बकलमखुद के उनचालीसवे सोपान पर बेजी की अनकही खत्म हुई । बेजी ने इस मौके पर अपनी टिप्पणी में सफर के सभी साथियों को गहरी आत्मीयता से याद किया है और इस पहल को नए स्नेह - संबंधों की कड़ी माना है। बेजी ने जो लिखा उससे बेहतर बकलमखुद की परिभाषा हो भी नहीं सकती। आभार डॉक्टर साहिबा...यहां प्रस्तुत है बेजी की टिप्पणी जो अगर पोस्ट पर ही पड़ी रहती तो सभी साथियों तक नहीं पहुंच पाती इसलिए अलग पोस्ट के रूप में दे रहा हूं।
बकलम पर लिखने के लिये जब अजित जी ने कहा तो सोचा इसी बहाने फिर पुरानी गलियाँ घूम लूँगी...तब बिलकुल अंदाज़ा नहीं था आप सब इतने अपनापे के साथ सुनेंगे...घूमते घूमते मैं सच में ही जी आई... आभार शब्द बहुत छोटा पड़ रहा है...जितने अपनेपन से आई थी उससे ज्यादा साथ लेकर जा रही हूँ...
अजित जी का शुक्रिया...हमने जितनी जगह माँगी हमें घेर लेने दी...
प्रभाजी ... मुझे भी यहाँ रहते रहते आदत हो गई थी...रूठने का नाटक करूँ तो मनाइयेगा ज़रूर....
अनिताजी से दोस्ती की पहल जरूर करूँगी...
यह स्तंभ अपने आप में निराला है....यहाँ महान लोगों की कहानी तो नहीं ही लिखी जा रही....पर आम लोगों के जीवन, जीवनी ,संघर्ष और हर्ष के पलों को लफ्ज़ों में समेटा जा रहा है। सफर रोचक है और जारी रहना चाहिये...ना जाने कितनी पहचान -दोस्ती और स्नेह के रिश्तों में बदल जायेगी...यह वो पुल हो सकता है जिसके छोर पर मनचाहा दोस्त मिले...।
आपकी चिट्ठियां
बेजी की अनकही के आठों पड़ावों पर 64 साथियों की 170 टिप्पणियां मिलीं।
ये हैं अविनाश, विजय गौर, सुजाता , प्रमोदसिहं, डॉ अनुराग आर्य , शिवकुमार मिश्र, रवि रतलामी, अर्बुदा, अनुराधा श्रीवास्तव, मनीष, रजनी भार्गव, नीरज रोहिल्ला, संजय , पारुल, सागर नाहर ,दीपा पाठक, कुश, आभा, अशोक पांडे, नीरज गोस्वामी, सिद्धार्थ, हर्षवर्धन, संजय बैगाणी, अनामदास,आलोक , दिनेशराय द्विवेदी, समीरलाल, अनूप शुक्ल, लावण्या शाह, संजय बैंगाणी, अरूण, काकेश, संजीत ,नीरज गोस्वामी, घुघूति बासूती, चंद्रभूषण, विजयशंकर चतुर्वेदी, डॉ चंद्रकुमार जैन, अनिताकुमार, बेजी, नीलिमा सुखीजा अरोरा, घोस्टबस्टर ,राजेश रोशन, हर्षवर्धन, विमल वर्मा, नचिकेता ,रख्शांदा, प्रियंकर , यूनुस, रचना, अभिषेक ओझा, अफ़लातून, ममता , अजित वड़नेरकर, अरविंद मिश्र, अतुल , मनीष , लवली कुमारी , स्वप्नदर्शी, जाकिर अली रजनीश, प्रशांत प्रियदर्शी, कंचनसिंह चौहान, और प्रभा । आप सबका आभार ।
Thursday, May 22, 2008
दोस्ती का पुल पुख्ता करे बकलमखुद...आमीन
प्रस्तुतकर्ता अजित वडनेरकर पर 1:21 AM
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9 कमेंट्स:
बेहतरीन प्रस्तुति रही अभी तक के बकलमखुद की। आगे और इंतजार है।
इतिहास में दर्ज हो गई यह बकलम खुद. बहुत बधाई अजीत भाई ऐसी जबरदस्त प्रस्तुति प्रस्तुत करने के लिए. यह आपके ही बस की बात है.
इतिहास में दर्ज हो गई यह बकलम खुद. बहुत बधाई अजीत भाई ऐसी जबरदस्त प्रस्तुति प्रस्तुत करने के लिए. यह आपके ही बस की बात है.
संघर्ष से हर्ष तक
नित नये उत्कर्ष तक
पलों से सौ वर्ष तक
कथन से विमर्श तक
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चल पड़ा ये सिलसिला
जो जीया सबको मिला
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अनकही को कहने की
ली अजित जी ने सुध
सफ़र की ये दास्तां
बन गई बकलमख़ुद.
सबसे मिलते हुए चलने के
अंदाज़ को बधाई.......!
डा.चंद्रकुमार जैन
सच कहूं तो बकलमखुद में हर किसी का हर पन्ना पढ़ते हुए यही महसूस होता है कि शायद यही बेहतरीन लिखा गया है और इससे अच्छा पढ़ने को नही मिलेगा लेकिन……फ़िर से अगला पन्ना यही एहसास दिलाता है कि यह बेहतरीन है।
इसका कारण शायद यह है कि शब्दों का सफ़र में आकर हर किसी का बकलमखुद एक अलग एहसास बन जाता है और संवर सा जाता है।
यह सही कहा बेजी ने कि यह कोई महान लोगों की कहानी नही है पर आम लोग जो हमारे आसपास से ही उठे से लगते हैं उनके जीवन सफर को ही शब्दों का जामा पहना कर पेश किया जा रहा है, वाकई यह एक पुल ही है।
शुक्रिया बकलमखुद लिखने वालों का और अजित जी का भी जिनका यह क्रिएटिव आईडिया जबरदस्त साबित हुआ।
जारी रखिये अब आदत बिगड़ गई है...
बेजी जी का बकलम खत्म हो गया लेकिन मन नहीं भरा, आशा है वो आगे का हाल अपने चिठ्ठे पर जारी रखेगीं। खुशी से फ़ूली नहीं समा रही कि बेजी जी ने हमारा दोस्त बनना स्वीकार किया है। मुझे इंतजार है उनसे बात करने का।
संजीत हमारा साधारण लिखा भी बकलम पर आ कर अलग रंगत मे खिल गया अजीत जी की एडिटिंग के कमाल से। काफ़ी श्रेय उन्ह जाता है।
बहुत दिलचस्प रहा बेजी जी का स्वकथन. इस स्तर को बनाये रखना आगे आने वालों के लिए सचमुच एक चुनौती साबित हो सकता है.
मैंने काफी लेट से ये स्तंभ पढ़ना शुरु किया है..मुझे इसका अफसोस है-अलवत्ता मै ब्लॉग को काफी निहारता रहता हूं-लेकिन पता नहीं कभी ध्यान ही नहीं गया या अपने स्वार्थ के वस दूसरे चीजों में उलझा रहा।
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