पहनने के कपड़ों या वस्त्रों के लिए हिन्दी में पोशाक शब्द बहुत आम है। यह इंडोयूरोपीय भाषा परिवार का शब्द है। सामान्य तौर पर इसे उर्दू का लफ्ज समझा जाता है मगर है फारसी का और वहीं से ये बरास्ता उर्दू , हिन्दी में चला आया। फारसी में पोश का अर्थ है छिपानेवाला। जाहिर है कि वस्त्र शरीर को छिपाने का काम करते हैं इस लिए धारण करने वाले कपडे, सिले हुए कपडे पोशाक कहलाए। इसके मूल में जो छिपानेवाला भाव है वह इसे संस्कृत से जोड़ता है। संस्कृत की पस धातु से बने पक्षमल, पक्ष, पुस्त और पुच्छ जैसे शब्द बने है और इन सभी का रिश्ता खाल, ढंका हुआ,बाल ,ऊन, छिपाना जैसे अर्थों से जुड़ता है। इससे ही पोश जैसे हिन्दी, उर्दू और फारसी के कई शब्द बने हैं। गौरतलब है कि सभ्यता के विकासक्रम में मनुष्य शुरु से ही पशुओं की खाल से ढंकने का काम करता आया है फिर चाहे शरीर हो, छप्पर तम्बू हो या फिर पुस्तकों के लिए चमड़े की जिल्द हो।
संस्कृत के पुस्त का अर्थ ढंकने से संबंधित है और पुस्तक शब्द में इसके आवरण वाला भाव ही प्रमुख है। इसे यूं समझें कि किसी जमाने में ग्रंथ या किताब के आवरण यानी कवर को ही पुस्तक कहा जाता था मगर बाद में इसमें स्वतः ही ग्रंथ का भाव शामिल हो गया। हालाँकि पुस्त और बुस्त का अर्थ बांधना भी है जो ग्रन्थ में भी निहित है। इसी तरह फारसी में पोस्त का अर्थ पशु की खाल से है जिसका अगला रूप पोश बना जिसमें ढंकने का अर्थ समा गया और मतलब निकला खाल अथवा आवरण। बोल व्यवहार में इसके व्यापक अर्थ भी निकलने लगे । यह भी ध्यान रहे कि पुराने ज़माने के ग्रन्थ खाल में ही बांधे जाते थे। आमतौर पर व्यवहारगत दुराव या छिपाव के लिए पोशीदगी जैसा शब्द इस्तेमाल किया जाता है जो इसी मूल से जन्मा है। रोंएदार बालों वाली लोमड़ी,समूर आदि जंतुओं को पोस्तीन कहते हैं। फारसी में शेर की खाल को भी पोस्तीने शेर कहते है। पोश से मिलकर बने कुछ और शब्द हैं सफेदपोश, पापोश आदि। यहां एक और मज़ेदार शब्द बनता है नकाबपोश। गौर करे कि नकाब तो अपने आप में ही चेहरे को छुपाने का ज़रिया है। पोश का मतलब भी छुपाना ही है। अर्थ हुआ चेहरा छुपाना। मगर प्रयोग होता है ऐसे व्यक्ति के लिए जिसने चेहरा छुपा रखा हो।
पस् से ही बना संस्कृत का पक्ष्मल जिसके मायने हुए बड़े बड़े बाल वाला। यहां इसका मतलब भी पशुओं की खाल से ही है जो रोएं दार होती है। फारसी में ही पक्ष्मल का रूप बना पश्म यानी ऊन अथवा बाल। पश्मीं का मतलब हुआ ऊन से बना हुआ या ऊनी। पश्मीनः का मतलब हुआ बहुत ही नफीस ऊनी कपड़ा जिसकी मुलायमियत और मजबूती लाजवाब हो।
दुनियाभर में मशहूर कश्मीरी शाल को इसीलिए पश्मीना भी कहते हैं। गांवों के मेलों ठेलों में बिकनेवाली एक खास मिठाई है बुढ़िया के बाल या बुढ़िया का सूत। अंग्रेजी में इसे कॉटन कैंडी कहते हैं। नर्म ,महीन चाशनी के लच्छों से इसे बनाया जाता है जिन्हें बाद में गुच्छे की शक्ल में बेचा जाता है। इन्हें कई रंगों से रंगा भी जाता है। । फारसी में इसे कहते हैं पश्मक। यह मिठाई मुगलों के साथ भारत आई और बच्चे इसे खूब चाव से खाते हैं। यह पश्मक इसी मूल से निकला हुआ शब्द है।
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9 कमेंट्स:
आह....बचपन याद आ गया.... मुंह में पानी भर आया... बुढि़या के बाल बच्चे ही नहीं हम जैसे अधेड़ भी खूब चाव से खाते हैं और वो भी सरेआम. भले ही देखने वाले हंसी उड़ाएं या मजा लें. भेड़ों को देखकर रश्क होता है कि काश ठंड से बचने का हमारे पास भी कोई ऐसा कुदरती इंतजाम होता तो कितना अच्छा रहता. बहुत ही उम्दा पोस्ट. पढ़कर सदा की भांति आनंद आ गया.
अजितजी,
वाह! कभी सोचा ही नही कि पोशाक और पुस्तक का भी आपस में सम्बन्ध हो सकता है ।
आपसे एक अन्य प्रश्न है, क्या संस्कृत और अन्य दक्षिण भारतीय भाषायें एक ही मूल स्रोत से उपजी हैं या इनके स्रोत अलग अलग हैं । इस विषय पर जितना पढो उतना ही कन्फ़्यूजन बढ जाता है । मैं जानना चाहूँगा कि इस विषय पर आपकी व्यक्तिगत राय क्या है ।
अरे वाह क्या नाम है? पश्मक। याद रखना पड़ेगा। ये मिठाई तो मुझे और आप की भाभी (शोभा) को बहुत पसंद है। यानी बुढ़िया के बाल। किसी शादी की पार्टी में यह होती है तो कई बार सिर्फ इसे खा कर अगली शादी पार्टी में चल देते है।
पोशाक और पुस्तक की तुलना लाजवाब है। इसी बहाने आपने बडी रोचक जानकारी दी है, बधाई स्वीकारें।
हर बार की तरह यह जानकारी भी मजेदार थी।
पोशाक और पुस्तक में ऐसा संबंध होगा कभी सोचा नही था!!
एक सवाल
अक्सर पढ़ने में आता है "पसमांदा यानि मुसलमानों में मौजूद पिछड़ी जातियां"
तो पसमांदा में पस की क्या भूमिका और मांदा अर्थात?
Poshak aur pustak ke naye riste ke bare mein mein janne ko mila. acha likha aapne.....
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पश्मक ,यानि बुढ़िया के बाल .. वाह, इसे खाने के लिये बच्चे ही नहीं बूढ़े भी ललायित रहते हैं। मुँह में रखते ही घुल जाती है ...अहा...
वाह अजीत जी बेहतरीन जानकारी
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