Tuesday, June 12, 2012

‘गौड़बंगाल’ या “बंगाल का जादू”

srichakra

भी-कभी अपनी मातृभाषा से इतर भाषाओं में हमें विभिन्न शब्दों की अर्थछटाएँ देखने को मिलती हैं और कई बार नितांत अपरिचित शब्द की छानबीन करने पर भी अपनी भाषा के किसी न किसी शब्द या मुहावरे से उसका विस्मित करने वाला रिश्ता सिद्ध होता है । बीते एक साल से महाराष्ट्र में हूँ तो ऐसे ही कई शब्दों से साबका पड़ रहा है । जालसाज़ी, ठगी, साज़िश के संदर्भ में अखबारी सुर्ख़ियों आमतौर पर गौडबंगाल शब्द पढ़ने को मिलता है जैसे – रेल्वेभर्तीचे गौडबंगाल उघड़” अर्थात रेल्वे भर्ती में गौडबंगाल का खुलासा। मराठी में भी लगभग यही भाव हैं । सरमोकदम के कोश में इसका अर्थ लबाडी [यानी झूठा, खोटा] हिकमत [ यानी चातुर्य], मसलत [ यानी युक्ति ] बताया गया है । साथ ही जादू-टोना, तन्त्र-मन्त्र का भाव भी इसमें है । कुल अब ये कहने की बात नहीं कि ठगी का काम चतुराई से किया जाता है जिसे चालाक-होशियार आदमी ही कर सकता है । ठगे जाने के बाद व्यक्ति की पहली प्रतिक्रिया चमत्कृत रह जाने की होती है । इसी भाव की वजह से “ठगा सा रह जाना” जैसा मुहावरा जन्मा है ।
गौडबंगाल में जो बंगाल शब्द है उसमें बंगाल प्रान्त से ही अभिप्राय है । प्राचीनकाल से ही बंगाल प्रदेश को जादू-टोना की भूमि माना जाता रहा है और इसी वजह से बंगाल का जादू जैसा मुहावरा प्रचलित हुआ । वैदिक संस्कृति के समानात्तर ही भारत में तान्त्रिक संस्कृति का भी विस्तार था । अथर्ववेद इसका प्रमाण है जिसमें तन्त्र-मन्त्र, जादू-टोना से सम्बन्धित चीज़ों का वर्णन है । मध्यकाल में भारतीय मनीषा के रहस्यवादी दर्शन का एक अंग तन्त्रवादी साधना के रूप में सामने आया । एक वक्त था जब समूचा भारत ही तन्त्र-मन्त्र से आविष्ट था । वृहत्तर भारत में विभिन्न तान्त्रिक सम्प्रदाय थे जिनमें पूर्व दिशा में अंग, वंग, कलिंग, गौड, कामरूप, विदेह, मगध आदि प्रान्तों में यह विचारधारा काफी उत्कर्ष तक पहुँची । वङ्ग का एक रूप बंग हुआ और उससे ही यह समूचा क्षेत्र बंगाल कहलाया । इससे सटे हुए गौड क्षेत्र का नाम भी बंगाल के साथ चस्पा हुआ और गौड़बंगाल शब्द ही मध्यकाल में बोला जाता था । आधुनिक बंगाल में भी महान जादूगर हुए हैं और आज भी बंगाली जादूगरों का लोहा पूरा देश मानता है ।
प्राचीनकाल में भी बंगाल के शक्तिपीठों में तन्त्रसाधना होती थी मगर बारहवीं सदी से सोलहवीं सदी के बीच तो बंगाल तन्त्रसाधना का अखाड़ा ही बन गया । बंगाल शब्द संस्कृत के वङ्ग (मोनियर विलियम्स) से बना है । आप्टे कोश में इसका मूल वङ्गाः बताया गया है । इसमें बंगाल प्रदेश तथा उसके निवासियों की पहचान अभिहित है । इसके अन्य अर्थों में कपास, बैंगन का पौधा, सीसा, रांगा, एक विशिष्ट वृक्ष आदि हैं । पुराणों में अंग, वंग, कलिंग, पुण्ड्र, सुह्म (सूक्ष्म) राज्यों के नाम हैं जो राजा बलि के पुत्रों के नामों पर थे । बलि निस्संतान थे । उनके आग्रह पर रानी सुदेष्णा दृष्टिहीन दीर्घतमा ऋषि के साथ नियोग-संसर्ग से इन पाँच पुत्रों की माँ बनी थीं । प्राचीन अंग की पहचान आज के भागलपुर, सहरसा , पुण्ड्र यानी पूर्णिया ज़िला, वङ्ग यानी ढाका के आसपास का क्षेत्र , सूह्म (सूक्ष्म) की पहचान मुर्शिदाबाद, वीरभूम ज़िलों में तथा कलिंग आज के उड़ीसा का पूर्वोत्तर क्षेत्र है । एक क्षेत्रविशेष के रूप में नामकरण के पीछे इनमें से कौन सा अर्थ प्रभावी हुआ, यह कहा नहीं जा सकता ।
