सबसे पहले अरबी के “आम” की बात । ज्यादातर लोग इस आम को सिर्फ़ “आम” यानी साधारण तक सीमित मानते हैं, दरअसल वह सेमिटिक भाषा परिवार का इतना महत्वपूर्ण शब्द है कि इस “आम” की अर्थवत्ता के एक छोर पर माँ है, दूसरे पर अवाम है तो तीसरे पर मुल्क । यही नहीं, इस शब्द से आर्य भाषा परिवार और सामी भाषा परिवार की रिश्तेदारी पता चलती है । “आम्” शब्द का मूल ढाई हज़ार साल ईसा पूर्व प्राचीन सुमेरियाई अक्कद भाषा का अम्मु ammu शब्द है यह समूहवाची शब्द है जिसमें सुरक्षा और संरक्षण का भाव भी है । “अम्मु” का अर्थ है राष्ट्र या अवाम । दिलचस्प बात यह कि सेमिटिक भाषा परिवार की कई भाषाओं में “अम्मु” शब्द का वर्ण विपर्यय होकर माँ के आशय वाले शब्द बने हैं जैसे अक्कद में “उम्मु” ummu, अरबी में “उम्म”, हिब्रू में “एम”, सीरियाई में “एमा” आदि ।
वैश्विक स्तर सभी भाषाओं में माँ, ममत्व और जननि भाव वाले शब्दों का जन्म एक जैसे नर्सरी शब्दों से हुआ है, यह गौरतलब है । मेरी नज़र में शिशु जिन मूल ध्वनियों को अनायास निकालता है उनमें सर्वाधिक ‘म’ वर्ण वाली ही होती हैं यथा अम् , मम् , हुम्म् आदि । शिशु के मुँह से जब “मम्-मम्” जैसी ध्वनियाँ निकलती है तो हम इसे भूख लगने का संकेत मानते हैं । इस ध्वनि संकेत की महिमा देखिये कि समूचे जीवजगत में स्तनपायियों के लिए अंग्रेजी में “मैमल” शब्द प्रयोग किया जाता है जो बना है लेटिन कि “मैम्मा” से जिसका मतलब ही है स्तन अथवा पोषणग्रंथि। जो स्तनपान कराए, पालन करे वह माँ । इसलिए अंग्रेजी में माँ के लिए मॉम, मम्मा, मम्मी जैसे शब्द है । ध्यान रहे कि प्रकृति में, पृथ्वी में मातृभाव है क्योंकि ये हमें संरक्षण देते हैं, हमारा पालन-पोषण करते हैं। अक्कद भाषा के “अम्मु” और “उम्मु” दरअसल पालन-पोषण वाले भावों को ही व्यक्त कर रहे हैं। राष्ट्र के रूप में “अम्मु” समूहवाची है, अवाम यानी जनता तो अपने आप में समूह ही है। कोई भी समूह मूलतः आश्रयदाता ही है। मनुष्य तो क्या, पशु भी सबसे पहले समूह में ही आश्रय तलाशते हैं, फिर किसी छत की खोज करते हैं। राष्ट्र के आगे तो सभी शरणागत हैं इसलिए सभी प्राचीन संस्कृतियों में राष्ट्र, मातृभूमि, जन्मभूमि को माँ का दर्ज़ा दिया गया है। पुरुषवाची होने के बावजूद भारतदेश को हम भारतमाता कहते हैं। राष्ट्र में संरक्षण के साथ साथ जननिभाव भी है । राष्ट्र ही हमारी पहचान है ।
प्रकृति के जननिभाव पर गौर करें। पानी भी हमें पोषण देता है। हम जल पर पलते हैं। पानी के “पा” में ही पालने का भाव है। वैदिकी में, संस्कृत में “अप्” का अर्थ पानी है। “अप्” से बरास्ता अवेस्ता, फ़ारसी का “आब” बना है जिसका अर्थ भी पानी है। गौरतलब है कि अधिकांश संस्कृतियाँ जलस्रोतों के किनारे ही पनपी हैं, सो “आब” से ही “आबादी” बना। “आबादी” यानी समूह की रचना, संस्कृति का निर्माण, राष्ट्र का जन्म । इसी कड़ी में फ़ारसी का” अब्र”, संस्कृत का “अभ्र” और मराठी का “आभाळ” आते हैं। सभी का अर्थ है बादल, मेघ। कहने की ज़रूरत नहीं कि इन नामों के पीछे पानी छुपा है। जल के लिए संस्कृत में एक शब्द है “अम्बु” । इसका जन्म हुआ है “अम्ब्” नामक धातु से । ध्यान रहे कि आर्यभाषाओं में एक वर्णक्रम की ध्वनियाँ एक ... “अम्मु” का अर्थ है राष्ट्र या अवाम । दिलचस्प बात यह कि सेमिटिक भाषा परिवार की कई भाषाओं में “अम्मु” शब्द का वर्ण विपर्यय होकर माँ के आशय वाले शब्द बने हैं ...उक्त तमाम सन्दर्भों से गुज़रते हुए अरबी के “आम्” शब्द में सार्वत्रिक, सर्वसाधारण, सामान्य की अर्थवत्ता स्थापित हुई।
