Monday, January 5, 2009

दो टके का आदमी... [सिक्का-10]


तिब्बती टङ्का
बांग्लादेशी टका
...टंकण में निहित उत्कीर्ण करने का भाव ही मुद्रा के तौर पर टका या टंका नाम में उजागर हो रहा...
का सा जवाब, टांग खींचना या टांग अड़ाना जैसे मुहावरे आमतौर पर बोलचाल की हिन्दी में प्रचलित हैं। इन मुहावरों में टका और टांग जैसे शब्द संस्कृत के मूल शब्द टङ्कः (टंक:) से बने हैं। संस्कृत में टङ्कः का अर्थ है बांधना, छीलना , जोड़ना, कुरेदना या तराशना। हिन्दी के टंकण या टांकना जैसे शब्द भी इससे ही निकले है। दरअसल टका या टंका शब्द का मतलब है चार माशे का एक तौल या इसी वजन का चांदी का सिक्का। अंग्रेजों के जमाने में भारत में दो पैसे के सिक्के को टका कहते थे। आधा छंटाक की तौल भी टका ही कहलाती थी। पुराने जमाने में मुद्रा को ढालने की तरकीब ईजाद नहीं हुई थी तब धातु के टुकड़ों पर सरकारी चिह्न की खुदाई यानी टंकण किया जाता था।

गौरतलब है कि दुनियाभर में ढलाई के जरिये सिक्के बनाने की ईजाद लीडिया के मशहूर शासक ( ईपू करीब छह सदी) क्रोशस उर्फ कारूँ ( खजानेवाला ) ने की थी। टका या टंका किसी जमाने में भारत में प्रचलित था मगर अब मुद्रा के रूप में इसका प्रयोग नहीं होता। कहावतों-मुहावरों में यह जरूर इस्तेमाल किया जाता है। किसी बात के जवाब में दो टूक यानी सिर्फ दो लफ्जों मे साफ इन्कार करने के लिए यह कहावत चल पडी - टका सा जवाब। टके की दो पैसा की कीमत को लेकर और भी कई कहावतों ने जन्म लिया। मसलन -(1)टका सा मुंह लेकर रह जाना (2)टके को न पूछना (3)टके-टके को मोहताज होना(४) टके-टके के लिए तरसना (5)टका पास न होना,(6)दो कौड़ी का की तर्ज पर दो टके का...वगैरह-वगैरह। भारत में चाहे टके को अब कोई टके सेर भी नहीं पूछता मगर बांग्लादेश की सरकारी मुद्रा के रूप में टका आज भी डटा हुआ है। बांग्लादेश के अलावा भी कई देशों में यह लफ्ज तमगा, तंका, तेंगे या

कजाक़िस्तान का तेंगसे

तंगा Tenga के नाम से चल रहा है जैसे ताजिकिस्तान, कजाकिस्तान, तुर्कमेनिस्तान, उज्बेकिस्तान, तिब्बत (टङ्का) और मंगोलिया। इन सभी देशों में यह मुद्रा के रूप में ही है। हालांकि वहां इस शब्द की उत्पत्ति चीनी शब्द तेंगसे से मानी जाती है जिसका अर्थ होता है मुद्रित सिक्का और एक तरह की माप या संतुलन। अर्थ की समानता से जाहिर है कि तेंगसे शब्द भी टङ्कः का ही रूप है। टंका से ही चला टकसाल शब्द अर्थात टंकणशाला यानी जहां सिक्कों की ढला होती है।

ब आते हैं टङ्कः के दूसरे अर्थों पर । इसका एक मतलब होता है लात या पैर। संस्कृत में इसके लिए टङ्गा शब्द भी हैं। हिन्दी का टांग शब्द इसी से बना है। गौर करें टङ्कः के जोड़ वाले अर्थ पर । चूंकि टांग में घुटना और ऐडी जैसे जोड़ होते हैं इसलिए इसे कहा गया टांग। इसी अर्थ से जुड़ता है इससे बना शब्द टखना । जाहिर जोड़ या संधि की वजह से ही इसे ये अर्थ मिला होगा। इसी तरह देखें तो पता चलता है कि वस्त्र फट जाने पर , गहना टूट जाने पर , बर्तन में छेद हो जाने पर उसे टांका लगाकर फिर कामचलाऊ बनानेका प्रचलन रहा है। यह जो टांका है वह भी इस टङ्कः से आ रहा है अर्थात इसमें जोड़ का भाव निहित है।

