Wednesday, May 28, 2008

मुर्गी , कुतिया और हीरोइनें [बकलमखुद-44]

ब्लाग दुनिया में एक खास बात पर मैने गौर किया है। ज्यादातर ब्लागरों ने अपने प्रोफाइल पेज पर खुद के बारे में बहुत संक्षिप्त सी जानकारी दे रखी है। इसे देखते हुए मैं सफर पर एक पहल कर रहा हूं। शब्दों के सफर के हम जितने भी नियमित सहयात्री हैं, आइये , जानते हैं कुछ अलग सा एक दूसरे के बारे में। अब तक इस श्रंखला में आप अनिताकुमार, विमल वर्मा , लावण्या शाह, काकेश ,मीनाक्षी धन्वन्तरि ,शिवकुमार मिश्र , अफ़लातून और बेजी को पढ़ चुके हैं। बकलमखुद के नवें पड़ाव और चवालीसवें सोपान पर मिलते हैं फरीदाबाद के अरूण से। हमें उनके ब्लाग का पता एक खास खबर पढ़कर चला कि उनका ब्लाग पंगेबाज हिन्दी का सबसे ज्यादा पढ़ा जाने वाला ब्लाग है और वे सर्वश्रेष्ठ ब्लागर हैं। बस, तबसे हम नियमित रूप से वहां जाते ज़रूर हैं पर बिना कुछ कहे चुपचाप आ जाते हैं। ब्लाग जगत में पंगेबाज से पंगे लेने का हौसला किसी में नहीं हैं। पर बकलमखुद की खातिर आखिर पंगेबाज से पंगा लेना ही पड़ा।

हम दो, हमारे दो...

मारे परिवार में हम दो हमारे दो ही है .बडा बेटा रवि तेरह साल और छोटा ॠषभ आठ साल. बडा गंभीर,छोटा मस्त ,शरारती. बडा हमेशा कोई भी काम हमसे पूछ कर करता है . छोटा कभी कभार उचित समझता है तो बता देता है. वो अपने निर्णय अभी से स्वंय लेने मे यकीन रखता है .अक्सर बड़े को भी समझाते देखा गया है कि बार-बार मां बाप की राय लेना अच्छी बात नही है उससे मां बाप बिगड जाते है. कभी कभी तो हमे ये लगता है की बड़ा छॊटे की संगत मे बिगड़ ना जाये :) अपने रख रखाव के बारे मे इतना ध्यान रखने वाला की अक्सर रात को सोते सोते उठकर शीशे के सामने जाकर बाल और कपडे ठीक करेगा तब वापस सोने जायेगा.

तोता-तोती की आशिकी...

शुओ से लगाव हमे हमेशा रहा है.बचपन मे बहुत से पशु पाले हैं. सबसे पहले तोता पाला.हमारे घर के अंदर आगंन मे एक पेड़ था. तोता वही लटका रहता. पढना तो उसने क्या था,हमारे पिताजी का भी यही कहना था . ये भी बच्चो के पूरे प्रभाव मे है. ना ये पढना चाहते ना वो. लेकिन साहब हमारे तोते ने पेड़ पर उड़ कर आई एक तोतन को इतना पटा लिया की जब हमने उसके पिंजरे का दरवाजा खोला तो वो भी अंदर आ गई. दोनो का प्रेम देखकर पिताजी ने पिजरे का दरवाजा ही खुला रख दिया. करीब महीने भर तक जोडा वहीं रहा फ़िर उड़ गया. लेकिन वो हर दो चार हफ़्ते बाद आ जाते दो चार दिन रुकते और उड़ जाते. आज पता नही कहा होगे पर शायद आज भी उस मकान मे आते जरूर होगें.एक दिन नवाबगंज उन्नाव मे पिताजी किसी ग्रामीण से मजाक मे कह आये कि तुम्हारा काम हो जायेगा तो मुर्गा खिलाओगे ? (जबकि वो पूर्ण शाकाहारी थे) बस अगला तो मुर्गा ही छोड़ गया हमारे घर. पिताजी बाहर गये थे . तो बडॆ प्यार से स्वीकार लिया हमने. घर के पीछे वाले बरामदे मे एक टोकरी मे उसे पाल लिया. माताजी से छुपा कर ..अब हमारा मुर्गा रोज अडोस पडोस की मुर्गियो के साथ टहलता(पास मे कुछ मुस्लिम परिवार रहते थे). और उनके मुर्गे के साथ लड़ता . एक दिन जब शिकायत ज्यादा हो गई तो हमने (भाइ बहनो ने ) आपस मे चंदा कर दो मुर्गिया खरीद ली. इस तरह लगभग चार महीने (जब तक हमारी माताजी को पता चलता), हमने मुर्गियां भी पाली. बाद मे हमारॆ यहा सफ़ाई करने आने वाली को दे दी गई . आखिर माताजी को इस मलेच्छ वाले काम के बारे मे बताया भी उसी ने था.

