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प्रस्तुतकर्ता अजित वडनेरकर पर 12:58 AM लेबल: business money, government, रहन-सहन, सम्बोधन
16.चंद्रभूषण-
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15.दिनेशराय द्विवेदी-[1. 2. 3. 4. 5. 6. 7. 8. 9. 10. 11. 12. 13. 14. 15. 16. 17. 18. 19. 20. 21. 22.]
13.रंजना भाटिया-
12.अभिषेक ओझा-
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11.प्रभाकर पाण्डेय-
10.हर्षवर्धन-
9.अरुण अरोरा-
8.बेजी-
7. अफ़लातून-
6.शिवकुमार मिश्र -
5.मीनाक्षी-
4.काकेश-
3.लावण्या शाह-
1.अनिताकुमार-
मुहावरा अरबी के हौर शब्द से जन्मा है जिसके मायने हैं परस्पर वार्तालाप, संवाद।
लंबी ज़ुबान -इस बार जानते हैं ज़ुबान को जो देखते हैं कितनी लंबी है और कहां-कहा समायी है। ज़बान यूं तो मुँह में ही समायी रहती है मगर जब चलने लगती है तो मुहावरा बन जाती है । ज़बान चलाना के मायने हुए उद्दंडता के साथ बोलना। ज्यादा चलने से ज़बान पर लगाम हट जाती है और बदतमीज़ी समझी जाती है। इसी तरह जब ज़बान लंबी हो जाती है तो भी मुश्किल । ज़बान लंबी होना मुहावरे की मूल फारसी कहन है ज़बान दराज़ करदन यानी लंबी जीभ होना अर्थात उद्दंडतापूर्वक बोलना।
दांत खट्टे करना- किसी को मात देने, पराजित करने के अर्थ में अक्सर इस मुहावरे का प्रयोग होता है। दांत किरकिरे होना में भी यही भाव शामिल है। दांत टूटना या दांत तोड़ना भी निरस्त्र हो जाने के अर्थ में प्रयोग होता है। दांत खट्टे होना या दांत खट्टे होना मुहावरे की मूल फारसी कहन है -दंदां तुर्श करदन
अक्ल गुम होना- हिन्दी में बुद्धि भ्रष्ट होना, या दिमाग काम न करना आदि अर्थों में अक्ल गुम होना मुहावरा खूब चलता है। अक्ल का घास चरने जाना भी दिमाग सही ठिकाने न होने की वजह से होता है। इसे ही अक्ल का ठिकाने न होना भी कहा जाता है। और जब कोई चीज़ ठिकाने न हो तो ठिकाने लगा दी जाती है। जाहिर है ठिकाने लगाने की प्रक्रिया यादगार रहती है। बहरहाल अक्ल गुम होना फारसी मूल का मुहावरा है और अक्ल गुमशुदन के तौर पर इस्तेमाल होता है।
दांतों तले उंगली दबाना - इस मुहावरे का मतलब होता है आश्चर्यचकित होना। डॉ भोलानाथ तिवारी के मुताबिक इस मुहावरे की आमद हिन्दी में फारसी से हुई है फारसी में इसका रूप है- अंगुश्त ब दन्दां ।
20 कमेंट्स:
पंजाब में तालुका तो नहीं होता, हाँ इसके मुताल्लिक सबी शब्द जरुर चलते हैं. पंजाब में तो तसील होती है. यहाँ के गावों में गाँव के पटवारी और तसीलदार का बहुत रोब होता है. हर मां चाहती है कि उसका बेटा तसीलदार या पटवारी बने. तसील की महत्ता दर्शाता एक मुहावरा भी है. जब कोई मेरे जैसे तुच्छ सा आदमी अजित भाई जैसे बड़े आदमी को मिल कर अकड़ा फिरे तो कहते हैं, " खोती तसीले जा आई है."
अजित जी आप हर रोज इतने सारे शब्दों को नई रौशनी में रखकर जगमगा देते हैं. इतनी तेजी से शब्दों को भुगताते रहे तो यह एक दिन ख़तम हो जाएँगे, फिर आपने क्या करने का सोचा है? फरीद जी ने कहा है,
जे जाणा तिल थोर्ड़े सम्मल बुक भरी
सम्बन्ध,रिश्ता और ताल्लुक का मर्म समझ में आ गया है जी!
उपयोगी पोस्ट के लिए आपका आभार!
अजित जी,
पुराने ज़माने में रिश्ते या ताल्लुक प्यार करने के लिए होते थे और चीज़े इस्तेमाल करने के लिए...आज़ के ज़माने
में इसका ठीक उलटा हो गया है...
जय हिंद...
अब समझ आया तहसील का महत्त्व!
उत्कृष्ट प्रस्तुति।
सारे रिश्ते जोड़ दिए आप ने। राजस्व के लिए सब से छोटी इकाई तो ग्राम है। जहाँ पटवारी नियुक्त रहता है। तहसील उस से ऊपर का संगठन है।
अच्छी जानकारी.
#'शब्दों' के तअल्लुक से इलाकों की खबर ली,
हासिल हुआ महसूल भी, तहसीले 'सफ़र' ली.
#शब्दों के तअल्लुक से जो अफ़कार मिले है,
रिश्तों में हमें बस वही संस्कार मिले है.
@बलजीत बासीजी,
अजितजी का शब्दों से प्यार जुनून की सूरत इख्तियार कर गया है,आप ब्रेक मत लगवाइये:
''कुछ कम ही तअल्लुक है मोहब्बत का जुनू से,
दीवाने तो होते है , बनाए नही जाते.
