काम का न काज का, दुश्मन अनाज का
निकम्मे , नाकारा व्यक्ति के लिए यह कहावत बड़ी मशहूर है । अब आलसी चाहे दिनभर खाट तोड़ता रहे मगर खाना तो तब भी खाएगा ही न! तो यह अनाज का अपव्यय ही हुआ। लिहाज़ा दुश्मन अनाज का जैसी बड़ी लाक्षणिक बात तत्काल प्रतिक्रिया करनेवाले समाज में पैदा हो गई।
बोलने-सुनने में उर्दू फारसी के असर वाला अनाज शब्द हिन्दी का ही है । अनाज यानी गल्ला, राशन, गेहूं, चना,चावल,दलहन और धान्य आदि। अनाज बना है संस्कृत के अन्नः या अन्नम् और अद्य शब्द के मेल से । अन्न का सामान्य अर्थ होता है भात अथवा चावल । गौरतलब है कि प्राचीनकाल में अन्य खाद्यान्नों की तुलना में चावल से ही मनुश्य अधिक परिचित था। बाद में अन्न का अर्थ सम्पूर्ण भोजन अथवा भोज्य पदार्थ हो गया । अन्न बना है संस्कृत धातु अद् से जिसमें खाने, निगलने या नष्ट करने का भाव शामिल है। इससे ही बना अद्य जिसका मतलब होता है खाने योग्य पदार्थ । इस तरह बना अन्न+अद्य > अन्नाद्य > अण्णाज्ज > अनाज । मालवी, राजस्थानी और पूर्वी हिन्दी में आदि स्वरलोप होने से सिर्फ नाज शब्द भी प्रचलित है। इस नाज के ज में जब नुक्ता लग जाता है तो उर्दू का नाज़ बन जाता है जिसका इस शब्द से कोई लेना देना नहीं है। डॉ रामविलास शर्मा के मुताबिक अनाज के अर्थ वाला नाज शब्द दरअसल ईरानी परिवार का शब्द है । उनके मुताबिक ईरानी परिवार में नाद् क्रिया पीटने के अर्थ में प्रयुक्त होती है और चूंकि उपज को पीटकर ही अनाज निकाला जाता है इसलिए इसी नाद् से नाज शब्द चल पड़ा । मगर भारत भर में प्रचलित अनाज और नाज दोनों रूपों को देखते हुए और संस्कृत के अन्न शब्द के मद्देनज़र अन्न+अद्य से ही इसकी उत्पत्ति तार्किक नज़र आती है।
आपकी चिट्ठियां
सफर की पिछली तीन कड़ियों नन्हा कातो , महंगा बिकेगा, और मिठास का कानून पर सर्वश्री चंद्रभूषण , अभिषेक ओझा, दिनेशराय द्विवेदी, डॉ चंद्रकुमार जैन,पंकज अवधिया, लावण्या शाह , मीनाक्षी, आलोक पुराणिक,समीरलाल, यूनुस , महाशक्ति, पंकज सुबीर , संजय पटेल, बेजी, शिवकुमार मिश्र, संजीत त्रिपाठी ,सिद्धार्थ , अविनाश वाचस्पति, दीपा पाठक , विजयशंकर चतुर्वेदी, अनिताकुमार,संजय की टिप्पणियां मिलीं। आप सबका बहुत बहुत आभार।
Saturday, May 17, 2008
दुश्मन अनाज का
प्रस्तुतकर्ता अजित वडनेरकर पर 2:49 AM
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
11 कमेंट्स:
सर्वश्री का मतलब भी समझते हैं आप? इगो को चोट लगा दी! चलिए हम आपसे सख्त नाराज़ हो जाते है. मतलब समझने के लिए नहीं; सर्वश्री न कहने के लिए! वह भी कहा तो किसे सर्वश्री कहा? जिसकी बात पढ़कर लोग अश्-अश् करते हैं? लेकिन टिप्पणी नहीं करते!!!!!!!!!!!!!!!!
पोस्ट पढ़ कर तो पहले की तरह बहुत अच्छा लगा लेकिन अनाज की फोटो देख कर तो अजित जी ऐसी इच्छा हुई कि कुछ सुनहरी दानों को कच्चा ही मुंह में डाल लूं।
हम पढ़ रहे हैं.
मुझे बाबा नागार्जुन का संस्मरण याद आ रहा है। उन से शिक्षक ने पूछा था कि अन्न किसे कहते हैं? उनका जवाब था कि बीज पक जाने पर जिस का पौधा नष्ट हो जाए। तो शिक्षक ने उन्हें अरहर का उदाहरण दिया जो नष्ट नहीं होता और बाद में भी फलता रहता है। तो बाबा बोले वह तो द्विदल है।
काकेश के बाजू में चटाई बिछाये हम भी कनखियाये पढ़ रहे हैं. :)
हमेशा की तरह जानकारी से भरा लेख ।
चर्चा में है आज अनाज,
प्रासंगिक जानकारी, रोचक अंदाज.
जो काम-काज पर आह भरें
वो अनाज पर राज क्यों करें ?
उन पर कोई नाज़ क्यों करे ?
अन्न तो परिश्रम का ही फल है
आलसी का न आज है न कल है!
========================
आभार
डा.चंद्रकुमार जैन
हमेँ नाज़ है,
आपकी खोजपरक बातोँ पे !
और अनाज पर भी :)
- लावण्या
खोज करना तो कोई aapse seekhe ... lajwaab !
बहुत सुंदर और खोजपरक तथ्य
Post a Comment