... शब्दों का सफर पर पेश यह श्रंखला रेडियो प्रसारण के लिए लिखी गई है। जोधपुर आकाशवाणी के कार्यक्रम अधिकारी महेन्द्रसिंह लालस इन दिनों स्वाद का सफरनामा पर एक रेडियो-डाक्यूमेट्री बना रहे हैं। उनकी इच्छा थी कि शब्दों का सफर जैसी शैली में इसकी शुरुआत हो। हमने वह काम तो कह दिया है, मगर अपने पाठकों को इसके प्रसारण होने तक इससे वंचित नहीं रखेंगे। वैसे भी रेडियो पर इसका कुछ रूपांतर ही होगा। बीते महीने यूनुस भाई के सौजन्य से सफर के एक आलेख का विविधभारती के मुंबई केंद्र से प्रसारण हुआ था। शब्दों का सफर की राह अखबार, टीवी के बाद अब रेडियों से भी गुजर रही है...
पिछली कड़ियां-[चटकारा-1].[चटकारा-2].[चटकारा-3].[चटकारा-4] य ह भारत की खान-पान संस्कृति का ही कमाल है कि सुबह-शाम शहरों की तंग गलियों से गुजरते हुए अक्सर जीभ की स्वाद कलिकाएं जाग्रत हो जाती हैं क्योकि खान-पान का मामला सिर्फ चटकारों तक सीमित नहीं है। अनजान कोनों से आती ताजा भोजन की गंध नथुनों में घुसती है तो बरबस आप ये अंदाज लगाने लगते हैं कि कौन सा व्यंजन पक रहा होगा और आप तय कर चुके होते हैं कि अगले चौबीस घंटों में वह व्यंजन आपकी थाली में भी होना चाहिए। घर का एक कोना जो हमेशा महकता रहता है वह रसोई है। सुबह शाम पकते भोजन की सौंधी महक से घर के सदस्यों की रसोई में ताक-झांक शुरू हो जाती है। इस ताक-झांक का दायरा घर से बाहर पड़ौस तक पसरता है। रोटी की महक के लिए अक्सर सौंधा शब्द इस्तेमाल होता है जो बना है सुगंध से।
यूं रसोई से फैलती गंध का रिश्ता बघार, छौक, तड़का या धुंआर (धुंगार) से है। ये सभी स्वाद और सुगंधवर्धक प्रक्रियाएं हैं जिनके बिना पूर्वी एशिया के खान-पान की कल्पना करना मुश्किल है। बिना बघार के भी रसोई महकती है मगर वह गंध अन्न के पकने की होती है। बघार या छौंक आमतौर पर घी से लगाई जाती है। रोटी या चावल के साथ खाई जानेवाले सूखे या तरीदर सालन के बघार में विभिन्न मसालों की खुशबू शामिल होती है। तीन प्रामाणिक कोशों में बघार शब्द की व्युत्पत्ति संदिग्थ है। हिन्दी शब्दसागर और वृहत हिन्दी कोश इसकी व्युत्पत्ति अवधारण से बताते हैं जबकि जॉन प्लैट्स के कोश में यह अवघर्षणीयं से बना है। इसका मतलब होता है रगड़ना, घिसना, मसलना आदि। अवघर्षणीयं > वघरना > बघार के क्रम में यह शब्द बना होगा। मगर यह व्युत्पत्ति सही नहीं है क्योंकि अवघर्षणीयं के जो अर्थ हैं वे बघार शब्द की अर्थवत्ता से मेल नहीं खाते। इसी तरह अवधारणम् का मतलब है निश्चित मत, सोच, मान्यता आदि। ध व्यंजन कभी घ में नहीं बदलता इसलिए अवधारणम् > वधारन > वधार का बघार रूपांतर संभव नहीं लगता और न ही अवधारणम् के मायनों में बघार की महक है। ध की जगह घ और घ की जगह ध का लिखा जाना देवनागरी लिपि में होने वाली सामान्य चूकें हैं। संभव है यहां भी ऐसा हुआ हो। कोश बनाने का काम बहुत पेचीदा और श्रमसाध्य होता है जिसमें ऐसी असावधानी होना सामान्य बात है। दो-दो प्रतिष्ठित कोशों (शब्दसागर और वृहत प्रामाणिक कोश) में एक ही गलती देखकर लगता है कि ऐसा ही हुआ होगा। बघार (baghar)शब्द का रिश्ता निश्चित ही सुगंध से है। हिन्दी-इंग्लिश के प्रसिद्धकोश इस शब्द का यही अर्थ बताते हैं। जॉन शेक्सपियर की हिन्दुस्तानी-इंग्लिश डिक्शनरी (1817 में प्रकाशित) में बघार का अर्थ मसालों से खाद्य पदार्थों को संगंधित व स्वादिष्ट बनाना ही बताया गया है। इसी तरह नथैनियल ब्राइस की रोमनाइज्ड