Monday, December 1, 2008

चांद की कुल परंपरा [चन्द्रमा-7]



पृथ्वी पर सचमुच अगर अमृत है तो वह जल ही है।
वैसे सुधा को देवताओं का पेय कहा गया है
जो अमृत ही होता है।
न्द्रमा से मनुश्य इस क़दर प्रभावित रहा है कि जीवन के हर पहलू में चांद को उसने खुद से जोड़ कर रखा। मनुश्य ने विभिन्न लक्षणों के आधार पर चांद के बहुत सारे वैकल्पिक नाम तो रखे ही, साथ ही विशिष्ट कुल-परंपरा से भी चांद का रिश्ता जोड़ा।

ब्राह्मणों-क्षत्रियों के कई गोत्र होते हैं उनमें चंद्र से जुड़े कुछ गोत्रनाम हैं जैसे चंद्रवंशी। पौराणिक संदर्भों के अनुसार चंद्रमा को तपस्वी अत्रि और अनुसूया की संतान बताया गया है जिसका नाम सोम है। दक्ष प्रजापति की सत्ताईस पुत्रियां थीं जिनके नाम पर सत्ताईस नक्षत्रों के नाम पड़े हैं। ये सब चन्द्रमा को ब्याही गईं। चन्द्रमा का इनमें से रोहिणी के प्रति विशेष अनुराग था। चन्द्रमा के इस व्यवहार अन्य पत्नियां दुखी हुईं तो दक्ष ने उसे शाप दिया कि वह क्षयग्रस्त हो जाए जिसकी वजह से पृथ्वी की वनस्पतियां भी क्षीण हो गईं। विष्णु के बीच में पड़ने पर समुद्रमंथन से चन्द्रमा का उद्धार हुआ और क्षय की अवधि पाक्षिक हो गई। एक अन्य कथा के अनुसार चन्द्रमा ने वृहस्पति की पत्नी तारा का अपहरण किया था जिससे उसे बुध नाम का पुत्र उत्पन्न हुआ जो बाद में क्षत्रियों के चंद्रवंश का प्रवर्तक हुआ। इस वंश के राजा खुद को चंद्रवंशी कहते थे।

सी तरह चंद्र से जुड़ा एक अन्य नाम सोमवंशी भी है। चंद्रवंश के प्रथम राजा का नाम भी सोम माना जाता है जिसका प्रयाग पर शासन था। ब्राह्मणों में एक उपनाम होता है आत्रेय अर्थात अत्रि से संबंधित या अत्रि की संतान। चूंकि चंद्र अत्रि ऋषि की संतान थे इसलिए आत्रेय भी चंद्रवंशी ही हुए। चंद्रवंशियों का एक अन्य उपनाम अत्रिज भी होता है जिसका अर्थ हुआ अत्रि से जन्मा यानी चंद्र। एक अन्य गोत्र होता है चांद्रात अर्थात चंद्र से संबंधित। अत्रि को ब्रह्मा के नेत्रों से उत्पन्न बताया गया है। इसी तरह अत्रिपुत्र सोम या चन्द्रमा को भी अत्रि के नेत्रों से जन्मा बताया गया है इसलिए उसे अत्रिनेत्रज भी कहा जाता है।

... चंद्रवंश के प्रथम राजा का नाम भी सोम माना जाता है जिसका प्रयाग पर शासन था...

न्द्रमा का एक अन्य नाम है सुधाकर या सुधांशु। इस नाम में भी जलतत्व की उपस्थिति नज़र आ रही है जो चन्द्रमा की पहचान है। सुधा का अर्थ भी अमृत, मधुर तरल ही होता है। इसका अर्थ जल भी है। पृथ्वी पर सचमुच अगर अमृत है तो वह जल ही है। वैसे सुधा को देवताओं का पेय कहा गया है जो अमृत ही होता है। सोम का दूसरा नाम भी अमृत और जल ही है। सुधांशु का अर्थ हुआ जिसकी किरणें अमृत समान हैं। सुधाकर यानी अमृतमय करनेवाला। सुधा का एक अर्थ श्वेत-धवल-उज्जवल भी होता है। चांदनी ऐसी ही होती है। सुधा चूने की सफेदी या ईंट को भी कहते हैं। सुधा यानी जल, आर्द्रता, शीतलता का भंडार होने की वजह से इसका एक नाम सुधानिधि भी है। रात्रि को प्रकाशित करने की वजह से इसका एक नाम निशापति भी है।

5 कमेंट्स:

Gyan Dutt Pandey said...

अच्छा रहा जी, हमारा गोत्र भी जगह पा गया!

दिनेशराय द्विवेदी said...

चंद्र हमारा निकटतम पड़ौसी है और आकाश में सब बड़ा दिखाई देने वाला पिण्ड जिसे देखा जा सकता है। उस से सम्बद्ध शब्दों का कहीं टोटा नहीं है।

Pramendra Pratap Singh said...

जब भी आता हूँ आपके ब्‍लाग पर कुछ नया मिल ही जाता है।

Dr. Chandra Kumar Jain said...

चारू चंद्र पर
यह सुचारू प्रस्तुति
मन को लुभा रही है,
नव-ज्ञान का पथ सुझा रही है.
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आभार
डॉ.चन्द्रकुमार जैन

Abhishek Ojha said...

अच्छी चल रही है चंदा मामा के बारे में जानकारी.

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