हिन्दी में ‘सरमाया’ शब्द फ़ारसी से आया है । ‘सरमाया’ को अरबी का समझा जाता है पर यह भारोपीय भाषा परिवार की इंडो-ईरानी शाखा का शब्द है और फ़ारसी के सर + ‘मायः’ से मिल कर बना है । गौरतलब है कि फ़ारसी का विकास बरास्ता अवेस्ता (वैदिक संस्कृत की मौसेरी बहन), पहलवी हुआ है । संस्कृत की तरह ही अवेस्ता में भी विसर्ग लगता रहा है और वहीं से यह फ़ारसी में भी चला आया । फ़ारसी के ‘मायः’ का उच्चारण माय’ह होना चाहिए मगर विसर्ग का उच्चार अक्सर आ स्वर की तरह होता है इस तरह फ़ारसी का ‘मायः’ भी माया उच्चारा जाता है । हिन्दी शब्दसागर में ये दोनों ही रूप दिए हुए हैं । ‘सरमाया’ में जो ‘सर’ है वह सरदार, सरपरस्त, सरज़मीं, सरकार वाला सर ही है जिसका इस्तेमाल उपसर्ग की तरह होता है । सर का प्रयोग प्रमुख, खास, सर्वोच्च आदि की तरह होता है । यह जो फ़ारसी का ‘सर’ है उसका रिश्ता वैदिक संस्कृत के ‘शिरस्’ से है जिसका अर्थ है किसी भी वस्तु का उच्चतम हिस्सा, कपाल, खोपड़ी, मस्तक, चोटी, शिखर, शुरुआत, पीक, बुर्ज़, पराकाष्ठा, चरम आदि ।
संस्कृत में ‘शीर्ष’ का मूल भी यही है । इससे ही हिन्दी का ‘सिर’ बना है । शिरस् के समतुल्य जेंद में ‘शर’ शब्द बना जिसका पहलवी रूप ‘सर’ हुआ । फ़ारसी में यह ‘सर’ चला आया । अलबत्ता जॉन प्लैट्स की “अ डिक्शनरी ऑफ उर्दू, क्लासिकल हिन्दुस्तानी एंड इंग्लिश” के मुताबिक फ़ारसी का सर संस्कृत के ‘सिरस्’ से आ रहा है । ध्यान रहे, ‘सिर’ यानी मस्तक के अर्थ में संस्कृत के किसी कोश में ‘सिरस्’ की प्रविष्टि नहीं मिलती । प्लैट्स के ऑनलाईन कोश में सम्भवतः वर्तनी की चूक है । जहाँ तक ‘माया’ का सवाल है, जान प्लैट्स इसके जन्मसूत्र संस्कृत के ‘मातृका’ में देखते हैं । ‘माया’ की व्युत्पत्ति का ठोस संकेत ‘मातृका’ से नहीं मिलता । ध्यान रहे मोनियर विलियम्स के संस्कृत-इंग्लिश कोश में ‘मातृका’ का अर्थ सिर्फ माँ सम्बन्धी, धात्री, माँ, जन्मदात्री अथवा पालनकर्त्री है । जबकि प्लैट्स धन-दौलत के संदर्भ में इसके अर्थ मूल, व्युत्पन्न, स्रोत दिए गए हैं साथ ही दौलत, पूंजी, नगद, भंडार, कोश, निधि जैसे अर्थ भी दिए गए हैं । समझा जा सकता है कि प्लैट्स शायद यह कहना चाहते हैं कि ‘मातृ’ शब्द में उद्गम या स्रोत का भाव है । ज़ाहिर है स्रोत अपने आप में एक कोश या भण्डार होता है । यह तर्कप्रणाली गले नहीं उतरती और खींच-तान कर मातृका का रिश्ता धन-दौलत से जोड़ने वाली कवायद जान पड़ती है ।
गौरतलब है कि संस्कृत का ‘मातृका’ स्त्रीवाची है जबकि फ़ारसी का ‘मायः’ पुरुषवाची है । उधर हिन्दी-संस्कृत में ‘माया’ की अर्थवत्ता बहुत व्यापक है और इसमें न सिर्फ़ धन-दौलत का भाव है बल्कि भ्रम, छलावा, धोखा, अतीन्द्रिय शक्ति, कला, जादूविद्या, भूत-प्रेत सम्बन्धी अथवा टोना जैसे अभिप्राय भी इसमें हैं । संस्कृत में ‘माया’ का एक अर्थ दुर्गा भी है मगर यह इसमें जन्मदात्री का आशय न होकर पराशक्तियों की स्वामिनी देवी का भाव है । इसी तरह ‘माया’ का दूसरा अर्थ लक्ष्मी है जो धन-वैभव की देवी हैं । इसी भाव का विस्तार माया के धन, दौलत, रोकड़ा, रुपया-पैसा, वैभव, सम्पत्ति, निधि, माल-मत्ता आदि में होता है । धन की महिमा अपरंपार है । इसके ज़रिये सुखोपभोग का कल्पनातीत संसार रचा जा सकता है । यहाँ ‘माया’ का अर्थ अवास्तविक लीला, कल्पनालोक या छलावा सार्थक होता है क्योंकि धन के रहने पर इन सबका भी लोप हो जाता है । इसीलिए कबीर ने धन-सम्पदा के अर्थ में ही “माया महा ठगिनी हम जानि” जैसी प्रसिद्ध उक्ति कही है ।
मायाजीवी शब्द भी धन-दौलत में रुचि रखने वाले का अर्थबोध कराता है जबकि मायावी का अर्थ जालसाज़, कपटी, छली, धोखेबाज, जादूगर आदि है । यह बात समझनी मुश्किल है कि प्लैट्स फ़ारसी के ‘मायः’ का रिश्ता धन-दौलत के अर्थ में संस्कृत के मातृक से क्यों जोड़ रहे हैं जबकि संस्कृत के ही ‘माया’ शब्द में धन-दौलत, पूंजी, सम्पदा के साथ माप-जोख, देवीदुर्गा, शक्ति जैसे भाव है । अगली कड़ी में समाप्त
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