हिन्दुस्तानी-इंग्लिश डिक्शनरी में भी बघार को स्वादिष्ट बनानेवाली क्रिया या वस्तु बताया गया है। डंकन फॉर्ब्स की 1848 में प्रकाशित हिन्दुस्तानी-इंग्लिश डिक्शनरी भी जॉन शेक्सपियर के काम पर आधारित ही है। अलायड चैम्बर्स कोश में इसका मतलब बताया गया है- उबली हुई सब्जियों को गर्म तेल या घी में भूने गए मसालों से सुगंधित करना। वृहत प्रामाणिक हिन्दीकोश में बघार का उच्चारण और वर्तनी तो बघार ही है मगर इसकी व्युत्पत्ति अवधारणा से ही बताई गई है। इस संदर्भ में हमें मोनियर विलियम्स की संस्कृत-इंग्लिश डिक्शनरी एक महत्वपूर्ण प्रणाण देती है। इसमें एक शब्द है अवघ्रा/अवघ्राणम् जिसका मतलब है सुगंधित करना। मुझे लगता है यह अवघ्रा ही बघार या बघारना के मूल में है। संस्कृत की घ्रा धातु का मतलब होता है सूंघना, गंध लेना आदि। अवघ्रा से बघार बनने का क्रम कुछ यूं रहा होगा- अवघ्राणम् > वघारणम् > वघारन> बघार/बघारना। बघार के मूल में स्वादिष्ट, सुवासित करने का भाव इस व्युत्पत्ति से स्पष्ट हो रहा है। बघार शब्द में मुहावरे की अर्थवत्ता भी है। इससे बने शान बघारना, शेखी बघारना जैसे मुहावरों का प्रयोग हिन्दी-उर्दू में खूब होता है। शान बघारना का अर्थ है अपनी प्रशंसा में बड़ी बड़ी बातें करना। शेखी बधारने में भी डींगें हांकने का ही भाव है। तड़का, बघार से हटकर भोजन को विशुद्ध सुगंधित करने की एक अन्य तरकीब है जो धुंआर या धुंगार कहलाती है। मुख-सुख में कुछ लोग इसे धमार भी कहते हैं। दाल, पुलाव, खिचड़ी जैसे पदार्थों को सुवासित करने की इस तरकीब में जलते अंगारे को एक कटोरी में रखा जाता है। फिर उस पर घी के साथ हींग या लौंग जैसे मसाले डाले जाते हैं। जैसे ही तेज धुआं उठता है, कटोरी को तैयार व्यंजन के बर्तन में बीचोंबीच रख कर बर्तन को अच्छी तरह ढक दिया जाता है। कुछ ही देर में सुगंधित धुआं व्यंजन द्वारा सोख लिया जाता है और एक खास सौंधी महक उसे अलग पहचान देती है। धुम्र+ आधार से बना है धुंआर या धुंगार शब्द। व्यंजन को लज़ीज़ बनाने का यह तरीका साधारण है मगर यह भोजन को विशिष्ट बना देता है। हालांकि इसका प्रयोग कम होता है क्योंकि रसोई में अब अंगारा दुर्लभ होता जा रहा है। [फिलहाल विराम]
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18 कमेंट्स:
बड़ा फर्क है जी बघार और धुंगार में। धुंगार तो विशुद्ध रूप से धुएँ के बघार के साथ संयोग से ही बना है। वह है भी धुएँ का बघार।
aankh meech karkar bhi rsoi me bghar ka kam din me kam se kam panch bar kar lete hai us par bhi kbhi itna nahi socha aur aapki yh shabd yatra ne " bghar"ko uchh sthan par pahuncha diya .
bhut sundar jankari
dhnywad
अजित जी,
जन्मदिन पर आपकी इस जॉयकेदार पोस्ट से दावत जैसा ही लुत्फ आ गया...बस भाई रवि पराशर वाली चीज़ की कमी रह गई...
जय हिंद...
जॉयकेदार...ज़ायकेदार
वैसे जॉय भी सटीक बैठता है...
जय हिंद...
"बहुत महत्वपूर्ण जानकारी!"
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ओंठों पर मधु-मुस्कान खिलाती, रंग-रँगीली शुभकामनाएँ!
नए वर्ष की नई सुबह में, महके हृदय तुम्हारा!
संयुक्ताक्षर "श्रृ" सही है या "शृ", उर्दू कौन सी भाषा का शब्द है?
संपादक : "सरस पायस"
आज रसोई में खुशबू ही खुशबू
किसी का जन्म दिन था क्या
अरे हाँ
"अजित भाई : खूब बधाई "
मैं फिर कहूँगा, खाने के पहले कहाँ सोचते हैं ये सब... पर अब खाते समय इन शब्दों का ध्यान जरूर आएगा.
