ब्लाग दुनिया में एक खास बात पर मैने गौर किया है। ज्यादातर ब्लागरों ने अपने प्रोफाइल पेज पर खुद के बारे में बहुत संक्षिप्त सी जानकारी दे रखी है। इसे देखते हुए मैं सफर पर एक पहल कर रहा हूं। शब्दों के सफर के हम जितने भी नियमित सहयात्री हैं, आइये , जानते हैं कुछ अलग सा एक दूसरे के बारे में। अब तक इस श्रंखला में आप अनिताकुमार, विमल वर्मा , लावण्या शाह, काकेश ,मीनाक्षी धन्वन्तरि ,शिवकुमार मिश्र , अफ़लातून और बेजी को पढ़ चुके हैं। बकलमखुद के नवें पड़ाव और तिरतालीसवें सोपान पर मिलते हैं फरीदाबाद के अरूण से। हमें उनके ब्लाग का पता एक खास खबर पढ़कर चला कि उनका ब्लाग पंगेबाज हिन्दी का सबसे ज्यादा पढ़ा जाने वाला ब्लाग है और वे सर्वश्रेष्ठ ब्लागर हैं। बस, तबसे हम नियमित रूप से वहां जाते ज़रूर हैं पर बिना कुछ कहे चुपचाप आ जाते हैं। ब्लाग जगत में पंगेबाज से पंगे लेने का हौसला किसी में नहीं हैं। पर बकलमखुद की खातिर आखिर पंगेबाज से पंगा लेना ही पड़ा।
हर मर्ज़ की दवा थे अपन...
रवि जब भी कोई पत्रिका देखता हमेशा हमे सफ़ेद मारुति 800 की फ़ोटो अवश्य दिखाता और शायद उसी का मारुति के प्रति लगाव था,कि अचानक हमारी पहली कार बिना सूचना के बिना पैसे के आकर खडी हो गई
नांगिया जी वैसे तो प्रबंधक थे मानव संसाधन मे. लेकिन अपन को भी उन दिनो हर मर्ज की दवा माना जाता था.चारसौ मीटर उंची चिमनी पर काम करना हो या फ़िर रातो रात फ़ैक्टरी के अंदर सड़क बनवानी हो,मेरे से सस्ता सुंदर जुगाडू आस पास नही मिलता था.फ़िर किसी भी समस्या का समाधान मेरे नाम को बताकर कर दिया जाता था,( अरोड़ा को पकड़ो वो कर देगा ये काम)और उनकी एक समस्या मे मैने उनका साथ दिया था. फ़ैक्टरी मे विजिट थी उनको हफ़्ते भर के लिये 100 से ज्यादा सफ़ाई कर्मचारी चाहिये थे,फ़सल कट रही थी,और ठेकेदार काम छोड़ कर भाग गया था, मैने उन्हे 100 के बजाय 140सफ़ाई कर्मचारी रातो रात लाकर दिये थे :)
चार पैग में गाड़ी हाजिर...
उस दिन शाम को मुझे गुड़गांव आना था, मैने उनसे लिफ़्ट मांगी और मै उनके साथ उनके निवास तक पहुच गया.वहां उन्होने मुझे जाने से पहले खाना खाने का आदेश थमा दिया . चार पैग चढ़ाने के बाद नागिंया जी को सूझी की मेरे पास गाड़ी होनी चाहिये. कुछ दिन पहले उनके किसी दोस्त ने गाडी बेचने की बात की थी. बस उसे फ़ोन किया, अगले दस मिनिट मे एक सफ़ेद रंग की मारूती 800 हाजिर हो गई.अब मुझे जबरदस्ती गाडी मे बैठाया गया और दो चक्कर लगवा कर गाडी का इंजन से लेकर डिक्की तक मुझे दिखा दी गई . जबकी मैने जिंदगी मे कभी कोई गाडी ना चलाई थी , न ही उसके इंजन डिक्की से कोई वास्ता रखा था.
और हम हो गए कारदार !!!
मै कहता रहा साहब ना पैसे हैं, न ही मै चलाना जानता हूं. लेकिन मेरी नही सुनी गई. वे अट्ठावन हजार मांग रहे थे और साहब उन्हे पचास हजार पर राजी करने मे लगे थे.मै खुश था कि मामला नही पटेगा. नांगिया जी मेरी सुन कर राजी नही थे. आखिर नांगिया जी ने भाभी जी से पच्चीस हजार मंगवाये और मुझसे बोले- जरा अपने पर्स से चेक निकाल कर दे. (उन्हे पता था कि मै अपने पर्स मे हमेशा एक चैक रखता हूं) मैने कहा, जी बैंक मे पैसे नही है.उनका जवाब था ,तुमने जो मेरे लिये काम किया था समझो उसमे पच्चीस हजार कट गये. साठ हजार का बिल था मै कल ही पास कर देता हूं. बचे पच्चीस हजार ,वो तुम मुझे दो चार महीने बाद जब मर्जी दे देना. अब तुमने गाड़ी खरीद ली है..बात खत्म. और उसके बाद उन्होने तीन पैग बनाये जो मेरी गाडी के नाम पिये गये. अब बारी उनके दोस्त की थी. बोले, देख तूने इसकी गाडी के नाम का जाम पिया है, अब बात खत्म कर पच्चीस ये ले, पच्चीस का चेक ले परसो डाल देना चाबी इधर दे मैं तुझे घर छोड़ कर आता हूं ये सन् सत्तानवे की गर्मियां थीं.
