Friday, January 6, 2012

सब बराबर हैं…

equal1

हि न्दी के सर्वाधिक प्रयुक्त शब्दों एक शब्द है ‘बराबर’ जिसे दिनभर में न जाने कितनी बार हम इस्तेमाल करते हैं। असमानता और भेदभाव से भरे समाज में हमारा तमाम वक्त या तो दूसरों की बराबरी करने में बीतता है या किसी को अपने बराबर न आ ने देने में जाता है। समतावादी समाज की चाहे लाख दुहाई दी जाए, पर गैरबराबरी ही समाज का असली चेहरा है। बराबर शब्द में जबर्दस्त मुहावरेदार अर्थवत्ता है। बराबर का प्रचलित अर्थ है समतुल्य, समान, एक साथ, एक जैसा आदि। इसमें लगातार का भाव भी है। “वह बराबर बोलता जा रहा था” इस वाक्य में समतुल्यता की बजाय सातत्य का भाव ज्यादा है। इसके साथ ही इसका मुहावरेदार प्रयोग भी होता है जिसमें चौपट करना, नष्ट करना, निपटा देना, मुकाबला करना, होड़ करना, स्पर्धा करना, अनिर्णित रहना, पड़ोस का, साथ का, बाजू में, समकक्ष रखना, लगातार आदि। गणित में equal के = चिह्न को ‘बराबर’ ही कहा जाता है।
राबर में जो समानता का भाव है उसके मूल में सचमुच सामाजिक समानता का भाव है। सभी लोगों के ‘बराबर’ होने का सन्देश इसमें छुपा है। मिलजुल कर काम करने के सम्बन्ध में अक्सर कंधे से कंधा मिलाने की बात कही जाती है। पारस्परिक सौहार्द के लिए, भाईचारा बढ़ाने के लिए दिल से दिल जोड़ने की बात कही जाती है। लेकिन इन सूक्ष्म निहितार्थों तक पहुँचने के लिए स्थूल रूप से गले मिलने की बात कही जाती है उसके मूल में भाईचारा ही है। गले मिलने की क्रिया ही दरअसल सीने से लगने की क्रिया भी है। इसे कलेजे से लगना या कलेजे से लगाना भी कहते हैं। देखते हैं ‘बराबर’ शब्द कहाँ से आया, कैसे बना। ‘बराबर’ इंडो-ईरानी परिवार का शब्द है और हिन्दी में फ़ारसी से आया है। ऐसा लगता है मुस्लिम शासन के शुरुआती दौर में ही यह शब्द बोलीभाषा में समा गया था। कबीर ने इसका प्रयोग किया है-“सांच बराबर तप नहीं, झूठ बराबर पाप। जाके हिरदै में सांच है, ताके हिरदै हरि आप ॥” बराबरी में दिल को दिल से जोड़ने के बहाने समानता का सन्देश महत्वपूर्ण है
राबर सामासिक पद है। इसके मूल में फ़ारसी का बर शब्द है जिसका अर्थ है वक्ष, सीना, छाती, हृदय, अन्तःस्थल वगैरह। संस्कृत में ‘उरः’, ‘उरस्’ शब्दों का आशय भी यही है। स्त्रियों की छाती, विशेषकर स्तनों के लिए ‘उरोज’ या ‘उरसिज’ शब्दों का रिश्ता भी इसी ‘उर’ से है। वात्सल्य भाव व्यक्त करने के लिए ‘उर’ का प्रयोग गोद की तरह भी होता है। इस उर का ज़ेन्द रूप है ‘वर’, जिसका फ़ारसी रूपान्तर ‘बर’ होता है। उरः > वर > बर । जॉन प्लैट्स को कोश के मुताबिक  ‘बराबर’ बना है ‘बर-आ-बर’ से जिसमें सीने से सीने को मिलाने की बात है।

Equal... बराबरी में दिल को दिल से जोड़ने के बहाने समानता का सन्देश महत्वपूर्ण है...

‘बर-आ-बर’ का प्रचलित रूप बराबर हुआ। भाव समानता का है। इस तरह ‘बराबर’ शब्द की अर्थवत्ता व्यापक होती चली गई और इसमें वे सब भाव आ गए जिनका उल्लेख ऊपर किय गया है। फ़ारसी में मुहावरा है “बराबर करदन” जिसमें एक जैसा, सपाट करने का आशय है। इसका हिन्दी रूप हुआ “बराबर करना”। जिन चीज़ों को यथावत रहना था, उन्हें एक दूसरे के साथ गड्डमड्ड करने से मूल स्वरूप पर बुरा असर पड़ता है। इसे व्यक्त करने के लिए भी “सब बराबर कर दिया” का प्रयोग होता है।
राबर से मिलता जुलता एक अन्य शब्द भी हिन्दी में बारबार प्रयोग होता है। यह जो “बारबार” समास है यह खालिस हिन्दी का शब्द है और “बराबर” की बराबरी कर सकता है। ‘बारबार’ शब्द में जिस दोहराव का भाव है, आवृत्ति का भाव है वह संस्कृत के ‘वृ’ से आ रहा है। ‘वृ’ से बने ‘वर्’ में मूलतः काल का भाव है। साफ है कि प्राचीन काल से ही काल या अवधि की बड़ी इकाइयों की गणना मनुष्य ने ऋतु परिवर्तन और सूर्य-चंद्र के उगने और अस्त होने के क्रम की आवृत्ति यानी दोहराव को ध्यान में रखते हुए की। प्रकृति में दोहराव का क्रम महत्वपूर्ण है। चाहे वह वर्ष हो, माह हो या दिन। सप्ताह के दिनों के पीछे लगे ‘वार’ शब्द से यह स्पष्ट है। संस्कृत ‘वारः’ से बना है हिन्दी का वार जो इसी ‘वृ’ से आ रहा है जिसका अर्थ है सप्ताह का एक दिन, समूह, आवृत्ति, घेरा, बड़ी संख्या आदि। वृ धातु में निहित ‘आवृत्ति’ का भाव चौबीस घंटों में सूर्य को घूमने की गति में समझ सकते हैं जिससे एक दिन बनता है। तीस दिनों में एक माह और बारह मासिक-चक्रों से एक वर्ष तय होता है। यही आवृत्ति ‘ऋतु’ कहलाती है।
वृ धातु में संस्कृत का ‘ऋ’ भी छुपा है। वार का ही फारसी रूप ‘बारः’होता है जिसमें दोहराव, दफा, मर्तबा जैसे भाव है। संस्कृत के अनुस्वार की प्रवृत्ति ही अवेस्ता और फारसी में भी है। अक्सर के अर्थ में भी जिस ‘बारहा’ का प्रयोग हम हिन्दी उर्दू में देखते हैं वह यही ‘बारः’ है। बार-बार के अर्थ में हिन्दी में बहुधा शब्द है। संस्कृत में इसके लिए ‘वारंवारम’ शब्द है जिससे हिन्दी का ‘बारम्बार’ शब्द बना है। मराठी में इसका ‘बालंबाल’ रूप प्रचलित है।

ये सफर आपको कैसा लगा ? पसंद आया हो तो यहां क्लिक करें

3 कमेंट्स:

प्रवीण पाण्डेय said...

बराबर समझ में आया हुजूर..

शोभा said...

बरोबर है

विभूति" said...

sarthak post....

नीचे दिया गया बक्सा प्रयोग करें हिन्दी में टाइप करने के लिए

Post a Comment


Blog Widget by LinkWithin