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ल कीर, कतार या लाईन के अर्थ में हिन्दी में पंक्ति शब्द प्रचलित है। पंक्तिबद्ध शब्द से एक लाईन में लगे होने की स्थिति को जाहिर होती है। कतार शब्द अरबी मूल का है मगर संस्कृत-हिन्दी का बद्ध प्रत्यय लगा कर इससे कतारबद्ध शब्द भी बना लिया गया है जो पंक्तिबद्ध जितना ही प्रचलित है। बद्ध शब्द का अर्थ है बंधा हुआ होना या बांधना। यहां बंधन का भाव सचमुच गांठ बांधने से नहीं है बल्कि बंधन एक अनुशासन है। इस तरह एक पंक्ति में एक के पीछे एक या एक के बाद एक रहने की स्थिति ही पंक्तिबद्ध है। पंक्ति में मूल रूप से कतार का ही भाव है। सरलरैखीय एक ऐसी व्यवस्था जिसमें एक साथ एक ही प्रकार की वस्तुए या प्राणी एक कतार में हों। श्रेणी या सीधी सरल रेखा या कतार को पंक्ति कहते हैं। फौजियों की गारद या प्लाटून भी पंक्ति कहलाती है। भोजशाला में सामूहिक भोजन के लिए बैठे आमंत्रितों के समूह को भी पंक्ति कहते हैं। हिन्दी पंक्ति के इस खास प्रकार के लिए पंगत या पांत जैसा सीधा-सरल देशज शब्द है। पंगत यानी सामूहिक भोजन। पंगत का अर्थ उत्सवी जमावड़ा भी होता है। इस अर्थ में सभा-आयोजन को भी पंगत या पांत कहा जा सकता है। इसका मुहावरेदार इस्तेमाल होता है जैसे पंगत लगाना या पंगत जमाना। पंक्ति से ही बना है पांत जिसका प्रयोग अक्सर श्रेणी या दर्जा के अर्थ में होता है। पांत के अर्थ में समाज की विशिष्ट जमातों का भी समावेश हो जाता है। जैसे ब्राह्मणों की पांत या यादवों की पांत।
पंक्ति शब्द की व्युत्पत्ति हुई है संस्कृत धातु पंच् से बना है पंक्ति शब्द। पंच् का सामान्य अर्थ पांच की संख्या है मगर इसके मूलार्थ किसी विशिष्ट अंक या संख्या का द्योतक नहीं है बल्कि यह समूहवाची शब्द है। पंच यानी अनेक। वैदिक युग में पंच में अंक संबंधी भाव समाहित हुए। काया, पृथ्वी आदि के संदर्भ में पंचतत्वों की कल्पना की गई। उनकी तार्किक विवेचना के बाद पंचमहाभूत की परिकल्पना स्थापित हुई जो आज भी प्रचलित है। शरीर पंचतत्व (क्षिति, जल पावक, गगन, समीरा यानी अग्नि, पृथ्वी, जल, वायु और आकाश) से निर्मित है, इसे मनुष्य ने समझा। उसने अपने हाथों और पैरों की अंगुलियों की रचना पर गौर किया। इन्हें भी पंच् की कल्पना के अनुकूल पाया। पांच का अंक इसी रूप में सामने आया। पंच् का एक अर्थ दस की संख्या भी था। गणित में दहाई का महत्व है। भारतीय मनीषियों ने शून्य की परिकल्पना से दाशमिक प्रणाली को जन्म दिया। सेना में दस-दस योद्धाओं की श्रेणी या फाइल को भी पंक्ति ही कहते हैं। रावण का एक विशेषण पंक्तिग्रीव भी है अर्थात दशानन। पंक्ति शब्द से कुछ अन्य शब्द भी बने हैं जो हिन्दी में प्रयोग होते हैं जैसे ब्राह्मणों का एक वर्ग खुद को पंक्तिपावन कहलाने में गर्व का अनुभव करता है। ये सब जगह होते हैं। महाराष्ट्र में यह शब्द आज भी सुनने को मिलता है जिसका मतलब है अपनी उपस्थिति मात्र से समूचे समूह को धन्य करनेवाला। किन्ही आनुष्ठानिक अवसरों पर जब विद्वान ब्राह्मण सामूहिक भोज में सम्मिलित होते थे, तब यह माना जाता था कि उनकी कुलीन उपस्थिति समूचे जनसमुदाय अर्थात पंक्ति को पवित्र-पावन कर देगी। ऐसे अवसर रोज-रोज नहीं आते थे। सम्मान, ज्ञान और विद्वत्ता का ही होता है, सो पंक्तिपावन में विद्वत्ता और कुलीनता का संकेत भी छुपा है। अपनी शाखा में श्रेष्ठ ब्राह्मणों को भी पंक्तिपावन कहा जाता था। इस शब्द में छुपे महत्व को ब्राह्मणों ने पहचाना और चतुराई पूर्वक इसका इस्तेमाल भी किया। कई सगोत्रीय ब्राह्मणों के संस्कारों और विद्यार्जन में दोष निकालकर उन्हें पंक्तिपावन का रुतबा नहीं दिया जाता था। बाद में पंक्तिच्युत शब्द भी चल पड़ा था मगर इसका संबंध ब्राह्मण समुदाय से न होकर सभी समाजों के उन लोगों से था जो किसी न किसी वजह से अपने मूल समाज से बहिष्कृत थे। इसके लिए चलताऊ शब्द है जात-बाहर। दशरथ का एक नाम पंक्तिरथ भी था।
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14 कमेंट्स:
बहुत आभार ज्ञानवर्धन का.