बीवी की लताड़-गाड़ी से पंगा नई...
और जी , साहब ने सुबह ड्राईवर बुलाकर गाडी मेरे घर खडी करा दी. आप यकीन मानिये मेरे घर मे शाम तक कोई मानने को तैयार नही था कि ये हमारी गाडी है,हा बेटा जरूर खुश था, कि किसी की भी सही आज आई तो.ड्राईवर के जाते ही मैने गाडी को स्टार्ट करके आगे करनी की कोशिश की और वोह गली के किनारे बनी एक फ़ुट गहरी नाली मे चली गई, मै फ़िर घर मे अंदर चला गया. बीबी से डाट खाने " चलानी आती नही और तुम दूसरे की गाडी से क्यो पंगा ले रहे हो ? बडी खुंदक आ रही थी ,इधर बीबी मानने को राजी नही,उधर गाडी .थो्डी देर बाद फ़िर निकला ,जैक लगाया पहिये के नीचे ईट लगाई. मै बार बार कार के अंदर जाता बाहर आता, और आगे पीछे घूम कर हिसाब लगाता कि कब क्लच छॊडना है, कैसे बैंक गियर लगाना है,और कितना स्टेयरिंग घुमाना है ताकी गाडी नाली से बाहर आ जाये.आखिर पहले स्टार्ट करते ही गाडी नाली मे जो जा पहुची थी, मेरा घर गली मे सबसे आखिर मे था और लोग अपने काम पर, तो किसी रायचंद के ना होने का पूरा फ़ायदा मै भी तुरंत उठा लेना चाहता था.
चौड़े हो गए जब गाडी बैक हो गई...
न्यूट्रल गियर मे राम का नाम लेकर स्विच लगाया (पहली बार गाडी फर्स्ट गियर मे ही स्टार्ट कर डाली थी ना.) फ़िर धीरे से जीवन मे पहली बार बैक गियर लगाया (साईकल और स्कूटर मे बैक गेयर नही होता ना).अब हमे भी पता चल गया था की कौन सा गियर कहा है,बहुत संभल कर धीरे धीरे क्लच छोडा ,रेस दी और स्टियरिंग घुमा दिया. हो गया जी हो गया ,गाडी नाली के बाहर थी,लगा की हमने तो ओलिंपिक की फ़र्राटा रेस जीत ली है. हम इतने खुश तो बाप बनने पर भी नही हुये थे यकीन करे बहुत हिम्मत की अपने को रोकने मे ,वरना दिल तो यूरेका-यूरेका कहते हुये सड़को पर भागने का हो रहा था.
फ़िर जाकर धीरे से घर मे बैठ गये, पर मन नही लगा . दिल ने कहा जरा सा गाड़ी को गली मे आगे पीछे एक बार फ़िर करके देखते है, दुबारा वही हिसाब किताब लगाया गया और फ़िर से गाड़ी स्टार्ट करके अपनी एल टाईप गली मे बैक की और फ़िर से उसे उसकी पहले वाली जगह पहुंचा दिया. दुबारा अंदर पहुचे चौड़े होकर बीबी को बताया देखा बिना ठोके वापिस ले आया.
तीन घंटे में साठ किलोमीटर !!!
फ़िर थोडी देर बाद जनून सवार हुआ कि मोहल्ले के बाहर वाले रास्ते से गाड़ी को चक्कर कटवा कर लाते है. और ये काम भी हमने कर दिखाया अब तक तीन बज चुके थे. गाड़ी अपनी जगह वापस खडी थी. अब जाकर बीबी को भी यकीन आने लगा था, उसने उलाहना दिया जब गाड़ी लाये हो तो कम से कम मंदिर मे पूजा तो करवाओ. हमे खुद गाड़ी चलाने की हुड़क मची हुई थी. हमने तुरंत कहा ,चलो और तब पहली बार हम सपरिवार गाड़ी मे सवार हुय़े, बिना किसी परेशानी के हम मंदिर पहुचे और बीबी ने ये मानने से इंकार कर दिया की हम जीवन मे पहली बार इसे जोत रहे है. मंदिर से आते आते तय पाया गया कि चलो गुड़गांव चलते है (जहा हमारे एक चाचा रहते थे) और साहब हम निकल लिये. ये अलग बात है कि हमने साठ किलोमीटर की दूरी नेशनल हाईवे (दिल्ली जयपुर) पर लगभग तीन घंटे मे पूरी की.
