

... धन के भौतिक रुप को ही अन्तिम सत्य समझना मूर्खता है...धन के कई रूप हैं। बल्कि जीवन स्वयं ही धन है…
... धन के भौतिक रुप को ही अन्तिम सत्य समझना मूर्खता है...धन के कई रूप हैं। बल्कि जीवन स्वयं ही धन है…
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अजित वडनेरकर
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3:26 AM
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अजित वडनेरकर
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god and saints
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अजित वडनेरकर
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लस्सी तरावट पैदा करती है इससे यह न समझा जाए कि यह सिर्फ गर्मियों में पीने की चीज़ है। लस्सी बारहों महिने पी जा सकती है…
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अजित वडनेरकर
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3:22 AM
बंदरगाह शब्द फारसी का है जिसमें इसकी दो व्युत्पत्तियां मिलती हैं।
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अजित वडनेरकर
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government,
shelter
सूर्योदय के समय देखते-ही देखते एक एक कर सहस्रों रश्मियां जल-थल में व्याप्त हो जाती हैं।
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अजित वडनेरकर
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3:06 AM
ब्लाग दुनिया में एक खास बात पर मैने गौर किया है। ज्यादातर ब्लागरों ने अपने प्रोफाइल पेज पर खुद के बारे में बहुत संक्षिप्त सी जानकारी दे रखी है। इसे देखते हुए मैं सफर पर एक पहल कर रहा हूं। शब्दों के सफर के हम जितने भी नियमित सहयात्री हैं, आइये , जानते हैं कुछ अलग सा एक दूसरे के बारे में। अब तक इस श्रंखला में आप अनिताकुमार, विमल वर्मा , लावण्या शाह, काकेश ,मीनाक्षी धन्वन्तरि ,शिवकुमार मिश्र , अफ़लातून ,बेजी, अरुण अरोरा , हर्षवर्धन त्रिपाठी , प्रभाकर पाण्डेय अभिषेक ओझा और रंजना भाटिया को पढ़ चुके हैं। बकलमखुद के चौदहवें पड़ाव और तिरासीवें सोपान पर मिलते है पेशे से पुलिस अधिकारी और स्वभाव से कवि पल्लवी त्रिवेदी से जो ब्लागजगत की जानी-पहचानी शख्सियत हैं। उनका चिट्ठा है कुछ एहसास जो उनके बहुत कुछ होने का एहसास कराता है। आइये जानते हैं पल्लवी जी की कुछ अनकही-
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अजित वडनेरकर
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11:55 PM
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बकलमखुद
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... नकदी, कैश, जमा, पूंजी, धन आदि के अर्थ में रोकड़ शब्द हिन्दी की बोलियों सहित द्रविड़-परिवार की विभिन्न भाषाओं में भी प्रचलित है।...
रकम है। जाहिर है कि इस रुक्का का मतलब मौद्रिक लेन-देन संबंधी कागजात से ही है मसलन हुंडी, प्रोनोट वगैरह। ये कागजात भी तो धन यानी रकम ही हुए न? नवाबी दौर में ये रुक्के खूब चला करते थे। यूं रुक्के का सामान्य अर्थ काग़ज़ का टुकड़ा, चिट, पुर्जा भी होता है। शायरों को भी रुक्के दौड़ाने की खूब आदत थी और आशिक-माशूक के बीच भी रुक्के दौड़ते थे।... Anonymous said...
तो ये था रुक्के से रक़म का रिश्ता। जानकारी बढ़ाने का शुक्रिया। पोल-पहेली की पहल भी शानदार है। हमने भी टिक कर दिया है। आपका ब्लाग लगातार निखरता जा रहा है। ऐसे ही लिखते रहें।
October 27, 2007 3:33 AM
अनामदास said...
देखिए, शब्द कहाँ से चलते हैं, किस रूप में कहाँ पहुंचते हैं, कितने अर्थ बदलते हैं. मैं जितना जानता हूँ, अरब जगत में रकम का मतलब अब नंबर से है, संख्या और आंकड़ा. फ़ोन नंबर, अकाउंट नंबर, गाड़ी का नंबर प्लेट सब रकम हैं.
October 27, 2007 3:37 AM
अनामदास said...
और हाँ, बांग्ला को कैसे भूल सकते हैं जहां रकम का आशय प्रकार से है.
की रकोम, किस तरह, किस प्रकार...
October 27, 2007 3:38 AM
अजित said...
वाह वाह अनामदासजी, मज़ा आ गया बांग्ला रकोम की कैफ़ियत जानकर । शुक्रिया जानकारी के लिए।
October 27, 2007 3:50 AM
काकेश said...
कि रोकम आपनी इतू भालो लिखछेन...
आप किस तरह इतना अच्छा लिखते हैं.
ये सफर आपको कैसा लगा ? पसंद आया हो तो यहां क्लिक करें
अभी और बाकी है। दिलचस्प विवरण पढ़ें आगे...
