न गाड़ा शब्द दरअसल फारसी-उर्दू के रास्ते हिन्दी में दाखिल हुआ। हिन्दी में इसका एक रूप
नगारा भी है। इस शब्द का शुद्ध रूप है
नक्कारः जिसका उर्दू में उच्चारण नक्कारा हुआ और हिन्दी रूप हो गया नगाड़ा या नगारा। नक्कारः मूल रूप से अरबी भाषा का शब्द है जिसका मतलब है
धौसा , भेरी, दुंदुभि आदि। भारतीय भाषाओं में यह शब्द इस्लामी दौर में दाखिल हुआ । अरबी में एक धातु है
नक्र जिसके मायने है किसी चीज को पीटना,ठोकना आदि। नगाड़ा या ढोल एक ऐसा वाद्य है जो चमड़े के पर्दे से ढका रहता है और इस चमड़े के पर्दे पर लकड़ी की दो छोटी छड़ों से प्रहार किया जाता है जिससे भीषण ध्वनि पैदा होती है। इस तरह
नक्र से बने
नक्कारः का नाम सार्थक हो रहा है।
नक्कारा दरअसल संदेश प्रणाली से जुड़ा हुआ शब्द है। दरअसल शासन की महत्वपूर्ण घोषणाएं आम जनता तक पहुंच सके इसके लिए
नक्कारची जैसा एक कारिंदा होता था जो सरे बाजार नगाड़ा पीटते हुए किसी सरकारी फरमान की मुनादी करता था। इसी तरह सेनाएं जब कूच करती तो भी नगाड़े बजाए जाते थे ताकि सबको खबर हो सके। मुग़लो के दरबार में एक
नक्कारखाना होता था जिसमें अहम सरकारी फैसले सुनाए जाते थे । फैसलों की तरफ ध्यान आकर्षित करने के लिए ज़ोर ज़ोर से नक्कारे बजाए जाते ताकि सबका ध्यान उस ओर लग जाए। ऐसी मुनादियों में लोगों को सजाएं देने से लेकर घर की कुर्की कराने जैसी बातें भी आम होती थीं।
नगाड़े का एक अन्य नाम है
दमामा।
विशाल नक्कारा या धौंसा को ही दमामः
कहते हैं जिसे उर्दू हिन्दी में दमामा कहा जाता है। यह बना है फारसी के दमाँ
से जिसका मतलब होता है क्रोध में चिंघाड़ना, दहाड़ना,
तेज आवाज़ करना आदि। बाढ़ और तीव्र प्रवाह वाली ध्वनियों के लिए भी
यह शब्द प्रयोग में लाया जाता है। संस्कृत की डम् , धम् समानार्थी धातुएँ हैं जिनमें ध्वनि का भाव है। धम् में मूलतः ठोकने, बजाने, घूँसा मारने का भाव है। दमामा को पीटा ही जाता है। याद करें, इसी प्रकृति के एक वाद्य का नाम धौंसा भी होता है। दमादम भी इसी मूल का शब्द है
जिसका मतलब लगातार ,मुसलसल है। `दमादम
मस्त कलंदर ` से तो सभी परिचित हैं। सिखों का पवित्रतम
स्थान दमदमी टकसाल भी इससे ही जुड़ा है। कबीर ने भी कई जगह ब्रह्मनाद के
लिए अनहद बाजा या गगन दमामा शब्द का प्रयोग किया है। शिवजी का प्रिय वाद्य डमरू
इससे ही बना है।डमरू के आकार को अगर देखें तो
इसमें दो बेहद छोटे नक्कारे एक दूसरे की पीठ से जुडे नज़र आते हैं और लकड़ी की
शलाकाओं की जगह चमड़े पर आघात का काम सूत की गठान लगी दो लड़ियां करती हैं। डमरू
की आवाज़ को डमडम और इस क्रिया को डुगडुगी कहते हैं। किसी बात के प्रचार या
घोषणा के लिए डुगडुगी पीटना मुहावरा भी संदेश प्रणाली से जुड़ रहा है।
कबीर ने भी कई जगह ब्रह्मनाद के लिए अनहद बाजा या गगन दमामा शब्द का प्रयोग किया है। शिवजी का प्रिय वाद्य
डमरू इससे ही बना है।
डमरू के आकार को अगर देखें तो इसमें दो बेहद छोटे नक्कारे एक दूसरे की पीठ से जुडे नज़र आते हैं और लकड़ी की शलाकाओं की जगह चमड़े पर आघात का काम सूत की गठान लगी दो लड़ियां करती हैं। डमरू की आवाज़ को
डमडम और इस क्रिया को डुगडुगी कहते हैं। किसी बात के प्रचार या घोषणा के लिए
डुगडुगी पीटना मुहावरा भी संदेश प्रणाली से जुड़ रहा है।
नगाड़े के लिए एक खास देशी शब्द भी है जिसे
ढोल कहते हैं। यह मूल रूप से संस्कृत से निकला है जहां इसका रूप है
ढौलः जिसका मतलब होता है मृदंगम्, ढपली आदि। ढोल के छोटे रूप को ढोलक कहते हैं । और छोटे रूप का नाम हो जाता है ढोलकी। नगाड़ा जहां सांगीतिक वाद्य नज़र नहीं आता वहीं
ढोलक अपने आप में परिपूर्ण ताल वाद्य है। इस ढोल से भी मुहावरे निकले हैं मसलन ढोल की पोल, दूर के ढोल सुहावने वगैरह। शादी ब्याह में ढोल बजाना मांगलिक माना जाता है। ढोल बजानेवालों को ढोली कहा जाता है।
फिलहाल इतना ही।अगले पड़ाव में सुनते हैं
नक्कारखाने में तूती की आवाज़ को ...
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7 कमेंट्स:
आपने भी ढोल की पोअ खोल दी-ढोल के बारे में इतनी सारी उत्तम जानकारी. आभार. विडियो क्लिपिंग अभी नहीं देखी है.
सुन्दर और जानकारी बढ़ाने वाला आलेख।अंत में आप ने मुहावरा प्रयोग किया है 'दूर के ढ़ोल सुहाने लगते हैं' मेरे विचार में इसे डोल होना चाहिए जिस का अर्थ है टीला या पहाड़।
आपकी सभी पोस्ट तसल्ली से पढने वाली और मनोरंजक जानकारी से पूर्ण होती हैं । अत्युत्तम ।
सुजाता कितनी प्यारी बातें करती है. बहुत सारी भी करती है, है ना?
मास्टर जी ये क्लास भी बढ़िया रही, हमने नोट्स ले लिए हैं, बलिहारी गुरु आप ने गोबिंद दियो बताय्…धन्यवाद
ढोल की पोल तो अच्छी रही अब नक्कारखाने मे तूती की आवाज वाली पोस्ट का इंतजार है।
shyad dhol dono taraf se aar paar hota hai isliye dole mein pole ke liye jagh hai.
wahi nagara ek taraf se band hota hai isliye pole ke liye jagah nahi,
pole to aarpar honi chiye na
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