Saturday, November 8, 2008

पल्लवी त्रिवेदी का पिटारा...[बकलमखुद-75]

Pallavi_Trivedi

ब्लाग दुनिया में एक खास बात पर मैने  गौर किया है। ज्यादातर  ब्लागरों ने अपने प्रोफाइल  पेज पर खुद के बारे में बहुत संक्षिप्त सी जानकारी दे रखी है। इसे देखते हुए मैं सफर पर एक पहल कर रहा हूं। शब्दों के सफर के हम जितने भी नियमित सहयात्री हैं, आइये , जानते हैं कुछ अलग सा एक दूसरे के बारे में। अब तक इस श्रंखला में आप अनिताकुमार, विमल वर्मा , लावण्या शाह, काकेश ,मीनाक्षी धन्वन्तरि ,शिवकुमार मिश्र , अफ़लातून ,बेजी, अरुण अरोरा , हर्षवर्धन त्रिपाठी , प्रभाकर पाण्डेय अभिषेक ओझा और रंजना भाटिया को पढ़ चुके हैं।   बकलमखुद के चौदहवें पड़ाव और तिहहत्तरवें सोपान पर मिलते हैं पेशे से पुलिस अधिकारी और स्वभाव से कवि पल्लवी त्रिवेदी से जो ब्लागजगत की जानी-पहचानी शख्सियत हैं। उनका चिट्ठा है कुछ एहसास जो उनके बहुत कुछ होने का एहसास कराता है। आइये जानते हैं पल्लवी जी की कुछ अनकही-

ये कथा शुरू होती हैं 8 सितम्बर 1974 को ग्वालियर के त्रिवेदी नर्सिंग होम से ..जहां पहली बार आँखें खोलकर इस दुनिया को देखा! घर की सबसे बड़ी बेटी ! पापा की पोस्टिंग उन दिनों ग्वालियर में ही थी! तब पापा सेल्स टैक्स इंस्पेक्टर थे! मेरे एक साल बाद गड्डू आई ,,चार साल बाद मिन्नी और आठ साल बाद सिन्नी और हमारा परिवार पूरा हो गया! मैं उन भाग्यशाली लोगों में से हैं जिन्होंने एक बहुत ही शानदार बचपन जिया और ताउम्र जीते रहे! बचपन से ही खाने पीने की शौकीन रही! मम्मी बताती हैं जब एक साल की थी तो मम्मी बिस्तर के पास किशमिश भरी कटोरी रख दिया करती थीं! रात को जब भी मैं उठती थी तो रोने गाने के बजाय सीधे किशमिश पर निशाना साधती और खा पीकर वापस बिस्तर पर! यही अस्त्र मम्मी ने गड्डू पर चलाया और उसके बिस्तर के पास नमकीन की कटोरी रख दी जाती थी! मम्मी को कभी हम लोगों के लिए रात खराब नहीं करनी पड़ी!सचमुच चटोरे बच्चों का कितना फायदा है!
हंगामा है क्यों बरपा...
किताबों का और ग़ज़लों का शौक पापा ने बचपन से ही डाल दिया था! दो साल की उम्र में मैं " हंगामा है क्यों बरपा गाती थी!
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 प्राइमरी स्कूल और गैंग !!!
पांचवी क्लास तक मैं मुरैना में पढ़ी....जैसा की कहते हैं चम्बल के पानी में कुछ ख़ास है! मुझे अभी तक याद है उस प्राइमरी स्कूल में आपस में कई गुट थे और मौका पाते ही विरोधी गुट के किसी बच्चे को अकेला देखकर उस पर घेरा डाल दिया जाता था जिसमे उस बेचारे बच्चे को सब लोग घेर कर खूब मारते , लेकिन घर पर कोई शिकायत नहीं करता था! हमारे साथ भी कई बार ऐसा हुआ!तब ये सब कुछ सामान्य लगता था लेकिन जब दूसरे शहरों में गए तब लगा की ये तो शुद्ध गुंडई थी! किताबों का और ग़ज़लों का शौक पापा ने बचपन से ही डाल दिया था! दो साल की उम्र में मैं " हंगामा है क्यों बरपा " गाती थी! और चम्पक,नंदन,लोटपोट, फैंटम और राजन इकबाल को खूब पढ़ा! उस वक्त एक बड़ी सुविधा ये थी की एक चलता फिरता वाचनालय घर पर ही आता था और किताबें बदल कर दूसरी दे जाता था! किताब लौटाते समय रजिस्टर पर साइन करना पड़ता था!हमने मम्मी को कभी साइन नहीं करने दिए! साइन करने का भारी शौक....नाम न लिखकर रोज रजिस्टर पर घचर पचर स्टाइल में साइन करते थे! अगले दिन वो साइन याद नहीं रहता था...तो रजिस्टर के हर पन्ने पर रोज एक नया साइन होता था!उस चलते फिरते वाचनालय को तो आज भी मिस करती हूँ...ये एक अच्छी चीज़ थी जो अब तो ख़तम ही हो गयी है!
पहली पहली चोरी ...और कन्फेशन!
न्ही दिनों अपने जीवन की प्रथम चोरी की! मम्मी पापा दोनों बहुत सख्त थे! कभी जेबखर्च के पैसे नहीं दिए....उनका कहना था जो चाहिए हमसे मांगो लेकिन स्कूल ले जाने को पैसे नहीं मिलेंगे!लेकिन हमारी सखी सहेलियां रोज़ पैसे लेकर आतीं और स्कूल में लंच टाइम में ठेले से चाट ,समोसा,टिकिया लेकर खातीं और हमें भी खिलातीं! बड़ी शर्म आने लगी फोकट का खा खाकर! एक दिन मौका देखकर पापा की जेब से पैसे निकाल लिए! रकम थी एक रुपये सत्तर पैसे! रात में पैसे चुपचाप अपने बस्ते में रख लिए! लेकिन हाय रे फूटी किस्मत...उसी रात मेरे मामा ने पेन्सिल लेने के लिए मेरा बस्ता खोला और पैसे देख लिए! उस वक्त तो कुछ नहीं बोले ! हमने शान से अगले दिन अपनी सहेलियों को ठेले पर शानदार पार्टी दी! क्या ज़माना था...टिकिया,चाट,बंबई की मिठाई,गटागट...सबकुछ आ गया इतने पैसों में! पर शाम तक खबर पापा के पास पहुँच गयी थी....उनके पूछने पर हमने झूठ का सहारा लिए,साफ़ मुकर गए!जब पापा की डांट भी हमारा मुंह नहीं कहलवा सकी तब मोर्चा संभाला मेरे कजिन संजू दादा ने जो मुझसे तीन साल बड़े थे! चुपचाप मुझे एक कोने में ले गए और बड़े प्यार से पूछा " तूने क्या क्या खाया....मैं तो पैसे निकालता हूँ तो समोसे ,कचौडी खाता हूँ?" अपन खुश ...कोई तो अपने टाइप का मिला! बड़े उत्साह से सारा मेनू बता दिया!ये कन्फेशन मंहगा पड़ गया पीछे से मम्मी पापा सबने सुना और फिर पिटाई सेशन चला! बेचारी भोली मैं....संजू दादा को उस धोखे के लिए मैंने कभी माफ़ नहीं किया!
दादा-दादी का साथ और शरारतों का आग़ाज़ ....