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अजित वडनेरकर
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2:53 AM
यूरोपीय यात्री मार्कोपोलो(1254-1324) ने भी अपने यात्रा वृत्तांत में चीन की आश्चर्यजनक काग़ज़ी मुद्रा का उल्लेख किया है। शुरुआती दौर में इसे वहां फ्लाइंग-करंसी या उड़न-मुद्रा कहा गया क्योंकि तेज हवाओं से यह अक्सर हाथ से उड़ जाती थी।
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अजित वडनेरकर
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9:55 PM
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धीरे धीरे हिन्दुओं के प्रायः सभी समुदायों में मुंडन अनिवार्य हो गया और इसे रूढी की तरह किया जाने लगा। हिन्दी क्षेत्रों में पुराने ज़माने में और आज भी भदर/मृत्युभोज की परंपरा ग्रामीण क्षेत्रों में किसी भी गरीब परिवार पर बहुत भारी पड़ती है।
मृतक के ज्येष्ट पुत्र के सिर के बाल उतारे जाते हैं। बाद के दौर में हिन्दुओं के प्रायः सभी समुदायों में मुंडन अनिवार्य हो गया और इसे रूढी की तरह किया जाने लगा। हिन्दी क्षेत्रों में पुराने ज़माने में और आज भी भदर/मृत्युभोज की परंपरा ग्रामीण क्षेत्रों में किसी भी गरीब परिवार पर बहुत भारी पड़ती है। राजस्थान में किसी ज़माने में राजा के निधन पर पूरी रियासत द्वारा भदर कराने का उल्लेख है।
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अजित वडनेरकर
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11:59 PM
...अरबी हिजामा या ईरानी हजामत का तरीका देखिये इस वीडियो में। भारत के ग्रामीण क्षेत्रों में भी यह पद्धति प्रचलित है...
भी प्रचलित हो गए। हिन्दी में तो हजामत बनाना मुहावरा भी चल पड़ा जिसका अर्थ है जेब खाली कराना, खूब पैसा खर्च कराना। जाहिर सी बात है कि हज्म धातु में शामिल आकार देने का भाव बाल काटने में उजागर हो रहा है और रक्त शोधन संबंधी चिकित्सा संबंधी भाव चीरा लगाने जैसे अर्थ से स्पष्ट है। यह पद्धति भारत में आज भी प्रचलित है और नीम हकीमों के द्वारा अपनाई जाती है। इस पद्धति में शंकु के आकार के कप लेकर सुई से खास तौर पर पीठ पर दोने कंधों के बीच में चीरा लगाया जाता है। इस कप में एक छिद्र होता है जिसके जरिये इसमें से हवा खींच कर निर्वात(वैक्यूम) पैदा किया जाता है ताकि ऊपरी रक्तवाहिनियों से खुद-ब-खुद अशुद्ध रक्त बाहर आने लगता है।
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अजित वडनेरकर
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4:04 AM
... इतिहास गवाह है कि दुनियाभर के खलनायक विभक्त और खंडित व्यक्तित्व वाले ही होते हैं...
ध्वस्त, कुचला-पिसा हुआ, फटा-पुराना, पचा हुआ जैसे भाव हैं। गौरतलब है कि पंजीरी मूलतः आटे से बनती है। आटा अर्थात चूर्ण। जीर्ण में निहित कुचलने-पीसने का भाव ही पंजीरी में उभर रहा है। कभी पंजीरी पांच पदार्थों से बनाई जाती थी जिसमें गेहूं, चना, गोंद, सोंठ और शर्करा का चूर्ण शामिल हैं। यूं इन पदार्थों को घी में सम्मिलित कर भूनने से पंजीरी जैसे स्वादिष्ट पदार्थ का निर्माण होता था। पाककला-प्रवीण लोगों ने इसमें खोपरा-मेवे जैसे पदार्थों का सम्मिश्रण कर इसे और भी स्वादिष्ट बना दिया। इसका सेवन समृद्ध-सम्पन्न लोग ही करते थे। पंजीरी अन्य कई पदार्थों-अनाजों के आटे से बनती है जैसे बाजरा, ज्वार, खसखस, नारियल, धनिया, राजगीरा वगैरह।बडनेरकर जी , तमारा गुन कसे गावाँ ?
पेलां हूँ सोचतो थो कि 'दीतवार' आखो मालवी आणे देहाती नाँव है 'रविवार' को | बी बी सी आला कैलाश बुधवार हमेसाँ ईके इतवार ई बोलता | कईं-कईं का श्रोता ने एतराज़ करयो कि भई या कईं बात ? आप 'रविवार' के उर्दू में 'इतवार' क्यों बोलो ? कैलाश बुधवार ने बड़ी मिठास में समझायो कि इतवार उर्दू नी है | बल्कि ऊ तो संस्कृत का आदित्य से बन्यो है - आदित्य -> आदित्यवार -> दीतवार -> इतवार | समझ में आयो कि मालवी को 'दीतवार' तो संस्कृत को ई है | आज तमारा लेख ने पाछी खुसी दी कि मालवी को 'जीमणो' संस्कृत की धातु 'जमणम' से चल के बन्यो | मैंने तो ठान ली कि जद भी मौको मिल्यो, ने न्योता छप्या, कि 'प्रीतिभोज' की एवज में 'ज्योनार' ई छपउवाँ |
मालवी की इज्ज़त बढाने वास्ते तमारो भोत भोत धन्यवाद !
