ब्लाग दुनिया में एक खास बात पर मैने गौर किया है। ज्यादातर ब्लागरों ने अपने प्रोफाइल पेज पर खुद के बारे में बहुत संक्षिप्त सी जानकारी दे रखी है। इसे देखते हुए मैं सफर पर एक पहल कर रहा हूं। शब्दों के सफर के हम जितने भी नियमित सहयात्री हैं, आइये , जानते हैं कुछ अलग सा एक दूसरे के बारे में। अब तक इस श्रंखला में आप अनिताकुमार, विमल वर्मा , लावण्या शाह, काकेश ,मीनाक्षी धन्वन्तरि ,शिवकुमार मिश्र , अफ़लातून ,बेजी, अरुण अरोरा , हर्षवर्धन त्रिपाठी और प्रभाकर पाण्डेय को पढ़ चुके हैं। बकलमखुद के बारहवें पड़ाव और साठवें सोपान पर मिलते हैं अभिषेक ओझा से । पुणे में रह रहे अभिषेक प्रौद्योगिकी में उच्च स्नातक हैं और निवेश बैंकिंग से जुड़े हैं। इस नौजवान-संवेदनशील ब्लागर की मौजूदगी प्रायः सभी गंभीर चिट्ठों पर देखी जा सकती है। खुद भी अपने दो ब्लाग चलाते हैं ओझा उवाच और कुछ लोग,कुछ बातें। तो जानते हैं ओझाजी की अब तक अनकही। |
भगवान ऐसा भाई सबको दे... शायद राम-भरत भी ऐसे भाई ना रहे हों.. जी हाँ कुछ बातों पर मुझे गर्व है इस पर सबसे ज्यादा. मैं छोटा था तभी भैया रांची चले गए... कहते हैं मैं कई दिनों तक रोया.. कुछ भी कर लो चुप नहीं होता था. बाद में मैं भी रांची चला गया. एक छोटी सी घटना सुनाना चाहूँगा: बगीचों में आधे हमारे पेड़ थे आधे दुसरे गाँव वालों के (हम उन्हें परसनियाँ कह के बुलाते थे) गाँव के समीप होने के कारन हम छोटे बच्चे ही जाते पर दुसरे गाँव के बड़े लड़के आते और हमें खूब डराते-धमकाते. कभी पकड़े गए नहीं थे, बस ये समझ लीजिये की घर वाले चाहे जितना समझा लें भूतों और परसनियों का डर एक दुसरे से कम नहीं हो पाता था.
दूसरे गाँव के लड़के भी ये बात जानते थे इसलिए थोडी दूर दौड़ा देते... हम अपने पेड़ के नीचे हो या बगीचे के बाहर... ऐसे भागते जैसे पीछे सैकडो भूत पड़े हों. एक बार मैं भाग नहीं पाया और पकड़ा गया... भगवान ने साथ दिया होगा नहीं तो मर ही गया था. वो मुझे बगीचे की तरफ़ वापस ले जाने लगे... साथ में पूछते की कितना आम लेके जाता है हमारे पेडों से.. किसके घर का है... और सवाल याद कहाँ है बस रोये जा रहा था. इधर मेरे भैया ने भागते-भागते पीछे मुड के देखा तो... 'अब क्या करें?' वो भी पीछे-पीछे आने लगे... तेजी से आए और फिर मेरे पास... मैं और रोने लगा... आज तो दोनों भाई गए इस दुनिया से... सुना है काट के गाड देते हैं पेडों की जड़ में ! परसनियों में से एक ने पूछा: 'तू क्यों आया है?' मेरे भैया ने सुबकते हुए कहा: 'मेरा भाई है !' उन बेचारों को तरस तो ऐसा आया की कुछ और आम देके विदा किया... चुप कराने लगे. घर आके रोते-रोते सबको सुनाया... बड़े भैया ने बगीचे जाके उन लड़कों की ख़बर ली... तब से परसनियों का डर तो चला गया. पर इस भ्रतिप्रेम की घटना को समझने में बहुत दिन लगे. ये तो ठीक पर लडाई बहुत की... अब भी करता हूँ... इतना हक़ माँ के अलावा और किसी पर नहीं. हमेशा एक ही थाली में खाया... और फिर झगडा कि आप कम खा रहे हैं, नहीं तुम कम खा रहे हो ! थाली के अन्दर ही बंटवारा फिर इस बात का झगडा कि इसने मेरी तरफ़ रोटी डाली है नहीं आपने डाली है. कितनी बातें लिखूं एक बकलमखुद यही ना हो जाय !