जारी
Tuesday, May 27, 2008
पंगेबाज का कार-नामा [बकलमखुद-43]
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20 कमेंट्स:
भईया गजब, एकदम गजब...
आप जैसा हिम्मती नहीं देखा हमने, हमने तो पूरे २ हफ़्ते की ट्रेनिंग ली थी गाडी चलाने की । और आखिरी दिन जब ट्रेनिंग ले रहे थे तो छोटी बहन भी साथ गाडी में बैठ गयी । पूछिये मत सरकार, इज्जत बचाने की टेंशन के मारे गाडी बार बार बन्द । वो तो सिखाने वाले ने बचा दिया, बोला भईया की गलती नहीं है क्ल्च प्लेट बदलवानी है :-)
दूसरा ये चश्मे वाला फ़ोटो को एक्दम गजब ढा रहा है । आगे जारी रखिये, बहुत आनन्द आया आपकी रामकहानी पढ्ने में ।
कायदे से गाड़ी चलाना एक दिन में आता है और अंदर की हिम्मत से ही। आप ने सबसे पहले रिवर्स-गियर सीखा। जिसे सीखने के बाद कुछ भी नहीं बचता।
बेचारी कार की हालत क्या हो रही होगी! क्या क्या सोच रही होगी वो बेचारी कार जिसके साथ पंगेबाजी की जारही थी!
तीन घण्टे में साठ किलोमीटर। हमारी मालगाड़ियों जैसी चलाई कार!
कार-नामा बहुत शानदार रहा आपका.
आपको तो एक ट्रेनिंग स्कूल खोलना चाहिए गाड़ी चालन का- "मिनटों में गाड़ी सीखें पंगेबाज के साथ."
अब तो पक्का रहा.गाड़ी चलाना आपसे ही सीखना है.
कब बुला रहे हैं. ?
अरुण भाई की सालगिरह मनाई गई उनकी जीवन कथा के द्वारा ..
जिसे अभी अभी पढकर, खुशी हुई - बधाई ! शरारतेँ जारी रहेँ :)
- लावण्या
अब समझे कि हमें बैठा कर १२० पर क्यूँ भगा रहे थे, शायद पुराना बैक लाग पूरा कर रहे होगे ताकि एवरेज ठीक हो जाये. :)
बहुत सही रही कार से पंगेबाजी. मैथली जी के साथ साथ मेरी साहनभुति भी कार के साथ ही जाती है.
फोटू तो सालिड है, बम्बई में कभी ट्राई करना चाहिये. आपकी तो वहाँ पहचान और पंगेबाजी दोनों में तूती बोलती है. हा हा!
मैं बेकार हूं, कुछ नहीं कहूंगा.
बड़ा रोमांचक एहसास था, एक सॉंस में पढ़ने की इच्छा की किन्तु दम घुटने लगा :)
वाह जी वाह! किस्सा पढ़ कर मज़ा आ गया.
सच...बहुत रोचक... चित्ताकर्षक...चुहल से भरी
और ग़ज़ब की दास्तान !
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ज़िंदगी का ये बैक -गियर
आपने बड़ी कुशलता पूर्वक लगाया है -
बक़लमखुद.
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कि मज़ा आ गया साहब ...पढ़कर.
....और स्टीयरिंग घुमाकर गाड़ी
पटरी पर लाने का, आपका अंदाज़ भी
सिर्फ़ कारदार होने का नही
ज़वाबदर होने का सुबूत है.
शुभ भावनाओं सहित
डा.चंद्रकुमार जैन.
सही है गुरू.. अबकी बार मेरे गुरू जैसा कारनामा किया है.. पिछले पोस्ट में तो नाक ही कटा दी थी.. :)
गज़ब पंगेबाज हो जी वाकई!
हमें भी नई आती अब तक कार चलानी, तो आपसे शिक्षा ले के ट्राय मारते हैं हजूर!
आहा मारुति.....वाह मारुति.....पहली गाड़ी साईकिल सा मजा देती है......
रोचक.
सच ही भाई पंगेबाज तो बड़े ही है आप.
लेकिन चलिए पढ़ कर मज़ा आया.
हम तो अभी तक हा हा ही ही कर रहे है...टिप्पणी बाद में करेगे...
जैसा नाम वैसा काम :-)
वाह! वाह! वाह!
कारनामा शानदार था...
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