसल डेरियस भी नहीं है। पर्सेपोलिस के शिलालेख के मुताबिक उसका शुद्ध पारसिक उच्चारण दारयवौष है। शिलालेख में दर्ज़ कीलाक्षर लिपि वाले मज़मून का रोमन और देवनागरी उच्चार इस तरह है- Dârayavauš दारयवौष xšâyathiya क्षायथिय vazraka वज्रक xšâyathiya क्षायथिय xšâyâthiânâm क्षायथियानाम xšâyathiya क्षायथिय dahyunâm दह्युनाम Vištâspahya विष्तास्पह्य Haxâmanišiya पुश puça हक्ष्मनिषिय hya ह्य imam इमम taçaram तशराम akunauš अकौनष। इसका अर्थ है- “यह प्रासाद हखामनी वंश के विस्ताष्पह्य के पुत्र और महाराज, राजाधिराज, राज्याधिपति दारयवौष के द्वारा बनवाया गया है”। विद्वानों ने इसे पहलवी का प्राचीन रूप बताया है जो अवेस्ता के क़रीब थी। अवेस्ता को संस्कृत की मौसेरी बहन समझा जाता है।
यह समझना आसान है कि अवेस्ता के दारयवौष का ही ग्रीक रूप डेरियस हुआ होगा। ग्रीक इतिहासकार हेरियोडोटस के उल्लेखों से यही रूप प्रचलित हुआ। इसी तरह वर्णसंकोच के साथ दारयवौष का परवर्ती रूप दारा हुआ। दारयवोष के रूपान्तर की दो दिशाएँ रहीं। दारयवौष > दारयवश >दारयस > दारा (फ़ारसी) > डेरियस (ग्रीक) । पश्चिम की ओर यह डेरियस हुआ जबकि पूर्व की ओर इसका रूपान्तर दारा हुआ। दरअसल का दारा रूप ही अब व्यावहारिक तौर पर प्रचलन में है। ईरान, अफ़ग़ानिस्तान, पाकिस्तान, भारत, बांग्लादेश आदि में दारा कई नामों में मौजूद है जैसे- दाराबख्त, दाराअली, दाराखान, वीरदारा, दारा शुकोह, दाराप्रसाद, दारानाथ, दारासिंह आदि। दारायवौष की पूर्व में दारा के नाम से प्रसिद्धी की बड़ी वजह उसके पंजाब और सिंध अभियानों की कामयाबी रही। वर्तमान पाकिस्तान का पेशावर प्रान्त दारा के आधिपत्य में था। पश्चिम में मिस्र, ग्रीस, उत्तर में आमू दरिया और पूर्व में पंजाब-सिंध दारा के साम्राज्य की सीमाएँ थीं। यही उस काल का ज्ञात विश्व भी था।
देखते हैं दारा का, प्रकारान्तर से दारियवौष का अर्थ क्या है, इसका जन्मसूत्र क्या है। आज की फ़ारसी में दारा का दाराब रूप भी मिलता है। भारत-ईरानी भाषाओं के अध्येता क्रिश्चियन बार्थोलोमिए ने (1855-1925) ने दारयवौष को अवेस्ता का शब्द माना है और इसे जरथ्रुस्ती शब्दावली में स्थान दिया है। इसका अर्थ है धारण करने वाला। राज्य को धारण करना, प्रजा को धारण करना, शासन को धारण करना, नायकोचित गुणों को धारण करना और सद्गुणों को धारण करना इसमें निहित है। दारियवौष के मूल में प्रोटो भारोपीय धातु dher है। भाषाविद् जूलियस पकोर्नी इसका रिश्ता वैदिक धातु धर् से जोड़ते हैं। धर् में उठाने, सम्भालने, देखभाल करने, अंगीकार करने जैसे भाव है। धारण करने में ये सारे भाव निहित हैं। धर् से संस्कृत, हिन्दी व अन्य भारतीय भाषाओं के अनेक शब्द बने हैं। पृथ्वी को धारिणी कहा जाता है। धरती में यही धर है। आधार यानी टिकाव, पड़ाव, फाऊंडेशन में भी यही ‘धर’ है जिसमें स्थिरता है। डॉ रामविलास शर्मा ‘धर्’ के एक रूप ‘स्थर’ की कल्पना करते हैं। संस्कृत ‘दारु’, ‘द्रुम’, ‘तरु’, ग्रीक ‘द्रुस’, अंग्रेजी के ‘ट्री’ में दरअसल धर् के रूपान्तर ‘दर्’ और ‘तर्’ हैं । यह भी दिलचस्प है की ‘धर’ में निहित स्थिरतामूलक धारण करने के भाव से ही गतिवाचक धारा शब्द भी बनता है । धारा वह जो धारण करे, अपने साथ ले जाए । धर, धरा के मूल में धृ धातु है । स्थिरता का परम प्रतीक ध्रुव का जन्म भी इसी धृ धातु से हुआ है । दारयवौष् से बने दारा का अर्थ हिन्दी फ़ारसी में सर्वशक्तिमान, भगवान, राजा, पालक आदि है।
स्पष्ट है कि ताक़त, वीरता आदि के पर्याय के रूप में दारा नाम डेरियस अर्थात दारयवौष् से आ रहा है। इसका प्रचार अनेक देशों में हुआ। नायकोचित नामकरण की अभिलाषा में अनेक दारा सामने आए मगर भारत में तो पंजाब के दारासिंह की ख्याति ने डेरियस द ग्रेट को भी पछाड़ दिया।
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