ब्लाग दुनिया में एक खास बात पर मैने गौर किया है। ज्यादातर ब्लागरों ने अपने प्रोफाइल पेज पर खुद के बारे में बहुत संक्षिप्त सी जानकारी दे रखी है। इसे देखते हुए मैं सफर पर एक पहल कर रहा हूं। शब्दों के सफर के हम जितने भी नियमित सहयात्री हैं, आइये , जानते हैं कुछ अलग सा एक दूसरे के बारे में। अब तक इस श्रंखला में आप अनिताकुमार, विमल वर्मा , लावण्या शाह, काकेश ,मीनाक्षी धन्वन्तरि ,शिवकुमार मिश्र , अफ़लातून ,बेजी, अरुण अरोरा , हर्षवर्धन त्रिपाठी और प्रभाकर पाण्डेय को पढ़ चुके हैं। बकलमखुद के बारहवें पड़ाव और तिरेसठवें सोपान पर मिलते हैं अभिषेक ओझा से । पुणे में रह रहे अभिषेक प्रौद्योगिकी में उच्च स्नातक हैं और निवेश बैंकिंग से जुड़े हैं। इस नौजवान-संवेदनशील ब्लागर की मौजूदगी प्रायः सभी गंभीर चिट्ठों पर देखी जा सकती है। खुद भी अपने दो ब्लाग चलाते हैं ओझा उवाच और कुछ लोग,कुछ बातें। तो जानते हैं ओझाजी की अब तक अनकही।
लड़कियों से दूरी वाली बात तो आप सुन ही चुके हैं... पर ये सिर्फ़ मेरी दास्ताँ नहीं है ९० प्रतिशत से ज्यादा आई आई टी वालों का यही हाल होता है. क्या करें बेचारे... लडकियां इज्जत बहुत करती है कोई कैसे बताये की इज्जत नहीं बराबरी चाहिए, प्यार चाहिए ! आप ने ये भी देखा की छठी कक्षा के बाद कभी लड़कियों से पाला नहीं पड़ा. आई आई टी में तो ये विलुप्त प्रजाति में ही आती हैं. अगर एक अच्छी लड़की हो तो आगे-पीछे के ४ बैच उसकी कुंडली याद कर लेते हैं. पर इस दौरान लडकियां खूब पसंद आई. हम अक्सर कहते हैं कि 'आज फिर से पहला प्यार हो गया'. लोग अपनी बेटियों को लेकर आते तो कहते कि भइया से टिप्स ले लो... कैसे पढ़ाई करनी है. आज तक ये समझ में नहीं आया कि भइया ही टिप्स दे सकते हैं क्या? कोई दोस्त, गुड फ्रेंड, जास्त फ्रेंड या कोई और रिश्ता हो तो शायद अच्छे टिप्स मिल जाएँ :-) पर ये बिडम्बना जारी है. छोडिये नहीं तो आँखें नम हो जायेगी.
जो हुआ अच्छे के लिए:
२००५ मैं हॉल ८ में रहता था... नया होस्टल, मस्त रूम, स्विस वीसा का इंतज़ार... हसीन दिन थे. मई आ गई... टिकट कैंसल हो गया, सब दोस्त पूरे ग्लोब पर पहुच गए ऑस्ट्रेलिया से अमेरिका तक. मेरा वीसा नहीं आया. टेंशन ना लेने की आदत पता नहीं कहाँ से पायी. खूब फिल्में देखता और किताबे पढता, जब बाकी लोग बोलते की सबसे पहले इन्टर्न लगी थी अभी तक नहीं जा पाया, सहानुभूति लोग बोरे में भर कर देते... बात करते तो सहानुभूति टपकती. मैं मस्ती लेता, बस अपने रूम पार्टनर को बोलता की यार जो होता है अच्छे के लिए होता है. कुछ दिनों तक वो भी कहता की हाँ सही कह रहे हो पर जब दिन बिताते जाते तो बोला की यार वो तो ठीक है पर इतना ज्यादा भी अच्छे के लिए कुछ हो तो ठीक नहीं. मैं फिर भी कूल रहता. अपनी आईएमडीबी की लिस्ट छोटी करता जा रहा था.
