कल हमारे घर देवता पधारे। आलोक पुराणिक । यूं आए तो थे वे भोपाल में माखनलाल पत्रकारिता विश्वविद्यालय के छात्रों को बहकाने और ये काम पूरे मनोयोग से दो दिन किया भी। हमारी बरसों से तमन्ना रही है कि हम लखपति बन जाएं। आलोक जी की इस खासियत से हम वाकिफ थे कि वे करोड़पति बनने के गुर सिखाते हैं स्मार्ट निवेश के जरिये , सो हमें अपनी साध पूरी होती नज़र आई जब उन्होने हमारा न्योता कुबूल कर लिया। हम उन्हें अपने घर लिवा लाए । उधर से ही मनीषा पांडे को भी फोन कर दिया कि वे भी हमारे ग़रीबख़ाने पर तशरीफ़ लाएं तो अच्छा लगेगा।
बहरहाल आलोक जी से जब हमने अपनी विपन्नता का रोना रोया तो उन्होने तत्काल हमारे सामने करोड़पति बनने का प्रस्ताव रख दिया। मगर मैं संतोषी सदा सुखी की परिभाषा वाला अकिंचन ब्राह्मण इसी जिद पर अड़ा रहा कि नहीं , हमें सिर्फ लखपति बनना है। खैर , काफी नानुकर के बाद वो मान गए और हमें कुछ टिप्स देने को राजी हो गए। वो बताते इससे पहले ही हमने उन्हें रोक दिया और कहा कि हमें नहीं , हमारी श्रीमती जी को समझाएं। ये उनकी महानता थी कि उन्होंने हमें भी समझाया और बाद में श्रीमती स्मिता वडनेरकर को भी। ये अच्छा हुआ कि तब तक मनीषा नहीं आईं थी , वर्ना शहर में ही कम्पीटिटर पैदा हो जाते। हमने फौरन आलोक जी , ज़िंदाबाद का नारा लगाया और मन ही मन उन्हें देवतातुल्य कुबूल किया।
आलोक जी ने न सिर्फ हमें मालदार बनने के नुस्खे दिये बल्कि चर्बीयुक्त काया को निर्मल, कांतिवान और हल्की बनाने के टिप्स भी दिये[ वैसे हम तो वसा-तैलयुक्त नहीं हैं, पर ज्ञान प्राप्त कर लिया ]। उसमें सबसे प्रमुख जो था वो ये कि काया में शर्करा का जितना कम निवेश हो उतना बेहतर। इसका फार्मूला भी उन्होने दिया कि फीकी चाय पीने से हर महिने साठ चम्मच निवेश बचाया जा सकता है। आलोक जी फीकी चाय पीते हैं। भोजन के वक्त उन्होंने एक भी रसगुल्ला नहीं खाकर इसे साबित भी किया कि वे काया में शर्करा-निवेश के खिलाफ हैं। आलोकजी के सेहत ज्ञान से मनीषा काफी प्रभावित नज़र आईं और उनकी शर्करा-निवेश वाली राय पर अगले दिन से अमल करने का वादा करते हुए दो रसगुल्ले दबा लिए।
आलोक जी से जब हमने कहा कि राष्ट्र के नाम भी वो कोई संदेश देना चाहेंगे , तो उन्होने इन्कार करते हुए कहा कि सबका वक्त तय है । ये सब फिलहाल आपके लिए है , सो साथियों हम कोई भी नुस्खा आपको नहीं बता रहे हैं। बस, कुछ चित्र ही भेज रहे हैं। आलोक जी की भंगिमा से अगर कुछ डीकोड हो सके तो ठीक वर्ना साईं जब चाहेंगे , ब्लागजगत पर कृपालु हो जाएंगे। चाहें तो इसे ब्लागर मीट भी समझ सकते हैं। कुछ नामी , सुनामी और बेनामियों की चर्चा भी हुई मगर परनिंदा कतई नहीं हुई। आलोक जी ब्लागजगत से गदगदायमान नज़र आए और इस लोक में बने रहने की प्रबल इच्छा प्रकट की।
Wednesday, May 14, 2008
आलोक पुराणिक ज़िंदाबाद !!!
