Tuesday, January 5, 2010

पंच-परमेश्वर और पंचायती-माल

"पंच् का समष्टिमूलक अर्थ पंच-परमेश्वर में भी सिद्ध होता है। समूची सृष्टि में ईश्वर को ही सर्वोच्च माना गया है। इस मंडली को पंच-परमेश्वर की संज्ञा देने का तात्पर्य ही पंच शब्द की महत्ता और उसमे निहित गुरुता को सामने लाना है।"

पिछली कड़ी-पंगत, पांत और पंक्तिपावन [लकीर-7]

सं स्कृत धातु पंच् की अर्थवत्ता बडी व्यापक है। मूलतः यह समूहवाची शब्द है जिसमें एक से अधिक का भाव है।प्रचलित अर्थों में इसका रिश्ता पांच की संख्या से जोड़ा जाता है मगर प्राचीनकाल में ऐसा नहीं था। इस आधार से निकला सबसे प्रचलित शब्द है पंचायत जो भारत की ग्रामीण व्यवस्था का आधार है और भारतीय संविधान में पंचायती राज व्यवस्था के रूप में इसे कानूनी आधार भी मिला हुआ है। पंचायत ग्राम प्रतिनिधियों की उस मंडली को कहते हैं जिसे आमराय या निर्वाचन के जरिये ग्रामवासी चुनते हैं। पुराने जमाने में इस व्यवस्था के तहत गांववालों के आपसी विवादों के निपटारे हुआ करते थे। प्राचीन भारत की पंचायतें सामाजिक, आर्थिक, न्याय और ग्रामीण-प्रबंध जैसे सभी कार्य करती थी। आज के दौर में पंचायत को सबसे छोटी लोकतांत्रिक इकाई कह सकते हैं।
पंचायत शब्द बना है संस्कृत के पंचायतनम् से जिसका अर्थ है किसी देवता के साथ अन्य चार देवताओं की मूर्तियों का समूह। यह बना है पंच+आयतनम् से। आयतन का अर्थ होता है आवास, स्थान, पवित्र-पीठ आदि। जाहिर है पंचायतनम् इस अर्थ में मंदिर ही था जहां सर्वोच्च शक्ति का वास होता है। इसीलिए प्राचीन भारतीय संस्कृति, जो मूलतः ग्राम-संस्कृति ही थी, में स्वशासन प्रणाली के सर्वोच्च पीठ के लिए पंचायत नाम का चुनाव एकदम सही था। इस संदर्भ में शिवपंचायतन, रामपंचायतन, पंचायतन गणपति जैसे स्थल उल्लेखनीय हैं।  पंचायत का समूहवाची भाव प्रमुख लोगों की गोष्ठी से जुड़ा। पुराने जमाने में पंचायतें जाति व्यवस्था से जुड़ी थीं। व्यापक तौर पर इनका आज भी अस्तित्व है।
जाति अपने आप में समूहवाची शब्द है। जाति-पंचायत से तात्पर्य किसी एक जनसमूह के नियमन और नियंत्रण करनेवाले तंत्र से था जिसमें आमतौर पर पांच लोग होते हैं। चुने हुए पांच नुमाइंदो की मंडली जब किसी मुद्दे पर ग्रामीणों के बीच विराजती है, उसे पंचायत बैठना कहते हैं। इस पंचायत का एक मुखिया होता है जिसे सरपंच कहते है। सर शब्द का मूल रूप सिर से है जो शीर्ष से आ रहा है। सिर शरीर का सबसे ऊपरी अंग होता है जिसमें मस्तिष्क स्थित होता है। इसी कारण इसमे सर्वोच्चता का भाव है। शीर्ष का अपभ्रंश सिर हुआ जो बाद में सर में बदल गया। सर शब्द की व्याप्ति उर्दू-फारसी में भी है। फारसी का दार प्रत्यय लगने से मुखिया के लिए सरदार शब्द प्रचलित हुआ। पंच के साथ सर लगाने से बना सरपंच जो पंचायत व्यवस्था का मुखिया कहलाया। आज के दौर में लोकतांत्रिक व्यवस्था वाली पंचायत panchang का पांच से रिश्ता नहीं है। पंच् का समष्टिमूलक अर्थ पंच-परमेश्वर में भी सिद्ध होता है। समूची सृष्टि में ईश्वर को ही सर्वोच्च माना गया है। इस मंडली को पंच-परमेश्वर की संज्ञा देने का तात्पर्य ही पंच शब्द की महत्ता और उसमे निहित गुरुता को सामने लाना है। आज पंचायती माल मुहावरा भी चल पड़ा है जिसका अर्थ है सार्वजनिक सम्पत्ति या ऐसा माल जिसका स्वामी कोई न हो। पंचायत करना का अर्थ अब विवाद सुलझाना नहीं बल्कि जब कोई विवाद होता तब उसे पंचायत करना कहा जाता है।
पंच् से बना एक अन्य प्रमुख शब्द है पंचांग जो हर घर में पाया जाता है। यह तिथि-वार-मुहूर्त जानने की जंत्री-पत्री होती है। यह बना है पंच्+अंग से अर्थात पांच अंगों वाला। शास्त्रों में साष्टांग प्रणाम की तरह पंचांग प्रणिपात का उल्लेख भी है। साष्टांग में जहां दंडवत मुद्रा में शरीर के आठ अंगों का भूमिस्पर्श आवश्यक है वहीं पंचांग प्रणाम में मस्तक, हाथ और घुटने से भूमि स्पर्श कर आराध्य की ओर देखते हुए मुंह से नमस्कार का उच्चार किया जाता है। पंचांग का अर्थ पांच अंगों वाली वस्तु भी है जैसे वृक्ष जिसके पांच प्रमुख भाग होते हैं-जड़, छाल, पत्ती, फूल और फल। पंचांग का सर्वाधिक प्रचलित अर्थ पोथी-जंत्री ही है जिसके जरिये तिथि-वार जाने जाते हैं। वह पुस्तिका जिसमें किसी सम्वत् के वार, तिथि, नक्षत्र, योग और करण का ब्योरा लिखा रहता है उस पोथी-पत्री को पंचांग कहा जाता है।
पंच् से बने पंचक का अर्थ भी एक ही प्रकार की पांच वस्तुओं का समूह होता है। हाथ या पैरो के उस हिस्से को पंजा भी कहा जाता है क्योंकि इस पर पांच अंगुलियां होती हैं। यह पंचक से ही बना है। इससे कई मुहावरे बने हैं जैसे पंजा लड़ाना यानी शक्ति परीक्षण करना। पंजे झाड़कर पीछे पड़ना अर्थात किसी काम के पीछे पड़ना, पंजे में आना यानी काबू में आना आदि। भारत के एक प्रान्त का नाम भी इसी मूल से उपजा है। भारत का उत्तर पश्चिमी विस्तृत भूभाग कभी पंचनद कहलाता था क्योंकि यहां से पांच प्रमुख नदियां प्रवाहित होती थीं, जिनके नाम हैं-चन्द्रभागा (चिनाब), इरावती (रावी), व्यास (विपाशा),वितस्ता (झेलम-जेहलम) और शतद्रु (सतलुज)। इस्लाम के भारत प्रवेश के बाद पंचनद के आधार पर ही मुसलमानों ने इसे पंजाब कहना शुरू कर दिया जिसका अर्थ है पांच दरियाओं वाला क्षेत्र यानी पंज+आब। फारसी में पांच के लिए पंज और पानी के लिए आब शब्द हैं सो पंजाब का अर्थ पंचनद ही हुआ। यूं पंज भी पंच् से ही निकला है और आब की मूल धातु भी संस्कृत का अप् (पानी)ही है जिसका फारसी रूप आब बना। –जारी