बंगाल के साथ लगे गौड को पहचाना आपने ? यह वही है गौड़ है जो ब्राह्मणों का एक उपनाम या उपवर्ग भी है । देशभर में फैले गौड ब्राह्मणों के आदिसूत्र बंगाल से या उसके पड़ोसी उड़ीसा के सीमावर्ती क्षेत्रों से जुड़ते हैं । मोनियर विलियम्स और वाशि आप्टे के कोश में गौड शब्द का रिश्ता गुड़, रस, रस-निषेचन गुड़ निर्मित शराब आदि से बताया गया है । मोनियर विलियम्स के कोश में गौड की प्रविष्टि में इसका एक अर्थ " sugar country " बताया है । इसके अलावा इसका मतलब किसी न किसी प्रकार से गौड़ से सम्बद्ध होना भी है । अब गौड़ का अर्थ तो हर हाल में गन्ना और गुड़ से ही जोड़ा गया है । गौड़ प्रान्त की स्थिति के बारे में विभिन्न संदर्भ अलग-अलग जानकारी देते हैं क्योंकि अलग-अलग कालखण्डों में गौड़ प्रान्त का भूगोल बदलता रहा है । गौड़ के साथ बंगाल का युग्म ही महत्वपूर्ण है । एक और दिलचस्प तथ्य यह भी कि आप्टे कोश में गौड और पुण्ड्र क्षेत्र को एक ही बताया गया है और पुण्ड्र का अर्थ भी लाल, कमल, गुड़, गन्ना आदि बताया गया है । पुण्ड्र से ताल्लुक रखते ब्राह्मण पौण्ड्रिक कहलाए । एक विशिष्ट यज्ञ का नाम भी पुडरीक
ध्यान रहे गौड से सम्बद्ध लोग भी गौड कहलाए । गौड़ की परम्परा गौडी या गौडीय हुई । गौड़ की शराब भी गौड़ी कही गई और गौड के अनुष्ठानकर्ता, याजक, होतृ, पुरोहित आदि गौड़ ब्राह्मण कहलाए । राजतरंगिणी के मुताबिक गौड़ का राजा जयंत था जिसने तब भागलपुर से लेकर गोड्डा, बांकुड़ा और मुर्शिदाबाद तक अपना राज्य फैला लिया था जो वङ्ग कहलाता था । इस तरह यह समूचा क्षेत्र ही गौडबंगाल कहलाने लगा था । कश्मीर नरेश जयादित्य ने सातवीं-आठवीं सदी में गौड प्रान्त को जीत लिया था । बंगाल के गौड़ ब्राह्मण समूचे देश में फैले । राजस्थान, गुजरात, कश्मीर, उत्तराखण्ड यहाँ तक कि केरल में भी गौड़ ब्राह्मण पहुँचे । तान्त्रिक संस्कृति से प्रभावित पूर्व के अंग, वंग, कलिंग, गौड, कामरूप, विदेह, मगध जैसे प्रान्तों के पुरोहितों की ख्याति पश्चिमी क्षेत्रों तक पहुँची । ईरान के अग्निपूजकों को दीक्षित करने के लिए मगध के पुरोहित ( मग ब्राह्मण) जाते थे जिनकी सौर उपासना प्रणालियों से विस्मित युनानी इतिहासकारों ने उन्हें जादूगर कहा । मग ब्राह्मणों को मागी कहा गया । इनमें से कई लोग ईरान में ही बस गए और कई समूह लौट कर आए । जादू के अर्थ में मैजिक शब्द के पीछे भी मग ही है ।
स्पष्ट है कि पूर्वांचल की तन्त्रविद्या का प्रभाव व्यापक रहा । कोई आश्चर्य नहीं कि कालान्तर में बंगाल नाम के पीछे पूर्व की इसी विशिष्ट विद्या का आशय रहता था । बंगाल का जादू अर्थात पूरब का जादू । बौद्धयुग में समूचे भारत में तन्त्रविद्या ने जोर पकड़ा । सौरविद्या के माहिर मग ब्राह्मण भी सौर उपासना पद्धति की जगह तन्त्र-मन्त्र की तरफ उन्मुख होने लगे । विभिन्न यात्रियों के अनुभवों से बंगाल का जादू, गौड़बंगाल जैसे मुहावरे और समास लगातार प्रसार पाते गए । कई तमाशेबाजों नें भी बंगाल का काला-जादू , बंगाली जादूगर जैसे शब्दों का मनमाना प्रयोग कर इन्हें प्रचारित किया । इन मुहावरों-शब्दों की अर्थवत्ता में कहीं विस्तार हुआ और कहीं संकुचन भी । मराठी तक आते-आते गौडबंगाल से भूगोल लापता हो चुका था और उसकी जगह मुहावरा हावी हो चुका था जिसमें उस क्षेत्र की प्राचीन संस्कृति का बोध होता है । गौडबंगाल की तर्ज़ पर मायावी या जादूगर को गौडबंगाली कहते हैं । वैसे देखा जाए तो नामों-पुराणों की महिमा न्यारी है । स्कंदपुराण के एक श्लोक के अनुसार पूरे भारत में पंचद्रविड़ की तरह ही पंचगौड़ हैं अर्थात पाँच गौड़नामधारी क्षेत्र हैं । इस पर श्लोक भी है –“कर्णाटकाश्च तैलंगा द्राविडा महाराष्ट्रकाः , गुर्जराश्चेति पञ्चैव द्राविडा विन्ध्यदक्षिणे ।। सारस्वताः कान्यकुब्जा गौडा उत्कलमैथिलाः, पञ्चगौडा इति ख्याता विन्ध्स्योत्तरवासिनः ।। गौरतलब है कि विद्वान झारखण्ड के गोड्डा और उत्तरप्रदेश के गोंडा को भी गौड़ का रूपान्तर ही मानते हैं ।

