बहरहाल, उत्कण्ठा / उत्कंठा का आशय है जानने की इच्छा, उतावली, बेकली, जल्दबाजी, लालसा, बेताबी, छटपटाहट, आतुरता, अधीरता, बेताबी आदि। गौर करें इन सारी अर्थछटाओं में मूल बात जिज्ञासा है। जानने की इच्छा, देखने की उतावली, पाने की लालसा। यह सब जिज्ञासा के शमन से होगा। यह जिज्ञासा एक स्थान पर स्थिर नहीं बैठने देती। जानने की छटपटाहट आपकी चेष्टाओं से उजागर होती है। जानने का काम आँख, नाक, कान और मुँह के ज़रिये हो सकता है लिहाज़ा सिर को ही उठाया जाता है क्योंकि ये इन्द्रियाँ सिर का हिस्सा हैं।
संस्कृत में ‘उद्’ धातु है जिसका प्रयोग उपसर्ग की तरह भी होता है। इसमें ऊपर उठने का भाव है। उत्> उद् > उड् ऐसे रूप मिलते हैं। उत्कर्ष, उत्थान, उत्प्रेरण, उत्तम, उत्तर में इन्हें समझा जा सकता है। उड़ना, उड़ान, उड़ी, उड़ाका, उड़न जैसे शब्दों में उड् पहचाना जा रहा है। उड़ान में ऊपर उठने का भाव है। उड्डयन से स्पष्ट है। हिन्दी में डैना, पंख को कहते हैं जिसके सहारे उड़ान सम्भव होती है। यह डैना इसी मूल से आ रहा है। सम्भवतः उड्डीन से बना है। मराठी में फ्लाईओवर को उड्डाणपुल कहते हैं।
तो इसी तर्ज़ पर उद्+कण्ठ से बने उत्कण्ठा को देखें। मूलतः इसमें गर्दन ऊपर करने, प्रकारान्तर से सिर उठाने का भाव है। कण्ठ वाकयन्त्र भी है और गला भी। कण्ठा यानी हार, गले का पट्टा आदि। कण्ठ का अर्थ नाल या नली भी होता है। मूलतः गला एक नली ही है। सो नदी जिस नाल से होकर बहती है उसे काँठा कहत हैं। इस तरह काँठा का अर्थ किनारा हो जाता है। साबरकाँठा या बनासकाँठा जैसी बस्तियों के नाम यह उजागर करते हैं कि ये साबरमती नदी और बनास नदी के तट पर बसे हैं।
उत्कण्ठा में निहित भाव ऊपर स्पष्ट किए जा चुके हैं। इसी कड़ी में आता है ‘उत्कण्ठ’ जिसका अर्थ है “वह जो गर्दन को ऊपर उठाए”। सर्वाइकल कॉलर का मक़सद गले को सहारा देने के लिए है ताकि सिर ऊपर उठा रहे। अब हम यह तो नहीं कहना चाहेंगे कि सर्वाइकल कॉलर के लिए हिन्दी में उतकण्ठ शब्द चलाया जाए पर इतना तय है कि उपयोग के आधार पर यह नाम सटीक है। वैसे इसके लिए गलपट्टा, कण्ठा, गरदनी, हँसली जैसे नाम भी हिन्दी में चलाए जा सकते हैं।
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