ब्लाग दुनिया में एक खास बात पर मैने गौर किया है। ज्यादातर ब्लागरों ने अपने प्रोफाइल पेज पर खुद के बारे में बहुत संक्षिप्त सी जानकारी दे रखी है। इसे देखते हुए मैं सफर पर एक पहल कर रहा हूं। शब्दों के सफर के हम जितने भी नियमित सहयात्री हैं, आइये , जानते हैं कुछ अलग सा एक दूसरे के बारे में। अब तक इस श्रंखला में आप अनिताकुमार, विमल वर्मा , लावण्या शाह, काकेश ,मीनाक्षी धन्वन्तरि ,शिवकुमार मिश्र , अफ़लातून ,बेजी, अरुण अरोरा , हर्षवर्धन त्रिपाठी और प्रभाकर पाण्डेय को पढ़ चुके हैं। बकलमखुद के बारहवें पड़ाव और इकसठवें सोपान पर मिलते हैं अभिषेक ओझा से । पुणे में रह रहे अभिषेक प्रौद्योगिकी में उच्च स्नातक हैं और निवेश बैंकिंग से जुड़े हैं। इस नौजवान-संवेदनशील ब्लागर की मौजूदगी प्रायः सभी गंभीर चिट्ठों पर देखी जा सकती है। खुद भी अपने दो ब्लाग चलाते हैं ओझा उवाच और कुछ लोग,कुछ बातें। तो जानते हैं ओझाजी की अब तक अनकही।
स्कूल में कभी नहीं खेला, परेड करने से हमेशा कतराया... एनसीसी नहीं लिया. इसके लिए शिक्षकों से भी खूब पंगा लिया. एक बार फुटबॉल को पैर से मारा, पैर में चोट लग गई तब से दुबारा फुटबॉल को पैर ही नहीं लगाया. कई नए दोस्त बने... पर उस सांवली लड़की के बार लड़की से दोस्ती नहीं हुई. केवल लड़को का स्कूल था. ८ वीं तक गंभीर छात्र के रूप में जाना जाता रहा।
लड़कियां देखने जाते !
९ वीं १० वीं में हमारा ग्रुप था जो लंच में घुमने निकल जाता. हमारे स्कूल के पीछे २ किलोमीटर की दूरी पर लड़कियों का एक स्कूल था. कुछ लोगों ने हमें उधर देख लिया और प्रिंसिपल ने असेम्बली में घोषणा कर दी की कुछ लड़के, लडकियां देखने जाते हैं और अगर ये जारी रहा तो लंच में गेट नहीं खोला जायेगा. शिक्षकों का प्यार अपनी जगह था पर उस उमर में ऐसी शरारतों से नाम जुड़ने का अपना मज़ा होता है. पर कुछ दिनों के बाद ये बंद हो गया और हमारा ग्रुप एक पुराने कुवें से इमली के पेडों से होते हुए पास की नदी तक जाकर लौट आता. खूब चर्चा होती। लगता दुनिया बदल के रख देंगे ! शिक्षको को गालियाँ देते । मैं देता तो लोगों को मजाक लगता, पर गालियाँ तो दिल से मैं भी देता था. स्कूल के एक दोस्त से अनबन हो गई तो उससे फिर कभी बात ही नहीं की. २ महीने पहले बड़ी मशक्कत से नंबर जुगाड़ कर फोन किया और घंटो बात की. उसे भी भरोसा नहीं हुआ पर खूब बात हुई.
तीन नंबर क्यों कटे ?
घर पर पापा अपने होस्टल जीवन की और शरारत की कहानियाँ सुनाते... हम खूब हंसते और सुनते... लोग कहते की लड़कों को बिगाड़ रहे हैं! जीव विज्ञान के अलावा और किसी विषय से कभी भय नहीं लगा भूगोल से थोडी दूरी जरूर रही पर वो भी दूर हो गई थी. साल में बस दो दिन विद्यालय नहीं जाता, उन २ दिनों जिस दिन गाँव से वापस आता, गर्मी और क्रिसमस की छुट्टियों के बाद. शिक्षक कह देते की ये देखो मॉडल उत्तर है तो सातवें आसमान पर पहुच जाता... १० वीं की परीक्षा का केन्द्र मामा के घर के पास पड़ा... परीक्षा देकर गाँव आया और भूल गया, रांची आया तो पता चला की रिजल्ट १० दिनों से निकला हुआ है... ऑटो से आ रहा था वो भी ख़राब हो गया. वहीँ एक चाय की दूकान पर 'आज' अखबार में देखा 'डॉन बोस्को के विद्यार्थियों का उत्कृष्ट प्रदर्शन' उसी में देख लिया की कितना नंबर है और ये भी पता चल गया की राँची टॉप करते-करते रह गया दूसरे नंबर पर. घर पर होने के कारण अखबार में फोटो नहीं आया बस नाम तक ही रहा. इन सब का कोई मलाल नहीं रहा । कभी ये सोचा ही नहीं, परीक्षा भूल कर घर पे बाल्टी के आम खाता... लेकिन गणित में ३ नंबर जो कटे उसका मलाल आज तक है.