और हाँ टिपण्णी के बक्से का कुछ कीजिये !
धुंगार को ही धौंक देना या दम देना भी कहते हैं...यह बधार से अलग है. धुंगार सौंधापन ले आता है खाने में जैसे मिट्टी के चूल्हे पर पकाया गया है.
आप्टे का कोष 'व्याघारित' शब्द बता रहा है जिस का मतलब 'घी या तेल से छिड़का हुआ'(sprinkled with oil or ghee) है. टर्नर भी कुछ ऐसा ही बता रहा है.'बघार'
भी इसी के साथ जुड़ा हुआ है. विस्तार से देख लेना .
बढियां,इन सबका सम्बन्ध कहीं न कहीं अच्छे स्वास्थ से ही था.
@बलजीत बासी
आपटे और टर्नर का काम मोनियर विलियम्स पर आधारित ही है।
क्या बात है !!!!!!!!!!!आपकी रात की पार्टी का स्वाद पोस्ट में भी उतर आया ! बढ़िया है /
बढ़िया जानकारी! धुंआर की जानकारी बहुत उपयोगी सिद्ध होती यदि लकड़ी का कोयला मिल पाता। धुंआर दिया रायता बहुत स्वादिष्ट होता है।
घुघूती बासूती
हम तो मट्ठा और रायता धुआर के ही प्रयोग करते है . हमारे यहाँ तो कंडे को गरम कर उस पर तेल आदि डाल कर धुएं को वर्तन में भर कर उसमे मट्ठा आदि डाल कर स्वाद लेते है .
आपके जन्मदिन पर शब्दों के व्यंजन चटकारा लेकर ग्रहण किये
सचमुच अब बिना अंगीठी के धुंगार का व्यवहार भी समाप्तप्राय है...
सुन्दर सुगन्धित शब्द विवेचना...आभार...
मोनियर विलियम्स की संस्कृत-इंग्लिश डिक्शनरी में 'अवघ्रा' का जो इन्द्राज आप ने दिखाया है उससे इसका अर्थ सूंघना ही निकलता है. इससे उल्ट किर्या सुगन्धित करना कैसे आ गई? क्या इसमें घी के शामिल होने को आप बिलकुल रद्द कर रहे हैं?
पंजाबी में बघार का अर्थ तडके के लिए पिघलाया घी होता है.
वैसे 'भुनना' और 'भुजना' शब्द है जिनके ऐसे ही अर्थ है. कुछ भी हो मुझे इस शब्द में घी की सुगंध आ रही है!
अजीत भाऊ ,
अपुन का एक फ्रेंड है ......छौंक सिंह ' तड़का '
वो तो पुराना तडकेबाज़ है . आजकल एक ब्लॉग पर भी ' तड़का ' मार रिएला है .
मालूम क्या ??..................... :):) .
@बलजीत बासी
मैने पर्याप्त शोध के आधार पर ही लिखा है। घी सिर्फ माध्यम है। इसका व्युत्पत्ति आधार अलग है। बघार में घी का प्रयोग होता है इसका उल्लेख किया गया है। आप अगर यह कहना चाहते हैं कि बघार और घी में व्युत्पत्तिमूलक रिश्ता है तो उसका प्रमाण कहां है? सिर्फ ध्वनिसाम्य से काम नहीं चलेगा, भाषा वैज्ञानिक प्रमाण के साथ बात करिए। सूंघना शब्द में ही गंध का भाव है। अवघ्राणम् में जो अर्थ है उसका विस्तार ही बघारना क्रिया में होता है। मूल संस्कृत से देशज रूप लेते लेते अर्थ और भावों में कई परिवर्तन होते हैं।
घ्रा में निहित सूंघने का भाव गंध या सुगंध से ही तो जुड़ेगा ना? अर्थात सुगंध के धातु मूल से नहीं बल्कि अर्थ से। बघार का अर्थ अंग्रेजी-हिन्दी समेत सब कोशों में व्यंजनों को सुवासित करने की प्रक्रिया ही बताया गया है और यही अर्थ भी है। आप देखिये कि मुझे अपनी बात कहने के लिए वही सब लिखना पड़ रहा है जो पोस्ट में लिख चुका हूं। बघार का उद्देश्य मसालों की गंध और स्वाद से व्यंजन को लजीज बनाना है न कि पकाए हुए पदार्थ में घी उंडेलना। घी का मुख्य गुण पौष्टिकता है न कि गंध। वह सेकंडरी बात है। सो बघार का रिश्ता गंधयुक्त बनाने की क्रिया से है। अवघ्राणम् में सूंघना या सूंघने योग्य बनाने का भाव समझा जा सकता है। बघार की घी से रिश्तेदारी एक मीडियम के रूप में सर्वसिद्ध है। मगर बघार से व्युत्पत्तिमूलक रिश्ता नहीं है।
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