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बड़की और गुड्डू

म लोग पापा की पोस्टिंग की वजह से मुरैना में रहा करते थे! लेकिन दादा दादी शिवपुरी में रहते थे! उन दिनों आई.टी.बी.पी. स्कूल शिवपुरी का बहुत प्रतिष्ठित स्कूल माना जाता था!पापा की इच्छा थी की मैं उस स्कूल में पढूं! इसलिए मुझे दादा दादी के पास भेज दिया गया! स्कूल में एडमिशन हुआ!इसके पूर्व मैं जिस स्कूल में थी उसमे हमारे जैसे मिडिल क्लास फैमिली के बच्चे पढ़ते थे!लेकिन यहाँ धनी परिवारों के बच्चे ज्यादा थे! उन लोगों ने मुझे अपने ग्रुप में स्वीकार नहीं किया! स्कूल में मन न लगने की वजह से मैं स्कूल जाने में नाटक करने लगी!दादी को सुबह ६ बजे उठाने में पसीना आ जाता!ऊंघते हुए ब्रश करना, रुआंसे होकर बस स्टाप तक जाना और पूरे रास्ते मम्मी पापा को याद करना , इतना अकेलापन कभी महसूस नहीं हुआ था! एक बार जानबूझ कर लेट हो गयी ताकि बस छूट जाये और स्कूल न जाना पड़े लेकिन दादाजी भी उसूलों के पक्के! मुझे पैदल ही स्कूल छोड़ने गए! स्कूल दस किलोमीटर दूर था! जब स्कूल पहुंचे तो एक पीरियड निकल चुका था! और दादाजी के सामने ही टीचर ने डांटकर क्लास के बाहर खडा कर दिया! अपमान के कारण बुरी तरह रोना आ गया, आते जाते बच्चे चिढा रहे थे सो अलग! मैंने चिडचिडी होकर दादी को परेशान करना शुरू कर दिया....कभी पलंग के नीचे छुप जाती और घंटों नहीं निकलती! दादी परेशान होकर ढूँढतीं!कभी दादी चाचा के लिए जो दाल बनाकर रखतीं उसे मैं चुपचाप जाकर फेंक देती! ताकि मुझसे परेशान होकर वापस भेज दिया जाए! शायद वो दिन दादी के लिए सबसे कष्टकर रहे होंगे!लेकिन मुझे याद नहीं पड़ता की उन्होंने एक बार भी मुझे मारा हो या गुस्सा किया हो! उन्होंने तो मुझे वापस नहीं भेजा पर तीन महीने बाद जब मैं दीवाली पर घर गयी तो फिर कभी वापस नहीं आई!मुझे वापस अपना घर ,अपना पुराना स्कूल मिल गया था!फिर मम्मी पापा ने हम में से किसी को अपने से अलग नहीं रखा! प्राइमरी स्कूल मुरैना से करने के बाद हम लोग शिवपुरी चले गए ...जहां सरस्वती शिशु मंदिर में दाखिला हुआ! जहां शैतानियों के नए इतिहास रचे गए... जारी

