Monday, January 18, 2010

तहसीलदार के इलाक़ाई ताल्लुक़ात

tehsil_l ज़रूर देखे-फ़सल के फ़ैसले का फ़ासला

सं बंध या रिश्ता जैसे शब्दों की अर्थवत्ता बहुत व्यापक है।  संबंध जहां भारोपीय मूल का शब्द है वहीं रिश्ता इंडो-ईरानी परिवार का शब्द है। इन पर अलग-अलग कड़ियों में विस्तार से चर्चा हो चुकी है। इस बार बात करते हैं ताल्लुक शब्द की जिसका फैलाव अरबी, फारसी, हिन्दी और उर्दू समेत अनेक एशियाई भाषाओं में है और इसके अर्थ का विस्तार कितना व्यापक है, इसे जानकर हैरानी होती है। ताल्लुक सेमिटिक मूल से उपजा शब्द है। संबंध, रिश्ता, निर्भरता आदि अर्थों में इसका प्रयोग हिन्दी में आमतौर पर होता है। कहा जा सकता है कि हिन्दी के सर्वाधिक इस्तेमाल होने वाले शब्दों में इसका भी शुमार है। हिन्दी में जहां ताल्लुक प्रचलित है वहीं इसका उर्दू रूप तअल्लुक है। इसी तरह यह अरबी और फारसी में भी बरता जाता है।
रबी में एक शब्द है अलाकः जिसका अर्थ है संबंध, प्रेम, दोस्ती आदि। मूलतः इसमें लगाव या जुड़ाव का भाव है। भाषा, संस्कृति, देश-काल और जीवों के संदर्भ में इसका प्रयोग होता है। अलाक़ा में उपसर्ग लगने से बनता है तअल्लुक जिसका अर्थ है संबंध, अपनापन, रिश्ता, सम्पर्क, लगाव आदि। तअल्लुक में प्रेम-संबंध, जिस्मानी रिश्ता, नौकरी, सेवा और तरफ़दारी जैसे अर्थ भी शामिल हैं। इसका हिन्दी रूप ताल्लुक है। तअल्लुक़ का बहुवचन तअल्लुक़ात होता है जो हिन्दी में ताल्लुकात बनता है। संबंधित या संदर्भित के अर्थ में मुताल्लिक शब्द भी इसी मूल से  आ रहा है।  संबंध या रिश्तेदारी जैसे अर्थों के साथ अलाकः शब्द का रिश्ता भूक्षेत्र, रिहाइश, ज़ायदाद आदि से भी जुड़ता है। गौर करें हिन्दी-उर्दू में प्रचलित इलाक़ा शब्द पर जिसका अर्थ क्षेत्र, देश, प्रदेश, सूबा, प्रांत आदि होता है। अरबी के मूल शब्द अलाक़ः में निहित लगाव या जुड़ाव का जो भाव है, उसका विस्तार इलाकः ilaqah (इलाका) में क्षेत्र, भूमि, प्रान्त, मुल्क mulq, देश desh  आदि में नज़र आ रहा है। अलाकः का ही एक अन्य रूपांतर है इलाकाः। जुड़ाव-लगाव वाले भाव के दायरे में देशकाल में व्याप्त सभी तत्व शामिल हैं। किसी स्थान पर रहते हुए हम उस परिवेश, भूमि, जलवायु, भाषा-बोली और जन से जुड़ते हैं जिनसे मिलकर कोई क्षेत्र, इलाक़ा बनता है। क्षेत्रीय के अर्थ में सूबाई, इलाकाई जैसे शब्द भी हिन्दी में प्रचलित हैं। 
अंग्रेजों के ज़माने में तालुकदारी प्रथा थी। यह तालुक, ताल्लुका या तालुका मूलतः तअल्लुकः (ताल्लुका) ही है जिसका अर्थ अरबी में क्षेत्र, भू-संपत्ति, ज़मींदारी, रियासत अथवा सरकार की ओर से मिली किसी भू-सम्पत्ति का स्वामित्व था। कंपनीराज में यह व्यवस्था खूब पनपी थी। अवध क्षेत्र में अग्रेजों ने देशी रियासतों को कमज़ोर करने, जागीरदारोंvillage-in-india और नवाबों को लड़ाने