पंगेबाज कुतिया के बीवी से पंगे

कुछ दिन हमने के गाय भी पाली,हिरन भी पाला और कुत्ते तो साहब बहुत पाले देशी से विदेशी तक. लेकिन इनमे सबसे ज्यादा प्यारी थी सेवी. उसका नाम ही सेवी इसी लिये था कि अगली सेव खाकर ही जिंदा रहती थी.पूर्ण शाकाहारी थी . अंडा भी कभी उसने नही छूआ . खीरा ,ककड़ी हरी सब्जियां उसका भॊजन था. कभी कभार ब्रेड और दूध भी खा लेती थी.पर फ़लो की शौकीन इतनी की आम के मौसम मे तो उसने कई बार भूख हड़ताल भी रखी. मजाल है कोई उसके खाने के बरतन को छू ले. मेरा छॊटा भाई जब वह हड़ताल पर होती थी,हमेशा उसकी कटोरी मे पडे खाने को सेवी को दिखाकर बस इतना कहता " चलो मै खा लेता हूं"....और सेवी दौड़ कर आती उसके उसपर भौंकती सारा खाना खा जाती. मेरी तभी तभी शादी हुई थी. श्रीमतीजी अगर मेरे से बात करती तो सबसे ज्यादा तकलीफ़ उसे ही होती थी. कभी कभी मेरी वे जब मेरे पास जरा सट कर बैठती तो सेवी का गुस्सा देखने लायक होता. जब तक वो हट नही जाती सेवी उस पर भौंकती रहती.सुबह अखबार लेकर आना. पत्नी को धमका कर चाय बनवाकर लाना (मेरी "एक कप चाय पिलादो" आवाज सुनते ही वो दौड़ कर रसोई मे जाती और जब तक पत्नी चाय लेकर नही आती वो उस पर भौंकती रहती). उसका प्रिय काम था घर मे कोई आये और बैठक मे बैठने के बाद अगर हम मे से कोई नही है, तो मजाल है अगला पहलू भी बदल ले . ठीक सामने सोफ़े पर बैठी सेवी पूरी जिम्मेदारी निभाती थी. (मेरे घर मे ना होने पर मेरी पत्नी के साथ हर समय चिपके रहना भी,मेरे हिसाब से वो सुरक्षा के लिये रहती थी और पत्नी के हिसाब से नजर रखने के लिये) ) स्पीड्स नस्ल की ये कुतिया मेरे बेटे रवि (1995 मे) के होने के बाद डाक्टर की सलाह पर मेरे गांव भेज दी गई. पूरे घर मे उसके छोटे छोटे बाल उड़ते थे ना. लेकिन जब मेरे साथ दुर्घटना घटी . उस दिन से सेवी ने जब तक उसे हस्पताल लाकर मुझे नही दिखाया गया कई दिन तक कुछ नही खाया. कैरेक्टर की इतनी पक्की थी,कि डाक्टर ढोर (जानवरो के चिकित्सक का मेरे गाव मे प्रचलित नाम)की तमाम मेहनतों के बाद भी उसने परिवार बढाने मे कोई दिलचस्पी नही दिखाई.भगवान उसकी आत्मा को शांति दे

वहीदा,सिम्मी,हेमा, डिम्पल....