32 कमेंट्स:

जितेन्द़ भगत said...

अरे वाह, पूरी शैतान बच्‍ची थीं आप। मजेदार कथा चल रही है, जारी रखि‍ए।

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` said...

अरे वाह पल्लवी जी
आपका बचपन मानोँ हम भी साथ जी रहे होँ
इतना सजीव लिखा है :)

आगे की कडीयोँ का इँतज़ार रहेगा -

अजित भाई शुक्रिया इस प्रस्तुति के लिये
बहुत स्नेह,
- लावण्या

Abhishek Ojha said...

बड़ा लाजवाब शैतानियों से भरा पिटारा है :-)

VIMAL VERMA said...

क्या बात है! बचपन की इतनी सारी बातें और बहुत बेबाक तरीक़े से आपने ज़ाहिर किया है,ज़ारी है पढ़कर अच्छा लगा..मज़ा आ रहा है अब सुनाते रहिये....

मीनाक्षी said...

पल्लवी के बचपन को पढकर अपना बचपन लौट आया...खासकर चोरी की घटना ... :) आप दादा दादी के पास गई..हम नाना नानी के पास गए थे... आगे जानने की उत्सुकता जगा दी.... :)

समीर यादव said...

हमारी सीनियर ऑफिसर...पल्लवी त्रिवेदी जी को एक ब्लोगर के रूप में पढ़कर जानने की सबकी उत्सुकता बढ़ गई है....जिसे अजीत जी के द्वारा एक अभिनव प्रयास से साकार किया जा रहा है. शुक्रिया आप दोनों को.

सुनील मंथन शर्मा said...

शैतानी के बाद के किस्से जल्दी पढाइए.

Udan Tashtari said...

वाह जी!! पल्लवी जी के बारे में पढ़कर आनन्द आ गया. खुले आम गुंडई और फिर बता भी रहे हैं. ऐसा जज्बा कम ही देखने को मिलता है. गटागट बहुत दिनों बाद याद आई पढ़कर.

बहुत रोचक है-रोचकता बनी रहे-शुभकामनाऐं.

Vivek Gupta said...

लाजवाब, रोचक चित्रण बचपन का |

रंजू भाटिया said...

रोचक ,शैतानी से भरा हुआ बचपन है ..बढ़िया आगे के इन्तजार

ताऊ रामपुरिया said...

बहुत लाजवाब ! आगे का बेसब्री से इन्तजार है .... !

Dr. Chandra Kumar Jain said...

पल्लवी त्रिवेदी की लेखनी में
मैंने हमेशा एक संवेदनशील और
परिवर्तन की पक्षधर पुकार सुनी है अब तक.
......और अब ये सिलसिला बकलम ख़ुद का,,,,
अच्छा लग रहा है कहानी के बाल पन का यह भोलापन.
आगे उनकी कामयाबी के राज़ भी खुलेंगे....यकीन है.
=========================================
शुक्रिया अजित जी आपका.
बधाई पल्लवी जी आपको.

डॉ.चन्द्रकुमार जैन

सतीश पंचम said...

बेहद रोचक पोस्ट और पल्लवीजी के बचपन के बारे मे जान, अपना बचपना याद आ गया। जारी रखें।

विष्णु बैरागी said...

