...साड़ी की खूबी यही है कि इसे बांधने के अंदाज़ से ही पहनने वाले के संस्कार-परिवेश का अंदाज़ा लगाया जा सकता है...
महिलाओं के लिए किसी भी युग में परिधानों की विविधता में कमी नहीं रही। इसके बावजूद साड़ी एक ऐसा विशुद्ध भारतीय परिधान है जो बीते करीब पांच हजार वर्षों से लगातार प्रचलन में है और पहनावे के मुख्य तौर-तरीकों में बहुत बड़े बदलाव न होने के बावजूद महिलाओं की पसंदीदा पोशाक बनी हुई है। ग्रामीण क्षेत्रों में साड़ी के लिए धोती शब्द प्रचलित है। धोती शब्द का उल्लेख अगर करें तो इसे पुरुष भी धारण करते हैं और स्त्रियां भी। इसे कमर के नीचे का हिस्सा ढकने के लिए पहना जाता है। इस रूप में इसकी व्युत्पत्ति का क्रम कुछ यूं रहा होगा- अधोवस्त्रिका > अधोतिका > धोतिका > धोती। कुछ लोग इसकी व्युत्पत्ति धौत् शब्द से भी मानते हैं जिसका अर्थ होता है धवल, चमकाया हुआ। प्राचीनकाल से ही मानव धार्मिक अनुष्ठानों के लिए शुभ्र-धवल वस्त्रों का प्रयोग करता रहा है अतः धौत शब्द में निहित उज्जवलता के भाव से धौत में धोती के जन्म सूत्र छिपे हो सकते हैं।
धोती चाहे पुरुष भी धारण करते रहे हों मगर साड़ी धोती का ही रूप होने के बावजूद स्त्रियों की ही पोशाक बनी रही। साड़ी शब्द की व्युत्पत्ति पर भी विद्वान एकमत नहीं हैं। इसकी व्युत्पत्ति प्राकृत शब्द शाटिका से मानी जाती है। संस्कृत में शाटः या शाटी का अर्थ होता है अधोवस्त्र, कपड़ा । वस्त्र या परिधान के अर्थ में शाटकः, शाटकम् शब्द भी है। हालांकि इनसे यह कही ध्वनित नहीं होता कि ये सिर्फ स्त्रियों के लिए ही हैं। संस्कृत धातु शट् से इसका जन्म माना जाता है। शट् धातु का अर्थ होता है बांटना, अलग-अलग करना, दुर्बल होना या बीमार होना आदि। आमतौर पर किसी भी परिधान का निर्माण कपड़े को कांटने-छांटने के बाद ही होता है। शट् में किसी वस्तु को बांटने या उसके अंश करने के भाव को वस्त्र की कटाई-छंटाई के अर्थ में ही ग्रहण करना चाहिए। हालांकि शट् से बने शाटिका अथवा साड़ी में काटने-छांटने की बात अन्य वस्त्रों की तुलना में नज़र नहीं आती क्योंकि यह अपने आप में कपड़े का एक ही टुकड़ा होता है। वैसे अक्सर अंगिका या ब्लाउज का निर्माण भी साड़ी के अंश से ही होता रहा है।
साड़ी की व्युत्पत्ति चीर से भी मानी जाती है। चीर, चीवर आदि शब्दों का अर्थ भी कपड़ा, वस्त्र से ही है। चीर या चीवर को सन्यासियों अथवा भिक्षुकों की पोशाक के तौर पर प्राचीनकाल से ही मान्यता मिली हुई है। चीर या चीवर का निर्माण चि धातु से हुआ है जिसमें चुनना-बीनना, जोड़ना, विकसित करना आदि भाव है। कपास के सूत से वस्त्र निर्माण की प्रक्रिया के संदर्भ में ये सभी भाव सार्थक हो रहे हैं।
16 कमेंट्स:
सबसे सुंदर अगर कोई वस्त्र है, तो वो है साड़ी...नारी के श्रॄंगार में चार चांद लगाती है ...मेरी सबसे प्रिय वस्त्र...साड़ी...कुछ अच्छे साड़ियों के चित्र भी लगाने थे, अभी एक जो बहुत मशहूर है, सबसे महंगी साड़ी दुनिया की...