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7 कमेंट्स:

दिनेशराय द्विवेदी said...

गौड़ प्रदेश (बंगाल) से पलायन कर जो लोग देश भर में पहुँचे वे सभी जातियों में मिलते हैं। क्षत्रिय, और शूद्र भी जो वहाँ से पलायन कर निकले अपने गोत्र के रूप में गौड़ शब्द का प्रयोग करते हैं। वस्तुतः जाति या गोत्र के रूप में जहाँ गौड़ शब्द का उल्लेख मिलता है वह राष्ट्रीयता का प्रतीक है। उसी तरह जैसे भारत के बाहर हम भारतीय कहलाते हैं, गौड़ प्रदेश से पलायन किए हुए लोग गौड़ कहलाए।

प्रवीण पाण्डेय said...

आज शब्द का अर्थ छाया रहा..

अमरनाथ मधुर said...

गौड़ का सम्बन्ध गुड और शराब से बताया गया है | हमारे यहाँ ईंख गोड़ना शब्द भी प्रयोग होता है तथा निराई गुडाई शब्द तो है ही | इसका अर्थ ये हुआ कि गौड़ शब्द एक क्रिया है जिससे शराब बनाती है, गुड बनता है खेत क्यार का खर पतवार साफ़ होता है | एक विशेष क्रिया जिसके प्रयोग से विशिष्ट उपलब्धि होती है |इस उपलब्धि को पाने वाले ही गौड़ हैं तहा उनकी बहुलता का क्षेत्र गौड़ प्रदेश है |

Mansoor ali Hashmi said...

'गौर' करके ये निकला नतीजा,
'गौड़' बंगाल ही से है निकला,
'गुड़' भी इसमें, 'सुरा' भी छुपी है,
'जादू-टोने' से भी लेना-देना,
है 'लबाड़ी' कोई, 'मंत्री' भी,
डर 'ठगी' का है, हुश्यार रहना !
http://aatm-manthan.com

Asha Joglekar said...

गौडबंगाल मतलब कोई छुपी बात जो समज मे ना आ रही हो पर आपने तो इस गौडबंगाल को खोल कर रख दिया सामने । मुझे लगता था कि गौ,ड बिहार को कहते हैं क्यूं कि यह प्रदेश अफ्रीका के गोंडवाना से टूट कर निकला है (कॉन्टिनेन्टल ड्रिफ्ट) क्या इसका कोई संबंध है ?

स्वप्न मञ्जूषा said...

कहीं आपकी राशि 'कन्या' तो नहीं ?
शब्दों पर आपका अनुसन्धान ऐसा सोचने को विवश कर गया..
आज भी बंगाल के जादू का प्रभाव लोग मानते हैं, पहले जब कोई बंगाल काम करने जाता था तो उसे हिदायत दी जाती थी, बंगाली युवतियों से दूर रहे, वो अपने काले बालों में बाँध लेतीं हैं :)
बंगाल गुड के लिए प्रसिद्ध है और सबसे ज्यादा खजूर के गुड के लिए...
हमेशा की तरह लाजवाब, आपकी तारीफ करने की मुझे कभी हिम्मत नहीं होती ..

Unknown said...

गौर ब्राहमण मध्यकाल में महाराजाधिराज राजराजेश्वर श्री रामचंद्र जी महाराज गुरु वशिष्ठ के वंशज मानते हैं ।

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