दूसरे से बदलती हैं। “प” वर्णक्रम की ध्वनियाँ यहाँ आपस में बदल रही हैं। “अम्बु” के दो ही अर्थ हैं। एक तो शब्द करना (अम्, मम्, हुम् ) दूसरा है जाना। इस जाना में “अम्बु” अर्थात जल का प्रवाही भाव भी छुपा है। अम्ब् से ही बने हैं “अम्बा”, “अम्बिका”, “अम्बालिका” जैसे शब्द जिसमें माता, दुर्गा, भवानी, देवी जैसे अर्थ समाये हैं। समझा जा सकता है कि जल और अम्बु में क्या रिश्ता है, पानी का, प्राण का, जन्मदायी जननि का। अरबी में भी जल के लिए “मा”, “माउ”, “माइ” जैसे शब्द हैं। वैदिकी और संस्कृत के “अम्बु”, “अप्” और अक्कद भाषा के “अम्मु”, “उम्मु” में अन्तर्सम्बन्ध के ये संकेत बहुत साफ़ हैं। इससे मिलते जुलते शब्दों का जलवाची, जननिवाची भाव साबित करता है कि इन शब्दों का विकास भौगोलिक भिन्नता के बावजूद एक जैसा रहा है। “अम्मु” में निहित राष्ट्र, नेशन, आबादी के आशय की तुलना प्राचीन भारतीय “जन” से कर के देखें। जन समूहवाची भी है और व्यक्तिवाची भी। यही बात संस्कृत के लोक में भी है। समस्त दृष्यजगत लोक में समाहित है, जो सार्वत्रिक है, वह “लोक” है। इसी “लोक” से समूहवाची लोग शब्द भी बना है जिसका आशय मनुष्यों से है। इसी नज़रिए से प्राचीन अक्कद के “अम्मु” से विकसित अरबी के “अम्म / आम्” को देखना चाहिए जिसका अर्थ है सार्वत्रिक, सार्वलौकिक, सर्वव्यापक आदि। इसमें ही सर्वसाधारण या सर्वसामान्य जैसे भावों की स्थापना हुई है। “लोक” में निहित दृष्यजगत का भी यही भाव है अर्थात वह जो सब पर उजागर है। अरबी के “आम” में निहित साधारण, सामान्य सर्वसाधारण का अर्थ भी सब पर उजागर है। अरबी का “अम्मा amma” शब्द इस सन्दर्भ में महत्वपूर्ण है जिसमें घेराव, आवरण, शरण, आच्छादन, संरक्षण जैसे भाव हैं ।
उक्त तमाम सन्दर्भों से गुज़रते हुए अरबी के “आम्” शब्द में सार्वत्रिक, सर्वसाधारण, सामान्य की अर्थवत्ता स्थापित हुई। इसी कड़ी में हिन्दी में बहुप्रयुक्त अमूमन शब्द का भी ज़िक्र करना चाहिए। “अमूमन” अरबी के आम शब्द का ही बहुवचन है। सामान्यतः, साधारणतः जैसे आशय को व्यक्त करने के लिए हिन्दी में इसका खूब इस्तेमाल होता है। अरबी का “उम्मः” या “उम्मा” शब्द भी अपरिचित नहीं है जिसका अर्थ है धार्मिक समुदाय । हिब्रू में इसका अर्थ राष्ट्र ही होता है । प्राचीन उग्रेटिक भाषा में इसका अर्थ परिवार था । आमखास के मराठी में “हमखास” बनने के सन्दर्भ में ध्यान रहे है कि फ़ारसी के “आमरास्तः” को मराठी में हमरस्ता कहा जाता है। विधायक के लिए मराठी ने इसी आम से आमदार शब्द बनाया । कालान्तर में “आम” शब्द में निहित सर्वसाधारण का अरबी में भी इतना साधारणीकरण हुआ कि इससे बने “आमी” शब्द का अर्थ आम आदमी और प्रकारान्तर से नीच, लोफ़र और बाज़ारू आदमी हो गया । खाँचों में बँटे समाज में अन्ततः यह होता है ही। जो सर्वसुलभ है, साधारण है, अन्ततः उसे स्तरहीन समझ लिया जाना तो तय है।
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1 कमेंट्स:
ध्वनि-प्रधान ही है, भाषा का विकास, मम् से प्रारम्भ और ओमम् से ही समाप्ति..
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