ब्लाग दुनिया में एक खास बात पर मैने गौर किया है। ज्यादातर ब्लागरों ने अपने प्रोफाइल पेज पर खुद के बारे में बहुत संक्षिप्त सी जानकारी दे रखी है। इसे देखते हुए मैं सफर पर एक पहल कर रहा हूं। शब्दों के सफर के हम जितने भी नियमित सहयात्री हैं, आइये , जानते हैं कुछ अलग सा एक दूसरे के बारे में। अब तक इस श्रंखला में आप अनिताकुमार, विमल वर्मा , लावण्या शाह, काकेश ,मीनाक्षी धन्वन्तरि ,शिवकुमार मिश्र , अफ़लातून ,बेजी, अरुण अरोरा , हर्षवर्धन त्रिपाठी और प्रभाकर पाण्डेय को पढ़ चुके हैं। बकलमखुद के बारहवें पड़ाव और साठवें सोपान पर मिलते हैं अभिषेक ओझा से । पुणे में रह रहे अभिषेक प्रौद्योगिकी में उच्च स्नातक हैं और निवेश बैंकिंग से जुड़े हैं। इस नौजवान-संवेदनशील ब्लागर की मौजूदगी प्रायः सभी गंभीर चिट्ठों पर देखी जा सकती है। खुद भी अपने दो ब्लाग चलाते हैं ओझा उवाच और कुछ लोग,कुछ बातें। तो जानते हैं ओझाजी की अब तक अनकही।
पहले ही सुन रखा था की बहुत पढ़ाई करनी पड़ती है और बहुत लोग फेल होते हैं यहाँ आया तो पता चला की सही बात है. पर अब एक नई आदत लग गई क्लास में सोने की... और इस आदत ने सारे रिकॉर्ड तोड़ दिए. खूब मस्ती की. कई बार फेल होते-होते बचे. नींद का मतलब ही बदल गया ऐसे आए न आए क्लास में जरूर आती. पहली रो में बैठकर भी सोता, मेकेनिकल की लैब तक में सोया, इलेक्ट्रिकल की लैब में सोया तो प्रोफेसर ने उठाकर पूछा की क्या तबियत ठीक नहीं है, तो जाओ रूम पे जा के सो जाओ. (उस दिन लैब से निकल कर बहुत मज़ा आया, प्रोफेसर ने ही समस्या सुलझा दी) .
हज्जाम के यहां भी नींद...
नाई के पास बाल कटवाने जाता तो वहीं सो जाता. इलेक्ट्रिकल के एक कोर्स में हर क्लास में क्विज होती बाद में पता चला की इसका वेटेज कम है तो फिर लगातार झुक्का मारा (० अंक पाना) ६-७- क्विज में. मेरी सीपीआई का ग्राफ देखें तो ५.५ से ९.६ तक सब कुछ आया ग्रेड 'ए' से 'डी' तक बस 'एफ' नहीं लगा कभी. कोशिश उसकी भी हुई पर रिलेटिव ग्रेडिंग का कमाल मुझसे भी बड़े उस्ताद होते और मैं पास करता गया. एक बार क्लास में प्रोफेसर ने कहा जिसको पढने का मन नहीं है चले जाओ. मैं उठ कर चला गया. बाद में पता चला की मैं अकेला ही बाहर आया... अगले दिन जा के सॉरी बोला तो प्रोफेसर साहब मुस्कुरा कर रह गए बोले 'उम्र है जी लो'.
दोस्त बहुत अच्छे मिले...
जिनसे दोस्ती को परिभाषित किया जा सके ऐसे-ऐसे दोस्त मिले. रूम पार्टनर इतना अच्छा मिला की लॉटरी से रूम मिलता है इस बात पर भरोसा ही नहीं हुआ. लगा की भगवान ने फैसला दिया की इन दोनों को साथ रखो... सबके साथ हंसते-खेलते जिंदगी के हसीं दिन कब बीत गए पता ही नहीं चला. दोस्तों का मजाक खूब उडाया, थोडी बहुत राजनीति भी की... किसी में झगडा होता तो अधिकतर दोनों तरफ़ रहता. खेलना कूदना पहले कभी हुआ नहीं था यहाँ स्वीमिंग की और खूब की. दुनिया देखना भी यहीं से चालु हुआ. इन सब के बीच महात्वाकांक्षा कभी कम नहीं हुई... कभी-कभी मन करता की सारे संसार का ज्ञान ले लूँ, रात-रात भर गूगल सर्च करके पढता.एक-एक समय पर चार-चार प्रोजेक्ट पर काम करता... फ्रॉड भी खूब मचाता. ४ इन्टर्नशिप कर डाली दो बार आईआईएम बंगलोर गया, दो बार स्विस. मैंने अपनी प्रोफाइल में एक लाइन लिखी है 'जहाँ भी गया लगा उसी के लिए बना हूँ', जहाँ भी गया ऐसा घुला-मिला की लगता था की यहीं के लिए बनाया गया हूँ. काम अच्छा हो न हो दोस्ती खूब होती जिन भी प्रोफेसर के साथ काम किया सब अच्छे दोस्त बने. लोग कहते हैं की मेरी दोस्ती उम्र में बड़े लोगो से ज्यादा होती है. ये भी नहीं कह सकता की गणित नहीं पढता तो क्या करता.