@बलजीत बासीजी ,
बेशक आप भी शब्दों के ज्ञाता है, आपकी आलोचनाओं का तकनिकी पहलू अच्छा भी लगता है, मगर शब्दों का तीखापन आहत भी करता है. अजितजी ने बार-बार कहा है की वे भाषा विज्ञानी नहीं है. मैरी भी यह मान्यता है कि वे एक कलानिष्ठ साहित्यकार है. अब कला -साहित्य में तो शब्दों के साथ प्रयोग की कुछ छूट मिल ही जाती है.
मैं तो अपनी असाहित्यिक रचनाओं में शब्दों की १२ ही बजा देता हूँ. भगवान आपकी कृपा दृष्टि से मुझे बचाए! इसी लिए आपको यह पता भी ''ग़लत'' ही दे रहा हूँ.ह्त्त्प://mansooralihashmi.blogspot.com
- दोनों का प्रशंसक ... मंसूर अली हाश्मी.
मनसूर अली जी, इस ब्लॉग के जरिये मैं आप से रोज मिलता हूँ और आप का मूक प्रशसंक भी हूँ. अजित जी के साह्मने तो मैं कुछ भी नहीं हूँ. उन के कंधे पर अपनी बन्दूक रख कर चलाने की कोशिश करता रहता हूँ. हम पंजाबी एक अजीब प्यार करते हैं जिस को हमारी भाषा में 'अवैढ़ा प्यार' कहते हैं. अर्थात किसी को तंग या दुखी कर के अपना प्यार जिताना. हिंदी में मुझे पता नहीं इसको क्या कहते हैं, अंग्रेजी में सब से करीब पद है sadistic pleasure. यह सब छेड़ छाड़ ही है. आपके ब्लॉग पर मैं आप को जरुर मिलूँगा
@मंसूर अली हाशमी
आपका शायराना रिटर्न शब्दों के सफर में हमारे लिए महसूल के समान ही है।
हासिल हुआ महसूल भी, तहसीले 'सफ़र' ली.
बहुत खूब। आपका और बलजीत भाई का संवाद इस सफर की उपलब्धि है। आप दोनों की भावनाओं का आदर करता हूं।
बने रहें साथ...
@बलजीत बासी
यक़ीनन ये काम हमेशा नहीं चलता रह सकता। मगर शब्दों से रिश्ता तो हमेशा कायम है। शब्द सीमित हैं मगर उनकी अर्थवत्ता अनंत है। शब्दों का सफर के जरिये ये रिश्ता बना रहेगा। जब तक आप सब यहां बने हुए हैं, ये चलता रहेगा।
अजीत भाऊ ,
' सफ़र ' के मजे तो हमेशा ही लेता हूँ पर इस बार ' हमसफ़रों की नोंक झोंक ' का भी आनंद आया टिप्पणियों में . खुशगवार लगा .अब देखिये न मंसूर भाई से शायराना रिटर्न का महसूल आपने वसूला और हत्थे हम जैसे पाठकों के भी पड़ा . पूरा वसूल :)
@RAJ SINH
शुक्रिया राजजी,
सकारात्मक परिहास हमेशा ही ऊर्जा देता है। जबर्दस्ती की टांग खिचाई ब्लागजगत में ज्यादा है। ये मेरी खुशकिस्मती है कि शब्दों का सफर पर ऐसे नजारे आप जैसे सुबुद्ध पाठकों की आवाजाही की वजह से कभी नहीं बनते।
आभार
’तपशीली ’का बांग्ला अनुसूचित है । यह सूची और तफ़सील से आया अथवा ’तप हो शील जिनका’
सुनते तो आये थे पर तहसीलदार का सही अर्थ आज समझ में आया।
आभार।
वाह अजित जी रिश्तों की दास्ताँ तो आज तक समझ नहीं पाये मगर इसकी उत्पति के बारे मे जान लिया बहुत अच्छी लगी ये पोस्ट बधाई आभार्
अजित भाई मुझे दुश्यंत जी की हिन्दी गज़ल का यह शेर याद आ रहा है ..
" जिन आँसुओं का सीधा तआल्लुक़ था पेट से
उन आँसुओं के साथ तेरा नाम जुड़ गया "
(यहाँ भी तअल्लुक़ की जगह तआल्लुक़ का प्रयोग है - साये में धूप पृष्ठ- 38)
यह सही है कि हिन्दी में इसका ज़्यादा उपयोग होता है ।
तहसीलना से तो अपना परिचय था, अंत में मिल ही गया.
भाऊ ,
चिंता मत करिए ये सब तो चलता ही रहता है और आप तो हैंडल करने में समर्थ हैं . बड़ी खुशी है कि आपके यहाँ काफी गरिमा मय वातावरण रहता है .अब कुछ लोग तो टांग खिंचाई में ही आनंद लेते हैं पर मज़ा आता है कि आपके यहाँ खुद ही की खिंचवा लेते हैं :)
आपके भीतर की उर्जा , आपका अध्ययन और मेहनत प्रेरणा देती है .आपका हमसफ़र होना ही अपने आप में आनंद है.
सप्रेम
राज
@अफलातून
अफ्लू भाई,
बहुत खूब...सोचता हूं, कि ग़लत पोस्ट तो नहीं लिख गया ? मराठी में भी क़रीब क़रीब बांग्ला जैसा ही रूपांतर है कई शब्दों का। तफ्सील अलबत्ता इस कड़ी में आता है या नहीं, ये देखना पड़ेगा।
तहसील दार से नीचे एक होता है लेखपाल कहते है उस्का लिखा राज्यपाल भी नही काट सकता
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