जिस तरह से कठोर खुरदुरी चट्टानों को भी पानी चिकना बना देता है ताकि उस पर सुगमता से गुजर सके उसी तरह सदियों तक अलग अलग समाजों के बीच भाषा विकसित होती है। किसी शब्द में दिक्कत होते ही, ध्वनितंत्र अपनी जैविक सीमाओं में शब्दों के उच्चारणों को अनुकूल बना लेता है। स्कूल-इस्कूल, लैन्टर्न-लालटेन, एग्रीमेंट-गिरमिट, गैसलाईट-घासलेट, ऊं नमो सिद्धम्-ओनामासीधम, सिनेमा-सलीमा, प्लाटून-पलटन, बल्ब-बलब-बलप-गुलुप, लैफ्टीनेंट-लपटन जैसे अनेक शब्द हैं जो एक भाषा से दूसरी में गए और फिर उस जब़ान में अलग ही रूप में जगह बनाई। कई शब्द हैं जिनका उच्चारण दूसरी भाषा के ध्वनितंत्र के अनुकूल रहा और उनके उच्चारण में बहुत ज्यादा अंतर नहीं आया। ध्यान रहे शब्दों की अर्थवत्ता और उनके उच्चारणों में बदलाव की प्रक्रिया दुतरफा रहती है। आमतौर पर शासक वर्ग की भाषा किसी क्षेत्र की लोकप्रचलित भाषा को तो प्रभावित करती ही है मगर इसके साथ शासक वर्ग की भाषा भी उसके प्रभाव से अछूती नहीं रहती। अंग्रेजी, फारसी यूं तो इंडो-यूरोपीय परिवार की भाषाएं हैं इसलिए उसकी शब्दावली में अर्थसाम्य और ध्वनिसाम्य नज़र आता है। इसके बावजूद हिन्दी अथवा द्रविड़ भाषाओं के शब्दों को भी अंग्रेजी ने अपनाया है जैसे नमस्कार, गुरु आदि। इसके अलावा भी कुछ शब्द ऐसे हैं जिनकी अर्थवत्ता और उच्चारण अंग्रेजी में जाकर सर्वथा बदल गया जैसे जैगरनॉट। खुरदुरा सा लगनेवाला यह शब्द मूलतः हिन्दी का है। आप गौर करें यह अंग्रेजी भाषा के ध्वनितंत्र के मुताबिक हुआ है इसलिए हमें खुरदुरा लगता है। उड़ीसा का भव्य जगन्नाथ मंदिर और विशाल रथ अंग्रेजी में जैगरनॉट हो गया। शुरुआती दौर में जगन्नाथ के विशाल रथ में निहित शक्ति जैगरनॉट की अर्थवत्ता में स्थापित हुई उसके बाद जैगरनॉट में हर वह वस्तु समा गई जिसमें प्रलयकारी, प्रभावकारी बल है। एक हॉलीवुड फिल्म के दैत्याकार पात्र का नाम भी जैगरनॉट है। जगन्नाथ को जैगरनॉट ही होना था और जयकिशन की नियति जैक्सन होने में ही है। हालांकि असली जैकसन वहां पहले ही है। दिल्ली, डेल्ही हो जाती है। ये तमाम परिवर्तन आसानी के लिए ही हैं। भाषा का स्वभाव तो बहते पानी जैसा ही है।
याद रहे, विदेशी शब्दों के प्रयोग की दिशा पढ़े लिखे समाज से होकर सामान्य या अनपढ़ समाज की ओर होती है। रेल के इंजन का दैत्याकार रूपवर्णन जब ग्रामीणों आज से करीब दो सदी पहले सुना तब उनकी कल्पना में वह यातायात का साधन न होकर सचमुच का दैत्य ही था। लोकभाषाओं में इंजन के बहुरूप इसलिए नहीं मिलते क्योंकि इस शब्द की ध्वनियां भारतीय भाषाओं के अनुरूप रहीं अलबत्ता अंजन, इंजिन जैसे रूपांतर फिर भी प्रचलित हैं। मालवी, हरियाणवी, पंजाबी में इस इंजन के भीषण रूपाकार को लेकर अनेक लोकगीत रचे गए। इंजन चाले छक-पक, कलेजो धड़के धक-धक, या इंजन की सीटी में म्हारो मन डोले जैसे गीत इसी कतार में हैं। ध्यान रहे इंजन की सीटी में मन डोलने वाली बात में जिया डोलने वाली रुमानियत नहीं बल्की भयभीत होने का ही भाव है। यदि उधर हमारे जगन्नाथ रथ को अंग्रेजी में जैगरनॉट जैसी अर्थवत्ता मिली तो इधर अंग्रेजी का इंजन भी डेढ़ सदी पहले के लोकमानस में भयकारी रूपाकार की तरह छाया हुआ था। इस प्रक्रिया के तहत कई पौराणिक चरित्रों में अलौकिकता का विस्तार होता चला गया। शब्दों के साथ भी यही होता है।
पूरब के अग्निपूजक मग (मागध) पुरोहित जब ईरानियों के अग्निसंस्कारों के लिए पश्चिम की जाने लगे तब मग शब्द के साथ जादू की अर्थवत्ता जुड़ने लगी। उन्हें मागी कहा गया जो अग्निपुरोहित थे। और पश्चिम की तरह यात्रा करते हुए यह मैजिक में तब्दील हुआ जिसका अर्थ जादू था। याद रहे अग्निपूजकों के हवन और आहूति संबंधी संस्कारों में नाटकीयता और अतिरंजना का जो पुट है उससे ही इस शब्द को नई अर्थवत्ता और विस्तार मिला। मराठी, हिन्दी पर फारसी अरबी का प्रभाव और फिर एक अलग उर्दू भाषा के जन्म के पीछे कही न कही राज्यसत्ता का तत्व है। मगर मराठी और हिन्दी कहीं भी फारसी से आक्रान्त नहीं हुई उलट उन्होंने इसे अपने शृंगार का जरिया बना लिया। यह उनकी आन्तरिक ताकत थी। आज भी देवनागरी के जरिये उर्दू का इस्तेमाल करने की ललक से यह साबित होता है।-जारी
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