Sunday, July 1, 2012

‘दीन’ में समाया ‘ध्यान’ [2]

पिछली कड़ी-‘दीन’ में समाया ‘ध्यान’ [1] से आगेworld-religions2

मे केंजी के पहलवी कोश के अनुसार जरथ्रुस्ती साहित्य में उल्लेखित ‘दाएना-वंगुही’ का विपर्यय होकर ‘वेह-दीन’ शब्द सामने आया और फिर इसका रूप वेह-दीन > विहदीन > बिहदीन हो गया । हालाँकि फ़ारसी के ‘बिह’ का अधिकांश रूप ‘बेह’ उच्चारा जाता है । गौरतलब है कि ‘बेह’ का अर्थ भी फ़ारसी में अच्छा होता है और इसके जन्मसूत्र वैदिक भाषा के ‘भद्र’ से जुड़े हैं । बेहतर, बेहतरीन वाला ‘बेह’ भद्र से निकला ‘बेह’ है । अवेस्तन डिक्शनरी के अनुसार वंगुही का अर्थ है भला, अच्छा, सदाचारी, अच्छी चीज़ वगैरह और इससे निकला ‘बिह’ भी ‘बेह’ के रूप में सामने आया । ‘बेह-दीन’ से यह स्पष्ट है । जॉन प्लैट्स के मुताबिक ‘दाएना’ का मूल अवेस्ता की ‘दी’ धातु है जो संस्कृत ( या वैदिक ) शब्दावली के ‘धी’ का प्रतिरूप है । वैदिक ‘धी’ में मूलतः चिन्तन, विचार, ध्यान, मेडिटेशन जैसे भाव हैं । मोनियर विलियम्स कोश के मुताबिक ‘धी’ स्वतंत्र शब्द है, धातु नहीं और उसका मूल ‘धा’ है जिसमें रखने, धारण करने के साथ-साथ उपरोक्त सारे भाव हैं ।
मेरे विचार में अवेस्ता के ‘दाएनम’ शब्द को वैदिक भाषा के ‘ध्यानम्’ के समतुल्य देखना चाहिए । जेनी रोज़ की “जोरास्टरियनिज़्म: एन इंट्रोडक्शन” में ‘दाएनम’ का रिश्ता ऐसी धातु से सम्भावित बताया है जिसमें परख (अन्तर्चक्षुओं से) का भाव है और इस तरह ‘दाएना’ शब्द में धार्मिक अन्तर्ज्ञान का भाव आता है । गौरतलब है कि जॉन प्लैट्स, अवेस्ताई धातु दी = धी ( वैदिकी ) की बात करते हैं, जबकि वामन शिवराम आप्टे ‘धी’ की धातु ‘ध्यै’ बताते हैं जिसका अर्थ है सोचना, चिन्तन करना, मनन करना आदि । ‘ध्यै’ से बने ‘ध्यानम्’ में इन्हीं सब भावों के समावेश से जो अर्थ उभरता है, वह है दिव्य अन्तर्ज्ञान या अन्तर्विवेक । इसी तरह 1860 में प्रकाशित “आइरिश ग्लॉसेसः मिडाइवल ट्रैक्ट ऑन लैटिन डिक्लैंशन” में आइरिश प्राच्यविद् डॉ रुडोल्फ़ थॉमस सीगफ्रीड के हवाले से ‘दाएना’ की धातु भी ‘ध्यै’ ही बताई गई है । ‘ध्यानम्’ और अवेस्ता के ‘दाएनम’ में ध्वनिसाम्य और अर्थसाम्य यहाँ समतुल्य हैं और इनमें व्युत्पत्तिक रिश्ता भी नज़र आ रहा है ।
‘मज़हबी’ के संदर्भ जिस तरह ‘धर्म’ से ‘धार्मिक’ बनता है उसी तरह ‘दीन’ से ‘दीनी’ शब्द बनता है । मैंकेन्जी के कोश में पहलवी के ‘दैनीग’ शब्द का उल्लेख जिसका अर्थ ‘दीनी’ यानी धार्मिक है । मेरे विचार में यह वैदिक ‘ध्यानिक’ का सहोदर है जिसका अर्थ धार्मिक (आचार) होता है । वामन शिवराम आप्टे के कोश में ‘ध्यानिक’ का अर्थ है “सूक्ष्म चिन्तन से प्राप्त” ( आचार, विचार, नीति ) । गौरतलब है बौद्धधर्म के प्रभाव में ‘ध्यान’ शब्द का प्रसार अलग-अलग रूपों में पूर्वी देशों में हुआ । चीनी, तिब्बती, कोरियाई, वियेतनामी और जापानी में ‘ध्यान’ के विविध रूप मौजूद है । बौद्ध विचार-सरणी में ‘ध्यान’ शब्द में व्यापक विस्तार हुआ और सूक्ष्म चिंतन का भाव भी इसमें शामिल हुआ । भगवान बुद्ध ने ध्यान के ‘ञ्झान’ या झान रूप को ग्रहण किया । गौरतलब है कि अधिकांश बौद्ध साहित्य पालि भाषा में ही है और उनमें ध्यान के लिए ‘ञ्झान’ रूप ही मिलता है । राजेशचंद्रा लिखित बुद्ध का चक्रवर्ती साम्राज्य पुस्तक के अनुसार बुद्ध ने जिस ‘ञ्झान’ का प्रयोग किया, कालांतर में पंडितो नें उसका परिष्कार कर उससे ‘ध्यान’ बना लिया।
भारत से पूर्व दिशा में सबसे पहले बौद्ध धर्म चीन पहुँचा जहाँ ञझान का रूप ‘चियान’, ‘चान’ अथवा ‘चा’आन’ हुआ जिसने एक पंथ का रूप लिया। ‘ञ्झान’ के कोरियाई भाषा में भी ‘सिओन’, ‘सोन’ अथवा ‘सॉनजान’ जैसे रूप बने। वियतनामी में ‘ञ्झान’ का रूप हुआ ‘थियेन’ और जापानी में यह ‘ज़ेन zen’ हो गया । बौद्ध धर्म के उपपंथ के रूप मे आज दुनियाभर में ‘ज़ेन’ को ही सर्वाधिक जाना जाता है । स्पष्ट है कि वैदिक शब्दावली ‘ध्यै’ से ‘ध्यानम्’ और इसके समकक्ष अवेस्ता के किसी पूर्वरूप ‘ध्यै’ से अवेस्ताई शब्दावली के ‘दाएनम’ का जन्म हुआ । पंथ, मार्ग, विचार-सरणी, चिन्तन-धारा, अन्तर्चेतना, अन्तर्ज्ञान और अन्ततः धर्म के रूप में इस ‘दाएनम’ से ‘दाएना’, ‘दैन’ और फिर ‘दीन’ जैसा रूपान्तर हुआ । इसी रूप का प्रसार अरबी में भी हुआ । अरबी नामों के साथ अन्तिम सर्ग के रूप में ‘दीन’ शब्द का प्रयोग आम है जैसे ‘अल-दीन’ या ‘उद-दीन’ और इसमें “ जिस पर भरोसा हो” इनसे बने नाम भारत में जाने पहचाने हैं जैसे अलाउद्दीन, मुईनुद्दीन, अमीनुद्दीन, आलमुद्दीन आदि ।

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1 कमेंट्स:

प्रवीण पाण्डेय said...

ध्यान के ज्ञान पर इतना ध्यान, आज तो नवज्ञानगंगा में डूब गये।

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