पिछली कड़ी-नववर्ष-1 / बारिश में स्वयंवर और बैल
वर्ष की रिश्तेदारी जिस तरह वर्षा ऋतु से है उसी तरह अंग्रेजी के ईयर year शब्द का संबंध भी वर्षा से ही है। यह शब्द मूलतः इंडो-यूरोपीय भाषा परिवार का है। इसी तरह वर्ष और बरस के साम्य पर साल के लिए ग्रीक भाषा में ओरस (oros) शब्द है। स्पष्ट है कि वर्षा पर ही वर्ष का ज्ञान आधारित था। अंग्रेजी का ईयर year प्राचीन भारोपीय भाषा परिवार का शब्द ही है। इसकी मूल धातु है yer-o जिसमें वर्ष या ऋतु का भाव है। अवेस्ता में इसका रूप है यारे yare जिसमें वर्ष का भाव है। प्रोटो जर्मनिक धातु है jer जिसमें फसलों की बुवाई वाले मौसम का भाव है। वर्षा शब्द का रिश्ता मूलतः वृ धातु से है। साफ है कि प्राचीन काल से ही काल या अवधि की बड़ी इकाइयों की गणना मनुष्य ने ऋतु परिवर्तन और सूर्य-चंद्र के उगने और अस्त होने के क्रम की आवृत्ति यानी दोहराव को ध्यान में रखते हुए की। प्रकृति में दोहराव का क्रम महत्वपूर्ण है। यहां नया कुछ नहीं है बल्कि हर क्षण जो लौट कर आ रहा है, नया सा लगता है। दोहराव को नया समझने का भ्रम सुखद है। सृष्टि का अर्थ ही पुनर्निर्माण है। सृष्टि एक चक्र में बंधी है। काल-गणना में यह चक्रगति या दोहराव महत्वपूर्ण है। वर्षम् या वर्षः शब्द के मूल में वृष् या वृ धातु है जिसमें ऊपर उठना, तर करना, अनुदान देना, बौछार करना, आवर्तन आदि। यहां वर्षा या बारिश का भाव स्पष्ट है। वृष् का पूर्व रूप वर् था जिसमें ऊपर उठना, चुनना, वितरित करना, नियंत्रित करना जैसे भाव हैं। प्रोटो जर्मनिक धातु jer की समानता संस्कृत वर् से ध्यान देने योग्य है। गौरतलब है कि प्राचीनकाल की सभी संस्कृतियों में वर्षाकाल में ही बुवाई होती थी। स्पष्ट है कि प्रोटो जर्मनिक jer धातु में भी वर्षा का भाव ही है। मौसम के दोहराव के क्रम में विभिन्न संस्कृतियों ने अपने अपने वर्ष बनाए। मौजूदा जनवरी से शुरु होनेवाली परम्परा ईसाई संस्कृति की देन है। अन्यथा सर्दी, गर्मी और बरसात के आधार पर ही वर्ष के बारह महिनों की गणना होती रही है। ग्रीक के ओरस (oros) से अंग्रेजी के आवर (hour) की साम्यता है। संस्कृत वर्, अवेस्ता के yare की कड़ी में ग्रीक के ओरस से बाद में होरा hora बना जिसका भी अर्थ वर्ष या वर्ष का कोई भी हिस्सा है। इसीलिए अंग्रेजी के आवर का अर्थ घड़ी, घंटा में रूढ़ हो गया। यह विकास बाद में हुआ। हालांकि स्लोवानी में यह jaru हो जाता है जिसका अर्थ वसंत है। तब तक इस धातु में वर्ष का भाव स्थिर हो चुका था इसीलिए स्लोवानी में इसका अर्थ वसंत भी है। पह्लवी में एक शब्द है दुश-यारम् dus-yaram जिसके मायने हैं खराब मौसम। यहां भाव पूरे वर्ष की अवधि के खराब रहने से है। कृषि आधारित अर्थव्यवस्था प्राचीनकाल में सभी समाजों में थी। अवर्षा की स्थिति में फसल न होने से अकाल की स्थिति निर्मित होती थी। इसे ही दुश-यारम् कहा गया है अर्थात बुरा साल। यहां सामान्य अर्थ निकाला जा सकता है, बुरा वक्त। हिन्दी मे काल का मतलब भी वक्त ही होता है इस तरह अकाल भी बुरा समय ही हुआ। संस्कृत में दुस्/दुश् उपसर्ग का मतलब होता है बुरा, निम्न, नीच आदि। इसके यही रूप फारसी में भी हैं और वहां से इसका प्रवेश अरबी में भी हुआ। दुश्मन शब्द के संदर्भ में इसे समझा जा सकता है। दुश्-यारम् का फारसी रूप हुआ दुश्वार या दुश्वारी। यह हिन्दी-उर्दू में भी प्रचलित है जिसमें कठिनाई, मुश्किल हालात या वक्त के संदर्भ में इस्तेमाल होता है। दुश्वार में वर् एकदम साफ नजर आ रहा है। इसे दुश+वार की तरह देखें तो भी अर्थ स्पष्ट है। दुश यानी बुरा और वार यानी दिन। वृ से बने वर् में मूलतः काल का भाव है चाहे वह वर्ष हो, माह हो या दिन। सप्ताह के दिनों के पीछे लगे वार शब्द से यह स्पष्ट है। संस्कृत वारः से बना है हिन्दी का वार जो इसी वृ से आ रहा है जिसका अर्थ है सप्ताह का एक दिन, समूह, आवृत्ति, घेरा, बड़ी संख्या आदि। वृ धातु में निहित आवृत्ति का | | प्रकृति में दोहराव का क्रम महत्वपूर्ण है। यहां नया कुछ नहीं है बल्कि हर क्षण लौट कर आ रहा है। |
