Thursday, August 30, 2007

रथ से रोटी तक का सफर


मुतासिर लोग यूं हैं रोटियों से,
ख़यालों तक गई गोलाइयां हैं।


वि सूर्यभानु गुप्त की इन पंक्तियों में रोटी की गोलाई को ही भूख के प्रतीक के रूप में रेखांकित किया गया है। संस्कृत-हिन्दी के रथ , वृत्त, रोटी और अंग्रेजी के रोटेशन, राऊंड या रोटरी जैसे शब्दो पर गौर करें तो इनमें दिलचस्प रिश्तेदारी सामने आती है। न सिर्फ ये सभी शब्द गोलाई का भाव लिए हुए हैं बल्कि ये सभी इंडो-यूरोपीय आधार से निकले हैं। गौरतलब है कि घूमने-फिरने, चक्कर लगाने या गोलाकार आदि भावों के लिए संस्कृत में वृत् शब्द है जिससे वृत्त बना। वृत्त शब्द के व्यापक अर्थ है मसलन गोल , घेरा या परिधि के अलावा घटना के अर्थ में इतिवृत्त, जीवन वृत्ति या व्यवसाय, आचरण-व्यवहार के अर्थ में वृत्ति वगैरह। गोल , कुंडलाकार गोलाकार के लिए वर्तुल शब्द इससे ही निकला है । इसी क्रम में है रथ: शब्द जिसने हिन्दी में रथ का रूप लिया। रथ का मतलब हुआ वाहन का एक विशेष भाग अर्थात पहिया-चक्र। वृत्त या रथ का इंडो-यूरोपीय मूल है रोटो यानी दौड़ना या लुढ़कना आदि। इसी तरह अवेस्ता में यान अथवा वाहन के लिए रथो शब्द है जो मूलत: संस्कृत के रथ: शब्द के पहिये वाले अर्थ से ही मेल खाता है। पहिये के लिए ही कुछ यूरोपीय भाषाओं के शब्दों पर जरा गौर करें- जर्मन में रैड, लैटिन रोटा, लिथुआनियाई में रोटास और अंग्रेजी में रोटरी , रोटेशन , राउंड जैसे शब्द बने हैं।
अब आते हैं रोटी पर जो संस्कृत के रोटिका से बना है। रोटिका यानी अनाज के आटे से तवे पर सेंकी गई गोल गोल पतली,चपटी टिकिया। वृत्-वर्त-रथ के ही क्रम में ही थोड़े ध्वनि परिवर्तन के साथ वल्, वल, वलनम वेल्लन ,वेल्लनम् जिनमें मुड़ना, घूमना, सरकना, लुढ़कना आदि भाव आते हैं। संस्कृत के उक्त शब्दो से ही हिन्दी में उमेठना के अर्थ में बल देना जैसा वाक्य कहा जाता है। बेल-वल्लरी, बालोर या बल्लर जैसे शब्द भी हैं जो मूलतः सब्जियों के नाम हैं मगर गौर करें कि ये सब लता के रूप में उपजती हैं। लता का स्वभाव होता है गोल गोल चक्कर लगाते हुए ऊपर की ओर चढ़ना। इसके अलावा रोटी या पूरी को आकार देने वाले उपकरण को बेलन नाम भी घुमाने की क्रिया के चलते ही मिला है।

4 कमेंट्स:

Anonymous said...

बहुत खूब! इस लेख में एकदम ताजी रोटियों सा स्वाद है। :)

Gyan Dutt Pandey said...

बस, अगली पोस्ट तीन पर्त वाले तिकोने परांठे पर. :)

mamta said...

शायद इसी लिए ये गाना भी है

गोल-गोल रोटी का पहिया चला
पीछे-पीछे चाँदी का रुपईया चला।

आप बहुत अच्छा लिख रहे है।

Udan Tashtari said...

घुमाने की प्रक्रिया से नाम लेकर बेलन मारने पर कैसे उतर आया जो कि लाठी का काम है. कृप्या ज्ञानधारा बरसायें. :)

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