-आर डी सक्सेना भोपाल
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अजित वडनेरकर
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3:29 AM
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अजित वडनेरकर
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3:45 AM
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food drink
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ओमानी मुद्रा 100 बैसा का नोटभारतीय पैसा की तरह ही ओमान की सबसे छोटी मुद्रा भी बैसा ही है जिसका मौद्रिक मूल्य दो भारतीय पैसों के बराबर होता है। गौरतलब है कि एक ओमानी रियाल करीब बीस रूपए का होता है ।
सफर की पिछली कड़ी मिस्री पेपर और बाइबल(पर्चा-2) में ज्ञानदत्त पांडे पूछते हैं कि पेपर से कागज कैसे रूपान्तरित हुआ?
मिठास का रिश्ता !
पेपर और कागज़ में जन्म का कोई रिश्ता नहीं ज्ञानदा अलबत्ता स्वाद का ज़रूर है। काग़ज़ चीनी मूल का है और पेपर मिस्री मूल का। तो जाहिर है इसमें चीनी और मिस्री की मिठास होगी। अपन ने कभी काग़ज़ खाकर नहीं देखा। जिन्हें बचपन में इसे खाने की आदत रही होगी वे बता सकते हैं। वैसे काग़ज़ के चीनी मूल की कथा पिछली कड़ी अरब की रद्दी, चीन का काग़ज़ [पर्चा-1]में बताई जा चुकी है।
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अजित वडनेरकर
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1:36 AM
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16.चंद्रभूषण-
[1. 2. 3. 4. 5. 6. 7. 8 .9. 10. 11. 12. 13. 14. 15. 17. 18. 19. 20. 21. 22. 23. 24. 25. 26.]
15.दिनेशराय द्विवेदी-[1. 2. 3. 4. 5. 6. 7. 8. 9. 10. 11. 12. 13. 14. 15. 16. 17. 18. 19. 20. 21. 22.]
13.रंजना भाटिया-
12.अभिषेक ओझा-
[1. 2. 3.4.5 .6 .7 .8 .9 . 10]
11.प्रभाकर पाण्डेय-
10.हर्षवर्धन-
9.अरुण अरोरा-
8.बेजी-
7. अफ़लातून-
6.शिवकुमार मिश्र -
5.मीनाक्षी-
4.काकेश-
3.लावण्या शाह-
1.अनिताकुमार-
मुहावरा अरबी के हौर शब्द से जन्मा है जिसके मायने हैं परस्पर वार्तालाप, संवाद।
लंबी ज़ुबान -इस बार जानते हैं ज़ुबान को जो देखते हैं कितनी लंबी है और कहां-कहा समायी है। ज़बान यूं तो मुँह में ही समायी रहती है मगर जब चलने लगती है तो मुहावरा बन जाती है । ज़बान चलाना के मायने हुए उद्दंडता के साथ बोलना। ज्यादा चलने से ज़बान पर लगाम हट जाती है और बदतमीज़ी समझी जाती है। इसी तरह जब ज़बान लंबी हो जाती है तो भी मुश्किल । ज़बान लंबी होना मुहावरे की मूल फारसी कहन है ज़बान दराज़ करदन यानी लंबी जीभ होना अर्थात उद्दंडतापूर्वक बोलना।
दांत खट्टे करना- किसी को मात देने, पराजित करने के अर्थ में अक्सर इस मुहावरे का प्रयोग होता है। दांत किरकिरे होना में भी यही भाव शामिल है। दांत टूटना या दांत तोड़ना भी निरस्त्र हो जाने के अर्थ में प्रयोग होता है। दांत खट्टे होना या दांत खट्टे होना मुहावरे की मूल फारसी कहन है -दंदां तुर्श करदन
अक्ल गुम होना- हिन्दी में बुद्धि भ्रष्ट होना, या दिमाग काम न करना आदि अर्थों में अक्ल गुम होना मुहावरा खूब चलता है। अक्ल का घास चरने जाना भी दिमाग सही ठिकाने न होने की वजह से होता है। इसे ही अक्ल का ठिकाने न होना भी कहा जाता है। और जब कोई चीज़ ठिकाने न हो तो ठिकाने लगा दी जाती है। जाहिर है ठिकाने लगाने की प्रक्रिया यादगार रहती है। बहरहाल अक्ल गुम होना फारसी मूल का मुहावरा है और अक्ल गुमशुदन के तौर पर इस्तेमाल होता है।
दांतों तले उंगली दबाना - इस मुहावरे का मतलब होता है आश्चर्यचकित होना। डॉ भोलानाथ तिवारी के मुताबिक इस मुहावरे की आमद हिन्दी में फारसी से हुई है फारसी में इसका रूप है- अंगुश्त ब दन्दां ।