कहावत है कि चिंता चिता समाना । जिस तरह से घुन अनाज को पोला कर देता है, दीमक वृक्ष को खोखला कर देती है उसी तरह चिन्ता शरीर को धीरे-धीरे क्षीण करती जाती है जिसकी चरम परिणति मृत्यु है अर्थात् चिन्ता का शीघ्र समाधान न मिले तो शरीर को चिता मिल सकती है। यहां सिर्फ चिंता और चिता का मेल सिर्फ कहावत के स्तर पर नहीं है बल्कि ये दोनों शब्द सचमुच संबंधी भी हैं।
चिता अर्थात दाह संस्कार के लिए चुनकर रखी रखी गई लकड़ियों का ढेर। चिता बना है चित शब्द से जिसका अर्थ है बीना हुआ, संग्रह किया हुआ, जमा किया हुआ, अंबार लगाया हुआ और जमाया हुआ आदि। इसी से बने हैं चुनना, चुनवाना जैसे शब्द । भवन निर्माण में ईंटों की चुनाई होती है । यह चुनाई भी इस चित से बना है। लोकतंत्र में राज्यव्यवस्था के लिए मत प्रणाली के जरिये जन प्रतिनिधि तय करने की प्रक्रिया को चुनाव कहते हैं। यह भी इसी मूल से निकला है। यही नहीं, फारसी का चुनिंदः शब्द जिसे चुनिंदा के रूप में हिन्दी में खूब इस्तेमाल किया जाता है , इससे ही निकला है जिसका मतलब होता है चुना हुआ , छांटा हुआ । जमा करना , एकत्र करना जैसी क्रिया के लिए संचय , संचित जैसे शब्द भी इसी मूल से निकले हैं।
ये सब शब्द बने हैं संस्कृत की चि धातु से जिसमें ढेर लगाना, बीनना, जड़ना, ढकना, भरना, एकत्र करना , संग्रह करना जैसे अर्थ शामिल हैं। चित से ही बना है चित्यम् जिसका मतलब होता है दाह संस्कार करने का स्थान। गौर करें की बौद्ध और जैन देवालयों को चैत्य , चैत्यालय भी कहा जाता है। यह चैत्य भी इससे ही बना है। बौद्ध महास्थविरों के अवशेष इन चैत्यों में रखे जाने की परंपरा रही है। बाद में इन्हीं के इर्द-गिर्द विहार भी बनते चले गए । चैत्य मूल रूप से समाधि या स्मारक ही रहे हैं मगर बाद में देवालय के अर्थ में पहचाने जाने लगे।
चि में निहित चुनने की क्रिया पर अगर गौर करें तो पाएंगे की चुनना, बीनना, संग्रह करना, जमाना आदि सभी क्रियाएं देखने से जुड़ी हुई हैं। बिना देखे-भाले किसी भी किस्म का चुनाव संभव नहीं । अर्थात चुनने से ही ज्ञानबोध होता है और बिना ज्ञानबोध के चुनाव असंभव है-दोनों में अंतर्संबंध गहरा है , सो चि से ही बना चित्त् जिसमें जानना, समझना, चौकस होना, ज्ञानबोध आदि अर्थ समाहित हैं। हिन्दी का चित्त भी यही सारे अर्थ प्रकट करता है जिसमें देखना, विचार करना , मनन करना भी शामिल है।
आमतौर पर चिन्ता का मतलब फिक्र, ध्यान, परवाह आदि माना जाता है। यह बना है चिन्त् से जिसके व्यापक अर्थ हैं और इसी परिवार का शब्द है जिसमें सोच-विचार, चिन्तन मनन आदि बातें शामिल है।
आपकी चिट्ठियां
शब्दों के सफर के पिछले तीन पड़ावों -दुश्मन अनाज का , निखट्टू , लानत है तुझ पर .. , और हैया रे हैया हैया हो.. पर सर्वश्री विजय शंकर चतुर्वेदी, डॉ प्रवीण चोपड़ा , काकेश , दिनेशराय द्विवेदी, समीरलाल, आशा जोगलेकर , घोस्ट बस्टर , संजात त्रिपाठी, डॉ चंद्रकुमार जैन,लावण्या शाह , अभिषेक ओझा, ज्ञानदत्त पांडेय , विजय गौर, अरुण आदित्य , अनुराग आर्य, अरुण, कुश और आलोक पुराणिक की टिप्पणियां मिलीं। आप सब साथियों का दिल से आभार ...। सफर की रौनक बनाए रखें...हम बेहतर पड़ाव लाते रहेंगे।
Sunday, May 25, 2008
चिंता चिता समाना....
