चंद्रमा का एक नाम सोम भी है । इसी के नाम से सप्ताह के शुरुआती दिन को सोमवार भी कहा जाता है। अंग्रेजी में भी इसे मंडे moon यानी चंद्र की
सोम की व्युत्पत्ति सू धातु से हुई है जिसमें जीवन,प्राण, जन्म देने या उत्पन्न करने का भाव है। सू में माता का भाव भी है क्योंकि वह जननि है। सोम को स्थल संजीवनी भी कहा गया है अर्थात यह सब वनस्पतियों का मूल है। सोम नाम की अनेक ओषधियां है जिनके जीवनधारक परमौषधीय गुण देवताओं को ज्ञात थे। सोमवल्ली का उल्लेख भी मिलता है। सोम के ओषधीय गुणों की वजह से ही सोमरस का अस्तित्व भी सामने आया जिसके बारे में विद्वान आज भी एकमत नहीं हैं। मगर इतना तय है कि सोमरस में निश्चित ही स्वास्थ्यवर्धक गुण रहे होंगे।
सोम का तीसरा रूप दैवत् है और चन्द्रमा के रूप में है। चन्द्रमा की शीतलता के साथ आर्द्रता और जलतत्व का रिश्ता स्पष्ट है। इसीलिए चन्द्रमा को भी सोम की तरह अमृत बरसानेवाला कहा जाता है। ओषधीय वनस्पति के रूप में सोम हमेशा से एक पहेली रहा है। यूं सोमतत्व के आर्द्र और जल रूप पर गौर करें तो साफ है कि पृथ्वी पर सभी प्रकार का स्पंदन, चाहे वानस्पतिक हो या जैविक–जल से ही हुआ है। इसीलिए जल ही सोम है। जल ही ऊर्जा है। चन्द्रमा को इसीलिए जैवातृक भी कहा जाता है जिसका मतलब होता है दीर्घायु। इसके अन्य अर्थों में कपूर, दवा आदि भी हैं। ऐसा माना जाता है कि पृथ्वी पर समस्त वनस्पतियां चन्द्रमा से ऊर्जा ग्रहण करती हैं। इसीलिए चन्द्रमा का एक नाम औषधीश भी है अर्थात सभी औषधियों का स्वामी। आज भी भारत में आयुर्वैदिक पद्धति से उपचार करने वाले वैद्य पूर्ण चन्द्र के समक्ष, खासतौर पर शरद पूर्णिमा की रात को सरोवर किनारे या जल के भीतर खड़ा कर रोगी को ओषधीपान कराते हैं। ऐसा करने से सोम अर्थात चन्द्रमा का औषधीय प्रभाव और जल का जीवनदायी प्रभाव महत्वपूर्ण हो जाता है।
सुशील और भद्र स्वभाव के संदर्भ में हिन्दी का सौम्य शब्द शांत, स्निग्ध, मृदु और सुंदर के अर्थ में प्रयुक्त होता है जो सोम से ही बना है जिसका मतलब होता है सोम संबंधी। सोम में व्याप्त बल,ऊर्जा,शीतलता,चिकनाई अर्थात मृदुलता सभी सौम्य शब्द में परिलक्षित हो रहे हैं। यही चंद्र का स्वभाव है। चन्द्रमा का उग्र रूप किसी ने नहीं देखा होगा। चन्द्रमा स्वयं सोम है इसीलिए चन्द्रमा की तरह जो है वह सौम्य है, सुंदर है। प्राचीनकाल में ब्राह्मणों के लिए भी सौम्य संबोधन या उपाधि का प्रयोग किया जाता था । उपरोक्त सभी लक्षण उनके व्यक्तित्व के लिए आवश्यक होते थे क्योंकि समाज में उनकी गुरुतर भूमिका थी। चन्द्र को शिखर पर धारण करने की वजह से शिव का एक नाम सोमनाथ भी है जो अक्सर सौम्य रहते हैं। मगर उनका एक नाम रुद्र भी है जिसकी वजह से उनका रौद्र रूप भी है जो चन्द्रमा की सौम्यता के विपरीत है। जारी
11 कमेंट्स:
Hindee baksaa to काम नही कर रहा है ठीक से -बहुत achchee jaankaaree दी है आपने som पर !
बडी ही 'सौम्य' पोस्ट है ।
सोम पर बहुत जानकारी, लेकिन रौद्र के साथ समापन?
बहुत सार्थक...ज्ञान वर्धक...रोचक !
आपकी सौम्य प्रस्तुति
मस्तिष्क के लिए
औषधि के समान है....लेकिन
चंद्र का औषधीश होना !!!
आपके द्वारा प्रदत्त अद्भुत जानकारी है.
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आभार अजित जी.
डॉ.चन्द्रकुमार जैन
शिव तो अद्भुत हैं! उनमें सोम/अमृत भी है और गरल भी!
१२ घंटे से लगातार न्यूज़ देखने के बाद आज कुछ कहने की इच्छा नहीं. ब्लॉग खोल के बैठा यहाँ भी मन नहीं लग रहा.
अजितजी, बहुत दिनों बाद पोस्ट पढ़ी है लेकिन सच कहूं तो यह पढ़कर मन शीतल हो गया है। क्या इस ब्लॉग के जरिये आपकी गुरुतर भूमिका के लिए आपके लिए सौम्य शब्द का इस्तेमाल नहीं किया जा सकता? आप सौम्य हैं। आपके ब्लॉग में सौम्यता है। और सोम रस भी। जब भाषा को लगातार नष्ट-भ्रष्ट किया जा रहा हो तब आपकी इस औषधीय सौम्यता से कुछ तो स्वास्थ्य सौम्य होगा।
shayad apani Raudrata ko hi kuchh kam karne ke liye..som ka dharan kiya hoga
मेरे लिए बिलकुल नई जानकारी।धन्यवाद
यह बढ़िया जुगाड़ है और काम भी कर रहा है... हमें भी बता दीजिये काम आएगा.
जुगाड़ यानि हिंदी बक्से के बारे में कह रहा हूं..
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