आईआईटी की तैयारी
पास हुआ तो अब सोचने का कोई सवाल ही नहीं था इंटरमिडिएट में सेंट जेवियर्स कॉलेज में नाम लिखाने के अलावा, गणित लेना भी तय था. अब देखिये किस्मत: सेंट जेवियर्स ने फैसला लिया की उस बीच में कोई लडकियां नहीं ली जायेंगी :( . खैर छोडिये... ६ महीने तक खूब मस्ती में रहे, स्कूल ड्रेस नहीं पहनना होता... शहर के बीचों-बीच कॉलेज, बैच में लड़किया तो नहीं थी पर बी.एससी., आर्ट्स और कामर्स में एक-से-एक. पुस्तकों पर सोने की आदत पड़ गई... हाँ कक्षा में सोने की आदत अभी भी नहीं पड़ी. दोस्त कम ही बने. फिर पता चला की सब आईआईटी की तैयारी कर रहे हैं. हमने कहा की हम भी कर लेते हैं उसमें क्या है ! फिर पता चला की कोचिंग करनी होती है... ट्यूशन और कोचिंग को बहुत बुरी नज़र से देखता. मौसेरे भाई के यहाँ से किताबे ले आया और पढ़ना चालु कर दिया... समझ में भी सब कुछ नहीं आता और किताबों पर सो जाता. पर भी किस्मत का साथ स्क्रीनिंग में हो गया और हम फूल के कुप्पा हो गए.
और औकात पता चल गई...
हमें लगा की अरे इसमें क्या है अब तो हो ही जायेगा. गणित ही धोखा दे गया और रैंक आ गई ४३०० के आस पास कुछ. अब जा के औकात में आए... टी.एस.चाणक्य की काउंसिलिंग में गए तो डर के ही भाग आए... शरीर में जान नहीं और जहाज पर जायेंगे. डी.सी.इ. की काउंसिलिंग में गया पर एक साल रुकना ही पसंद आया. पर वापस आकर सोचा की एडमिशन भी ले लेते हैं, वैसे ही औकात में तो आ ही चुके थे । तो भौतिकी में बी.एससी. में नाम लिखवा लिया फिर से सेंट जेवियर्स में. नामांकन उस समय कराया जब क्लासेस चालू हो गई थीं. नाम लिखने का कोई चांस ही नहीं था पर उस कॉलेज में एक लड़कों के भगवान रहते हैं फादर डी ब्रावर उनसे साइन करा के हेड को दिया तो झुंझलाते हुए ही सही उन्होंने भी अप्रूव कर दिया. क्लास तो कभी जाता था नहीं, कॉलेज घुमने का मन करता तो चला जाता. लडकियां भी नहीं थी क्लास में। बस २ थी तो अपना कोई चांस भी नहीं दीखता.
गणितज्ञ कम, साईको ज्यादा...
एक दिन विभागाध्यक्ष ने जम के डांट लगा दी की जब आईआईटी जाना है तो यहाँ क्यों नाम लिखवाया बताओ?... जाकर पढ़ाई करो नहीं तो क्लास आओ. उस दिन से कभी गया ही नहीं... बीच में सोचा की गणित ख़राब हुआ था तो गणित ही पढ़ लेते हैं एक जगह गणित की कोचिंग जानी शुरू की शिक्षक गणितज्ञ कम साइको ज्यादा लगता १५ दिन में वो भी छोड़ दिया. स्क्रीनिंग में तो फिर हो गया पर इस बार तय था की अगर मेन में नहीं हुआ तो कोई चारा नहीं था इस बार तो फादर डी ब्रावर भी कुछ नहीं कर पायेंगे. बीच में एसएसबी देने इलाहबाद गए तो पहले राउंड में ही भगा दिया गया. एयरफोर्स का एक फॉर्म भी भरा पापा ने बस इतना ही कहा की तुम्हे तो गणित अच्छा लगता था अब एयरफोर्स में जाने की सोच रहे हो क्या? उसी समय एडमिट कार्ड फाड़ के फेंक दिया. खैर इन सबसे डर लगा पर इनकी नौबत नहीं आई और हम पहुच गए कानपुर. और भी कुछ जगह हुआ पर जहाँ जो पढने की सोचा था वही मिल गया तो फिर कुछ और सोचने का सवाल ही नहीं था. जारी
26 कमेंट्स:
dekh raha hu ganit baar baar aa raha hai..
या गणित या लड़कियां… एक को चुनना होता है… आप उलझे नहीं ज़्यादा अच्छा किया… बहुत जल्दी जल्दी जा रहे हो… थोड़ा गति कम करो कहानी की।
रोचक लग रह है यह ,गणित प्रेम उजागर है इस में :)
हा हा हा...... कुश की टिपण्णी मजेदार है.....
बहुत रूचिकर दास्तान है।
बहुत ही रोचक अंदाज में दास्ताँ चल रही है.
कहानी कुछ-कुछ अपन से मिलती-जुलती है.