प्रस्तुतकर्ता अजित वडनेरकर पर 1:25 AM
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21 कमेंट्स:
विश्वास ही नही होता कि यह खूबसूरत नौजवान आलोक पुराणिक ही है। उनके ब्लाग पर तो कोई दूसरी तस्वीर ही दिखती है। वैसे एक बार अनिता जी ने इसका खुलासा किया था। दर्शन कराने के लिये धन्यवाद।
आपका क्लोज अप भी ब्लाग मे दिखता है तो लगता है कि चर्बीदार होंगे। पर चित्र मे आप दुबले दिख रहे है। ठीक वैसे ही जैसे आप समीर जी के बगल मे खडे होकर दिख रहे थे।
आपका घर सुन्दर दिख रहा है। पर कुछ वस्तुए बता रही है कि किसी तरह की एलर्जी भी यहाँ रहती है। किसी को सर्दी की पुरानी बीमारी तो नही है???
माफ करे इस ताका-झाकी के लिये।
बडी अच्छी है तस्वीरेँ और आपके मेह्मानोँ की खातिरदारी -
स्मिता भाभी को नमस्ते और हेल्लो !
अजितजी, आलोकजी से इस तरह मिलाने का बहुत बहुत धन्यवाद..आलोक जी और मनीषा जी की मुस्कान बता रही है कि आप दोनो अच्छे मेहमान नवाज़ हैं.
पंकज जी , हमारी भी नज़र घर के सुन्दर जानदार रंगों पर जाकर अटक गई लेकिन उतनी दूर की नहीं सोच सकते.
वाह!! क्या मिलवाया है भाई. मजा आ गया आलोक जी और मनीषा जी को देखकर. हाँ, भाभी जी को भी देखकर. सभी को नमन.
पंकज भाई की नजर की भेदन क्षमता के कायल हुए. अपने घर की भी तस्वीर भेजूँ क्या.
पता तो चले कि ऐसा क्या यहाँ बसता है
कि चर्बी के लिये मानो आम रस्ता है. :)
हाँ, वडनेरकर जी चर्बीदार नहीं हैं, पर ब्लॉग पर फोटो हमेशा चर्बीदार ही लगाते हैं।
भई अजीत जी हम तो आलोक जी और मनीषा दोनों से मिल चुके हैं । आलोक जी के साथ विविध भारती का एक कार्यक्रम करने में मज़ा आया था । उनकी मज़ाकिया शख्सियत अपन को खूब जमी । आपकी भी महफिल अच्छी जमी होगी । मनीषा से हमारा खींचमतान वाला रिश्ता है । इसलिए उससे तो भई भगवान बचाए । :D
अजीत जी घर तो सचमुच सुंदर सजा हुआ है भाभीजी को मेरी तरफ से प्रशंसा दे दीजियेगा । अब तो लगता है कि जब भी भोपाल की यात्रा हो तब आपके घर आना ही होगा । सर्दी के कीटाणु वाली टिपपणी समझ में नहीं आई हां समीर जी आप चर्बी को लेकर चिंतित न हों क्योंकि आपको चर्बी की समस्या नहीं है ये तो चर्बा को मामला है ।
ख़ुदा की क़ुदरत बरसी आप पर
शब्द मनीषी तशरीफ़ लाया आपके घर.
आलोक फ़ैला होगा ठहाकों का, हँसी का
बधाई वहिनी और भाई अजित वडनेरकर
चित्र से लेकर वर्णन तक सबकुछ बेहतरीन
यह तो महा ब्लॉगर मीट है....जिन्दाबाद जिन्दाबाद।
जिन्दाबाद! जिन्दाबाद !!
अजित जी,
देवत्व का आलोक हमारे घर भी
पहुँचाया आपने...... मन प्रसन्न हो गया.
अलबत्ता आलोक के देवत्व के
कायल तो हम सदैव रहे हैं.
आपकी गुण ग्राहकता डिकोड हो गई बरबस.
पोस्ट से गुज़रना निवेश के समान है.
=================================
...और हाँ सुगर फ्री मुलाक़ात का
नया ट्रेंड भी रास आया !