मै राजकपूर की फ़िल्मो और उन की हिरोईनो का इतना दीवाना हूं जितना शायद राजकपूर भी खुद ना होंगे. कईयो से मेरे चक्कर चले लेकिन किसी परिणति पर नही पहुंचे. कारण उन्हे अनुभवी बंदा चाहिये था और हम यहा मार खा गये. वैजयंती माला,पद्मिनी, हेमामालिनी, डिम्पल कपाडिया,सिम्मी ग्रेवाल,साधना, नर्गिस अब किस किस का नाम ले जी सभी हमे चाहती थीं और हम उन्हे. दोनो ही इतने समर्पित प्रेमी कि आज तक ना उन्होने कभी ये प्यार सार्वजनिक किया ना ही हम करने वाले है. ( हम उन घटिया लेखको मे नही है जी जो अपनी किताब को बेस्ट सेलर बनाने के चक्कर मे अपना बीता कल उधेड देते है ,और उनके कारण कईयो की जिंदगी मे भूचाल आ जाता है) आज कल की हीरोईनो से भी हमे दिली लगाव है,पर अब हम जाहिर नही करते. जानते है कि अब इस मार्केट मे हमारी (अब तक अर्जित अनुभवो के कारण) काफ़ी डिमांड हो सकती थी पर अब फ़िल्मी तारिकाओ का टेस्ट बदल गया है. वो ज्यादा से ज्यादा दो चार महीने मे बंदे से बोर होकर बंदा बदल लेती है. इसी लिये हमने ऐशवर्या,विपाशा,माधुरी,रानी. करीना के हमारे काफ़ी चक्कर काटने के बावजूद हमने उन्हे लिफ़्ट नही दी, चवन्नी छाप वालों ने हमारा बडा भारी इंटर्व्यू भी लिया था इस बाबत लेकिन फ़िर बालीवुड इतने बडे स्कैंडल से कही जमीन पर ना आ गिरे नही छापा. इसीलिये हम भी आपको वो किस्से यहां बिलकुन नही बतायेगे.आखिर हमने सिर्फ़ सत्य बताने की कसम खाई है ना :)

हम भी थे रंगी मिजाज,
गिला इतना सा रह गया
जिससे भी नजरे मिली,
उसने भैया कह दिया
जारी

[ अगली कड़ी में पंगेबाज की जिंदगी का ड्रामा ]

25 कमेंट्स:

azdak said...

भगवान सेवी की आत्‍मा को शांति दे. जो गुज़र गयी हैं राज कपूर की उन हिरोइनों की आत्‍मा को भी. जो बची हैं उनकी आप चिंता न करें, उन्‍हें समीर भैया शांत करेंगे.

विजयशंकर चतुर्वेदी said...

अजित बढ़िया है. इसे जारी रखो.

दिनेशराय द्विवेदी said...

दुलहिन ले घर लौटने का इंतजार है।

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` said...

स्वीट "सेवी" लगता है पिछले जनम की शरत्चँद्र की पारो थी शायद !:)
बहुत बढिया रहा ये पन्ना भी ..जारी रखेँ .
- लावण्या

Udan Tashtari said...

हम भी थे रंगी मिजाज,
गिला इतना सा रह गया
जिससे भी नजरे मिली,
उसने भैया कह दिया

-haa haa!! इसमें भी पंगा. :)

बहुत सही, अगली कड़ी का इन्तजार है. कभी जाकर देख आओ कि तोता तोती आते हैं कि नहीं.

अजीत भाई जिन्दाबाद.

Gyan Dutt Pandey said...

सेवी के बारे में पढ़ना बहुत रुचा, मित्र अरुण! धन्यवाद।

काकेश said...

आपने अपने बंबई प्रवास के बारे में नहीं बताया. जब आप हिरोइनों को पंगेबाजी सिखाने के लिये बुलवाये गये थे.

Dr. Chandra Kumar Jain said...

ग़ज़ब की शुरूआत है यह मौज़ूदा किस्त की !
सिर्फ़ शैली और व्यंग्य के लिहाज़ से देखें तो
एक पूरा उपन्यास अपने कैनवास
के साथ हाज़िर दिखता है.
================
कमाल है साहब कितने सहज अंदाज़ में
ज़िंदगी का रस पान करा रहे हैं आप.
===========================
शुक्रिया
डा.चंद्रकुमार जैन

Shiv said...

पंगे ही पंगे....हिरोईनों से इस कदर का पंगा...वाह! असल में राजकपूर साहब को आप ही टक्कर दे सकते थे....उन्हें ख़ुद पर बड़ा घमंड टाइप था...:-)
सेवी जहाँ भी हो, उसे सेब मिलता रहे. अजित भाए ने लिखा है अगली कड़ी में आप ड्रामा पेश करने वाले हैं....वो भी जिंदगी का ड्रामा...इंतजार रहेगा..

Ghost Buster said...

फोटो देखकर ही समझ आ जाता है. भई बात है आपमें जो इतनी नामी गिरामी हीरोइंस पीछे पड़ी रहीं. बाकी ये कड़ी तो सेवी के ही नाम रही तोता और तोतन के अलावा.