धर्म में हमेशा से रूचि रही
कई अच्छे दोस्त दुसरे धर्मों से रहे, सब धर्मों के बारे में जानना और इज्जत करना धीरे-धीरे शौक सा हो गया. धार्मिक पुस्तकें भी खूब पढ़ी. आईआईटी में एक बार अभिज्ञानशाकुंतलम लेकर आया तो लाइब्रेरी वाला भी देखने लगा की कहाँ से आ गया ऐसा आदमी. इस बीच भैया का बहुत सहयोग मिला कुछ सोचना नहीं पड़ता महीने के शुरू में खाते में पैसे आ जाते... ये सख्त हिदायत थी की सोचना नहीं है की कहाँ से आ रहे हैं. संयुक्त परिवार की समस्याएं कभी मुझसे नहीं बताई जाती, एक बार माँ बीमार थी ६ महीने तक मुझे नहीं बताया गया. घर गया तो पता चला... तब बहुत गुस्सा आया. लगता है घर वालों के इतनी मेहनत के बाद भी जीवन में कुछ नहीं कर पाया... पर अभी भी महात्वाकांक्षा मरी नहीं है. खैर एक बार स्विस गया तो ५ साल का खर्च निकल गया दूसरी बार लौट के आया तो लाखों में रुपये हो गए खाते में. भगवान ने भी साथ देना नहीं छोड़ा (हाँ लड़कियों के मामले में वही हाल रहा)
19 कमेंट्स:
प्रियवर अभिषेक,
बात साफ़ है कि आपमें
जानने-सीखने,ख़ुद को
आजमाने-पहचानने का
एक जानदार ज़ज्बा है.
आपकी महत्वाकांक्षा के साथ
आस्था की उपस्थिति बड़ी चीज़ है.
ऊपर वाला ऐसे ही लोगों की तलाश में है
जिन्हें अपनी सही-सटीक ख़बर है.
लगे रहिए,डटे रहिए...महत्त्व की आकांक्षा
के साथ-साथ अपनी आकांक्षा का महत्त्व
इसी तरह बनाये रखिए.
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शुभकामनाएँ
डा.चन्द्रकुमार जैन
कालेज में सोये तो हम भी खूब हैं.. पहली बेंच से लेकर अंतिम बेंच तक.. :)
वाह,
सोने की बात खूब करी । आज हमने अदालत में ही इन्तजार में एक झपकी ले ली । आज हमारी अदालत में पेशी थी, ट्रैफ़िक सिग्नल तोडने के लिये, देखो मुंसिफ़ क्या फ़ैसला सुनाये :-)
एक और किस्सा याद आया IISc में एक क्लास में केवल तीन विद्यार्थी थे मतलब तीनों पहली बैंच पे । ऐसे में भी हमने झपकी ली और मन भर के ली, होश आता था जब लिखने के प्रयास में नोटबुक में चील कौये बन रहे होते थे :-)
I mean Switzerland -
ये सफर का ऐपिसोड भी दीलचस्प रहा ! स्विस मतलब Switzerland से है ना ? :)
- लावण्या
क्लास में सोना आम है। अदालतों में सोना भी रोज देखते हैं।भाई सोना जहाँ भी मौका हो कर लेना चाहिए। अवांछित से बचा जा सकता है। गणित और बुजुर्गौ का साथ है। जो गणित पढ़ेगा उस की दोस्ती बुजुर्गों से रहेगी। सभी धर्मों के अनुयायियों से मित्रता का अर्थ है धर्म मित्रता में बाधक नही,और मित्र के धर्म का आदर करना स्वाभाविक है। लेकिन धर्म अंतिम सत्य नहीं वह केवल सदाचरण करते हुए सत्य की खोज मात्र है। आप भाग्यशाली हैं कि संयुक्त परिवार से जुड़े हैं। वैसे इस के दर्शन दुर्लभ होने लगे हैं।
जैसे जैसे पढ़ते जा रहे हैं, आप से मिलने की इच्छा तीव्रतम होती जाती है।
दिलचस्प एवं रोचक सफर...इन्तजार है आगे!!
vaah kyaa mst jIvan jiyaa hai aise hi baakI BhI gujare , yahI duyaaye hai ,
दोस्त तो हमेशा अच्छे ही होते है.. वैसे मैं भी एक बार हज्जाम के यहा सो गया था.. लेकिन उसकी वजह पढ़ाई नही थी.. :)
सोने वाला किस्सा भी खूब है.....वैसे भी मेरा मानना है की हॉस्टल में रहकर आपके व्यक्तित्व का विकास होता है ....ओर आप तो खैर खूब है ही.....
बहुत अच्छा रहा यह सफर भी :)
अभिषेक को कई बार पढ़ा, लेकिन उनके जिन्दगी के बारे में जानना मजेदार है और नींद पुराण तो और भी मस्त
aaj ka padh liya, aage ki pratiksha hai
achchi mast life rahi hai aapki...aage ka haal jaanne mein dilchaspi hai.
अभिषेक जी, आप सचमुच जहां होते हैं, बिलकुल वहीं के हो जाते हैं। अपने गणित-शिक्षक के छात्र जीवन के प्रसंग काफी रोचक लग रहे हैं। लड़कियों के मामले में वही हाल होने की बात कहकर आपने कहानी में सस्पेंस ला दिया है :)
भाई साहब, आप तो बेहद ऊँची चीज हैं। पढ़कर मजा आ गया। वाह!...
सोने के कितने ही किस्से याद हो आये...
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