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13 कमेंट्स:

Udan Tashtari said...

आभार जानकारी का!!


’सकारात्मक सोच के साथ हिन्दी एवं हिन्दी चिट्ठाकारी के प्रचार एवं प्रसार में योगदान दें.’

-त्रुटियों की तरफ ध्यान दिलाना जरुरी है किन्तु प्रोत्साहन उससे भी अधिक जरुरी है.

नोबल पुरुस्कार विजेता एन्टोने फ्रान्स का कहना था कि '९०% सीख प्रोत्साहान देता है.'

कृपया सह-चिट्ठाकारों को प्रोत्साहित करने में न हिचकिचायें.

-सादर,
समीर लाल ’समीर’

Baljit Basi said...

१.सारे पंजाब में जिसको आप ने 'झेलम' नदी बताया 'जेहलम' कहलाता है. अगर हिंदी वाले 'झेलम' बोलते होंगे तो अलग बात है. यहाँ 'च' हाई टोन में बोला जाता है. अंग्रेजों ने हमारे नामों की बहुत गड़बड़ की है. पंजाबी टोनल भाषा है.
२.'जेहलम' और 'व्यास'( पंजाबी 'बिआस') के संस्कृत नामों को ब्रैकट में लिखते समय आपने उल्ट पुलट कर दिया. जेहलम 'वितस्ता' है और व्यास(बिआस) 'विपाशा' है ना कि विशप्ता.

डॉ. मनोज मिश्र said...

यह भी सुंदर रहा,आभार.

dhiru singh { धीरेन्द्र वीर सिंह } said...

पंच और पंचायत ........ भगवान बचाये इनसे . वैसे पंचक मे कोइ म्रत्यु होती है तो कहा जाता है ५ लोग मरेंगे .

Kusum Thakur said...

इस जानकारी के लिए बहुत बहुत धन्यवाद !!

दिनेशराय द्विवेदी said...

पाँच शब्द क्या उन दिनों की स्मृति नहीं है जिन दिनों गणित में केवल पाँच ही अंक हुआ करते थे।

अजित वडनेरकर said...

@दिनेशराय द्विवेदी
क्यों नहीं दिनेश भाई। यह तो इस पंच् धातु मूल से बना सर्वाधिक प्रचलित रूपांतर है। इससे पहली कड़ी में इसका उल्लेख है।

अनिल कान्त said...

शब्दों के ज्ञान का अथाह भंडार सामने पाकर खुशी मिलती है.

अजित वडनेरकर said...

@बलजीत बासी
शब्दक्रम को ठीक कर लिया है बलजीतजी। ध्यान दिलाने का शुक्रिया।

निर्मला कपिला said...

बहुत बडिया धन्यवाद्

शोभना चौरे said...

पंचायत करना का अर्थ अब विवाद सुलझाना नहीं बल्कि जब कोई विवाद होता तब उसे पंचायत करना कहा जाता है।
aur yh vivad bina bat ke hi chlta rhta hai arthheen mudda .
achhi jankari
abhar

किरण राजपुरोहित नितिला said...

bahut jankari bhari post hai,aabhar!!!!!!!

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

सुन्दर विवेचना है जी!

पंजाब भी तो पञ्च+आब से ही बना है।
पंजाब में पाँच को पंज कहते हैं ना इसी लिए तो
पाँच नदियों के पानी से पञंचनदप्रदेश पंजाब कहलाता है!

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