प्रोफेसर ब्राईट की सरपरस्ती में
और फिर १ जून को वीसा और ५ जून को जाना हुआ इस पूरे क्रम में गुस्सा आया तो सिर्फ़ एम्बसी वालों पर. हर ४ दिन पर साले दिल्ली बुलाते और कहते की पुलिस वेरिफिकेशन नहीं हुई है (आजतक समझ में नहीं आया कि मेरी वेरिफिकेशन स्विस पुलिस कैसे कर रही थी). खैर मैं पंहुचा तो अच्छाई दिखानी शुरू हुई. मेरे लिए जो फ्लैट बुक हुआ था उसे किसी और को दे दिया गया था और मजबूरी में मेरा रहना तय हुआ प्रोफेसर ब्राईट के घर में. और ये मजबूरी इतना रंग ले आई की क्या कहने... एक दोस्ती जो आज भी कायम है. अगर उनके साथ ना रहा होता तो बहुत कुछ खो दिया होता, इतनी किताबें पढने को मिली, इतने अच्छे प्रोजेक्ट्स पर काम किया, इतने अच्छे से स्विस घुमा... इतने बड़े-बड़े लोगो से मिलता और प्रोफेसर साहब की बड़प्पन... क्या परिचय और बड़ाई करते. कितने बड़े-बड़े लोगों से मिलाया. बस अगर परदेश में घर हो सकता तभी इतना आराम मिल पाता. सो के उठता तो प्रोफेसर दम्पति नाश्ता टेबल पर लगाकर चले गए होते, और अक्सर एक पर्ची छोड़कर की आज शाम आप डिनर पर आमंत्रित हो. हम फलां रेस्टुरेंट जा रहे हैं... ऑफिस से जल्दी आ जाना.
इस बीच इस सोने की घटना में बहुत खोया... प्रोफेसर साहब कई जगह क्लास लेते तो जिस दिन ऑफिस नहीं जाते मैं बस से जाता, एक दिन ७ बजे की बस से गया तो एक लड़की मिली... ओह क्या हसीन थी, छोडिये ज्यादा नहीं लिखूंगा, उसके फिगर के बारे में तो बिल्कुल नहीं. पर इतना बता दूँ की किस्मत पहली बार इस मामले में काम कर रही थी अक्सर लोग अकेली सीट पर बैठते हैं पर वो आकर बैठी ही नहीं बातें भी करने लगी, उसकी रूचि हिन्दुइस्म और हिन्दुस्तान में बहुत थी और इस मामले में लपेटने में मैं माहिर. पर २-३ दिन के बाद लाख कोशिश कर के भी उठ नहीं पाता ठंड में सोता ही रह जाता, रोज़ कोशिश करता पर ७.२० वाली बस ही मिल पाती... जो सोता है सो खोता है
स्विस प्रोफेसर बन गए शाकाहारी...
प्रोफेसर साहब को जब पता चला की मैं शाकाहारी तो वो भी लगभग बन गए... साथ किचेन में काम करते, गार्डन में भी और साथ ऑफिस जाते. एक मजे की बात ये की ऑफिस पहुचने के पहले कभी काम डिस्कस नहीं होता, बीच में गाड़ी रोककर आल्प्स, झील और किले घूमते, किताबों के बारे में डिस्कस करते, जॉर्ज बुश को गाली देते... धर्म की चर्चा करते... द्वितीय विश्व युद्ध की चर्चा से लेकर गाँधी तक, वैश्वीकरण से लेकर तेल की राजनीती तक. दोनों एक दुसरे से खूब प्रभावित नज़र आते. एक दुसरे की बात तन्मयता से सुनते... अपनी जीवनी एक दुसरे को सुनाते. ट्रेक्किंग पर जाते पहाड़ पर पहुंच जाते तो पीछे से मेरिलिन (उनकी पत्नी) कार लेकर आती और वापस आते. बोलते की आज ऑफिस मत जाओ चलो लुजेर्न घूम लेना... मैं कहता की ये काम है, तो बोलते की मैं बॉस हूँ. मैं जो कह रहा हूँ करो. वीकएंड पर कभी रुकने को ना कहते क्योंकि उन्हें पता था की कई मित्र अभी स्विस में है तो वीकएंड मुझे उनके साथ बिताना चाहिए. यूँ ही नहीं कहता मैं की जहाँ भी गया लगा उसी के लिए बनाया गया हूँ.