बेहद सुन्दर आलेख ! पंक्तिरथ भी कहते थे दशरथ को - जाना !
आभार ।
अच्छा रहा यह पांत का पंडित संस्करण भी...
एक परिवार के शब्दों को एक साथ देख कर लगता है हम शब्दों के परिवार से मिल रहे हैं।
गणित के इतिहास में कभी अंक भी पाँच तक ही हुआ करते थे। उन से ही सारी संख्याएँ गिन ली जाती थीं।
अरब, अजम* से मिला# तो कतारबद्ध* हुआ,
वो पंक्तिच्युत* हुआ, शख्स जो क्रुद्ध हुआ.
*अजम= ग़ैर अरब,
#दो भाषा या संस्कृति का मेल
*कतारबद्ध=अनुशासित
*पंक्तिच्युत=विद्वता से गिरना
आड़ी-तिरछी हो रहीं, पंगत, पाँत, लकीर।
रेखाओं के जाल में, फँसे औलिया पीर।।
१.बहुत साल पहले अंग्रेजी में एक किताब पढ़ी थी जिस में लिखा था की आदि लोग दो से आगे गिनना नहीं जानते थे. अगर किसी के पास दो या दो से अधिक भेडें होती थी तो वह बोलते थे 'मेरे पास कई भेडें हैं'. मैं ने देखा है गाँव में व्यापारी किसानों से गेहूं खरीद कर जब धडा तोलते थे (मान लो दो सेर का) तो जब एक धडा हो गया बोलते थे एक, एक, .. फिर दुसरे के लिए दो ,दो .... कितनी बार दुहराते थे इस लिए कि गलती न हो जाये, याद रहे. जब तीसरा धड़ा होता था तो बोलते बहुते, बहुते ....एक बार मैं ने पूछा तीन को 'बहुते' क्यों बोलते हो? उसने बोला तीन नहिश होता है. मुझे पढ़ी किताब याद आ गई.
२.जब हमारे पास भरोपी मूल 'प्रेंग्के' है जिस से सबी भरोपी भाषाओँ के पांच के सुजाति शब्द बने हैं तो हमारा पांच समूहवाची शब्द क्यों बना रहा ?
३.वैसे यह मैं मानता हूँ कि पांच या पंच सिर्फ ५ के लिए ही नहीं इसके और भी अर्थ हैं. पंच चुने हुए, या मानयोग लोगों को बोलते थे. पंचायत केवल पांच पंचों की ही नहीं होती थी/है.
गुरु ग्रन्थ में परमात्मा के चुने हुए या माननीय लोगों के लिए पंच शब्द बहुत बार आया है:
पंच परवाण पंच परधानु, पंचे पावहि दरगहि मानु
पंचे सोहहि दरि राजानु, पंचा का गुरु एकु धिआनु
लेकिन पंच शब्द पांच बुरायों (काम, क्रोध वगैरा) के लिए भी बहुत बार आया है:
अवरि पंच हम एक जना किउ राखउ घर बारु मना
४. पांच का संबंध तो अंगुलियों से ही जाना जाता है.
५.सिफर और दशमलव के आविष्कार की बात बेहद विवादी है. मैं ने किसी जगह पढ़ा है कि शुन्य के ज्ञान के सबूत गैर-भारती इलाकों से मिले हैं जो हजारों साल पुराने हैं . फिर हाथ लगे तो बताऊंगा .
@बलजीत बासी
पंच शब्द पर अभी और चर्चा होगी बलजीतजी। सिफर और दशमलव पर मुझे नहीं लगता कोई विवाद है, यह ऐसा तथ्य है जिसे ठोक बजाकर सभी स्वीकार कर चुके हैं। इस पर एक पोस्ट सफर में है। फिर भी आप के हाथ कुछ लगे तो स्वागत है।
नये साल की बहुत बहुत शुभकामनायें । ग्यानवर्द्धक आलेख के लिये धन्यवाद्
baut badhiya aalekh .pankti sabd ke any gudh rhsy bhi jane .abhar
पंगत में बैठ्ने में अब परेशानी होती है और परोसने मे भी . इसलिये पशु भोज का ही सहारा लेना पढता है
अच्छा रहा यहभी.आभार.
आज ठण्ड बहुत hai ghana kohra hai
Magar Post to Jaandar hai
यहां आकर अच्छा लगा......
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