संस्कृत के खण्डः शब्द की बड़ी व्यापक पहुंच है। इससे मिलती जुलती ध्वनियों वाले कई शब्द द्रविड़ , भारत-ईरानी , सेमेटिक और यूरोपीय भाषाओं में मिलते हैं। क ख ग वर्णक्रम में आनेवाले ऐसे कई शब्द इन तमाम भाषाओं में खोजे जा सकते हैं जिनमें खण्ड, गुड़ या कैंडी की मिठास के साथ-साथ वनस्पति का भाव भी शामिल है। यह भाषाविज्ञानियों के बीच की सनातन बहस का विषय हो सकता है कि इन शब्दों का प्रसार पूर्व से पश्चिम को हुआ अथवा पश्चिम से पूर्व को। इस वर्ग के शब्द उन आर्यों की शब्द संपदा का हिस्सा हैं जिनकी मूलभूमि भारत ही मानी जाती है या उन आर्यों की शब्द संपदा से आए जिनकी मूलभूमि पश्चिमी विचारकों के मुताबिक एशिया माइनर थी।
सबसे पहले बात करते हैं गुड़ की । गुड़ से बने कई मुहावरे हिन्दी में प्रचलित हैं जैसे सब गुड़ गोबर होना यानी चौपट होना या गुड़ खाए, गुलगुलों से परहेज यानी बेतुकापन या दिखावा आदि। गुड़ यानी खाण्ड इसी परिवार का शब्द है। खण्ड की तरह ही ही संस्कृत के गुडः शब्द के मायने भी पिण्ड, ईख का पौधा, शीरा अथवा ईख के रस से तैयार पिण्ड होता है। गौर करें खण्ड और गुड की समानता पर । ख और ग दोनों एक ही वर्णक्रम के अक्षर हैं और इनमें एकदूसरे में बदलने के वृत्ति होती है। हिन्दी का गुड़ , संस्कृत के गुडः से जन्मा है जिसका मतलब है रस, राब, शीरा, ईख के रस से तैयार पिंड या भेली। गुड़ः के मूल में जो धातु है उससे इसका अर्थ और साफ होता है वह है गड् । गड् यानी रस निकालना, खींचना । दुनियाभर में शकर और गुड़ सिर्फ गन्ने से ही नहीं बनते बल्कि ताड़ के रस अथवा चुकंदर से भी बनाए जाते है। गड् का का एक और अर्थ होता है कूबड़ । गौर करें कूबड़ एक किस्म की गांठ ही होती है। गण्ड का मतलब भी गांठ, फोड़ा अथवा फुंसी ही होता है। ईख के लिए हिन्दी में प्रचलित
गन्ना शब्द इसी गण्ड से बना है इसका आधार है गन्ने के तने का गांठदार होना। गण्डिः का मतलब होता है वृक्ष के तने का वहां तक का हिस्सा जहां से पत्ते या शाखाएं शुरू होती है।
अब आते हैं खण्डः पर । खण्ड का अर्थ होता है भाग, हिस्सा , अंश अथवा ईख का पौधा। गौर करें ईख के तने पर जिसमें कई खण्ड होते हैं। ये खण्ड अपने जोड़ पर उभार या गंठान का रूप लिए होते हैं। इसी जोड़ या गठान का भाव तब और साफ होता है जब खंड का अर्थ पिंड के रूप मे सामने आता है। गन्ने के छोटे छोटे टुकड़ों को गडेरी कहते हैं। यह भी गड् से ही बना है। छोटे – छोटे टुकड़े खंड ही तो कहलाते हैं न ! संस्कृत का कंदः शब्द भी इसी शब्द श्रंखला का हिस्सा है जिसका मतलब होता है गांठदार जड़ । इसीलिए शकरकंद, जिमीकंद जैसे शब्द बने ।
अब अगर खण्ड-गण्ड-कंद में समाहित अनुनासिकध्वनियों पर गौर करें तो इसका रिश्ता सेमेटिक परिवार से जुड़ता है। प्राचीन हिब्रू में एक शब्द है क़ैना(ह) यानी qaneh जिसका मतलब है लंबा-सीधा पोले तने वाला वृक्ष। सरकंड़ा या बांस का इस अर्थ में नाम लिया जा सकता है। यही शब्द ग्रीक ज़बान में कैना(ह) kannah के रूप में मौजूद है। अर्थ वही है लंबा, सीधा , पोला वृक्ष। एक और अर्थ है छोटी छड़ जिससे पैमाइश की जा सके। अंग्रेजी का केन यानी बेंत शब्द इससे ही बना है। अब गन्ना या बांस या केन तो सीधे-सरल ही होते हैं सो जीवन की सीधी सरल राह वाली प्रणाली या नियम को ही क़ानून कहा जाता है। यह कानून शब्द भी इससे ही बना है ।
ग्रीक में इसका रूप हुआ kanwn और अंग्रेजी में हुआ canon और दोनों का अर्थ समान है –नियम कायदा। अरबी-तुर्की-फारसी-उर्दू और हिन्दी में इसका क़ानून रूप हुआ। खण्ड से ही बना एक शब्द महाजनी व्यापार पद्धति में चलता है खंडिका। यह एक ऐसी पुस्तिका या रजिस्टर होता है जिसमें लगान का हिसाब रखा जाता है। अलग-अलग हिस्सों में बंटी होने की वजह से इसे यह नाम मिला। तो मिठास का रिश्ता न सिर्फ जड़ से है बल्कि तने से भी है । कानून यानी नियम-धर्म का पालन करें तो भी जीवन में मिठास कायम रहती है।
Monday, May 12, 2008
मिठास का कानून
प्रस्तुतकर्ता अजित वडनेरकर पर 2:45 AM
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4 कमेंट्स:
खण्डों का जोड़ है गण्ड जो जोड़ कर विस्तार देता है। और कंद तो रोशनी देखता ही नहीं, देखता है तो अपने मूल से पृथक हो कर ही।
तो मिठास का रिश्ता न सिर्फ
जड़ से है बल्कि तने से भी है.
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अजित जी,
आपके सफ़र से हमारा रिश्ता भी ऐसा ही है.
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ब्लॉग दुनिया का canon है शब्दों का सफ़र
.....और यह क़ानूनी मिठास से
रत्ती भर कम नहीं है,क्योंकि
नियम से शब्द-रस पान का
अनिवार्य प्रतिफल है यह !
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मिठास की आस और प्यास की तृप्ति के
व्यंजनाकार को बधाई.
......और हाँ मेरी ताज़ा कविता पर
आपकी टिप्पणी ने नई ऊर्जा का संचार कर दिया है.
आभार
डा.चंद्रकुमार जैन
बड़िया जानकारी और बड़िया तस्वीरें
बड़े भाई... बहुत ही मीठी जानकारी देने का शुक्रिया.. बहुत कुछ पैंडिंग हो गया है.. शुरू कर रहा हूं पढ़ने का सफर...
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