के लिए इसका खूब इस्तेमाल किया था। अरबी के तअल्लकः में फारसी का दार प्रत्यय लगने से बना था ताल्लुकदार tallukdar. इस प्रथा को ताल्लुकदारी या तालुकदारी कहा जाता था। इन तालुकदारों ने बड़ी बड़ी रियासतें खड़ी कर ली थीं। राजस्व वसूली के कारगर इंतजामों का नतीजा ही थी तालुकदारी व्यवस्था। बड़ी और प्रसिद्ध रियासतों में अंग्रेजों ने कई ताल्लुके अर्थात छोटे राजस्व-क्षेत्र बना डाले थे। आमतौर पर यह कई छोटे गांवों को मिला कर बनाया गया बड़ा इलाक़ा होता था। कई गावों को जोड़ने, उनका प्रशासन और तक़दीर साथ-साथ जुड़ने से उनका आपस में रिश्ता यानी ताल्लुक हो जाता था इसलिए एक बड़े इलाक़े को  ताल्लुका कहा जाता था। इन ताल्लुकों पर राज करनेवाले प्रायः अंग्रेजों के पिट्ठू होते थे और उन्हें विशेषाधिकार भी प्राप्त होते थे।
ताल्लुका की ही तरह तहसील भीराजस्व इकाई  होती थी जो आज भी कायम है। तहसील tehsil का महत्व इसी बात से समझा जा सकता है कि यह भू-राजस्व अर्जन की दृष्टि से बेहद महत्वपूर्ण इकाई है क्योंकि कृषि आधारित अर्थव्यवस्था में तहसील केंद्र पर आकर ही सारे काम या तो संवरने शुरू होते हैं या बिगड़ते हैं। तहसील का प्रमुख प्रशासक राजपत्रित अधिकारी होता है। इसे आज भी तहसीलदार या डिप्टी कलेक्टर कहते हैं। कई स्थानों पर इस पद पर भारतीय प्रशासनिक सेवा का अफ़सर भी अपने शुरुआती दौर में प्रशिक्षण प्राप्त करता है। तहसील शब्द के मूल में है सेमिटिक धातु h-s-l जिसमें कर-वसूली का भाव है। इससे बना अरबी में हस्साला जिसका अर्थ होता है उत्पाद, प्राप्ति, उपज आदि। गौर करें, ये सब शब्द कृषि आधारित प्राचीन व्यवस्था से उपजे शब्द हैं जब किसी भी किस्म का लेन-देन मूलतः कृषि उपज यानी अनाज के जरिये ही होता था। हस्साला में निहित उपज वाले भाव का विस्तार चुकानेवाले कर के रूप में हुआ महसूल mehsul शब्द में। महसूल उर्दू-हिन्दी में प्रचलित है जिसका अर्थ है कर। चूंकि जो पैदा होता है, वह प्राप्त होता है इसीलिए इसे हुसूल भी कहते हैं। यह हिन्दी में आमतौर पर इस्तेमाल नहीं होता मगर इसी कड़ी का हासिल शब्द खूब इस्तेमाल होता है। सरकार जब पैदावार paidavar पर टैक्स tax लगाती है तो उसे महसूल कहते हैं।
हासिल में उपसर्ग लगने से ही बना है तहसील शब्द यानी जो हासिल हो, उपलब्ध हो, मयस्सर हो या प्राप्त हो।  तहसील बहुत आम शब्द है जिसका अर्थ रियाया से महसूल वसूल करना, उगाहना। लगान वसूली या अन्य करों की उगाही को भी तहसील कहते हैं। इस कार्य को करनेवाला अधिकारी तहसीलदार कहलाया। वसूली की क्रिया को पूर्वी बोलियों में तहसीलना भी कहते हैं। यह देशज रूप हुआ। अंग्रेजों के ज़मानें में तहसीलदार वह सरकारी कारिंदा होता था जो ज़मींदारों से टैक्स वसूल के लिए तैनात रहता था। उसे राजस्व व भू-सम्पत्ति मामलों के मुकदमे सुनने का अधिकार भी था।

