हिन्दी में कमरे के लिए कक्ष प्रचलित शब्द है। खास बात यह कि आश्रय के संदर्भ में कक्ष में आंतरिक या भीतरी होने का भाव भी विद्यमान है। कक्ष के कई अर्थ हैं जो रहने का स्थान या घिरा हुआ क्षेत्र के अर्थ मे ही हैं जैसे बाड़ा, रनिवास, अंतःपुर, जंगल का भीतरी हिस्सा, आंगन आदि। भीतरी के अर्थ में अंतःवस्त्र को भी कक्ष ही कहते हैं। मोटे तौर पर कक्ष किसी भवन के भीतरी कमरे को ही कहा जाता है। संभवतः अंडरवियर के लिए कच्छी या कच्छा इसी कक्ष से बना है। कक्ष का अर्थविस्तार कक्षा में नजर आता है। हिन्दी में कक्षा का सबसे लोकप्रिय अर्थ क्लासरूम ही है। कक्षा का जन्म हुआ है कष् धातु से जिसमें कुरेदने, घिसने, खुरचने, मसलने आदि का भाव है। ये सभी क्रियाएं गुफा, कंदरा या कोटर के निर्माण से जुड़ी है जिनसे प्राचीनकाल के कक्ष का बोध होता है। कक्षा का अर्थ ग्रहों का भ्रमण-मार्ग भी होता है। परिधि या दायरा भी कक्षा ही है। कंधे के भीतरी हिस्से को बगल या कांख भी कहते हैं। कांख का जन्म भी कक्षा से ही हुआ है। यहां आंतरिक वाला भाव प्रमुख है। तलवार की म्यान को भी कक्षा ही कहा जाता है। फारसी में भी म्यान के लिए खोद शब्द है जिसमें भी आश्रय और आंतरिकता का ही भाव है। इसी तरह समुद्री खाड़ी को भी कक्षा कहा गया है क्योंकि खाड़ी समुद्र का वह हिस्सा होता है जो मुख्यभूमि के भीतर तक चला आता है। खाड़ी में ही समुद्र भी विश्राम करता है और जलयान आश्रय पाते हैं।
गुफा , कंदरा के लिए संस्कृत में एक अन्य समानार्थी शब्द है कुक्षी। मध्यप्रदेश के मालवा में इस नाम का एक शहर भी है। कुक्षी भी उसी कुष् धातु से बना है जिससे कोष्ठ शब्द बना है। संस्कृत के कोष्ठ का अर्थ भी कक्ष, कमरा या घिरा हुआ स्थान ही होता है। आंतरिक वाला भाव यहां भी प्रबल है। कुष् से बने कुक्ष का अर्थ होता है पेट। कुक्षी इसका अर्थविस्तार हुआ । गर्भाशय के अर्थ में हिन्दी में सर्वाधिक प्रचलित शब्द है कोख जिसके जन्मसूत्र भी कुक्षी में ही छुपे हैं। क्रम कुछ यूं रहा - कुक्षी > कुक्ख > कोक्ख > कोख। कक्ष के रूप में मानव ने अपने आश्रय की तलाश की । फिर उसके लिए कई शब्द बनाए और अंत में जननि के जिस गर्भ में भ्रूण का विकसन-पल्लवन-संरक्षण होता है उसे भी कक्ष कहकर आश्रय को सर्वोच्च महत्व दे दिया ।
... उथली खदानों में प्रायः श्रमिक रहते भी हैं और जिन खदानों में खुदाई बंद कर दी जाती है उन्हें भी ज़रूरतमंद अस्थाई आवास के तौर पर इस्तेमाल करते हैं।...
क वर्णक्रम का अगला शब्द है ख। इसमें भी कुछ शब्द है जिनमें निवास, स्थान, आश्रय का भाव है। संस्कृत धातु खन् का अर्थ होता है खोदना,खुदाई करना,खुरचना या खोखला करना। खन् में भी गुफा, कंदरा या बिल का भाव है यानी यहां भी निवास है। खदान के लिए हिन्दी में खान शब्द भी है। गौरतलब है कि उथली खदानों में प्रायः श्रमिक रहते भी हैं और जिन खदानों में खुदाई बंद कर दी जाती है उन्हें भी ज़रूरतमंद अस्थाई आवास के तौर पर इस्तेमाल करते हैं। धातुओं को आमतौर पर खनिज कहा जाता है अर्थात खनन से जन्मी हुईं। खुदाई करने वाले श्रमिक के लिए खनिक शब्द इसी कड़ी का हिस्सा है। इसी खन् का असर बजरिये अवेस्ता ईरानी में भी आया जहां भवन खासतौर पर सराय के अर्थ में खान या खाना शब्द है जैसे मुसाफिरखाना। मूलतः यह फौजी व्यापारिक कारवां के लोगों की विश्रामस्थली के लिए प्रयोग में आनेवाला शब्द था। बाद में अन्य शब्दों के साथ भी इसे लगाया जाने लगा जैसे बजाजखाना यानी वस्त्र भंडार, नौबतखाना यानी जहां वाद्ययंत्र बजाए जाते हैं, ज़नानखाना यानी अंतःपुर वगैरह वगैरह। खन् धातु का रिश्ता संस्कृत के खण्ड् से भी जुड़ता है जिसका मतलब है टुकड़े करना , तोड़ना, काटना, नष्ट करना आदि। यानी वही पर्वतों-पहाड़ों में आश्रय निर्माण की क्रियाएं। खण्ड् से बना खण्डः जिसका अर्थ होता है किसी भवन का हिस्सा, कमरा, अंश, अनुभाग, अध्याय आदि। किसी आलमारी या दीवार में बने आलों को भी खन या खाना कहा जाता है । मूलतः ये शब्द भी खण्डः से बने हैं और हिन्दी ,उर्दू , फ़ारसी में समान रूप से इस्तेमाल किये जाते हैं।अगले पड़ाव पर इसी कड़ी के कुछ और शब्दों की चर्चा
10 कमेंट्स:
कक्षा से कच्छा?
हाजमोला की जरूरत महसूस हो रही है! :-)
आपकी कक्षाओं में ्बैठने का अपना ही आन्नद है, बस लगाते रहें।
आज का पाठ भी बहुत दमदार है। मास्टर जी शानदार जो हैं।
बहुत बढिया जानकारी है ! ज्ञानवर्धन भी हो रहा है ! हमने भी आपकी कक्षा में पक्का एडमिशन लेलिया है !:)
रामराम !
कक्षा का स्वाद कषैला सा लग रहा है ज्ञान जी को हाजमौला पर लेख चाहिए .
बढिया खोदा है आपने.
खण्ड् = जिसका मतलब है टुकड़े करना
हल्दी कुमकुम में,
अक्सर " खण्द " दिए जाते हैं ना ?
ये भी रोचक रहा अजित भाई
स स्नेह,
- लावण्या
कक्षा,कोख,मुसाफिरखाना
इनके संबंधों को जाना
कितने मोड़ सफर में आए
लगा रहेगा आना-जाना.
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डॉ.चन्द्रकुमार जैन
समधीयाने में एक मृत्यु प्रसंग के सन्दर्भ में अभी-अभी बडवानी जाना पडा । रास्ते में 'कुक्षी' कस्बा आया तो आपकी यह पोस्ट याद हो आई थी । 'समधीयाने का सफर' मानो 'शब्दों का सफर' बन गया ।
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