भाव चौबीस घंटों में सूर्य को घूमने की गति में समझ सकते हैं जिससे एक दिन बनता है। तीस दिनों में एक माह और बारह मासिक-चक्रों से एक वर्ष तय होता है। यही आवृत्ति ऋतु कहलाती है। वृ धातु में संस्कृत का ऋ भी छुपा है। वार का ही फारसी रूप बारः होता है जिसमें दोहराव, दफा, मर्तबा जैसे भाव है। संस्कृत के अनुस्वार की प्रवृत्ति ही अवेस्ता और फारसी में भी है। अक्सर के अर्थ में भी जिस बारहा का प्रयोग हम हिन्दी उर्दू में देखते हैं वह यही बारः है। बार-बार के अर्थ में हिन्दी में बहुधा शब्द है। संस्कृत में इसके लिए वारंवारम शब्द है जिससे हिन्दी का बारम्बार शब्द बना है। हिन्दी उर्दू में वर्ष के लिए साल शब्द का इस्तेमाल भी बहुतायत में होता है। साल मूलतः फारसी का शब्द है जिसकी रिश्तेदारी इंडो-ईरानी भाषा परिवार से है। संस्कृत के शरदः का अवेस्ता में रूप होता है sareda. पहलवी में यह सालक हुआ और फिर फारसी में इसका रूपांतर साल हुआ। अवेस्ता का र फारसी के ल में बदल रहा है। ताजिक, पश्तों और साखी ज़बानों में भी यह साल ही है जो उत्तर पूर्वी ईरान, ताजिकिस्तान आदि इलाकों में बोली जाने वाली भाषाए हैं। पामीर, चित्राल आदि इलाकों में इसका रूप सालोह हो जाता है। तुर्किक या तातारी जैसी जबानों में इसके सुल, सिल जैसे रूप हैं जबकि किरगिजी में यह zhil के रूप में विद्यमान है। इंडो-ईरानी भाषा परिवार के इस शब्द की व्याप्ति मंगोल भाषा में भी हुई है जहां यह बतौर zhil मौजूद है। किसी जमाने में शरद माह से वर्ष-गणना की परिपाटी रही होगी। इससे बनें सालो-साल, साल-दर-साल (साल-ब-साल) सालाना, सालगिरह, हरसाल, पारसाल जैसे शब्द हिन्दी के बहुप्रयुक्त शब्दों में शुमार हैं। फौजी शब्दावली में सालार या सालारजंग जैसे शब्द भी हैं जो हिन्दी में परिचित हैं। सालार का अर्थ होता है उम्रदराज, वरिष्ठ या बुजुर्ग व्यक्ति। इन अर्थों में सालार का जो अर्थ रूढ़ हुआ वहा है मुखिया, कप्तान या सरदार। राज्यपाल, प्रधानमंत्री जैसे अर्थों में भी इसका प्रयोग होता है। इसका महत्व विशेषण के तौर पर भी है जिसका प्रयोग बतौर उपाधि भी होता रहा है। –जारी ये सफर आपको कैसा लगा ? पसंद आया हो तो यहां क्लिक करें |
12 कमेंट्स:
बहुत उपयोगी विवेचन है। इस से एक बात भी समझ में आती है कि सभी भाषाओं में शब्दों के विकास का क्रम लगभग एक जैसा रहा है।
कितनी विवधता भरी जानकारी हर बार मिलती है कि अब तो यहाँ आने के पहले ही आदतन दाँतों तले ऊँगली दबा कर ही आते हैं. :) आपका ब्लॉग अद्भुत ज्ञान का भंडार है.
अत्यन्त सार्थक आलेख ! आभार ।
’सकारात्मक सोच के साथ हिन्दी एवं हिन्दी चिट्ठाकारी के प्रचार एवं प्रसार में योगदान दें.’
-त्रुटियों की तरफ ध्यान दिलाना जरुरी है किन्तु प्रोत्साहन उससे भी अधिक जरुरी है.
नोबल पुरुस्कार विजेता एन्टोने फ्रान्स का कहना था कि '९०% सीख प्रोत्साहान देता है.'
कृपया सह-चिट्ठाकारों को प्रोत्साहित करने में न हिचकिचायें.
-सादर,
समीर लाल ’समीर’
yah sala naam ka jeev bhi kya saal se hi sambndhit hai . yah bhi saal dar saal aata hai
बहुत उपयोगी जानकारी।
नये वर्ष पर आपका ये लेख अति सुंदर है.
आप सहित सभी मित्रो को नये साल के आगमन पर शुभकामनाये।
ज्ञानवर्धक पोस्ट ,धन्यवाद.
बहुत बडिया। चार पाँच दिन नेट से दूर थी पिछली कडियाँ समय मिलते ही पाढती हूँ। धन्यवाद्
आप की दृष्टि विशाल होती जा रही है.यह पोस्ट बहुत पठनीय है.जर्नल भी इस कड़ी में ले आते. देशी महीनों के नामों की व्युत्पति का इंतजार है. यह बताना कि शक्तिवर, जोरावर, ताकतवर( जल्दी में और याद नहीं आ रहे) के पीछे लगा वर, वृ धातु से है.
बहुत ही शानदार।
नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं।
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