साड़ी की महिमा सुन कर ज्ञानवर्द्धन अच्छा हुआ
पोस्ट विशिष्ट
जानकारी नव्य
चित्र चयन भी लाज़वाब.
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आभार
डॉ.चन्द्रकुमार जैन
मेरे मन पसंद पोशाक साडी के बारे में यह लेख बहुत पसंद आया अजित भाई -
भारत के हर प्रांत की अपनी विशेषता है जिस से वहाँ बननेवाली साडी पहचानी जा सकती है -
Like Narayanpet, Kanjivaram, Indoree, Chaderi, Asssameeya, Calcuttee , Lucknowee , Banarasee etcetc
- इतना सुंदरा स्त्रीयोचित परिधान दूसरा कोई नहीं :)
क्या बात है अजित भाई ! नया कलेवर और अंदाज़ पसंद आया ! शुभकामनायें !
साड़ी की जानकारी बहुत बहुत सारी दी आपने अच्छा लगा
अजितभाई, यह नया रंग देखकर मजा आया। और यदि साड़ी के पल्लू (सीधा पल्लू, उलटा पल्लू )पहलुअों पर भी कुछ शुभ्र-धवल नजरिये से लिखा जाए तो शाटकम् शाटकम् ।
अच्छी जानकारियां हैं ।
रवि वर्मा की पेण्टिंग के चित्र ने पोस्ट का मान बढाया ।
बहुत जानकारी पूर्ण लेख है।आभार।
अजित जी, मैं आपका मुरीद ... कुछेक दिनों के असमंजस के बाद एक सुझाव बनाम माँग रहना चाहता है, कि क्या यह संभव होगा कि आप इतनी मेहनत तो करते ही हैं, पर इसके साथ जानकारियों के स्रोत भी आलेख के अंत में संदर्भित कर दें, तो यह ब्लाग हमारे जैसे अनुसंधान प्रेमियों के लिये और आगे तक डुबकी लगाने का रास्ता आसान कर देगी । बहुत ही रोमांचक क्षेत्र है यह !
आपका परिश्रम और अध्ययन चंद टिप्पणियों की मोहताज़ नहीं है.. पर चंद भाषाप्रेमियों के लिये तीर्थस्थली से कम का दर्ज़ा नहीं रखतीं ।
यह सुविधा जोड़ कर आप इसे आगामी पीढ़ियों के लिये अपरिहार्य और अनिवार्य बना सकेंगे ।
ज्ञान बाँटने वाला गुरुकुल है, यह ब्लाग !
खतरनाक पोस्ट है। पत्नीजी देख लें तो नई साड़ी की फरमाइश! :-)
साड़ी तो सदाबहार है ही और हर दिल अजीज, पर अब सलवार कमीज पहली पसंद बनता जा रहा है।
साड़ी भारत की परम्परा का निर्वहन करने वाली परिधान है, एक बार मैंने 'हिंदुस्तान टाईम्स' पढ़ा था कि इसे 108 तरीके से पहना जाता है !
बहुत बढिया जानकारी दी है ! साडी और साडी शब्द का समाजशास्त्रीय और ऎतिहासिक अध्ययन खूब किया है आपने !
इसे संयोग ही कहेंगे , आज ही मैंने भी अपनी एक पोस्ट मैं साड़ी की बात की है और चित्र मैं भी ,आपका लेख सचमुच ...कुछ अलग सा है रोचक ख़ास तौर पर महिलाओं को पसंद आने वाला देश के हर प्रांत और वहाँ पहनी जाने वाली साडियों की बात अलग है ...इन दिनों बाघ प्रिंट इंदौर एम् पी की साडियां दुनिया भर मैं धूम मचा रही है ....बधाई
बाकी पोषक अपनी जगह... साड़ी की बात ही कुछ और है. कॉलेज और कंपनियों में ट्रेडिशनल डे होता है और साड़ी में जो सुन्दरता दिखती है जींस को पीछे छोड़ देती है !
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