पल्‍लवी के बारे में पहली ही बार जानकारी मिली । संस्‍मरण यद्यपि अनूठे नहीं हैं तदपि रोचक और आनन्‍ददायी तो हैं ही । फिर, कोई पुलिस अधिकारी डण्‍डे के स्‍थान पर कलम से निशाने साधे तो अनूठापन तो अपने आप आ ही जाता है । आशा करें कि कुछ अनूठे और गोपन 'पुलिसिया' अनुभव भी पढने को मिलेंगे ।
आपने पल्‍लवी से परिचय कराया है । धन्‍यवाद । उनकी पोस्‍टें पढने की कोशिश करूंगा ।
उनके ब्‍लाग को अपने ब्‍लाग के ब्‍लाग रोल में तो तत्‍काल ही सम्मिलित कर रहा हूं ।

Manish Kumar said...

बढ़िया रहा बचपन का ये विवरण

Gyan Dutt Pandey said...

उत्कृष्ट। और अब अपने बारे में ठीक ठाक लिख पाना और कठिन हो गया है। इत्ता बढ़िया कहां लिख पायेंगे! :-)

अनूप शुक्ल said...

रोचक संस्मरण। आगे की कड़ियों का इंतजार है!

डॉ .अनुराग said...

बचपन से चटोरी ...किशमिश की शौकीन .अपनी बूढी दादी को नादानी में परेशां करने वाली लड़की अब बड़ी हो गयी है पर कही न कही उसका बचपन किसी कैमरे के जरिये ...दिख जाता है.....मै बारिश में भीगते बच्चो वाली पोस्ट की बात कर रहा हूँ पल्लवी !

Sanjeet Tripathi said...

इंट्रेस्टिंग! पढ़ रहा हूं।

राजीव थेपड़ा ( भूतनाथ ) said...

कौन कहाँ से,कैसे,कब..किस वजह से आ जाता है....पता नहीं.... मगर कब...कैसे....क्यों...हम उससे अपने विचार baant लेते हैं...किसी के विचार हमें भा जाते हैं....और किसी को हमारे..... pallavi जी आप to इसी तरह hamaare sammukh prakat हुए.... आपके bachpan का सफर देखा..acchha लगा....rachnaayen to खैर.....acchhi न लगती to वक्त khota करता .....??

पारुल "पुखराज" said...

bahut badhiyaa vivran...pallavi aapki posts hameshaa imaandaar ...

Batangad said...

अरे वाह, ये सफर तो बेहद रोचक है।

siddheshwar singh said...

यादों का सफर..
बहुत बढ़िया

दीपक said...

पल्लवी जी आपके संस्मरण अच्छे लगे !!आगे की कडी का इंतजार रहेगा

सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी said...

आपने अपने बचपन की बातें जिस साफगोई से बयान की हैं उससे आपके मन की सच्चाई झलकती है। ईश्वर आपको ऐसा ही सच्चा इन्सान बनाये रखे। आगे की कड़ियों का इन्तजार है।

रंजना said...

वाह ! आनंद आ गया पढ़कर....चलिए हमने भी आपके साथ आपके बचपन की गलियों में भ्रमण कर लिया.......

अजीत भाई को इस पुनीत कार्य के लिए धन्यवाद.

प्रवीण त्रिवेदी said...

मजेदार!
बचपन की प्रस्तुति !!!!
अपना बचपना याद आ गया !!!!!!!!!

कुश said...

सबसे पहले तो अजीत जी को बधाई.. इस चंचल प्यारी मासूम सी लड़की से परिचय करवाने के लिए...

रही बात पल्लवी जी की तो उन्होने अपना एक खास स्टाइल यहा भी बरकरार रखा है.. एक उम्दा जीवनशैली की धनी के जीवन के बारे में जानकार गुदगुदी हो रही है.. अगली कड़ी का बेसब्री से इंतेज़ार है...

Shiv said...

बहुत बढ़िया लगा. पल्लवी जी के लेखन से तो उन्हें जानते ही थे, अब उनके बारे में विस्तृत जानकारी मिलेगी. उनकी जीवनी बहुत से लोगों के लिए प्रेरणा बनेगी. अगली कड़ी का इंतजार रहेगा.

अजित भाई को धन्यवाद अच्छे लोगों से मिलवाने का.

कंचन सिंह चौहान said...

अरे ८ नवं० से ये सिरीज़ चल रही है और मुझे पता ही नही चला...! जबकि पल्लवी जी के बारे में जानने की काफी उत्सुकता थी.....! चली ये शुक्र है बचपने की ऊर्जा सकरात्मक ओर गई, अन्यथा दस्युसु्दरी बनने के पूरे आसार थे। :)

Anonymous said...

जब कलम सीधे मन से बात करें तब ही ऐसी झांकी सामने आती है।
कभी भी इनके बीच दिमाग़ को न आने देना

vaitarni said...

you are a good writer.

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