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20 कमेंट्स:

Baljit Basi said...

पंजाब में तालुका तो नहीं होता, हाँ इसके मुताल्लिक सबी शब्द जरुर चलते हैं. पंजाब में तो तसील होती है. यहाँ के गावों में गाँव के पटवारी और तसीलदार का बहुत रोब होता है. हर मां चाहती है कि उसका बेटा तसीलदार या पटवारी बने. तसील की महत्ता दर्शाता एक मुहावरा भी है. जब कोई मेरे जैसे तुच्छ सा आदमी अजित भाई जैसे बड़े आदमी को मिल कर अकड़ा फिरे तो कहते हैं, " खोती तसीले जा आई है."
अजित जी आप हर रोज इतने सारे शब्दों को नई रौशनी में रखकर जगमगा देते हैं. इतनी तेजी से शब्दों को भुगताते रहे तो यह एक दिन ख़तम हो जाएँगे, फिर आपने क्या करने का सोचा है? फरीद जी ने कहा है,

जे जाणा तिल थोर्ड़े सम्मल बुक भरी

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

सम्बन्ध,रिश्ता और ताल्लुक का मर्म समझ में आ गया है जी!
उपयोगी पोस्ट के लिए आपका आभार!

Khushdeep Sehgal said...

अजित जी,
पुराने ज़माने में रिश्ते या ताल्लुक प्यार करने के लिए होते थे और चीज़े इस्तेमाल करने के लिए...आज़ के ज़माने
में इसका ठीक उलटा हो गया है...

जय हिंद...

गिरिजेश राव, Girijesh Rao said...

अब समझ आया तहसील का महत्त्व!
उत्कृष्ट प्रस्तुति।

दिनेशराय द्विवेदी said...

सारे रिश्ते जोड़ दिए आप ने। राजस्व के लिए सब से छोटी इकाई तो ग्राम है। जहाँ पटवारी नियुक्त रहता है। तहसील उस से ऊपर का संगठन है।

डॉ. मनोज मिश्र said...

अच्छी जानकारी.

Mansoor ali Hashmi said...

#'शब्दों' के तअल्लुक से इलाकों की खबर ली,
हासिल हुआ महसूल भी, तहसीले 'सफ़र' ली.

#शब्दों के तअल्लुक से जो अफ़कार मिले है,
रिश्तों में हमें बस वही संस्कार मिले है.

@बलजीत बासीजी,
अजितजी का शब्दों से प्यार जुनून की सूरत इख्तियार कर गया है,आप ब्रेक मत लगवाइये:
''कुछ कम ही तअल्लुक है मोहब्बत का जुनू से,
दीवाने तो होते है , बनाए नही जाते.
@बलजीत बासीजी ,
बेशक आप भी शब्दों के ज्ञाता है, आपकी आलोचनाओं का तकनिकी पहलू अच्छा भी लगता है, मगर शब्दों का तीखापन आहत भी करता है. अजितजी ने बार-बार कहा है की वे भाषा विज्ञानी नहीं है. मैरी भी यह मान्यता है कि वे एक कलानिष्ठ साहित्यकार है. अब कला -साहित्य में तो शब्दों के साथ प्रयोग की कुछ छूट मिल ही जाती है.

मैं तो अपनी असाहित्यिक रचनाओं में शब्दों की १२ ही बजा देता हूँ. भगवान आपकी कृपा दृष्टि से मुझे बचाए! इसी लिए आपको यह पता भी ''ग़लत'' ही दे रहा हूँ.ह्त्त्प://mansooralihashmi.blogspot.com
- दोनों का प्रशंसक ... मंसूर अली हाश्मी.

Baljit Basi said...

मनसूर अली जी, इस ब्लॉग के जरिये मैं आप से रोज मिलता हूँ और आप का मूक प्रशसंक भी हूँ. अजित जी के साह्मने तो मैं कुछ भी नहीं हूँ. उन के कंधे पर अपनी बन्दूक रख कर चलाने की कोशिश करता रहता हूँ. हम पंजाबी एक अजीब प्यार करते हैं जिस को हमारी भाषा में 'अवैढ़ा प्यार' कहते हैं. अर्थात किसी को तंग या दुखी कर के अपना प्यार जिताना. हिंदी में मुझे पता नहीं इसको क्या कहते हैं, अंग्रेजी में सब से करीब पद है sadistic pleasure. यह सब छेड़ छाड़ ही है. आपके ब्लॉग पर मैं आप को जरुर मिलूँगा

अजित वडनेरकर said...