तहे दिल से शुक्रिया.
डा.चंद्रकुमार जैन
अजितजी जिंदाबाद
अजितजी की मेहमानवाजी जिंदाबाद
आदरणीय स्मिताजी द्वारा स्नेह की भरपूर शुगर से बनाया गया खाना जिंदाबाद
और रात बारह बजे भोपाल की सड़कों पर फुल धुआंधारी से स्कूटरित धड़ाधड़ित मनीषाजी की जय हो
शानदार पोस्ट!
आलोक जी वहाँ चर्बीयुक्त काया में शर्करा के निवेश के ख़िलाफ़ बोले. आश्चर्य है. वैसे मुझे लगता है कि नेताओं से मिलते होंगे तो उन्हें चर्बी में निवेश करने का सुझाव देते होंगे...आख़िर नेताओं की चर्बी कम हो जायेगी तो व्यंगकार के लिए ख़तरा बढ़ जायेगा...:-)
बहुत खूब, बधाई हो!
भई सबसे पहले तो हमें आपका ड्राईंग रूम पसंद आया। उठा के लाते बनेगा क्या ;)
दूसरी बात ये कि आलोक जी की काया को अब अपन ने आईडल बना लिया, अपन अब से येसे ही रहने की कोशिश में लग जाते हैं कि " ऐसी खूबसूरत त्वचा से तो उम्र का पता ही नही चलता"
सई है न आलोक जी ;)
मनीषा जी तक हमारी दो शिकायत पहुंचाई जाए
पहली यह कि एक तो उन्होने लिखना बंद सा कर रखा है, क्यों?
दूसरी यह कि रायपुर वुमन भास्कर में आज ब्लॉग @ वुमन पर एक रिपोर्ट छपी है किन्ही मृदुलिका झा की लेकिन उसमें अंग्रेजी हिंदी के किसी महिला ब्लॉग या महिलाओं के समूह ब्लॉग का कोई उल्लेख ही नही है।
बाकी वे धुवांधारी से स्कूटर पर धड़ाधड़ित होती रहें।
बड़े भाइयों की बैठकी और बतकही देख-पढ़कर ही हमें आनन्द आ गया। यहाँ इलाहाबाद में बैठकर इससे आगे की कोई गुंजाइश है क्या? आप लोगों ने ही ब्लॉगिंग की दुनिया को इतना लुभावना बना दिया है।… सच मजा आ गया।
काफ़ी रोचक मुलाकात करे आपने... शुक्रिया! टिपण्णीयां भी रोचक !
पोस्ट और टिप्पणियां दोनों धमाकेदार हैं
जिन्दाबाद जिंदाबाद
और चित्र लाजवाब
आलोक जी तो चीनी से लबालब मिलते हैं सदा
हमने तो यही देखा है सर्वदा
वो मिठास जो उनके स्वर में है
वो मिठास जो उनके लेखन में है
वहीं मिठास उनके व्यंग्य में भी है
सॉरी मिठास नहीं कड़वाहट
फिर भी कड़वा ने हटे
उसके हटने से व्यंग्य लेखन के सभी अवसर हटेंगे
जिसे व्यंग्य लेखक पसंद नहीं करेंगे.
मालदार होने के लिए एक हिन्दी बेवसाइट है शेरों की नहीं, शेयरों की - www.moltol.in
इसे क्लिकिए और जानकारी अपनी भाषा में ही हासिल कीजिए.
अविनाश वाचस्पति
आलोक जी को अमर उजाला कारोबार के दिनों में आफिस में देखा करते थे, उन दिनों मैं प्रशिक्षु के रूप में पत्रकारिता की बारहखड़ी सीख रही थी। आलोक जी बिल्कुल वैसे ही दिखाई दे रहे हैं तस्वीरों में।
अरे यार अपनी फोटो से तो बहुत चरका दिया आप दोनों विकटरथियों ने! अच्छा है, ब्लॉगवाणी अपनी सिर्फ मुंडी ही दिखाता है वरना उदर के मामले में तो अपना गणेशजी से कम्पटीशन चल रहा है. हमारी काया पर गाँव की रामलीला के विदूषक का बचपन में सुना यह जुमला फिट बैठता है- 'हाथ-पाँव पतले-पतले पेट जबरजंग!'