| यादे-स्विस प्रो. ब्राइट की पत्नी मेरिलिन के साथ |
| प्रोफेसर ब्राइट के साथ ब्रेकफास्ट का मज़ा
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[जारी]
12 कमेंट्स:
बहुत अच्छा लगा पढ कर, ओर आप के प्रोफेसर ब्राइट के बारे पढ कर अच्छा लगा, यह (गोरे)पहले तो जल्दी घुलते नही. अगर घुल जाये तो दिल से मिलते हे,ओर उस बस वाली को अभी भुले नही...लेकिन वो तो वही भुल गई होगी,जब यह लोग किसी विदेशी से मिलते हे तो साफ़ दिल से... कोई मेल नही होता इन के दिल मे,
धन्यवाद, आप की सारी पोस्ट २,३ बार पढी मजा आया
द मोर आई रीड, द मोर आई लाइक दिस यंग-मैन।
बहुत अच्छा लगा आपकी बिना लाग-लपेट की रामकहानी सुनकर.अगले अंक की प्रतीक्षा रहेगी.
स्टोरी तो बहुत धाँसू और दिलफेंक होती जा रही है। अभिषेक जी, अन्ततः आपके दिल पर राज करने वाला खुशनसीब कौन मिला, और कहाँ...यह जानने की तीव्र इच्छा हो रही है। जल्दी बताइए नऽ।
वाह जी कहानी खरामा खरामा आगे बढ रही है और मजा दोबाला होता जा रहा है , पर इत्ते छोटे छोटे हिस्से भी मत कीजीये जी , करे आप भले ब्रेक फ़ास्ट पर हमे किस्से डिनर की तरह पूरे ही परोसे :)
अभिषेक के बारे में जानना हर बार अच्छा लगता है। हाँ हम उन के जीवन के साथ-साथ यह भी जानना चाहेंगे कि उन की प्रोफेशनल उपलब्धियाँ क्या रही हैं?
abhishek ji bahut hi achcha lag raha hai aapko padhna aur janana.
प्रो. ब्राईट के बारे में जानकार अच्छा लगा!ऐसा दोस्ताना व्यवहार कम ही देखने को मिलता है!बहुत अच्छी लग रही है आपकी कहानी...
यह पड़ाव भी अच्छा लगा.
प्रोफ़ेसर साहब से ऐसी
अंतरंगता अभिषेक जी
आपकी योग्यता का प्रमाण है.
आगे प्रतीक्षा रहेगी.
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डॉ.चन्द्रकुमार जैन
अभिषेक भाई जन्माष्टमी पर्व की शुभेच्छा
आपकी स्विस परिवारसे मिलकर खुशी हुई
और आपसे फोन पे बात करके लगा मानोँ
हम लोग पुराने परिचित ही हैँ !:)
आशा है अमरीकी यात्रा भी बढिया चल रही है -
- लावण्या
bhai kabhie switzerland ki vaadiyon ke bare mein vistaar se likhiye. aage ki kadi ka intezaar hai
हम्म्म..तस्वीरें भी...गुड! वो किचेन वाली मिसेज ब्राइट के साथ क्या बना रहे हो?
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