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Friday, June 18, 2010
झांसा खाना, झांसा देना
कि सी के साथ धोखाधड़ी करने के लिए झांसा शब्द बोलचाल की हिन्दी में खूब प्रचलित है। “खूब झांसा दिया” अथवा “झांसे में न आना” जैसे वाक्यांश इन्हीं अर्थों में रोज हम अपने आसपास सुनते हैं। हालांकि झांसा सिर्फ दिया ही नहीं जाता बल्कि खाया भी जाता है। यह ज़रूर है कि झांसा देने वाले के लिए तो समाज ने फारसी का बाज प्रत्यय लगाकर झांसेबाज जैसा शब्द बना लिया जिसका अर्थ है धोखा देने वाला, मगर झांसा खाने वाले के लिए इसी कड़ी में नया शब्द नहीं बन पाया। बनता भी कैसे ? मूर्ख, बेवकूफ, बुद्धू, मूढ़मति, मतिमंद जैसे शब्द तो पहले से ही मौजूद हैं। इन पर भारी पड़ने वाले गधा और उल्लू जैसे शब्द भी शब्दों की तिजौरी में इन्सान ने डाल रखे हैं। झांसा शब्द बना है संस्कृत के अध्यासः से जिसका अर्थ है ऊपर बैठना। यह शब्द बना है अधि+आस् के मेल से। अधि संस्कृत का प्रचलित उपसर्ग है और इससे बने शब्द हिन्दी में भी खूब जाने-पहचाने हैं जैसे अधिकार। अधि उपसर्ग में आगे या ऊपर का भाव है। आस् शब्द का अर्थ है बैठना, लेटना, रहना, वास करना आसीन होना आदि। आसन शब्द इसी धातु से निकला है जिसका अर्थ है बैठना, बैठने का स्थान, कुर्सी, सिंहासन, आसंदी वगैरह। इस तरह अध्यासः का अर्थ हुआ ऊपर बैठना। गौर करें इसमें हावी होने, चढ़ने का भाव है।
आसन शब्द सिर्फ बैठने के स्थान का पर्याय नहीं है बल्कि इसमें पद के अनुरूप स्थान का भाव भी है। आसन अपने आप में बुद्धि और प्रतिष्ठा से जुड़ा है। इस तरह अध्यासः मिथ्या भाव भी है अर्थात योग्यता न होने पर भी उसका दिखावा करना। आसन यानी कुर्सी के लायक न होन पर भी अपना रौब जताना। एक झूठी छवि प्रस्तुत करना। आप्टे कोश में अध्यासः का अर्थ मिथ्या आरोपण दिया है जो इसी भाव की पुष्टि करता है। खुद को उस रूप में आरोपित करना जो हकीकत नहीं है अर्थात रौब जताना। हिन्दी शब्दसागर के अनुसार अध्यासः का प्राकृत रूप अ अञ्झास हुआ। गौरतलब है कि तत्सम से देशज बनने के क्रम में अक्सर ध+य मिलकर झ का रूप लेते हैं जैसे उपाध्याय से ही ओझा बना और अंततः झा रह गया। इसी तरह अध्यासः > अञ्झास > झांसा के क्रम में एक नया शब्द सामने आया।
झांसा के प्रचलित रूपों में झांसापट्टी शब्द भी शामिल है जिसमें मुहावरे की अर्थवत्ता है। यहां पट्टी शब्द में निहित पाठ शब्द को साफ पढ़ा जा सकता है। पठ् धातु से ही पाठ, पठन या पठाना जैसे शब्द बने हैं। पट्टी शब्द बना है संस्कृत के पट्ट या पट्टम् से जिसका अर्थ है कपड़ा या कोई चिकनी सतह। प्राचीनकाल में कपड़े पर ही लिखा जाता था। उससे पहले पत्तों पर लिखाई होती थी। पत्र और पट्ट की सादृश्यता गौरतलब है। पत्र बना है पत् धातु से जिसमें गिरने का भाव है, मगर उड़ने का भी है। पत्ता उड़ता भी है और गिरता भी है। झांसापट्टी में लिखनेवाली पट्टी या पाटी का अर्थ निहित है। विद्यार्थी को पट्टी पर ही पाठ पढ़ाया जाता है। सो झांसा के साथ पट्टी के जुड़ने से मुहावरा सामने आया। अपना मतलब सिद्ध करने के लिए जबर्दस्ती का ज्ञान बघारना, खुद को आला साबित करना, किसी को धोखे में रखना या फिर बहकाने जैसे काम झांसा की श्रेणी में आते हैं।
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13 कमेंट्स:
झांसा तो हो गया अजित जी, मगर झांसी के बारे में क्या?
झांसा खाना ..झांसा खाओ ...झांसा खाते रहोगे....बहुत बढ़िया पोस्ट .... आपके ब्लॉग को पढ़ता हूँ तो शब्दों के काफी अर्थ जानने को मिल जाते है ...ब्लागजगत में आपका प्रयास सराहनीय है...आभार
झांसापट्टी..कई तो इसमें महारत (पी एच डी) पा गये :)
बढ़िया आलेख.
सुन्दर विश्लेषण।
झाँसा से झाँईं का संबंध?
सुन्दर आलेख। धन्यवाद्
# 'झांसा' दिये हुए भी है, खाए हुए भी हम,
ख़ुद को तलाशते हुए गुम हो गये है हम.
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# 'झांसे की पट्टी' धोखे की टट्टी समान है,
ख़ुद का लिखा हुवा भी न पढ़ पा रहे है हम.
mansoorali hashmi
झांसा नहीं खायेंगे समझ जो गए झांसे के बारे में
ध्या बहुधा झा में बदल जाता है, यह नवीन तथ्य है ज्ञानकोष में । क्या झाँसी की उत्पत्ति भी कुछ ऐसी ही है ।
अच्छा झांसा समझ में आया
अध्यासः > अञ्झास > झांसा ...बढ़िया जानकारी !
आजकल दिल्ली में हैं... दोस्ती का झाँसा देकर झाँसेबाज़ पड़ोसी ने हमें ऐसा बेवकूफ बनाया कि सबकी नज़र में हम मूर्ख बन गए...अब मुँह बाए बैठे हैं और सोच रहे हैं कि काश पड़ोसी की झाँसापट्टी को समझ पाते तो आज यह दिन न देखना पड़ता...
अधियास से झांसे तक पहुंचना भी एक हसीन झांसापट्टी ही तो है।
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