कोई बहन नहीं थी... पर कभी कमी नहीं खली... अब बात सबसे ज्यादा प्यार की... माँ ! मेरे जीवन का सबसे महतवपूर्ण शब्द... माँ के बारे में कुछ नहीं लिखना.. शब्दों में बांधना बेईमानी समझता हूँ. आज तक नहीं लिखा आज भी नहीं लिखूंगा बस एक लाइन यही कहनी है कि "मेरी माँ संसार की सबसे अच्छी माँ है" बस ! कोई तुलना नहीं कोई चाहे लाख कह ले अपनी माँ के बारे में... मेरा ये वाक्य अकाट्य सत्य है... तो आज तक जितना भी लिखा गया है, माँ के बारे में ... सब पर आप यह वाक्य लगा दें, अगर आप गणित जानते हैं तो इसकी खूबसूरती समझ सकते हैं. हरिवंश नारायण की एक और बात याद आती है 'मुझे तो ऐसा लगता है की मेरी माँ यदि जगी नहीं होती, तो में सोया होता... ।'
आज भी दूर रहूँ पास रहूँ, खुश रहूँ, दुखी रहूँ, माँ को सबसे ज्यादा याद करता हूँ.. अंतराल कभी ५ मिनट से ज्यादा नहीं होता. घर जाता हूँ तो पड़ोसियों को भी नहीं पता होता की मैं आया हूँ... अभी भी माँ की गोद में बैठ जाता हूँ.... शायद यही कारण है की खाना बना लेता हूँ और सिलाई भी कर लेता हूँ !पढ़ाई माँ से पुश्तैनी रूप में मिली... सुना है माँ लालटेन जलाकर रात-रात भर पढ़ती... घर की आलमारी में पड़ी हुई किताबें लाइन से... विश्व इतिहास, यूरोप का इतिहास, मनोविज्ञान, वकालत, सैन्य-विज्ञानं, संस्कृत, उपन्यास, धार्मिक... सब कुछ. दादी बोलती की अब तुझे कौन सी परीक्षा देनी है... पर पढने का शौक कभी कम नहीं हुआ... पढ़ती फिर दादी को सुनाती... और फिर हमने भी खूब सुनी. दादी थोडी-थोडी याद हैं.. सुना है बहुत अच्छी थी. बहुत छोटा था जब उनका देहांत हुआ... दादाजी का बहुत पहले ही हो चुका था. -जारी
19 कमेंट्स:
अभिषेक जी जैसी माँएँ सभी को मिलें।
बहुत प्यारी हैँ आपकी माँ की छवि अभिषेक भाई
और अब उन्हेँ कैसा लगता है,
जब उनका लाडला
युरोप के देश मेँ है
जिसका इतिहास वे पढा करतीँ थीँ ?
स्नेहाशिष,
- लावण्या
माँ ऐसी ही होती है मित्र. बहुत भाया अभिषेक के बारे में जानना.
अगली कड़ी का इन्तजार.<{//. । .\\}>
आपके विषय में जानना रुचिकर लग रहा है अभिषेक भाई.
हाँ, माँएँ सभी की दुनिया की सबसे अच्छी माँ होती है.
सुंदरतम। माँ को कितना भी जानो अधूरा सा ही लगता है क्योंकि माँ तो माँ होती है।
बड़ो भइया, आगे बढ़ो। अगली कड़ी की प्रतीक्षा है--
भइया यह शब्द ही काफी है भाई-प्रेम को परिभाषित करने के लिए।
दुनिया की हर मां लाजवाब होती हैं।
माँ शब्द तो महा काव्य है.. बहुत बढ़िया चल रहा है.. इंतेज़ार कर रहे है
बहुत भावपूर्ण
संवेदना से आपूरित
स्नेह-सरोकार की मिसाल
और समझदारी का अनुकरणीय
पड़ाव भी है अभिषेक का यह बकलम ख़ुद.
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माँ जगती है तो हम सो पाते है...
हम सो न जाएँ यह सोचकर
माँ अक़्सर जगाती भी तो है.
साभार बधाई
डा.चन्द्रकुमार जैन
कितना अच्छा लगता होगा माँ को आपकी तरक्की देखकर ...जीवन में इस माँ का कोई रिप्लेसमेंट नही है ओर माँ से ज्यादा निस्वार्थी कोई नही .....आपकी माँ वाकई एक प्रेरणा देने वाली एक गौरव पूर्ण महिला रही है.....आपने आज भावुक कर दिया....
हरिवंश नारायण की एक और बात याद आती है 'मुझे तो ऐसा लगता है की मेरी माँ यदि जगी नहीं होती, तो में सोया होता... ।'
आगे कुछ कहने को नही रह जाता
माँ ऐसी ही होती है मित्र. बहुत भाया अभिषेक के बारे में जानना.
माँ शब्द तो महा काव्य है
पढ़ कर अच्छा लगा.
समुच्चय वाक्य... मेरी माँ दुनिया की सबसे अच्छी माँ है
अभिषेक जी आप तो हमें भी भावुक कर गये। "मेरी मां दुनिया की सबसे अच्छी मां " ये शब्द ही अचूक हैं। हमें पक्का यकीन है कि आप भी दुनिया के सबसे अच्छे बेटे साबित होगें। आशीष्…।:)
अभिषेक जी, मेरी मां दुनिया की सबसे अच्छी मां , बहुत खुब कहा आप ने,जिस ने मां की सेवा कर ली,उस ने भगवान को पा लिया,
बहुत अच्छा लगा भाई. माँ और भाई के साथ आपका रिश्ता तो हमसब को भावुक कर गया. खुशी हुई आपके बारे में जानकर. आगे का सफर कैसा रहा, ये जानने का इंतजार रहेगा.
माँ दुनिया की सबसे अनमोल चीज है ..और सब माँ बहुत बहुत अच्छी होती हैं ..आपने जिस तरह लिखा है वह बहुत भावुक कर गया
माँ ऐसी ही होती है। पढ़कर अच्छा लगा। यह क्रम जारी रखें।
बेहद भावुक कर गये आप...
Behad achchi post. Ma ko bhi bahut achcha lagega padh kar.
यार अन्हें, सेंटी कर गये तुम तो। बड़े दिनों बाद ये "परसनिया" सुना। पता नहीं अजीत जी ने अपने शब्दान्वेषण के दौरान इस शब्द का जिक्र किया है कि नहीं कहीं अपने इस अभूतपूर्व "शब्दों के सफर" पर।
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