प्रस्तुतकर्ता अजित वडनेरकर पर 1:39 AM
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13 कमेंट्स:
चि से चिन् और चित् दो पृथक शाखाएं प्रतीत हो रही हैं। दोनों के अर्थ भी भिन्न हो रहे हैं। एक से चिन्तन और दूसरे से चिता आदि.....
अजितजी,
चित और इससे सम्बन्धित शब्दों का अर्थ बीनना, जमा करने के स्थान पर निष्क्रिय पडे रहना अधिक सुनने में आता है । हो सकता है इसी पडे रहने से चिता शब्द बना हो ।
१) पट भी मेरी चित भी मेरी
२) चित करना अर्थात जमीन पर पटक देना
संचित सम्भवत: संचय से बना है और दोनो चित से सम्बन्धित नहीं लग रहे हैं ।
इसके बावजूद बाकी शब्दों के बारे में जानकर बहुत अच्छा लगा । चैत्य और चैत्यालय के बारे में तो बिल्कुल जानकारी नहीं थी ।
Hello,
I have never posted a comment on your blog, but I do read it regularly.
I would like to request you write about words "shakahar" and "mansahar". When did these words come into being? I knows the old scriptures talk about satvik and tamasi aahar. I don't think aryans theselves labelled their food in "vegetarian" and "non-vegetarian" categories, but I may be wrong.
I would appriciate if you could shed some light on this.
Thanks
OOOPS.. please ignore my mistakes in the above comment.
Corrections:
"...to request you to* write...."
"I know* the old..."
चित्त लगा जी इस पोस्ट में!
अजित जी
क्या अद्भुत ज्ञानवर्धक बात बताई है आपने. आप की शब्द कोष की जानकारी सच में अचंभित करने वाली है. ऐसा चित लगा इसे पढने में की हमारी तो चिता की चिंता ही समाप्त हो गयी.
नीरज
"रहिमन चिंता राखिये, चिंता करत सुजान
जे मानुष चिंता बिना, चिता पे लेटा जान"
अर्थात मनुष्य बिना चिंतन के चेतना हीन है चिता पर लेटे मुर्दे के समान है
:)
बढ़िया बहुत बढ़िया.
ज्ञानवर्धन के लिए धन्यवाद.
वास्तव मे अद्भुत हैं.
अजित जी,
नीरज जी ने बिल्कुल सही बात कही है.
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आज इस पड़ाव पर मुझे
आचार्य तुलसी का यह संदेश याद आ रहा है -
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चिंता नहीं, चिंतन करो
व्यथा नही, व्यवस्था करो
प्रशस्ति नहीं, प्रस्तुति करो.
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चिंतन....व्यवस्था ....प्रस्तुति
आपका सफ़र यही तो कर रहा है .
आभार
डा.चंद्रकुमार जैन
natmastak hua hun hazoor.....
अजितजी, नमस्कार....शत प्रतिशत सत्य वचन... आजकल हम चिंतन-मनन (चिंता में नहीं) में लगे हैं. छोटे बेटे के कॉलेज का चुनाव का चिंतन.... बड़े बेटे के जीवन को आसान बनाने के चिंतन में... इसलिए ब्लॉग जगत में चाहकर भी आ नहीं पाते.
@अरुण-
सही है कि चिंताएं न हों तो आगे बढ़ने की चाह भी खत्म हो जाए। इसीलिए चिंता , चिता समान नहीं बल्कि चिंता तो हमारे जागरुक-विचारशील होने को सिद्ध करती है।
@दिनेशराय द्विवेदी-
सही कहा आपने। चिन्त् और चित् चि की ही दो शाखाएं हैं दोनों में ही अर्थविस्तार का क्रम रहा है। चिता शब्द से चिन्तन को न जोड़ते हुए मूल चि में निहित चुनने, बीनने , एकत्र करने के भावों पर गौर करें तो चित्त् और चिन्त् का अर्थ ज्ञानबोध, मनन और चिन्तन से स्पष्ट होता है।
@नीरज रोहिल्ला-
चित भी मेरी , पट भी मेरी कहावत के हवाले से आप जिस चित की बात कर रहे हैं वो अलग चित है जिसका संस्कृत धातु चि से रिश्ता नहीं है। याद दिलाने के लिए शुक्रिया। इस पर अगली पोस्ट में ज़रूर लिखूंगा। संचित तो जाहिर है संचय से ही बना है। संचय का मूल भी चि ही है। देखें आप्टेकोश(सम्+चित+अच्=संचयः)
सफर में बने रहें, आभार।
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