इस बात की पूरी-पूरी आशंका है कि भाई समीर लालजी अब तक सख्त बुरा मान गए होंगे!
ख़ैर आपने अब न भी बुलाया तो अपन भोपाल पधारने ही वाले हैं. जबरिया मेहमान से पाला पड़नेवाला है. लेकिन भोपाल पधारे तो कैमरा बंद रखने की शर्त पर ही आपके घर पधारेंगे वरना हमारी इमेज चौपट हो जाने का ख़तरा है. हांहाहा! और हाँ, बहन मनीषा के बारे में यह लाइन बहुत अच्छी लगी- 'आलोकजी के सेहत ज्ञान से मनीषा काफी प्रभावित नज़र आईं और उनकी शर्करा-निवेश वाली राय पर अगले दिन से अमल करने का वादा करते हुए दो रसगुल्ले दबा लिए।' (गुरु, मध्यप्रदेश का असर तो होगा ही न? परसाई और शरदजी की माटी के हो)
घर के रंग देखकर तो कौन कमबख्त फ़िदा न हो जायेगा? अब नीबू-मिर्ची दरवाज़े पर लटका ही लीजिये वरना हमारी नज़र डाइरेक्ट यहीं से लगाने वाली है!
अजीत भाई आप के घर की रंगीन साजो सज्जा पर तो हम भी फ़िदा हो गये, एक्दम हट के है। भाभी जी को बधाई इस सजावट के लिए॥न न न आप प्रतिरोध न करें हम मान लेते हैं थोड़ा योगदान आप का भी है।
ये आलोक बाबा पैसा बनाने के टिप्स तो देते ही हैं,पतले रहने के राज भी बताते हैं वो भी इतने मिठास के साथ, वाह, ये तो चीटिंग है जी, हमें तो सिर्फ़ जोक्स सुनाए, टिप्स न दिए। अब अगली बार घेर कर घर ले जाना पढ़ेगा फ़िर टिप्स मिलेगें। उनके ब्लोग पर लगी उनकी तस्वीर से वो इतने अलग दिखते हैं कि हम भी जब उनसे पहली बार मिले तो हैरान थे।
Ajit bhai,
namaskar.
safar mein main bhi sath hoon.apka blog niyamit roop se parhti hoon.pratikriyaswaroop pahali bar samne aai hoon.main apko yad hoon na hoon,mujhe aap yad hain,safed kurta payjama,patli-dubli si kaya Anant bhai ke ghar par 1991 mein hui barhi aupcharik si namaste-namaste vali mulakat,uske bad ham kabhi nahin mile.
Prabha nam hai mera.Bharatvasi hoon,in dinon Japan mein pravas hai.pati ke sath rahati hoon.
Ajit bhai karorhpati banane ke kuch gur hamen bhi sikha den,bhala hoga aapka.bachchon ka shadi-byah karna hai abhi.is umra mein itane paparh to na belane parhenge.mere pati din rat khatate hain,kuch aaram mil jaye unhe bhi.ummeed hai nirash nahin karenge.aapki kripa hogi to Aalok ji ko bhi dhanyavad doongi.
han ab aage barhte hain,Kaya mein sharkara ka nivesh kam hona chahie...vale niyam par barson amal karti rahi,vazan 83 se neeche aaya hi nahi.thak-har kar sharkara se karha parhez chorh dia.vazan ab bhi utna hi hai,socha tha patali ho jaun par sapna hi ban kar rah gaya.albatta jab bhi sharkara - parixchan karvaya,anivary-matra se bhi kam hi nikla.is par mere lie koi nuskha yadi Alok ji sujha saken to pooch dekhiega.vaise unki salah par amal karne ko ji chahne laga hai. do din se chay mein cheeni nahi li hai.
ghar ki saj sajja man aur aankho ko bhali lagi sath hi sab prasannchitt najar aaye,aap badhai ke patr hain.
aise hi anubhav batate rahie,blog likhte rahie, ek din to bhala ho hi jayega...
prabha.
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