शब्दकौतुक/दीगर
इतिहास, व्युत्पत्ति और साहित्यिक परंपरा
हिंदी भाषा की समृद्ध विरासत में कई ऐसे शब्द समाहित हैं जिनके पीछे गहरे
भाषाई और सांस्कृतिक कारक निहित हैं। "दीगर" भी ऐसा ही एक शब्द है, जिसका अर्थ “अन्य”, “दूसरा” या “अगला” के रूप में देखा जाता है। फ़ारसी तर्ज की एक कहावत “आप मियाँ फ़ज़ीहत, दीगराँ नसीहत” अर्थात “آپ مِیاں فَضیحَت، دِیگَر ان نَصیَحت” से अधिकांश हिन्दी-उर्दू वाले परिचित हैं। इसमें "दीगर" का प्रयोग अन्य व्यक्ति, अथवा दूसरे लोगों के संदर्भ में किया गया है। तो शब्दों का सफ़र में इस बार 'दीगर' शब्द की
उत्पत्ति और इंडो-इरानी भाषाओं में इसके प्राचीन संबंधों के बारे में जानने का
प्रयास करते हैं।
प्राचीन जड़ों की झलक
हिंदी में प्रयुक्त "दीगर" शब्द फ़ारसी के रास्ते आई। इसकी जड़ें
इंडो-इरानी भाषाओं में खोजी गई हैं। विशेषज्ञों के अनुसार यह शब्द अवेस्ता के द्वा, दुवो, दुवितिआ से
सम्बद्ध है जो कि "दूसरा" के अर्थ में प्रयुक्त होता है। इसके मूल तत्व dwi का अर्थ "दोहरा" होता है, जो प्रोटो-इंडो-यूरोपीय dwi- से व्युत्पन्न माना जाता है। ग़ौरतलब है संस्कृत में "द्व", "द्वौ", "द्वे", और "द्वि" आदि में
संख्यात्मक भाव है और ये दो के विभिन्न रूप हैं। तो इसी कड़ी में आता है संस्कृत द्वितीय शब्द। विभिन्न शब्दकोशों को देखने से
यह स्पष्ट होता है कि "द्वितीय" शब्द का उपयोग अनेक संदर्भों में किया
जाता है—व्याकरण, परिवार संरचना, समय गणना, मित्रता, और ध्वनि विज्ञान में। यह
हिंदी एवं संस्कृत दोनों में बहुआयामी शब्द के रूप में जाना जाता है। मूलतः इसमें
भी दूसरा, अन्य, सहचर, साथी, मित्र, शत्रु, दूसरा भाग आदि। ऊपर इसी द्वितीय के
अवेस्ताई रूप दुवितिया का उल्लेख आया है।
दिगर-बारगी या दीगर-बार
द्वितीय शब्द का ‘दीगर’ से गहरा सम्बन्ध है। जिसका शाब्दिक अर्थ
"दूसरा" या "दूसरा भाग" होता है। फारसी में "دیگر"
शब्द भी इसी मूल से जुड़ता है, जिसका अर्थ होता है
"अन्य में से एक"। इस प्रकार "दीगर" का मूल स्वरूप भारतीय
उपमहाद्वीप में ईरान के भाषायी प्रभाव को दर्शाता है। दीगर से जुड़े कुछ अन्य
सर्ग, मुहावरे आदि भी हैं जो
बोलचाल से लेकर साहित्यिक हिंदी में विद्यमान हैं। दिगर-बारगी या दीगर-बार का आशय
भी दूसरी बार होता है। यह दर्शाता है कि कैसे भाषाओं के आंतरिक विकास में कालक्रम
के साथ-साथ विभिन्न सांस्कृतिक बदलावों की छाप भी होती है। चतुर्वेदी-मैकग्रेगर
समेत हिंदी के अधिकांश कोशों में दीगर शब्द अपनी फ़ारसी पहचान के साथ दर्ज है।
बहुआयामी प्रयोग
हिंदी साहित्य एवं शब्दकोशों में "दीगर" का "दिगर" भी
प्रचलित है। उदाहरण स्वरूप हिन्दी शब्दसागर में दिगर रूप देखने को मिलता है। इसका
प्रमाण संपादकों ने संभवतः आईने अकबरी की पंक्तियों से दिया है- "बाबर न
बरोबर बादशाह, मन दिगर न
दीदम..."। कुछ कोशों में इस शब्द का प्रयोग "अगला", "पिछला" या "अन्य" के रूप में
किया जाना बताते हैं। इन उदाहरणों से ज़ाहिर है कि इसका बहुआयामी अर्थ विकसित हुआ
है, जो संदर्भ और शैली के
अनुसार बदलता रहता है। भारतीय उपमहाद्वीप में भाषाई आदान-प्रदान के दौरान फारसी और
अरबी दोनों का प्रभाव दिखता है, लेकिन अधिकांश
शब्दों के बोल-व्यवहार व वर्तनी पर फ़ारसी शैली की छाप है। "दीगर" शब्द
की ध्वनि और संरचनात्मक विशेषताएँ स्पष्ट रूप से फारसी मूल की ओर इंगित करती हैं।
फारसी और अरबी भाषाई प्रभाव
हालाँकि हिन्दी को दीगर शब्द फ़ारसी की देन है और इसी अर्थ में अन्य शब्द
हिन्दी के पास पहले से रहा है। चूँकि हिन्दी में अरबी भी फ़ारसी के ज़रिए ही आई
