Saturday, August 23, 2008

ज्ञ की महिमा - ज्ञान, जानकारी और नॉलेज

देवनागरी के ज्ञ वर्ण ने अपने उच्चारण का महत्व खो दिया है। अपभ्रंशों से विकसित भारत की अलग अलग भाषाओं में इस युग्म ध्वनियों वाले अक्षर का अलग अलग उच्चारण होता है। मराठी में यह ग+न+य का योग हो कर ग्न्य सुनाई पड़ती है तो महाराष्ट्र के ही कई हिस्सों में इसका उच्चारण द+न+य अर्थात् द्न्य भी है। गुजराती में ग+न यानी ग्न है तो संस्कृत में ज+ञ के मेल से बनने वाली ध्वनि है। दरअसल इसी ध्वनि के लिए मनीषियों ने देवनागरी लिपि में ज्ञ संकेताक्षर बनाया मगर सही उच्चारण बिना समूचे हिन्दी क्षेत्र में इसे ग+य अर्थात ग्य के रूप में बोला जाता है। शुद्धता के पैरोकार ग्न्य, ग्न , द्न्य को अपने अपने स्तर पर चलाते रहे हैं।

scan0004 यह आलेख दैनिक भास्कर के 9सितंबर 2007 के रविवारीय अंक में शब्दों का सफर कॉलम में प्रकाशित हुआ था।

 ब तो ज्ञ के ग्य उच्चारण को ही लगभग मान्यता मिल गई है इसीलिए इस पर अक्सर बहस चलती है कि क्यों न ज्ञ से पीछा छुड़ा लिया जाए। केंद्रीय मानव संसाधन मंत्रालयों की आलमारियों में विशेषज्ञों की ऐसी अनुशंसाएं ज़रूर मिल जाएंगी। गौरतलब है ज्ञ वर्ण  संस्कृत के अलावा प्राचीन भारोपीय भाषा परिवार से भी संबंधित है । भाषा विज्ञानियों ने प्राचीन भारोपीय भाषा परिवार में इसके लिए जो धातु ढूंढी है वह है gno यानी ग्नो। अब ज़रा गौर करें इस ग्नों से ग्न्य् की समानता पर । ये दोनों एक ही हैं। अब बात इसके अर्थ की । संस्कृत में ज्ञ अपने आप में स्वतंत्र अर्थ रखता है जिसका मतलब हुआ जाननेवाला, बुद्धिमान, बुध नक्षत्र और विद्वान। ज्ञा क्रिया का मतलब होता है सीखना, परिचित होना, विज्ञ होना, अनुभव करना आदि। ज्ञा से बने ज्ञान का भी यही मतलब होता है। ज+ञ के उच्चार के आधार पर ज्ञान शब्द से जान अर्थात जानकारी, जानना जैसे शब्दों की व्युत्पत्ति हुई। अनजान शब्द उर्दू का जान पड़ता है मगर वहां भी यह हिन्दी के प्रभाव में चलने लगा है । मूलतः यह हिन्दी के जान यानी ज्ञान से ही बना है जिसमें संस्कृत का अन् उपसर्ग लगा है।
ज्ञा धातु में ठानना, खोज करना, निश्चय करना, घोषणा करना, सूचना देना, सहमत होना, आज्ञा देना आदि अर्थ भी इसमें समाहित हैं। यानी आज के इन्फॉरमेशन टेकनोलॉजी से जुड़ी महत्वपूर्ण बातें अकेले इस वर्ण में समाई हैं। इन तमाम अर्थों में हिन्दी में आज अनुज्ञा, विज्ञ,प्रतिज्ञा और विज्ञान जैसे शब्द प्रचलित हैं। ज्ञा से बने कुछ अन्य महत्वपूर्ण शब्द ज्ञानी, ज्ञान, ज्ञापन खूब चलते हैं। गौर करें जिस तरह संसकृत-हिन्दी में वर्ण में बदल जाता है वैसे ही यूरोपीय भाषा परिवार में भी होता है। प्राचीन भारोपीय भाषा फरिवार की धातु gno का ग्रीक रूप भी ग्नो ही रहा मगर लैटिन में बना gnoscere और फिर अंग्रेजी में ‘ग’ की जगह ‘क’ ने ले और gno का रूप हो गया know हो गया । बाद में नालेज जैसे कई अन्य शब्द भी बने। रूसी का ज्नान (जानना), अंग्रेजी का नोन (ज्ञात) और ग्रीक भाषा के गिग्नोस्को (जानना),ग्नोतॉस(ज्ञान) और ग्नोसिस (ज्ञान) एक ही समूह के सदस्य हैं। गौर करें  हिन्दी-संस्कृत के ज्ञान शब्द से इन विजातीय शब्दों के अर्थ और ध्वनि साम्य पर। 

13 कमेंट्स:

अनूप शुक्ल said...

ज्ञान बढ़ाने के लिये आभार!

Udan Tashtari said...

बहुत उम्दा जानकारी. ज्ञान गंगा बहाते रहिये.

दिनेशराय द्विवेदी said...

यह ज्ञ हमारे लिए तो अथाह सागर था, है और सदैव ही रहेगा।

कुश said...

आपने ठीक ही कहा.. अब तो ज्ञ के ग्य उच्चारण को ही लगभग मान्यता मिल गई है.. ब्लॉग्स पर तो अक्सर यही पढ़ने को मिलता है.. कक्षा इस बार भी बढ़िया रही.. आभार

Dr. Chandra Kumar Jain said...

ज्ञान की बातों से मन
प्रसन्न हो गया. इस शब्द की
सर्वदेशीय ध्वनि साम्य वाली बात
सचमुच ध्यातव्य है....मुझे लगा कि
भेद-ज्ञान का दर्शन हो सकता है,पर
ज्ञान स्वयं अभेद का उद्घोषक और आधार है.
==============================
आभार
डा.चन्द्रकुमार जैन

Arvind Mishra said...

जानकारी पूर्ण -हिन्दी का विज्ञान कहें विज्नान तोकहीन विद्यान उच्चारित होता है -बड़ा लफडा है भाई !

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` said...

ज्ञान का "ज्ञ" रसप्रद और रोचक रहा !
अब क्ष ळ त्र पर भी लिखेँ और स श और ष क्यूँ बने ?
उसपे भी लिखियेगा
शुक्रिया ,
- लावण्या

सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी said...

‘ज्ञ’ की चर्चा ने तो हमारे ज्ञान-चक्षु खोल दिये। आप यह बहुत बड़ा काम कर रहे हैं। बहुत-बहुत आभार...जारी रखें।

Batangad said...

हे प्रभु आनंददाता ज्ञान हमको दीजिए-- मैं तो हमेशा यही कहता रहता हूं। आज जरा डिटेल में समझा।

Abhishek Ojha said...

ज्ञ -> gno -> Know.
ज्ञान ही ज्ञान !

Gyan Dutt Pandey said...

वाह! हमारे नाम में भी जान है!

Asha Joglekar said...

hamesha kee tarah rochak.

Ravi S said...

इसी सवाल का जवाब ढूँढते हुए मैं यहाँ आ पहुँचा वो भी लगभग ८ साल बाद :) वैसे मेरे परिवार में जब वेदिक संस्कृत में यजुर्वेद का पाठ करते हैं तो "gna" उच्चारण करते हैं परंतु साधारण भाषा में "gya" . परन्तु अभी किसी को "jya" बोलते हुए सुना तो जिज्ञासा उत्पन्न हुई

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