ङ्कः का एक और अर्थ है बांधना। गौर करें कि जोड़ने के लिए बांधने की क्रिया भी सहायक होती है। धनुष की कमान से जो डोरी बंधी होती है उसे खींचने पर एक खास ध्वनि होती है जिसे टंकार कहते हैं। यह टंकार बना है संस्कृत के टङ्कारिन् से जिसका मूल भी टङ्कः है यानी बांधने के अर्थ में। तुर्की भाषा का एक शब्द है तमग़ा जो हिन्दी-उर्दू-फारसी में खूब प्रचलित है यानी ईनाम में दिया जाने वाला पदक या शील्ड। प्राचीन समय में चूंकि यह राजा या सुल्तान की तरफ से दिया जाता था इस लिए इस पर शाही मुहर अंकित की जाती थी। इस तरह तमगा का अर्थ हुआ शाही मुहर या राजचिह्न। अब इस शब्द के असली अर्थ पर विचार करें तो साफ होता है कि यह शब्द भी टंकण से जुड़ा हुआ है। [संशोधित पुनर्प्रस्तुति]

मूल पोस्ट पर जो टिप्पणियां आईं थीं वे जस की तस यहां हैं-

विष्णु बैरागी अरे ! वाह, आपने तो 'टके' में कुबेर का खजाना उपलब्‍ध करा दिया ।
उन्मुक्त. अरे यह तो मालुम नहीं था।
आलोक पुराणिक-गहरे पानी पैठ कर लाते हैं आप। इस तरह के शोधपरक कार्य के लिए आपको साधुवाद। शुभकामनाएं।
आभा - इस बजट स्रत्र मे ढाका का टका और ऊपर का खजाना ज्यादा महत्व रखता है, बाकी जानकारी के लिए शुक्रिया सर....
चंद्रकुमार जैन-...टका आज भी डटा हुआ है...कितना रोचक प्रयोग है ! आप डटकर लिखते रहिए और ज्ञानबोध के विस्तृत नभ पर नवीन जानकारियों के नए सितारे टांकते रहिए। यही शुभकामनाएं
महामंत्री-तस्लीम-आपकी शैली बहुत ही लाजवाब है। बहुत-बहुत बधाई।
ममता-पर हम तो कहेंगे लाख टके का है आपका ब्लॉग।
मीनाक्षी-सही में आपकी रोचक शैली है जो रूखे सूखे शब्दों का भी सफर रोचक जानकारी के साथ चल रहा है...




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14 कमेंट्स:

Smart Indian said...

बहुत ही रोचक. जिस समय में आवागमन के साधन न के बराबर थे तब भी कुछ शब्द सारी दुनिया में घूम रहे थे - यह जानकर आश्चर्य तो होता ही है.

Dr. Chandra Kumar Jain said...

हम तो टकटकी लगाये रहते हैं
कि सफर जाने कब टके की बात
करे या अशर्फियाँ लुटा दे !
========================
सच, शब्दों से बोलने-बतियाने का
अनोखा अवसर दे जाते हैं आप !
आभार
डॉ.चन्द्रकुमार जैन

विष्णु बैरागी said...

काश ! आपकी जानकारियां सारी दुनिया के सामने जा पातीं तो लोग अधिक समृध्‍द होते ।

विवेक सिंह said...

बढिया ! आपकी बदौलत इतनी कीमती जानकारी टके सेर मिल रही है :) आभार !

रंजना said...

बहुत बहुत आभार और नमन आपके ज्ञान और शोध को.एक और नै बात जानने का अवसर मिला.

दिवाकर प्रताप सिंह said...

टका धर्मं, टका कर्म, टकयो: हि परमपदम् !
यस्य गृहे टका नास्ति, हाटके टकटकायते !!

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` said...

क्या बात है टेक का विस्तार ही अपार है :)

Vinay said...

बेहद उम्दा ब्लाग है, माफ़ी चाहूँगा कि आज तक नज़र नहीं पड़ी


---मेरे पृष्ठ
चाँद, बादल और शाम पर आपका सदैव स्वागत है|

Abhishek Ojha said...

लाख टके की पोस्ट !

Sanjay Karere said...

यह शब्‍दों की टकसाल है लेकिन यहां टके की नहीं अमूल्‍य बातें पता चलती हैं। अभिषेक के शब्‍द दोहरा रहा हूं... लाख टके की पोस्‍ट..

श्रुति अग्रवाल said...

अजीत जी आप बेहद रोचक और शिक्षाप्रद जानकारियाँ ढ़ूढकर लाते हैं। शुक्रिया इन जानकारियों के लिए।

Arun Arora said...

भईया इसकी किताब कब छपवाओगे सच्ची मे हम खरीदने को भी राजी है वैसे आप जानते हो हम किताबो पर पैसा कतई खर्च नही करते इधर उधर से कबाड लाते है पर सच्ची इस बार जरूर खरीद लेगे आपसे स्पेसी मैन कापी भी नही मागेंगे . वाकई छपवा डालो

Vishal Saini said...

The way of conveying the information is unique. Itne dino baad shudhh Hindi padhi.

Vishal Saini said...

So old post and so informative.

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