@मंसूर अली हाशमी
आपका शायराना रिटर्न शब्दों के सफर में हमारे लिए महसूल के समान ही है।
हासिल हुआ महसूल भी, तहसीले 'सफ़र' ली.
बहुत खूब। आपका और बलजीत भाई का संवाद इस सफर की उपलब्धि है। आप दोनों की भावनाओं का आदर करता हूं।
बने रहें साथ...

अजित वडनेरकर said...

@बलजीत बासी
यक़ीनन ये काम हमेशा नहीं चलता रह सकता। मगर शब्दों से रिश्ता तो हमेशा कायम है। शब्द सीमित हैं मगर उनकी अर्थवत्ता अनंत है। शब्दों का सफर के जरिये ये रिश्ता बना रहेगा। जब तक आप सब यहां बने हुए हैं, ये चलता रहेगा।

RAJ SINH said...

अजीत भाऊ ,
' सफ़र ' के मजे तो हमेशा ही लेता हूँ पर इस बार ' हमसफ़रों की नोंक झोंक ' का भी आनंद आया टिप्पणियों में . खुशगवार लगा .अब देखिये न मंसूर भाई से शायराना रिटर्न का महसूल आपने वसूला और हत्थे हम जैसे पाठकों के भी पड़ा . पूरा वसूल :)

अजित वडनेरकर said...

@RAJ SINH
शुक्रिया राजजी,
सकारात्मक परिहास हमेशा ही ऊर्जा देता है। जबर्दस्ती की टांग खिचाई ब्लागजगत में ज्यादा है। ये मेरी खुशकिस्मती है कि शब्दों का सफर पर ऐसे नजारे आप जैसे सुबुद्ध पाठकों की आवाजाही की वजह से कभी नहीं बनते।
आभार

अफ़लातून said...

’तपशीली ’का बांग्ला अनुसूचित है । यह सूची और तफ़सील से आया अथवा ’तप हो शील जिनका’

डॉ टी एस दराल said...

सुनते तो आये थे पर तहसीलदार का सही अर्थ आज समझ में आया।
आभार।

निर्मला कपिला said...

वाह अजित जी रिश्तों की दास्ताँ तो आज तक समझ नहीं पाये मगर इसकी उत्पति के बारे मे जान लिया बहुत अच्छी लगी ये पोस्ट बधाई आभार्

शरद कोकास said...

अजित भाई मुझे दुश्यंत जी की हिन्दी गज़ल का यह शेर याद आ रहा है ..
" जिन आँसुओं का सीधा तआल्लुक़ था पेट से
उन आँसुओं के साथ तेरा नाम जुड़ गया "
(यहाँ भी तअल्लुक़ की जगह तआल्लुक़ का प्रयोग है - साये में धूप पृष्ठ- 38)
यह सही है कि हिन्दी में इसका ज़्यादा उपयोग होता है ।

Abhishek Ojha said...

तहसीलना से तो अपना परिचय था, अंत में मिल ही गया.

RAJ SINH said...

भाऊ ,
चिंता मत करिए ये सब तो चलता ही रहता है और आप तो हैंडल करने में समर्थ हैं . बड़ी खुशी है कि आपके यहाँ काफी गरिमा मय वातावरण रहता है .अब कुछ लोग तो टांग खिंचाई में ही आनंद लेते हैं पर मज़ा आता है कि आपके यहाँ खुद ही की खिंचवा लेते हैं :)
आपके भीतर की उर्जा , आपका अध्ययन और मेहनत प्रेरणा देती है .आपका हमसफ़र होना ही अपने आप में आनंद है.
सप्रेम
राज

अजित वडनेरकर said...

@अफलातून
अफ्लू भाई,
बहुत खूब...सोचता हूं, कि ग़लत पोस्ट तो नहीं लिख गया ? मराठी में भी क़रीब क़रीब बांग्ला जैसा ही रूपांतर है कई शब्दों का। तफ्सील अलबत्ता इस कड़ी में आता है या नहीं, ये देखना पड़ेगा।

dhiru singh { धीरेन्द्र वीर सिंह } said...

तहसील दार से नीचे एक होता है लेखपाल कहते है उस्का लिखा राज्यपाल भी नही काट सकता

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