हिन्दी का मूषक और अंग्रेजी का माऊस शब्द दरअसल एक ही मूल यानी इंडो-यूरोपीय मूल के शब्द हैं। विद्या-बुद्धि के देवता गणेश के वाहन के तौर पर भारत में चूहे यानी मूषक को जो प्रतिष्ठा मिली हुई है वह पूरी दुनिया में कहीं नहीं है। अंग्रेजी के माऊस शब्द को भी मूषक जैसी प्रतिष्ठा अर्जित करने के लिए शताब्दियों लंबा इंतजार करना पड़ा। जब कंम्पयूटर का आविष्कार हो गया तो अंग्रेजी के माऊस को भी गणेश वाहन मूषक की तरह कम्प्यूटर का सारथी बनने का मौका मिल गया। मूषक के संस्कृत में दो रूप हैं पहला मुषक: और दूसरा मूषक:। मतलब दोनों का एक ही है चूहा। खास बात यह कि अंग्रेजी के मसल यानी मांसपेशी शब्द का जन्म भी मूषक: या मुषक: से ही हुआ है।
मांसपेशियों के लिए मसल शब्द के प्रयोग की वजह के पीछे मसल्स में चूहे जैसी थिरकन नजर आना है। दोनों बांहों के ऊपरी गठीले हिस्से में इस मूषक की कल्पना करने से मसल शब्द बना। बाद में शक्ति के प्रदर्शन और उसके इस्तेमाल के
संदर्भ में मसलमैन या मसल पावर जैसे शब्द भी बन गए। वैसे मुषक : शब्द मुष् धातु से बना है जिसका एक अर्थ चुराना, नष्ट करना, लूटना आदि भी है। चूहों की आदतों पर गौर करें तो मूषक शब्द में इन तमाम विशेताओं का विस्तार नजर आता है। प्राचीनकाल से ही चूहे खेती के सबसे बड़े दुश्मन माने जाते रहे हैं। ज़मींदार के कारिंदे आकर फसल लूटें उससे पहले मूषकों की फौज इस काम को कर डालती थी। संस्कृत के मुष् से यह ग्रीक में माईस लैटिन में मुस, जर्मन में मूस और पुरानी इंग्लिश में भी इसी रूप में रहा और बाद में माऊस के रूप में ढल गया।
पूर्वी भारत में अति पिछड़ी जाति का एक समूदाय मुसहर कहलाता है। घोर निर्धनता में जीने वाले ये लोग भूमिहीन, निरक्षर और श्रमजीवी होते हैं। इनके मुसहर नाम के पीछे भी मूषक ही है। ये दूसरों के खेतों में मजदूरी कर जीवन-यापन करते हैं। मुसहर नाम से स्पष्ट है कि मूषक इनका आहार होता है। जंगली चूहे खेतो के भीतर बड़े बड़े बिल बनाकर रहते हैं। इस श्रमजीवी समाज के जिम्मे अक्सर खेतों में चूहे पकड़ने का काम रहता आया है। इसके अलावा अन्य जीवों जैसे कछुओं, साँप आदि को पकड़ने का काम भी ये करते रहे हैं। चूहों पर आजीविका चलने की वजह से भी और उन्हें आहार बनाने की वजह से इन्हें मुसहर कहा जाता है। मुसहर जाति किसी वक्त इतनी बुरी अवस्था में नहीं रही होगी इसका सुबूत मिलता है उनके बारे में इस तथ्य से कि इस जाति के लोग बाघ से आंखे मिलाने का हौसला रखते थे। इनके बारे में प्रभाकर गोपालपुरिया के ब्लाग पर एक रोचक, सुंदर लोककथा है जिसकी बड़ी सुंदर पुनर्प्रस्तुति उन्होने की है। ज़रूर पढ़े
Monday, February 25, 2008
चूहे में छुपी है मसलपावर ...
प्रस्तुतकर्ता अजित वडनेरकर पर 3:48 AM
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5 कमेंट्स:
गणपति के वाहन के आधुनिक रुप के बिना तो दुनियां को जानना असंभव है। हाथ में मूषक न हो तो इस कंप्यटर को नियंत्रित करना असंभव हो गया है।
दिनेश जी की बात से पूर्ण रूप से सहमत है क्यूंकि बिना इस माउस के कंप्यूटर अधूरा है ।
वाह!
बढ़िया जानकारी एक सुंदर लेख के माध्यम से.
आजकल कापी-राइट की बड़ी बातें चल रही है इसलिए पूछ रहा हूँ क्या आपके द्वारा लिखे गए लेखों का प्रिंट आउट लेकर सहेज सकता हूँ? जरुरत पड़ने पर इस्तेमाल कर सकता हूँ?
अजीत जी भाषा ज्ञान के साथ साथ समाजशात्र की भी जानकारी, बहुत बड़िया, ये तो बोनस हो गया। एक के साथ एक फ़्री…।:) लेकिन मनुष्य लालची होता है एक के साथ दो फ़्री मिलेंगें क्या…:)
बहुत अच्छी पोस्ट है , कितना खजाना जमा है जी
मूषक पर बढ़िया जानकारी.. दिनेश जी ने सही कहा... माउस की पावर तो कम्पयूटर पर दिखाई देती है. बिना माउस कीबोर्ड से काम चलाना कोई आसान काम नहीं.
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