PD said...

एक ही पोस्ट में इतनी सारी चीज!!! सही है गुरू.. वैसे हमने भी तोता पाला था बचपन में और मेरी ही तरह वो भी कुछ नहीं पढ पाया..
वैसे आज कि आपकी पसंद राखी सावंत तो नहीं है न?? :P

ALOK PURANIK said...

ऊपर जिस भले आदमी का फोटू छापा है, ये कौन हैं।

Sanjeet Tripathi said...

समीर जी से उधार लेकर कहते हैं "आनंदम-आनंदम"

;)

समीर जी के बाद एक आपको ही गुरु बनाने की सोच रहे हैं अपन तो, हमारे गुरु बनने के पूरे गुण है आपमें, आजकल की हीरोईन्स का जिम्मा इधर दई दो हमका, संभाल लेंगे, टेंशन नई लेने का ;)

मस्त लग रहा है , लिखते रहिए आप तो बस!

Abhishek Ojha said...

हम भी थे रंगी मिजाज,
गिला इतना सा रह गया
जिससे भी नजरे मिली,
उसने भैया कह दिया.

वाह ! धन्यवाद अजित जी को इस श्रृंखला के लिए.

Dr. Chandra Kumar Jain said...

अजित जी,
पेज पर आपकी बदलती
तस्वीरें अच्छी लग रहीं हैं.
नया पन भी लग रहा है....
इसे जारी रखिए..... वैसे अब
आपका बकलम खुद भी
हम सब तक पहुँच जाना चाहिए.
======================
डा.चंद्रकुमार जैन

बालकिशन said...

वाह.
आपके जानवर प्रेम को देखकर तो हम दंग रह गए हैं.
वैसे सेवी बहुत ज्यादा ही जमी इस कड़ी में.
शैली भी आपकी जोरदार है.
आगे के इंतजार मे
बालकिशन.

Unknown said...

नोट किया जाये कि इनकी तस्वीर के आसपास आभा मण्डल है...यह सिर्फ सत्य,सेवा,सदभावना और सत्यानाश का ही असर हो सकता है...

नमन

mamta said...

कमाल के शीर्षक ।

और क्या धारा प्रवाह है आपकी लेखनी मे की बस क्या कहें।

संजय बेंगाणी said...

इस अंदाजे बयां को क्या कहें?


बहुत मजा आया, हँसते हँसते पढ़ा. स्टाफ लोगो ने सोचा साहब पगला गये हैं... :)

मैथिली गुप्त said...

हम भी थे रंगी मिजाज,
गिला इतना सा रह गया
जिससे भी नजरे मिली,
उसने भैया कह दिया

अच्छा लिखा है, अब कुछ कविताई में भी पंगेबाजी की जानी चाहिये.

डॉ .अनुराग said...

राज कपूर साहब की आत्मा बैचैन हो गयी होगी सर जी......

Yunus Khan said...

नोटिस
सर्वसाधारण को सूचित किया जाता है कि इस आत्‍मकथ्‍य में पंगेबाज़ अपनी कहानी जिस व्‍यक्ति की तस्‍वीर लगाकर छाप रहे हैं, वो बेचारा नाहक परेशान है । उसने हमसे अनुरोध किया है कि पंगेबाज़ से निवेदन करें कि वो उसे बदनाम करना बंद करें । सभी से निवेदन है कि पंगेबाज़ की असली तस्‍वीर खोजने में मदद करें । ताकि असली पंगेबाज़ को सबके सामने लाया जाए । अंत में बस इतना ही कहना है कि पंगेबाज़ की कहानी बड़ी दिलचस्‍प है । बस तस्‍वीर से पंगे लेना बंद करें । :D

Anita kumar said...

तस्वीर देख कर हम भी चकरा गये कि ये कौन है क्या नया बकलम शुरु हो गया और हमें पता नहीं चला।
हम भी थे रंगी मिजाज,
गिला इतना सा रह गया
जिससे भी नजरे मिली,
उसने भैया कह दिया

VIMAL VERMA said...

मेरी भी सहमति यूनुस जी के साथ है...लेकिन आपकी भी लाईफ़ कमाल रही है अच्छा लगा जानकर....

sanjay patel said...

तथ्य भी,
कथ्य भी
सत्य भी

रससृष्टि के लिये साधुवाद

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