Tuesday, February 12, 2008

ये नागनाथ , वो सांपनाथ...

र्प का पर्यायवाची शब्द नाग भी इंडो यूरोपीय मूल से ही जन्मा है। हिन्दी नाग की व्युत्पत्ति संस्कृत के नागः से हुई है जिसका मतलब होता है काला भुजंग सांप। एक काल्पनिक दैत्य जिसकी मुखाकृति तो मनुष्य जैसी होती है मगर धड़ से नीचे का हिस्सा सर्प जैसा ही होता है । इसे पातालवासी बताया गया है। हिन्दू विश्वासों के मुताबिक यह पृथ्वी भी एक विशाल सर्प के फन पर टिकी है। पुराणों के मुताबिक इस सर्प का नाम शेषनाग है। दरअसल ये कश्यप ऋषि ओर दक्षपुत्री कद्रु के पुत्र है। इनके सौ फन हैं और एक फन पर पृथ्वी टिकी है। इनकी देह पर भगवान विष्णु और देवी लक्ष्मी निवास करते हैं। इन्हे ही नारायण भी माना गया है। प्रलय के समय पृथ्वी के नष्ट होने के बावजूद ये शेष रहे इसलिए इन्हें शेषनाग कहा जाता है। इनका निवास पाताल है। अमरनात धाम की यात्रा का एक पड़ाव शेषनाग भी है। यहां एक विशाल झील है।
यूं देखा जाए तो नाग जाति का जो उल्लेख पुराणों में है वह मनुष्यों की ही एक जाति के रूप में है न कि रेंगने वाले सरीसृपों के रूप में। गौरतलब यह भी है कि सर्प जाति के लिए उपजे नकारात्मक भाव का बोध जहां सांप में जबर्दस्त होता है वही नाग शब्द के साथ ऐसा नहीं है। अलबत्ता दो एक जैसी बुराइयों को रेखांकित करने के लिए नागनाथ और सांपनाथ वाले मुहावरे में ज़रूर इसका उल्लेख है जिसे नकारात्मक कहा जा सकता है। नाथ सम्प्रदायों के नवनाथों में से एक नागनाथ भी बताए जाते हैं ।
अब आते हैं नाग यानी snake की उत्पत्ति पर । पुरानी अंग्रेजी के snaca, स्वीडिश के snok, जर्मन के schnake और लगभग सभी भारतीय भाषाओं में इस्तेमाल किए जाने वाले नाग-नागिन जैसे तमाम शब्द भारतीय-यूरोपीय परिवार के मूल शब्द snag से ही बने हैं। इस शब्द का मतलब भी कोई रेंगने वाला जंतु ही होता है। अंग्रेजी का snail शब्द , जिसका मतलब होता है घोंघा, भी इसी स्नैग से ही बना है। गौर करें कि घोंघा भी रेंगता ही है। अजीब बात है कि अंग्रेजी के sarpent शब्द को जहां snag से बने snake ने पछाड़ दिया है वहीं इसी snag से बना नाग शब्द हिन्दी में सर्प के लिए आमतौर पर बोले जाने वाले सांप शब्द से ज्यादा लोकप्रिय नहीं हो पाया है।
नाग शब्द के कई अन्य संदर्भ भी हैं। इतिहास में एक नागवंश भी प्रसिद्ध हुआ है। पर्वतीय जी के भारतीय संस्कृति कोश के मुताबिक 150 से 250 विक्रमी संवत् के बीच मथुरा से लेकर उज्जैन तक फैले विशाल भूक्षेत्र पर नागवंशियों का शासन था। सिकंदर के आगमन के समय नागवंशी राजा ने ही उसका स्वागत किया था ऐसा उल्लेख है।
जनमेजय के नागयज्ञ का संदर्भ भी पुराणों में खूब आता है। कश्यप और कद्रू की सौ संतानें थी जो नाग थी। जब इन्होने लोगों को कष्ट दिया तो ब्रह्मा ने शाप दिया कि गरुड़ और जनमेजय के यज्ञ द्वारा उनका नाश होगा। पश्चाताप करने पर ब्रह्मा ने उन्हें आशीर्वाद दिया कि एक विशेष स्थान पर तुम सुरक्षित रहोगे । वह नागलोक कहलाएगा। इसी लिए पाताल को नागलोक भी कहते हैं ब्रह्मा ने जिस दिन आशीर्वाद दिया उसे ही नागपंचमी कहते हैं। ।

6 कमेंट्स:

दिनेशराय द्विवेदी said...

अच्छी जानकारी है। मैं समझता हूँ कि नाग शब्द का प्रयोगॉ सांपों की प्रजाति कोबरा के लिए प्रयुक्त किया जाता है

Anonymous said...

क्या आप 'ष ' में यक़ीन नहीं रखते ?

Arvind Mishra said...

जनमेजय के सर्प[नाश ]यज्ञ मे भयग्रस्त डुन्डूभि नाग ने कहा -
अन्ये ते भुजगा ब्रह्मण ये दश्न्तीह मानवान !
अर्थात वे नाग आज के ज्ञात नाग [कोबरा ]से अलग थे .

Sanjeet Tripathi said...

कुंडली पर यकीन करें तो हमारी योनि बताती है "सर्प"

तो एक सर्प योनि के मानव होने के नाते हमें यह जानकारी काम की लगी!!
शुक्रिया!

नीलिमा सुखीजा अरोड़ा said...

तो नागलोक में सांप सुरक्षित रहते हैं फिर क्यों मृत्युलोक में चले आते हैं

Sachin Kulkarni said...

bahut rochak jaankaari

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