है, सो अरबी में दीगर के पर्याय के बारे में भी बात कर लेते हैं। जहाँ हिंदी में
"दीगर" शब्द का प्रयोग प्रायः "अन्य" या "दूसरा" के
अर्थ में होता है, वहीं फारसी में
भी "दीगर" इन्हीं अर्थों के साथ-साथ Another,
other, more; the rest; over again; near; besides, further, moreover; again;
some; any more, any longer; hitherto; afternoon, evening (Steingass) आदि अर्थछायाओं में भी प्रयुक्त होता है। दूसरी ओर, अरबी भाषा में दीगर का पर्याय ग़ैर "غیر" है, जैसे ग़ालिब का शेर: “ग़ैर फिरता है लिए यूँ तिरे ख़त को कि अगर, कोई पूछे कि ये क्या है तो छुपाए न बने”। ग़ालिब ग़ैर के ज़रिए यहाँ उसी अन्य अथवा दूसरे का हवाला दे रहे हैं जो दीगर में भी मिलता है। यूँ भी फ़ारसी से अरबी में जाने वाले शब्दों की तुलना में अरबी शब्दसंपदा का फ़ारसी की ओर प्रवाह तेज रहा है।
अवेस्ताई में 'द्वितीय'
के प्राचीन रूप
दीगर के जन्मसूत्र भारत और ईरान के भाषिक व्यवहार के प्राचीन स्तरों तक जाते
हैं। फ़ारसी की पुरखिन अवेस्ता के साहित्य में संस्कृत के
‘द्वितीय’ का रूपभेद दाइबिती के रूप में मिलता है। जिसका अर्थ भी “द्वितीय, दूसरा” है। गाथा-अवेस्ता के सूक्त 45:1 की महत्वपूर्ण सीख है- “नोइत् दाइबीतीम् दुष्सस्तीश् अहूम् मर्ग्षीअत्”। इसमें दाइबितीम् शब्द ‘दूसरी बार’ के आशय से प्रयुक्त है। सूक्त का भाव यही है कि बुराई बार-बार सत्य की रोशनी को ढक नहीं सकती। संसार का अस्तित्व सत्य पर आधारित है, जीत उसी की होगी।
दीगर की व्युत्पत्ति विवेचना
अब थोड़ी तसल्ली से दीगर की व्युत्पत्ति के बारे में भी बात कर ली जाए। फ़ारसी
के दीगर की रिश्तेदारी अवेस्ता दुवितिआ/दिबितीम् से जुड़ने के संदर्भ में यह
प्रश्न सहज ही उठता है कि अवेस्ताई द्वा, दुवो, दुवितिआ, दिबितीम् (द्वितीयम्) का बदलाव दीगर "دیگر" कैसे हो
गया। यानी 'द्वि' से 'दी' होना तो समझ में आता है। यह तो स्पष्ट है कि संस्कृत के
द्वितीया का ही रूपभेद अवेस्ता का दुवितिआ है। समस्या यह है कि दीगर में निहित
दुवितिआ के किन वर्णों का रूपांतर 'ग' और 'र' में हुआ अथवा किन ध्वनियों को धकेल कर ‘दुवि’ के बाद 'ग' और 'र' का आगमन हुआ।
इसका भेद मध्यकालीन फ़ारसी यानी पहलवी के दुदीगर से खुलता है।
दुदीगर से दीगर
भाषाविज्ञानियों ने इसी दुदीगर पर ध्यान लगाया और प्रोटो ईरानी में
द्वितीयकारा शब्द का रिकंस्ट्रक्शन किया और बात आसान हो गई। इसे यूँ समझ सकते हैं
कि प्रोटो ईरानी के किसी स्तर पर पहला परिवर्तन – "द्वितिय" से
"दी" हुआ। शब्द के दूसरे भाग में "karah" स्वरूप प्रत्यय है, जो कर्म करने या क्रिया करने के अर्थ से जुड़ा हुआ है। मौखिक उच्चारण की सहजता
के लिए और ध्वनि नियमों के अनुसार,
"कार" का ‘क’ शिथिल होकर ‘ग’ में बदल गया है। इसी कारण "कार/कर"
के स्थान पर "गर/गार" प्राप्त होता है। इन दो स्तरों पर जो बदलाव हुए
उसकी वजह से अवेस्ताई दुवितिआ-कार से पहलवी में दुदीगर रूप प्राप्त होता है जिससे
विकसित होकर आज की फ़ारसी में दीगर उभरता है।
तो कुल मिलाकर...
"दीगर" की
व्युत्पत्ति एक लंबी और दिलचस्प भाषाई यात्रा का परिणाम है, जो संस्कृत से लेकर प्रोटो-ईरानी, फिर पहलवी और अंततः आधुनिक फ़ारसी तक फैली हुई है।
"दुदीगर" का "दीगर" में परिवर्तन एक स्वाभाविक ध्वन्यात्मक
विकास है। "दुदीगर" का अवेस्ता के "दुवितिया-कारा" जैसे किसी
प्रोटो रूप से विकसित होने की सैद्धांतिकी भाषाई इतिहास की एक सुसंगत कड़ी बन जाती
है।
अभी और बाकी है। दिलचस्प विवरण पढ़ें आगे...