गढ़ के लिए किला शब्द उर्दू-हिन्दी में बेहद प्रचलित है। इससे मिलते जुलते कई शब्द दुनिया की कई भाषाओं में प्रचलित हैं। मूलतः यह सेमेटिक भाषा परिवार का शब्द है। डॉ भगवतशरण उपाध्याय (भारतीय संस्कृति के स्रोत) के अनुसार यह असूरियाई ( मेसोपोटेमियाई ) शब्द है और विभिन्न संस्कृतियों के मेल के साथ इंडो-यूरोपीय परिवार में भी चला आया। अरबी भाषा में कला qala शब्द का मतलब होता है गढ़, दुर्ग, किला। इसमें ऊंचाई पर बना सुरक्षित स्थान वाला भाव भी समाया हुआ है। हिब्रू भाषा अरबी से भी प्राचीन है जिसमें कला का अर्थ होता है तराशना, पत्थर काटना और नक्काशी करना। दरअसल असूरियाई संस्कृति में qala का वहीं अर्थ था जो हिन्दी में कला यानी आर्ट का है। हालांकि संस्कृत में जो कला है वह मूल कल् धातु से निकला शब्द है। संस्कृत कला की अर्थवत्ता बेहद व्यापक है और उसके व्यापक अर्थ संसार का केवल एक अंश ही आर्ट के अर्थ वाले कला में समाया है। कल् धातु का मूलार्थ गणना करना, आगे बढ़ना है। गढ़ या किले में तो इसकी अर्थवत्ता बेहद सीमित हो जाता है। मेसोपोटेमिया की सभ्यता भवन निर्माण में बहुत उन्नत थी। खास तौर पर गुंबद और मेहराबों की तकनीक उन्हीं की देन मानी जाती है। करीब ईसा पूर्व पंद्रह सदी पहले की इस सभ्यता ने मेसोपोटेमिया यानी आज के इराक में जिस दर्जे का निर्माण कार्य हुआ वह आश्चर्यचकित कर देने वाला है। गौरतलब है कि जिन लोगों ने ये निर्माण कराए वे अग्निपूजक थे।
इराक के मौसूल शहर के करीब निमरूद नाम का पुरातात्विक महत्व का लुप्त शहर है। बाईबल समेत प्राचीन ग्रंथों में इसका उल्लेख क़लाह या क़ला के तौर पर आया है। मेसोपोटेमियाई शिल्पियों द्वारा उस नगर में ऐसे ऐसे अनोखे भवन, मीनार, मेहराब और गुंबद बनाए गए कि वह अद्भुत वास्तुकर्म ही कलाकर्म का पर्याय हो गया। शहर क़ला को ही लोग स्थापत्य और बसाहट का पर्याय समझने लगे। अरबी में एक शब्द है क़लाअत या क़लात। जिसका मतलब भी किला ही होता है मगर इसका एक अर्थ आबादी या गांव भी होता है। समझा जा सकता है कि ईसापूर्व डेढ़ हजार साल पहले असूरियाई शहर कला आबादी और बसाहट का पर्याय बन चुका था जो समय के साथ छोटी आबादी के संदर्भ में प्रयोग होने लगा। भारत-पाकिस्तान में प्रचलित गांव के लिए कलां शब्द भी सेमेटिक मूल का माना जाता है। संभव है उसकी व्युत्पत्ति भी इसी कलात से हुई हो। पुराने ज़माने में किले सिर्फ सैनिक जमाव के केन्द्र ही नहीं होते थे बल्कि वहां आबादी भी रहती थी।
मेसोपोटेमियाई शिल्पियों ने चट्टानों को काट काट कर इस अंदाज़ के साथ निर्माण किए जो सुरक्षा की दृष्टि से बेहद महत्वपूर्ण थे। क़ला शब्द में निहित पत्थरों की नक्काशी और काटने का भाव भी यह साबित करता है कि इस सभ्यता के विकसित होने से पूर्व मूलतः चट्टानों को आश्रयस्थल बनाने के लिए मनुश्य ने जो श्रम किया उसे ही क़ला कहा गया। इसी क़ला शब्द को दुर्गों, गढ़ों, कोट और परकोटों का नाम मिला जो अरबी प्रभाव के चलते क़िला हो गया। पूर्वी रोमानिया यानी मोल्दाविया के एक शहर का नाम है गलाटी जो अरबी क़लात से ही बना है। तुर्की में इसका उच्चारण क़ले होता है।
इस क़ला को आर्ट के अर्थ में कुछ और विस्तार ईरान में आकर मिला जहां क़लई जैसा शब्द बना जो इसी मूल का था। क़ला में निहित तराशने , काटने - छांटने के भावों को कुछ और विस्तार मिला असूरियाई लोगों के हुनर और दक्षता के चलते। वे लोग धातुएं निकालने, उन्हें चमकाने, पॉलिश करने आदि अनेक कर्मों में महारत हासिल कर चुके थे। उनके हुनर का प्रसार पश्चिम में यूनान और पूर्व में फ़ारस तक हुआ और एक नया शब्द सामने आया क़लई जो हिन्दुस्तान में भी कलई खुलने के मुहावरे में मशहूर हो गया।
[ज़रूर देखें क्षुद्र-1-5 की श्रंखला]
आपकी चिट्ठीः
@डॉ अमरकुमार - सफर की तारीफ़ का शुक्रिया। साझेदारी का सुख उठा रहा हूं । कोशिश तो यही रहती है कि संदर्भों का उल्लेख करता चलूं। एक बार अभय जी से भी इसी विषय पर बात हुई थी। विभिन्न शब्दकोशों और आनलाइन संदर्भों के अलावा अन्य पुस्तकों-पत्रिकाओं से संदर्भों को तलाशते हुए उन्हें दर्ज करता रहता हूं। यह प्रक्रिया एक साथ कई शब्दों पर चल रही होती है। ऐसे में आनलाईन संदर्भों कई बार दर्ज नहीं हो पाते हैं। इसीलिए मैं उन्हें कापी में नोट करता चलता हूं।
6 कमेंट्स:
अजित जी,
श्रम को आश्रय में लेने की कला
अगर किला बन सकती है
तो मेरा विशवास है कि
श्रम का आश्रय लेने वालों का जीवन
अभेद्य गढ़ की तरह होना चाहिए.
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यह पोस्ट हैरत में डाल देने वाली
खूबियों से समृद्ध है.
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शुक्रिया
डॉ.चन्द्रकुमार जैन
बौत ही जानकारी भरा व बढिया आलेख है।आभार।
मैं तो किला में कील का सन्दर्भ ढूंढ़ रहा था।
इतना पुराना किला !
वाह !
किला वाकई दूर देस से आया
और जम गया भारत में ~~
वाह कला किला भी बन जाती है।
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