गनीमत है लड़की नहीं मिली, उसके लिए अच्छा रहा :))
रही बात गणित की तो उसे तो नहीं लगता कि आपसे कोई खास तकलीफ है।
रोचक अन्दाजें बयां है। :)
आगे की दास्ताँ का इंतजार रहेगा।
साफ़गोई और पाकदिली
का सुंदर मेल....किस्सा
ज़ोरदार है भाई
बधाई...
===================
डा.चन्द्रकुमार जैन
is post se mujhe wo din yaad aa gaya jab mere bhaiya ka 10th ka result aaya tha aur vo ghar rote huye aaye the ki mera ganit me 1 number kam kyon hai.. :)
आप के जीवन से कुछ साम्य हैं। तो सोचता हूँ की हर एक के जीवन में कुछ तो साम्य होता ही होगा। तभी लोग नजदीक आ पाते हैं। राजधानी दौड़ा रहे हो भाई। हाँ पता लगा है देश के बाहर हो।
लड़किया हमेशा गणित से दिलचस्प रहती है.....हम biology वाले स्टुडेंट के लिए तो खास तौर से ...पर आपकी गणित से मोहब्बत कई मोडो पर रही......उन २ लड़कियों का क्या हुआ भाई ?
सही था जो लड़कियाँ नहीं थी वरना तो आई आई टी से नमस्ते ही हो लेती. :) मजा आया पढ़ कर.
अभिषेक भाई,
ये मँदिर कहाँ है ?
जो इस चित्र मेँ दीखाई दे रहा है ?
बहुत सुँदर है ! और आपका परिवार भी -
इँतज़ार है, पढ रहे हैँ अगली किस्त का
स्नेह
- लावण्या
अच्छा लग रहा है पढ़ना आगे की कड़ी का इंतजार ,ये ज्यादातर ब्लोगरस कानपुर कैसे पहुंच जाते हैं जी या हिन्दी ब्लोगिंग में वही लोग ज्यादा है जिनके तार कहीं न कहीं कानपुर या इलाहाबाद से जुड़े हैं
आप तो बड़े फोड़ू निकले जी! एकदम लल्लन टॉप मस्त। वाह! मजा आ गया। कानपुर में क्या गुल खिलाये, यह जल्दी बताइएगा।
लावण्या जी धन्यवाद आपका !
विलंब के लिए क्षमा आज कई दिनों बाद ब्लॉग पर आया हूँ... आजकल आपके आस पास ही हूँ, बस थोड़ा दूर हूँ नहीं तो मिलने का प्लान जरूर बनाता.
आपके दो सवाल देखे... पहले नाम: मेरा नाम मेरे मामा ने रखा था, पहले लंबा सा नाम था विद्याभूषण. शायद और भी कुछ था इसके और ओझा के बीच में. मेरे मामा को पसंद नहीं आया और उन्होंने बदल कर अभिषेक कर दिया.
ये तस्वीर शिवजी के प्रसिद्द मन्दिर (ज्योतिर्लिंग) देवघर के समीप स्थित नौलखा मन्दिर की है.
बाकी सभी को मेरा बकवास पढने के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद ! :-)
आजकल टिप्पणी दे नहीं पाते लेकिन जब भी मौका मिलता है पढ़ने ज़रूर आ जाते हैं... अभिषेक की रोचक बकलमखुद धारा प्रवाह पढते हैं... आगे की कड़ी का इंतज़ार है.
अभिषेक भाई,
आप कहाँ हैँ ? कैसा लग रहा है यहा आकर ? मँदिर की जानकारी देनेका शुक्रिया और अजित भाई का भी शुक्रिया !
- लावण्या
bahut badhiya jaa raheb ho bhai....maths to mera bhi weak tha aur isi ke chakar main cpmitition paas nahi kar paayi. aaj media main kaam kar rahi hu.
ये हुई ना मस्त मौला वाली बात :)
अभिषेक भाई, आपके मस्ती के चर्चे काफी अच्छे लगे और उनसे सीख लेने की प्रेरणा भी प्रेरणा प्रद रही। जिन्दगी में कई ऐसे वाक्ये घटित हो जाते है जिनसे हमें बहुत कुछ सीखने को मिलता है। आप सफर जारी रहे, हम आपको पढ़ने फिर आयेगे।
sorrrry abhishek ji thodi der ho gai.... lekin lag raga hai ki durust hi hai abhi... abhi to aap hamare kanpur pahu.nche hai. kaisa laga kanpur ye janane ki utsukta rahegi...dekhiye jaisa bhi hai hamara apna hai...jyada burai mat kijiyega plzzz. bahut achchha laga aap ke baare me jaan kar
आज ही अगले पिछले भागों को इकठ्ठा पढ़ा। बलिया, राँची और कानपुर ये तीन ऍसे शहर हैं जिनसे मेरा भी नाता है या रह चुका है। अच्छा लग रहा है तुम्हारे बारे में इस तरह से जानना।
सही है। लगे रहो, लिखे रहो।
सेंट जेवियर्स...अहा! हम भी गये थे एडमिशन का मंसुबा लेकर, लेकिन तब तक एनडीए का काल आ गया था।
तो अन्हें मियां एसएसबी ट्राय मार चुके हैं।
वैसे ये हिस्सा कुछ जल्दी निपटा दिया है तुमने।
Post a Comment