चांद के सर्वाधिक प्रचलित नामों में शशि, शशधर, शशांक आदि हैं और इन नामों के व्यक्ति भी समाज में है जो इसी बात का प्रमाण है कि चांद को सब चाहते हैं। इन सभी नामों के पीछे मनुष्य की गहन अन्वेषण क्षमता, कल्पनाशक्ति और जिज्ञासावृत्ति का पता चलता है। प्राचीनकाल से मानव चांद को शौक से निहारता रहा है। पूर्णचंद्र में नज़र आते धब्बों में उसने विभिन्न आकृतियां खोजी। यह शग़ल बादलों में बनती बिगड़ती आकृतियां तलाशने जैसा ही था। चांद के धब्बों को कलंक भी कहा जाता है । ऐसा इसलिए क्योंकि इतने दीप्तिमान, स्निग्ध आभा वाले ज्योति पुंज में ये धब्बे मनीषियों को अशोभनीय प्रतीत हुए सो उन्होंने इन्हें कलंक कहा । मगर कल्पनाशील लोगों को ये धब्बे कभी बैठे हुए खरगोश की तरह नज़र आए तो कभी हिरण की तरह।
संस्कृत में खरगोश को शशः कहते हैं। शशांक शब्द बना है शशः+अंक से अर्थात जिसकी गोद में खरगोश बैठा हो। शशधर का अर्थ भी यही हुआ। कालांतर में शशः का अर्थ ही चन्द्रमा का कलंक हो गया और चांद का एक नया नाम हो गया शशि। चांद में शीतलता का भाव भी समाया हुआ है इसलिए इसके अनेक नामों का एक अर्थ कपूर भी होता है जो शुभ्र तो होता ही है साथ ही जिसकी तासीर भी ठंडी होती है। सफेद होने की वजह से चांद का एक नाम शुभ्रांशु भी है। शुभ्र अर्थात सफेद और अंशु यानी किरणे, ज्योति। इसी तरह शीतांशु शब्द का अर्थ भी स्पष्ट है। शशि से जुड़े भी अन्य कई नाम हैं जैसे शशिप्रभा, शशिकला आदि। पुराणों में शिव के माथे पर चांद की स्थिति बताई गई है इसलिए शिव के कुछ विशेषण भी शशि से जुड़े हैं जैसे शशिधर,शशिन , शशिशेखर या शशिभूषण आदि।
जिन लोगों को चन्द्रमा की गोद में हिरण नज़र आया उन्होंने इसे मृगांक नाम दिया। संस्कृत में इसका एक नाम एणांक भी है। एणः यानी एक किस्म का बारहसिंघा अर्थात हिरण की प्रजाति। चांद को अज भी कहा जाता है अर्थात जो अजन्मा है, सनातन है। वैसे अज यानी अजन्मा में सर्वशक्तिमान ईश्वर का भाव निहित है अर्थात जो सर्वव्यापी है यानी परमात्मा। ब्रह्मा , विष्णु, महेश के लिए भी यह शब्द प्रयुक्त होता है।
भारत में पुरुषों के लिए प्रचलित नामों में राकेश का भी शुमार होता है। राकेश यानी चन्द्रमा। यह बना है राका+ईश से। संस्कृत में राका कहते हैं पूनम की रात को। इस तरह राकेश का अर्थ हुआ पूर्णिमा का स्वामी। राकेश नाम में चांद की रुमानियत भी तलाशी जा सकती है। प्राचीनकाल से ही पूर्णचंद्र मिलनयामिनी , मधुयामिनी जिसे हनीमून भी कहते हैं का पर्याय रहा है। पूर्णिमा मिलन की पर्याय है क्योंकि यह उस रात चांद पूरी सज-धज के साथ उससे मिलने आता है। राका यानी पूनो की रात बना है रा+क से । संस्कृत की रा धातु में समर्पण का , प्रदान करने का भाव है और कः में कमनीयता का , काम भावना का। इस तरह राका से बने राकेश में रुमानियत स्पष्ट हो रही है।
इस कड़ी से जुड़े कुछ और शब्द अगली कड़ी में ...
11 कमेंट्स:
एणांक -- पहली बार सुना ...
बेहद रोचक रहा चाँद का सफर !!
" चाँद छिपा बादल में " गीत याद आ रहा है :)
चांद हमेशा ही रात तो चमकता है और रूमानियत की दुनिया का तो वह शहंशाह है ही।
चन्द्रमा के अनेक नाम हैं। इन्सान की एक सामान्य सी फितरत है कि वह जिससे सबसे ज्यादा प्यार करता है , उसे कई नामों से बुलाता है क्योंकि उसे वह अपने जीवन के प्रायः सभी आयामों में खुद से जुड़ा महसूस करना चाहता है।
अजित जी,
हम आपको किन-किन नामों से पुकारें
आप ही बताइए न !
===============
आभार
डॉ.चन्द्रकुमार जैन
सुन्दर । बिलकुल चांद और चांदनी की तरह ।
'राका कहते हैं पूनम की रात को' और राका का मतलब तो हम डाकू, मवाली ही समझे बैठे थे. :-)
बहुत बार सोचा आज आपका ब्लॉग पढ़ूँ लेकिन फ़िर आराम से पढ़ूँगी जिस से समय दे सकूँ सोच कर छोड़ देती थी...लेकिन अब ऐसी गलती नही करूँगी....सच ज्ञान का समृद्ध कोना है ये ..लावाण्या दी की तरह एणांक मैंने भी पहली बार सुना
अरे पण्डित जी, मेरा तो गोत्र ही चान्द्रात है - अत्रि के पुत्र चन्द्र के नाम पर!
शब्दों का सफर नाम के अनुरुप ही काबिलेतारिफ़ है,चांद का ये सफ़र भी रोचक और सारगर्भित लगा/
बहुत आनंददायक -अज बकरे को भी कहते हैं :-)
bahut hi badhiya jankari hai
rakesh_2008khare@yahoo.in
Post a Comment